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कोविड-19 और उसके बादः भारत में गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों के लिए निहितार्थ

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29/06/2020
मोनिका अरोड़ा

किसी संक्रमण के कारण नहीं, बल्कि स्थायी बीमारी और आनुवंशिक, मनोवैज्ञानिक, पर्यावरण और व्यवहार से संबंधित किन्हीं समन्वित कारणों से होने वाले गैर-संक्रामक रोगों (Non-Communicable Diseases: NCDs) की कुल वार्षिक मृत्यु दर भारत में 63 प्रतिशत 5.87 मिलियन(58.7 लाख) है। इनमें से अधिकांश मौतें समय-पूर्व (आयु 30–70) और जीवन के सर्वाधिक उत्पादक वर्षों में हो जाती हैं। चार प्रमुख गैर-संक्रामक रोग (एन.सी.डी.) हैं, रक्त संचार से संबंधित दिल की बीमारी, साँस की पुरानी बीमारी, कैंसर और मधुमेह। भारत में 257 मिलियन (2570 लाख) लोग उच्च रक्तचाप और 77 मिलियन (770 लाख) लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं। पूरे साल में 2 मिलियन (20 लाख) लोगों की मौत रक्त संचार से संबंधित दिल की किसी बीमारी से होती है। भारत में (आयु 20-79) 11 वयस्कों में से एक वयस्क का निदान मधुमेह बताया जाता है (और अनुमानतः 43.9 मिलियन (439 लाख) लोगों का निदान ही नहीं हो पाता)। स्वास्थ्य मंत्रालय पहले से ही कैंसर, मधुमेह, रक्त संचार से संबंधित दिल की बीमारियों एवं पक्षाघात की रोकथाम और नियंत्रण के राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention and control of cancer, diabetes and cardiovascular disease and stroke) को कार्यान्वित करने में जुटा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना, बुनियादी ढाँचा तैयार करना और प्राथमिक स्वास्थ्य की देखभाल के स्तर पर जाँच करना है। भारत ने 2013 में गैर-संक्रामक रोगों (एन.सी.डी.) से संबंधित दस राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित किए थे और उसके बाद गैर-संक्रामक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय बहु-क्षेत्रीय कार्ययोजना (2017-22) जारी की थी। स्थायी विकास लक्ष्यों को निर्धारित करते समय, गैर-संक्रामक रोगों की प्राथमिकताओं के समन्वय को 2015 में मान्यता प्रदान की गई थी।

कोविड-19 और भारत में गैर-संक्रामक रोगों का बोझ
कोविड-19 से मुकाबला करते हुए एक बड़ी चुनौती है, भारत में गैर-संक्रामक रोगों का बोझ। मौजूदा साक्ष्य से पता चलता है कि गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों (पीपुल लिविंग विद एन.सी.डी.- PLWNCDs) के लिए कोविड-19 के कारण गंभीर रूप में रोगग्रस्त होने या मरने का खतरा ज़्यादा रहता है। अधिक मृत्यु-दर वाले अधिकांश देशों से प्राप्त विवरण के अनुसार मौत की आशंका उन रोगियों में ज़्यादा होती है, जिनकी उम्र अधिक होती है और जो कोविड-19 के साथ-साथ मधुमेह, उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियों जैसी सह-रुग्णता (एक या एक से अधिक बीमारियों) से भी ग्रस्त होते हैं। जून 2020 के अंत तक भारत में कोविड-19 के 500,000 से अधिक मामले थे और इनमें से 70 प्रतिशत से अधिक रोगी सह-रुग्णता से ग्रस्त थे। कोविड-19 से पहले के हालात में स्वास्थ्य की देखभाल के संबंध में पर्याप्त जागरूकता और सुविधा न होने के कारण गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों (PLWNCDs) का निदान ही नहीं हो पाया था। कोविड-19 के बढ़ते बोझ के कारण गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों ((PLWNCDs) की हालत और भी बिगड़ गई, क्योंकि गैर-संक्रामक रोगों के अधिकांश प्रतिष्ठित केंद्रों में भी इन बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं थे। अलग-अलग तरह के लॉकडाउन को खत्म करने के लिए दिशा-निर्देश तो जारी किये जा रहे हैं, लेकिन गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों (PLWNCDs) के हालात में सुधार की गुंजाइश तब तक नहीं होगी जब तक कि ऐसे रोगियों की पहचान करके उन्हें बचाने के लिए नवोन्मेषकारी समाधान नहीं खोज लिया जाते।  

