सन् 2018 में विश्व के 30 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 22 शहर भारत में ही थे. खाना बनाने और कमरे को गर्म करने जैसे व्यापक वायु प्रदूषण के घरेलू स्रोत भारत सहित अधिकांश विकासशील देशों में प्रदूषण के एकमात्र सबसे बड़े स्रोत हैं. लकड़ी और गोबर जैसे ठोस ईंधन से खाना बनाने के कारण घरों में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से 40 गुना अधिक हो सकता है.
चूँकि एलपीजी और बिजली जैसे स्वच्छ ईंधन अच्छा-खासा बुनियादी ढाँचा ज़रूरी होता है, इसलिए भारत जैसे विकासशील देश के लिए इसकी व्यवस्था आसान नहीं हो पाती. फिर भी सत्तर और अस्सी के दशक में इसके लिए कई बार प्रयास किये गए, लेकिन इसके बजाय ठोस ईंधन का प्रयोग करने वाले संशोधित कुकस्टोव को बढ़ावा दिया गया. लेकिन इस प्रकार की प्रौद्योगिकी के प्रयोग से कई कारणों से घरेलू वायु प्रदूषण को बहुत हद तक कम करने में मदद नहीं मिली. ये कारण थे, इनको अपनाने की निम्न दरें, जब इन्हें अपनाया गया तो इनके प्रयोग की दरें कम थीं, लेकिन प्रयोग करने पर यह प्रौद्योगिकी प्रभावी नहीं रही.
रसोई ईंधन के रूप में एलपीजी का कम प्रयोग होने का एक महत्वपूर्ण कारण है, गरीबी. हालाँकि एलपीजी पर भारत में सब्सिडी मिलती है, फिर भी उसे बार-बार भरवाने की आवर्ती लागत खास तौर पर गरीब परिवारों को बहुत अधिक लगती है और सब्सिडी का डिज़ाइन अपने आपमें बहुत जटिल है. जब एलपीजी कनेक्शन वाला उपभोक्ता एलपीजी के भरे हुए सिलेंडर को खरीदता है तो डीलर को बाज़ार मूल्य ही देना पड़ता है और उसके बैंक खाते में उसके हक की सब्सिडी की रकम अंतरित कर दी जाती है, लेकिन यह रकम खरीद के कुछ दिनों के बाद ही अंतरित होती है. इस तरह सब्सिडी नकद वापसी की योजना के अंतर्गत काम करती है. दूसरी बात यह है कि सिलेंडर रीफ़िल का बाज़ार-मूल्य एलपीजी के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य के साथ मिलकर काफ़ी बदलता रहता है (नवंबर 2017-अक्तूबर,2018 के बीच 654-879 रुपये), हालाँकि सरकारी सब्सिडी का मूल्य लगभग 500 रुपये के रूप में स्थिर बना रहा. (इसके परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष लाभ अंतरण द्वारा दी गई तदनुरूपी सब्सिडी बाज़ार मूल्य के साथ मिलकर (नवंबर 2017-अक्तूबर,2018 के बीच 159-376 रुपये) थी.) इस योजना की दोनों विशेषताओं से पता चलता है कि हो सकता है कि अशिक्षित और नकदी के उलझन में फँसे उपभोक्ता न तो इसे समझ पाए और न ही सीमित बैंकिंग सुविधा के कारण इसका वास्तविक लाभ उठा पाए. साथ ही नकदी की वापसी का संदेश अंग्रेज़ी में होने के कारण भी उन्हें इसे समझना मुश्किल हो जाता है.
