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कोविड-19 के दौरान भारत के वायु प्रदूषण में गिरावट

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11/05/2020
जेम्स पोएट्शर

कोविड-19 की भयानक महामारी के बीच, एक असाधारण सकारात्मक बात यह हुई कि वायु प्रदूषण के स्तर में भारी गिरावट आ गई. मुख्यतः विशेषज्ञों ने नाइट्रोजन डायोक्साइड ( NO2) का मापन किया. NO2 छह प्रमुख वायु प्रदूषकों ( विशिष्ट पदार्थ, कार्बन मोनोक्साइड, सल्फ़र डायोक्साइड, भूमि-स्तर का ओज़ोन और सीसे के अलावा ) में से एक तत्व है. अन्य अनेक गैसों की तरह NO2 भी प्राकृतिक और मानवीय स्रोत है. प्राकृतिक और मानवीय स्रोतों में शामिल हैं, आकाशीय बिजली, महासागर और ज्वालामुखी, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण एवं विरासत विभाग की 2005 की रिपोर्ट के अनुसार शहरी इलाकों में NO2 के प्राकृतिक स्रोत कुल  NO2 के छोटे-से भिन्नांक जितने हैं, शहरों में NO2 के प्राकृतिक स्रोत समग्र NO2 के केवल 1 प्रतिशत हैं. मानवीय कार्यकलाप लगभग पूरी तरह से NO2 के उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसमें से सड़क परिवहन पहला कारण है. जीवाश्म ईंधन जलाकर उसका उपयोग करने वाले  हवाई जहाज, बिजली संयंत्र और जलयान NO2 के प्रमुख मानवीय स्रोत भी हैं. इसे मद्दे नज़र रखते हुए इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है कि कठोर वैश्विक लॉक डाउन के दौरान खास तौर पर भारत के घनी आबादी वाले शहरों के शहरी क्षेत्रों में NO2 के स्तर में भारी गिरावट आ गई.

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी कॉपरनिकस सेंटिनल 5P से प्राप्त उपग्रह के NP2 के स्तरों का वैश्विक रूप में मापन करती है. इनसे उत्सर्जन के स्रोतों का मापन बिल्कुल सटीक ढंग से किया जाता है, क्योंकि उत्सर्जन स्थल से काफ़ी दूर तक यात्रा करने वाली अन्य गैसों के विपरीत NO2 का जीवन काल बहुत कम होता है और बहुत लंबी यात्रा करने से पहले ही इसका जीवन समाप्त हो जाता है. दूसरे शब्दों में, सेंटिनल 5P का उपग्रह यदि दिल्ली के ऊपर NO2 के हॉटस्पॉट को पकड़ लेता है तो इस बात की काफ़ी संभावना होगी कि इसका उत्सर्जन दिल्ली के आसपास के इलाके से ही किया गया है. इसलिए NO2 के उत्सर्जन के मापन के लिए उपग्रह का चित्र सबसे अधिक विश्वसनीय उपकरण है बशर्ते कि बादलों की छाया के उच्च स्तर को इससे बाहर निकाल दिया गया हो. 

NO2 के वैश्विक गिरावट के स्तर को सबसे पहले चीन में देखा गया. चीन में जनवरी के अंत में संगरोध के कठोर उपाय लागू करने के कारण इसके स्तर में नाटकीय तौर पर गिरावट देखी गई. फ़रवरी और मार्च के अंत में चीन के बाद यूरोप और उत्तरी अमरीका के देशों ने इन उपायों को लागू किया और तब वैश्विक स्तर पर समान स्तर की गिरावट दुनिया-भर में दिखाई देने लगी. खास तौर पर भारत में देशव्यापी लॉकडाउन के बाद वायु प्रदूषण के स्तरों में स्तब्ध कर देने वाला असर दिखाई देने लगा.

जब सभी नागरिक घर में ही संगरोध के कारण बंद हों, सड़क यातायात ठप्प हो और बिजली के संयंत्र बंद हो जाएँ तो देश-भर में प्रदूषण के स्तर में भारी गिरावट आ गई. खास तौर पर इसका प्रभाव धुएँ से हमेशा ढके शहरों में दिखाई दिया, जहाँ प्रदूषण में नाटकीय तौर पर गिरावट आ गई थी.

दिल्ली के महानगरीय क्षेत्र में NO2 का मापन, जहाँ प्रदूषण के स्तर में देश के सबसे बड़े शहर में नाटकीय तौर पर गिरावट दिखाई पड़ी; 25 मार्च (जिस दिन से संगरोध की शुरुआत हुई) से 2 मई तक NO2 का स्तर औसतन 90 µmol/m2 था, जबकि 1 मार्च से 24 मार्च के बीच यह स्तर 162 µmol/m2 था. सन् 2019 में 25 मार्च से 2 मई तक का स्तर इस वर्ष के स्तर से कहीं अधिक था, अर्थात् औसतन 158 µmol/m2 था.

बृहन् मुंबई और नवी मुंबई में NO2 का मापन नीचे था और इसी तरह की प्रवृत्ति 25 मार्च से 2 मई तक दिखाई पड़ी. यहाँ NO2 का स्तर औसतन 77 µmol/m2 था. इसकी तुलना में 1 मार्च से 24 मार्च तक NO2 का मापन 117 µmol/m2 था और 25 मार्च से 2 मई तक NO2 का मापन औसतन 122 µmol/m2 था.

