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केरल में एकजुटता से संक्रमण को कैसे नियंत्रित किया जा रहा है?

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08/06/2020
प्रेरणा सिंह

नये कोरोना के विषाणु जैसे रोगाणुओं का सबसे भयावह पहलू यही है कि यह देश की सीमाओं को नहीं पहचानता. इसके बावजूद ये सीमाएँ ही संक्रामक बीमारियों से लड़ने की हमारी संवेदनशीलता की सीमाएँ भी तय करती हैं. आज सरकारी प्रयासों के कारण ही न्यूज़ीलैंड और विएतनाम जैसे देशों में उनकी राष्ट्रीय सीमाओं के अंदर इनके नागरिकों को कोविड-19 से बहुत कम नुक्सान होने की आशंका है. 

लेकिन यह बात केवल राष्ट्रीय सीमाओं की नहीं है. भारत और संयुक्त राज्य अमरीका विश्व के दो सबसे बड़े संघीय लोकतांत्रिक देश हैं, लेकिन दोनों देशों ने जिस तरह से कोविड-19 से मुकाबला करने की रणनीति अपनाई है, उसमें ज़मीन-आसमान का अंतर है. इससे राज्य की सीमाओं का महत्व पता चलता है. भारत में अचानक ही केंद्र सरकार ने 25 मार्च से अनिवार्य लॉकडाउन लागू कर दिया. फिर भी सत्ता के संवैधानिक वितरण की व्यवस्था के कारण स्वास्थ्य के संबंध में सबसे बड़ा दायित्व राज्य सरकारों का ही था और इस वैश्विक महामारी से लड़ने में भी उनकी भूमिका अगली पंक्ति में थी. पूरे भारत में मृत्यु की सबसे कम दर केरल में ही रही और इस प्रकार केरल इस लड़ाई में भी अग्रणी रहा.

केरल की सफलता की कहानी आश्चर्यजनक है, क्योंकि कई ऐसे पहलू थे जिनके कारण यह दक्षिण पश्चिमी तटीय राज्य संवेदनशील था, खास तौर पर विषाणु के लिए बहुत अनुकूल प्रजनन स्थल के लिए. इसकी आबादी का घनत्व भारत के कुल औसत के घनत्व से दुगुना है. एक लंबे अरसे से वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ इसका गहरा रिश्ता रहा है. सत्तर के दशक में तेल में आई उछाल के कारण मलयाली लोग बहुत बड़ी तादाद में खाड़ी देशों में चले गए और उनके द्वारा भेजे गए पैसों के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था मज़बूत हो गई. दो मिलियन मलयाली प्रवासियों, प्रवासी मज़दूरों और उनके परिवारों के आवागमन के कारण केरल एक लोकप्रिय गंतव्य स्थल होने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय यातायात का हब भी बन गया.

यह सच है कि भारत में कोविड-19 का पहला मामला जनवरी के मध्य में केरल में ही सामने आया. फिर भी कोरोना मामले की यह पहचान अपने-आप में ही राज्य सरकार की दूरदर्शिता और आगे बढ़कर सक्रिय भूमिका निभाने का प्रमाण बन गई. “कोरोना स्लेयर” के उपनाम से विख्यात और राज्य की “रॉक स्टार” स्वास्थ्य मंत्री के. के. शैलजा उसी समय से राज्य के चौदह ज़िलों में त्वरित कार्यबल बनाकर जुट गईं और रोगियों के परीक्षण करने, उनका पता लगाने, उन्हें अलग-थलग करने और उन्हें समर्थन देने के लिए उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रोटोकोल का पालन शुरू कर दिया. अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग शुरू की जा चुकी थी और इसी प्रक्रिया में वुहान से आने वाले तीन संक्रमित विद्यार्थियों की पहचान कर ली गई थी.  लेकिन मार्च के मध्य में केरल में कोविड-19 की दूसरी लहर आ गई. यह वह समय था जब राज्य के सक्रिय मामलों की संख्या महाराष्ट्र के बराबर थी. लेकिन महाराष्ट्र में सक्रिय मामलों की संख्या बढ़ती रही और केरल में सक्रिय मामलों की संख्या घटकर देश में सबसे कम रह गई.

सक्रिय मामलों में कमी आने का कारण था, राज्य द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए अपनाए गए आक्रामक उपाय. इसके साथ-साथ बड़े पैमाने पर सामाजिक पहल भी की गई जिसके कारण केरल वासी कोरोना का अच्छी तरह मुकाबला करने में सफल रहे. गरीबों और खास तौर पर शहरी प्रवासी मज़दूरों के प्रति केंद्र सरकार के ढुल-मुल रवैये के ठीक विपरीत राज्य में दिहाड़ी पर काम करने वाले पंद्रह लाख से अधिक ज़रूरतमंद प्रवासी मज़दूरों को केरल सरकार ने भोजन और आवास की सुविधा भी प्रदान की.  

