वित्तीय बाज़ारों में पूँजी जुटाने की किसी देश की क्षमता उसकी कथित साख से जुड़ी होती है और यह एक महत्वपूर्ण लेकिन कम खोजी गई थीम है जो उसकी आर्थिक और सामाजिक संभावनाओं को निर्धारित करती है. निवेशक आम तौर पर किसी देश की क्रेडिट योग्यता निर्धारित करने के लिए क्रेडिट रेटिंग पर भरोसा करते हैं. यदि किसी देश की क्रेडिट रेटिंग उसके क्रेडिट फंडामेंटल से कम है, जैसा कि हम भारत के मामले में तर्क देते हैं, तो इससे अनिवार्यतः हमेशा उधार लेने की लागत बढ़ जाती है, जिससे स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढाँचे और जलवायु लचीलापन जैसे क्षेत्रों पर सार्वजनिक खर्च के लिए कम राजकोषीय गुंजाइश बचती है.