लगभग सभी भारतीय शहरों में NO2 के स्तर में इसी तरह की गिरावट दिखाई पड़ती है और इससे भारत में लॉकडाउन का राष्ट्रीय मान दिखाई पड़ता है.

लॉकडाउन के दौरान NO2 के देशव्यापी उत्सर्जन में आई गिरावट के कई महत्वपूर्ण तात्कालिक परिणाम होंगे. NO2 के उच्च स्तर के फैलाव से मनुष्य के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है. NO2 के अल्पकालिक उच्च स्तर के फैलाव से जबर्दस्त खाँसी, साँस की बीमारियों (अस्थमा) में वृद्धि और अस्पताल में भर्ती होना पड़ सकता है, जबकि उच्च स्तर के दीर्घकालीन  फैलाव से अस्थमा हो सकता है और साँस की बीमारी होने का खतरा बढ़ सकता है. इसलिए यह उचित ही है कि विशेषज्ञ वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के दीर्घकालीन फैलाव और कोविड-19 से होने वाली मौतों की वृद्धि के बीच के महत्वपूर्ण संपर्क सूत्र तलाशने में जुट गए हैं. कई शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि वायु प्रदूषण के स्तर में कमी आने से न केवल कोविड-19 के व्यक्तिगत स्तर के खतरे को कम किया जा सकेगा, बल्कि इस समय बहुत-से लोगों की जान भी बच सकती है. साथ ही वायु प्रदूषण से साल भर में होने वाली सात मिलियन लोगों को भी मौत से बचाया जा सकेगा. फिर भी कई शहरी इलाकों में कोविड-19 के प्रकोप से पहले NO2 के खतरनाक स्तर के कारण कोविड-19 से होने वाली अनेक संभावित मौतों की तुलना में उत्सर्जन में आई कमी से उन्हें बचाया जा सकता है. 

कोविड -19 की महामारी और संगरोध के कारण वायु प्रदूषण के स्तर में आई गिरावट ने वायु प्रदूषण के मौजूदा उच्च स्तर से संबंधित एक गंभीर मसले को हमारे सामने उजागर किया है.  भयावह वास्तविकता तो यह है कि मानवीय कार्यकलाप अनिवार्यतः पूरी तरह से ठप्प हो जाने के बावजूद वर्तमान अनुमान के अनुसार 2019 की तुलना में 2020 में कार्बन डायऑक्साइड (CO2) के स्तर में लगभग 5.5 प्रतिशत की ही गिरावट आएगी. इसे सही परिप्रेक्ष्य में रखते हुए तापमान में वैश्विक वृद्धि की दर को 1.5 डिग्री सैल्सियस तक सीमित रखने के लिए CO2 के वैश्विक उत्सर्जन में हर साल 7.6 प्रतिशत की गिरावट आनी चाहिए. हालाँकि कई विशेषज्ञ यह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभाव को फिर भी टाला जा सकता है. इसी प्रकार संगरोध समाप्त होने के बाद आशा की जाती है कि वायु प्रदूषण और NO2 का स्तर अपने सामान्य अस्वस्थता के स्तर से ऊपर उठ सकता है.

यह महत्वपूर्ण है कि जब भारत में लॉकडाउन का अपरिहार्य रूप से अंत होगा और लोग अपनी सामान्य दिनचर्या की ओर लौट आएँगे तो वे अपने पुराने बर्ताव की ओर लौटने के लिए मजबूर नहीं रहेंगे. वायु प्रदूषण की मौजूदा गिरावट को बनाये रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन करने होंगे. सड़क परिवहन में कमी और उससे संबद्ध वायु प्रदूषण में आई गिरावट से यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि गैस से चलने वाली कारें प्रदूषण की मुख्य संचालक हैं. परिवहन के बिजलीकरण, सार्वजनिक परिवहन के विस्तार, अधिक से अधिक साइकिल मार्ग बनाकर और लोगों को अपनी कार छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए और भी उपाय खोजने होंगे ताकि वायु प्रदूषण के मुख्य मानवीय स्रोत से भारत के उत्सर्जन में नाटकीय गिरावट लाई जा सके.   यह भी महत्वपूर्ण है कि बिजली के वाहनों को बढ़ाया जाए और भारत के शहरों में जीवाश्म ईंधन के बजाय ऊर्जा के साफ़-सुथरे स्रोतों का मोटे तौर पर उपयोग किया जाए.

यह विडंबना है कि इस भयानक श्वसन विषाणु ने श्वसन के एक और संकट को उजागर कर दिया है. इस कठिन दौर में हाल ही में वायु प्रदूषण में जो गिरावट आई है, उससे भारत के सामने आशा की एक किरण उभर आई है और अब आवश्यकता इस बात की है कि इस किरण को अस्थायी से यथासंभव स्थायी बनाने का प्रयास किया जाए.  

जेम्स पोएट्शर greenhousemaps.com के संस्थापक हैं और वायुमंडल के रसायन विज्ञान और उपग्रह डेटा में उनकी एक छात्र के रूप में रुचि है. उनके मानचित्रों का उपयोग अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण लेखों में होता रहा है.

 

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919