वायरस के फैलाव की रोकथाम के लिए और उदार कल्याणकारी उपाय करने के लिए केरल की सफलता की कहानी अंतर्राष्ट्रीय अखबारों की सुर्खियाँ बन गई. सामाजिक विकास के मामले में पोस्टर बॉय के रूप में केरल की प्रशंसा की कहानी कोई नई बात नहीं है. आर्थिक विकास में अपेक्षाकृत नीचे पायदान पर होने के बावजूद इस राज्य ने जिस तरह से प्रगतिशील सामाजिक नीतियाँ अपनाईं और उन्हें लागू किया और विकास की उल्लेखनीय ऊँचाइयों को छुआ, उसके कारण इसे “केरल मॉडल” का नाम दिया जाने लगा. कोविड-19 के लिए इस राज्य की प्रतिक्रिया किसी मज़बूत नींव पर आधारित नहीं थी, बल्कि इसके पीछे राज्य सरकार की कार्ययोजना और ज़मीनी स्तर पर लोगों को जुटाने के सम्मिलित प्रभाव के कारण ही उसकी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली मज़बूत हो पाई. पैट्रिक हैलर के अनुसार राज्य और समाज की सम्मिलित शक्ति ने ही राज्य की साम्यवादी प्रणाली की प्रसिद्ध विरासत को आगे बढ़ाकर एक सुगठित सामाजिक लोकतांत्रिक व्यवस्था को जन्म दिया. जैसा कि मैंने अपनी पुस्तक में स्पष्ट किया है कि इसके मूल में वह आम भाषा और संस्कृति है जो भिन्न- भिन्न धार्मिक और जातिगत समूहों और राज्य के विभिन्न क्षेत्रों को साझा मलयाली समाज के रूप में एकजुटता के सूत्र में पिरोती है.

केरल मॉडल के अनेक उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि राज्य के नेताओं ने इस वायरस को सभी मलयाली लोगों के सामने एक सामूहिक खतरे के तौर पर प्रस्तुत किया था. ऐतिहासिक रूप में इस प्रकार की संकामक बीमारियों का प्रकोप जातीय अल्पसंख्यकों के प्रति दोषारोपण करने, उनके साथ भेदभाव करने और वैमनस्य फैलाने की बातों से जुड़ा रहा है. कोविड-19 की बीमारी भी इसका अपवाद नहीं रही. इसके लिए भी दिल्ली में आयोजित तबलीकी जमात के जलसे के माध्यम से वायरस फैलाने के लिए मुसलमानों को बलि का बकरा बनाया गया. केरल में भी बड़ी तादाद में इस जलसे से संक्रमित लोगों का एक बड़ा जत्था आया था. कासरगोड इस संक्रमण का हॉटबैड बन गया था. यही वह ज़िला है, जहाँ राज्य की मुस्लिम आबादी बड़े अनुपात में रहती है. फिर भी जनता को सूचनाएँ देने, जवाबदेही तय करने और जनता में भरोसा कायम करने के लिए आयोजित की जाने वाली अपनी दैनिक प्रैस वार्ता में मुख्य मंत्री स्पष्ट रूप में घोषणा करते थे कि “वायरस का कोई धर्म” नहीं होता. उनका यह बयान ऐतिहासिक रूप में समावेशी मलयाली समाज की एकजुटता का प्रतीक था और इस महामारी से लड़ने के लिए राज्य की रणनीति का भी यही आधार था.

कोविड-19 से मुकाबले के लिए केरल में जो रणनीति अपनाई गई उसकी विशेषता यह थी कि इस काम में राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच समन्वय बना रहा. सभी स्तरों पर अधिकारियों ने राज्य के सामूहिक कल्याण के लिए आत्म बलिदान की भावना से काम किया. IAS और IPS के अधिकारियों ने दफ़्तर के निर्धारित समय के बाद भी मेहनत से काम किया और उनके दायित्वों का लेखा-जोखा भी लिखित रूप में उपलब्ध है. साथ ही साथ राज्य के अधिकारियों ने जितने निष्काम भाव से काम किया, वह भी अनुकरणीय है. इसके बावजूद कि कोविड-19 से मुकाबला करने के प्रयोजन से आवश्यक निधि जुटाने के लिए उनका वेतन भी रोक दिया गया, फिर भी वे निष्ठापूर्वक काम में जुटे रहे. सिविल सोसायटी के संगठनों के बीच जो साझा उद्देश्य था, वह भी उनकी कार्यशैली में झलक रहा था. ये संगठन अगली पंक्ति के कामगारों के साथ मिलकर संगरोध को सुनिश्चित करने, संक्रमित लोगों का पता लगाकर उन्हें कठोरता से पकड़ने और ज़रूरतमंद लोगों को आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराने में उनकी मदद कर रहे थे. इसके अलावा कोविड-19 से मुकाबले के लिए जो लोकप्रिय अभियान चलाया गया था उसे मलयाली क्षेत्रवाद के आधार पर जनसमर्थन भी मिल रहा था. “श्रृंखला तोड़ने” के अभियान को मलयाली सिनेमा के साथ-साथ साझा मलयाली सांस्कृतिक ढाँचे के भीतर सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े नारों के साथ गूँथ दिया गया है और यही कारण है कि इसकी पहुँच जनसामान्य तक हो गई थी और इसकी अपील भी बहुत प्रभावी रही.

जैसे-जैसे कोविड-19 की महामारी का प्रकोप बढ़ रहा है, सारी दुनिया केरल से सीख लेने के लिए उसकी ओर निहार रही है. राज्य का मूलमंत्र है, एकजुटता की साझा शक्ति. जब तक हम सब इस महामारी के प्रकोप से एक साथ जूझ रहे हैं, उससे लड़ाई का प्रमुख हथियार है, “हम बने रहने की संयुक्त भावना”.  

प्रेरणा सिंह ब्राउन विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन की सह प्रोफ़ेसर हैं. साथ ही वह कनाडा उन्नत शोध संस्थान की फ़ैलो भी हैं.

 

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919