कोविड 19 की जटिलताएँ और गैर-संक्रामक रोग
विश्व भर में सबसे अधिक मौतें रक्त संचार से संबंधित दिल की बीमारियों (CVDs) के कारण होती हैं। इन बीमारियों के कारण 17.9 प्रतिशत मौतें हर साल होती हैं। वैश्विक आँकड़े दर्शाते हैं कि कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती अधिकांश रोगी उच्च रक्तचाप से और या उसके बाद मधुमेह के लक्षणों से ग्रस्त थे। कैंसर के रोगी भी जो पहले से ही दिल की बीमारियों (CVD) या मधुमेह जैसी सह-रुग्णताओं से ग्रस्त थे, उनमें कोविड-19 का संक्रमण बहुत गंभीर और घातक हो सकता है। इसलिए कोविड-19 से संक्रमित होने पर मधुमेह के 50 प्रतिशत रोगियों में मौत की अधिक आशंका रहती है और उन्हें ठीक होने में भी अधिक समय लगता है।

स्वास्थ्य सेवाएँ ठप्प होने के कारण उत्पन्न चुनौतियाँ                                        
लॉक डाउन के कारण दुनिया भर में गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों (PLWNCDs) के सामने अपने हालात के प्रबंधन के लिए अनेक प्रकार की चुनौतियाँ आ खड़ी हुई हैं। पहले से ही बोझ से दबी स्वास्थ्य प्रणालियों को पुनर्गठित तो किया गया है, लेकिन गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों ((PLWNCDs) को प्राथमिकता नहीं दी गई है। लंबे समय से बीमार चले आ रहे रोगियों की देखभाल की व्यवस्था ठप्प होने, अनिवार्य दवाओं और प्रौद्योगिकियों की आपूर्ति में व्यवधान आने और गैर-संक्रामक रोगों के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण जाँच और निदान एवं स्वास्थ्य कर्मियों और सपोर्ट सेवाओं की कमी की रिपोर्टें आ रही हैं। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने महामारी के दौरान गैर-संक्रामक रोगों से संबंधित सेवाओं के ठप्प होने के कारणों का पता लगाने के लिए 194 देशों में गैर-संक्रामक रोगों की सर्विस डिलीवरी का त्वरित मूल्यांकन करने के लिए सर्वेक्षण किया था। इनमें से 155 देशों ने इस सर्वेक्षण की प्रश्नावली का उत्तर देते हुए यह स्वीकार किया कि 77 प्रतिशत देशों में यह सेवा ठप्प हो गई है। भारत ने सूचित किया कि पिछले वर्ष की तुलना में मार्च 2020 में ग्रामीण क्षेत्रों में दिल की बीमारियों से ग्रस्त रोगी जो आपात् स्थितियों में स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच पाए, उनमें 30 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।

स्वास्थ्य देखभाल की सेवाएँ
लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक परिवहन प्रणाली उपलब्ध न होने और कई स्वास्थ्य सुविधाओं के बंद हो जाने के कारण भारत में स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की अनेक सेवाएँ ठप्प हो गई थीं। कुछ मीडिया रिपोर्टों और वैज्ञानिक जर्नलों में प्रकाशित लेखों में बताया गया है कि अनिवार्य सार्वजनिक स्वास्थ्य और क्लिनिकल हस्तक्षेपों में और पूरे देश में स्वास्थ्य मिशन संबंधी सुविधाओं में कमी आ गई है। इन आँकड़ों में दर्शाया गया है कि संक्रामक और गैर-संक्रामक रोगों – दोनों में ही डॉक्टरी उपचार (अस्पताल में भर्ती और बाहरी रोगी ) दोनों की सुविधाओं में कमी आई है।

शहरी इलाकों में बाहरी रोगियों की रोज़मर्रे की व्यक्तिगत देखभाल ठप्प हो गई है और इन सेवाओं को टेली-मैडिसिन में स्थानांतरित कर दिया गया और केवल पंजीकृत रोगियों को ही देखा जाता था और उनसे अनुवर्ती मुलाकात की जा सकती थी। इसके कारण नये गैर-संक्रामक रोगियों के निदान और उनके हालात के प्रबंधन की क्षमता सीमित हो गई। भारत सरकार ने 25 मार्च, 2020 को टैली मैडिसिन की प्रैक्टिस के लिए दिशा-निर्देश अनुमोदित किये। इसके कारण कोविड-19 की महामारी जैसे चुनौतीपूर्ण समय में नियमित पंजीकृत डॉक्टर ही टैली मैडिसिन के माध्यम से स्वास्थ्य की देखभाल संबंधी सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम हैं।

