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संक्रमण के दौर में भारत (India in Transition)

उद्दीपना गोस्वामी
16/03/2020
मैंने दिल्ली में एक दशक से अधिक समय बिताया है, यही कारण है कि भारत की राजधानी में हुई ताज़ा हिंसक घटनाओं ने मुझे मर्माहत कर दिया है, लेकिन मुझे इससे कोई हैरानी नहीं हुई। हो सकता है कि इसकी वजह यही हो कि मैं भारत के उस अशांत पूर्वोत्तर राज्य से हूँ, जहाँ हिंसा का तांडव नृत्य दैनंदिन जीवन का एक हिस्सा है। या हो सकता है कि मुझे यह एहसास इसलिए भी है कि आज जो कुछ हो रहा है, वह भारत के बीचों-बीच हो रहा है। मुझे लगता है कि भारत के सुदूर परिधि पर
दुव्वरी सुब्बाराव
02/03/2020
तीन साल पहले, भारतीय अर्थव्यवस्था की त्रैमासिक विकास दर लगभग 9 प्रतिशत हो गई थी. लेकिन अब यह दर घटकर आधी रह गई है और पिछली तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर 2019) में 4.7 प्रतिशत रह गई. अधिकतर अनुमानों के अनुसार मार्च 2020 को समाप्त होने वाले राजकोषीय वर्ष में विकास दर 5 प्रतिशत हो जाएगी और अगले वर्ष, 2020-21 में यह दर बढ़कर 6 प्रतिशत हो जाएगी. सारे देश के लिए यह गिरावट हैरान कर देने वाली थी. हाल ही में अभी तक हम शान से कहा करते थे कि हमारी
स्वामिनाथन सुब्रमणियम
17/02/2020
सभी देश यह प्रयास करते हैं कि वे अपने नागरिकों को किफ़ायती और अच्छे किस्म की स्वास्थ्य-सेवा उपलब्ध कराएँ. अगर भारत जैसे कम संसाधनों वाले देश को ये दो लक्ष्य ( किफ़ायती और अच्छी स्वास्थ्य सेवा) प्राप्त करने हैं तो उसे स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले मॉडल को नये सिरे से विकसित करना होगा. भारत के सामने दो प्रमुख वास्तविकताएँ हैं: भारी जनसंख्या और प्रति व्यक्ति
रोहन संधु
03/02/2020
जैसे-जैसे हम नये दशक की ओर बढ़ रहे हैं, भारत भी शिक्षा अधिकार अधिनियम (RTE) की दसवीं वर्षगाँठ मना रहा है. यह अधिनियम अप्रैल, 2010 में लागू हुआ था. जहाँ एक ओर शिक्षा अधिकार अधिनियम (RTE) प्रशासन और शिक्षण के सीमित परिणामों पर ही केंद्रित होने के कारण प्रतिबंधित रहा है, वहीं पिछले दस वर्षों में इसके कारण स्कूलों में जो सुधार हुए हैं, उससे भी इंकार नहीं किया जा सकता. शिक्षा अधिकार अधिनियम (RTE) भी एक ऐसा ज़रिया बन गया है, जिसके माध्यम से अनेक
पारस रत्न
20/01/2020
2018 के IISS शांगरी-ला संवाद में, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर अमरीका के तटों तक भौगोलिक विस्तार के रूप में भारत-प्रशांत क्षेत्र से जुड़ी भारत की अवधारणा को स्पष्ट किया था. यहां गौर करने वाली बात है की भारत ने अमरीका के कहने पर भारत-प्रशांत क्षेत्र को नहीं अपनाया; बल्कि इसका जिक्र इतिहासकार कालिदास नाग के लेखों में मिलता है , जिन्होंने चालीस के दशक में अपने लेखों (भारत-प्रशांत विश्व) में इस
देवेश कपूर
06/01/2020
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में दुबारा वापसी की तो कई बातें उनके पक्ष में थीं, नया जनादेश, संसद में पूर्ण बहुमत, पराजित विपक्ष और मतदाताओं के बीच उनकी अपार व्यक्तिगत लोकप्रियता, जिसके सामने सभी नेता बौने दिखाई पड़ने लगे. लेकिन उसी समय उनकी नई सरकार के सामने तीन प्रमुख चुनौतियाँ थीं. पहली चुनौती थी कमज़ोर अर्थव्यवस्था, जिसके
निवेदिता राजू
16/12/2019
रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मार्च,2019 का अपना संबोधन इस घोषणा के साथ आरंभ किया था कि “भारत अब वैश्विक महाशक्ति बन गया है.” उनका यह बयान इस धारणा पर आधारित था कि उपग्रह-विरोधी हथियारों का यह परीक्षण (ASAT) अंतरिक्ष किराये पर लेने वाले एक राष्ट्र के रूप में भारत की स्थिति को स्थापित करने के लिए यह “अनिवार्य” था, लेकिन किफ़ायती दरों पर नवोन्मेषकारी टैक्नोलॉजी के निर्माण की अनूठी क्षमता के कारण भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई दशकों
नंदिनी देव
02/12/2019
अगस्त, 2019 में भारत की संसद ने कारोबारी जगत् के अग्रणी नेताओं को चेतावनी दी थी कि वे अगर 2013 में कॉर्पोरेट जगत् के लिए अपेक्षित सामाजिक दायित्व (CSR) संबंधी प्रावधानों का पालन करने में असफल रहे तो उन्हें तीन साल तक का कारावास का दंड दिया जा सकता है. अगर कोई कंपनी अपने वार्षिक लाभ में से 2 प्रतिशत अंश परोपकार के लिए खर्च नहीं करती है तो सरकार कारागार के दंड के अलावा उसके खाते में से उतनी ही राशि निकालकर सरकारी निधि के लिए सूचीबद्ध किसी
क्रिस ऑगडेन
18/11/2019
हाल ही के दशकों में भारत धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय सोपान पर ऊपर चढ़ता जा रहा है और इसके कारण विश्व की एक प्रमुख महाशक्ति के रूप में इसका वैश्विक प्रभाव भी नज़र आने लगा है. पिछले चार दशकों में चीन एक जबर्दस्त ताकत के रूप में उभरकर सामने आया है और इसके साथ-साथ भारत ने भी काफ़ी ऊँचाइयाँ हासिल कर ली हैं. इसके कारण विश्व की आर्थिक शक्ति का केंद्र यूरोप और उत्तर अमरीका से हटकर एशिया की ओर स्थानांतरित होने लगा है. साथ ही साथ एशिया की इन दोनों
ब्रतोती रॉय
04/11/2019
मार्च 2019 में चिपको आंदोलन की 46 वीं सालगिरह मनायी गयी थी. आम तौर पर इसे भारत में पर्यावरण संबंधी न्याय का पहला आंदोलन माना जाता है, लेकिन अगर हम इतिहास पर नज़र दौड़ाएँ तो पाएँगे कि भारत में पर्यावरण संबंधी न्याय के आंदोलनों का इतिहास इससे कहीं अधिक पुराना है. 1859-63 के दौरान नील की खेती की विरुद्ध बंगाल के किसानों द्वारा किये गए ज़मीनी विद्रोह को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आरंभिक विद्रोह माना जा सकता है और इस विद्रोह में पारिस्थितिकी (ecology) के