गंभीर गैर-संक्रामक रोगों से ग्रस्त रोगियों का बचा
जून महीने के अंत तक एक तरफ़ जैसे-जैसे भारत में कोविड-19 का प्रकोप बढ़ रहा था, वहीं लोगों के ठीक होने की दर भी 58.56 हो गई थी। अप्रैल के मध् में केरल की मृत्यु दर 0.5 थी। यह दर दुनिया में सबसे कम थी। उनके राज्य में ठीक होने वाले रोगियों की संख्या भी उत्साहवर्धक थी। केरल की सफलता का मुख्य कारण यह था कि उन्होंने एक स्वास्थ्य निगरानी कार्यक्रम चलाया था। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ नागरिकों, सह-रुग्णता वाले रोगियों और कम वज़न वाले व कुपोषित बच्चों पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया था और गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों को उनके घर जाकर एक महीने की दवाएँ उपलब्ध कराई थीं। ये सभी काम बहु-क्षेत्रीय और बहु-हितकारकों के समन्वय के माध्यम से किये गये थे। उसी समय पड़ोसी राज्य कर्नाटक में मृत्यु-दर 4.3 प्रतिशत थी। इसका कारण यह था कि सह-रुग्णता वाले रोगियों और अन्य रोगियों की पहचान न हो पाना और उन्हें तत्परता से अस्पताल भी नहीं पहुँचाया जाना।

भविष्य में गैर-संक्रामक रोगों का जोखिम बढ़ने की आशंका
लॉकडाउन, भौतिक दूरी और स्वतः एकांतवास आदि कोविड-19 की प्रतिक्रियाओं के कारण गैर-संक्रामक रोगों का जोखिम और भी बढ़ सकता है। कई लोग तनाव को दूर करने के नाम पर शराब और तम्बाकू का सेवन ज़्यादा करने लगते हैं। इनकी शारीरिक गतिविधियाँ कम होने लगती हैं और वे भोजन भी ऐसा खाने लगते हैं जिससे सेहत खराब होने का खतरा बना रहता है। इसके कारण आज स्वस्थ रहने वाले लोग भी अपने शेष जीवन में गैर-संक्रामक रोगों के शिकार हो सकते हैं। महामारी का प्रकोप शुरू होने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों को सलाह दी थी कि वे स्वस्थ रहें और तम्बाकू आदि का सेवन बंद कर दें ताकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सके। भारत में मुख्यतः धुआँ रहित तम्बाकू का प्रयोग किया जाता है। 11 प्रतिशत धूम्रपान करने वाले लोगों की तुलना में 21 प्रतिशत लोग धुआँ रहित तम्बाकू का सेवन करते हैं। अप्रैल 2020 में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने लोगों से अपील की थी कि महामारी के दौरान वे धुआँ रहित तम्बाकू के उत्पादों का सेवन करने और सार्वजनिक स्थानों पर थूकने से बचें। इसके साथ ही सरकार ने कोविड-19 के प्रबंधन के लिए जारी राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के अंतर्गत सभी प्रकार के धूम्रपान और धुआँ रहित तम्बाकू के उत्पादों की बिक्री पर भी पाबंदी लगा दी।

अब अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने सभी सरकारों से यह सुनिश्चित करने के लिए अपील की है कि गैर-संक्रामक रोगों की रोकथाम और उपचार को राष्ट्रीय तैयारी योजनाओं में शामिल कर लिया जाए और इसकी शुरुआत वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के एक भाग के रूप में राष्ट्रीय कोविड-19 की प्रतिक्रियाओं के अंतर्गत गैर-संक्रामक रोगों को शामिल करके की जा सकती है। गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों (PLWNCDs) की जाँच व पहचान करके इन रोगों के प्रबंधन के लिए टैली मैडिसिन और डिजिटल गतिविधियों के माध्यम से उन्हें स्वास्थ्य प्रणाली की सहायता उपलब्ध कराई जाए और उनसे तम्बाकू और शराब का सेवन छुड़वाया जाए, ताकि इस प्रकार के उपाय तत्काल करके उन्हें मौजूदा संकट से बचाया जा सके। जैसा कि हम अगले कुछ वर्षों तक कोविड-19 के साथ जीने की तैयारी में जुटे हैं, हमें गैर-संक्रामक रोगों के साथ जीने वाले लोगों (PLWNCDs.) को इनके आसन्न गंभीर जोखिम से बचाने के लिए लगातार प्रयास करने होंगे और उनकी ज़रूरतों को प्राथमिकता देनी होगी। आज समय की यही आवश्यकता है कि हम एक ऐसी मज़बूत स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली विकसित करें, जिसमें सभी स्वास्थ्य-कर्मियों के पास पर्याप्त संसाधन हों और वे सभी योग्य और मज़बूत हों और हम सब एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सके।

मोनिका अरोड़ा पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया में हेल्थ प्रमोशन डिवीजन की निदेशक और प्रोफ़ेसर हैंवह हृदय (HRIDAY) नामक संस्था की कार्यकारी निदेशक और NCD Alliance (एन.सी.डी. एलाएंस), जिनेवा के बोर्ड की सदस्या भी हैं।

 हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919