इसके अलावा, आमदनी होने के बावजूद भी ठोस ईंधन जलाने से स्वास्थ्य पर होने वाले दीर्घकालीन नुक्सान की भी लोगों को जानकारी नहीं होती. इसका इस्तेमाल करने वाले परिवारों को पता नहीं होता कि इससे समय-पूर्व मौत हो भी सकती है और गर्भावस्था के दौरान ऐसे धुएँ में साँस लेने वाली प्रसूता माताओं के नवजात शिशुओं का वजन उनके जन्म के समय बहुत कम हो सकता है. इसके अलावा उन्हें घर के अंदर ही धुएँ में साँस लेने के कारण साँस और दिल की बीमारियाँ भी हो सकती हैं. वस्तुतः विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार घरेलू वायु प्रदूषण के कारण विश्व-भर में खास तौर पर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 3.8 मिलियन बच्चों की समय-पूर्व मृत्यु हो जाती है.
अप्रैल 2016 में विशेषकर वंचित परिवारों को एलपीजी की सुविधा प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने अपना फ़्लैगशिप कार्यक्रम शुरू कियाः प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना. भारत के इतिहास में उज्ज्वला योजना लोगों को स्वच्छ ईंधन प्रदान करने की विश्व की सबसे बड़ी योजना है. इसके अंतर्गत 72 मिलियन गरीब लोगों को जून 2019 तक यह सुविधा प्रदान की गई. लेकिन एलपीजी से कनेक्ट होने वाले नये ग्रामीण परिवारों की औसत वार्षिक खपत ठोस ईंधन के उपयोग को खत्म करने के लिए अनुमानित संख्या के आधे से भी कम बनी हुई है.
2018 में शिशिर देबनाथ, ई. सोमनाथन और मैंने इंदौर (मध्य प्रदेश) के 150 गाँवों के 3,000 ग्रामीण परिवारों में उनकी ईंधन की खपत और विकल्प का सर्वेक्षण किया था. अपने सर्वेक्षण में हमने पाया कि उज्ज्वला कार्यक्रम के बावजूद केवल 65 प्रतिशत परिवारों के पास ही एलपीजी कनेक्शन था. एलपीजी कनेक्शन वाले परिवारों में (उज्ज्वला योजना के पात्र परिवारों और गैर- उज्ज्वला उपभोक्ताओं-दोनों को मिलाकर) लगभग 4.5 सिलेंडरों में ही वार्षिक ऱीफ़िल की खपत हुई थी. हालाँकि सरकार साल में 12 रीफ़िल की खरीद के लिए सब्सिडी प्रदान करती है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य से यही पता चलता है कि अधिकांश ग्रामीण परिवार या तो एलपीजी खरीद पर सरकार की नकदी वापसी योजना से अनजान हैं या फिर उन्हें मिलने वाली सब्सिडी की बदलती रकम को समझने में असमर्थ हैं. हमारे सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि सर्वेक्षण किये गए परिवारों में से 87 प्रतिशत परिवार इस बात से भी अनजान थे कि ठोस ईंधन के उपयोग से उनकी अपनी सेहत पर या उनके परिवारजनों की सेहत पर कितना दीर्घकालीन दुष्प्रभाव पड़ता है.
2018 के घर-घर के अपने सर्वेक्षण के आधार पर हमने 2019 में उन्हीं 500 गाँवों में यह जानने के लिए एक जानकारी अभियान योजनाबद्ध रूप में चलाया कि ठोस ईंधन से खाना पकाने के कारण उनकी सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और एलपीजी के आर्थिक लाभ के बारे में उनमें कितनी जागरूकता आई है, ताकि एलपीजी के नियमित उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके. प्रत्येक 50-50 गाँवों को तीन समूहों में यादृच्छिक रूप में बाँट दिया गया. समूह एच के अंतर्गत निर्दिष्ट परिवारों को ठोस ईंधन से खाना बनाने के कारण सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी दी गई; समूह एचएस के निर्दिष्ट परिवारों को भी वही जानकारी दी गई और साथ में मौजूदा सब्सिडी कार्यक्रम के अंतर्गत मिलने वाली नकदी की जानकारी भी दी गई. तीसरे समूह के गाँवों को किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं दी गई.
सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के अंतर्गत निहित हमारा जागरूकता अभियान यह सुनिश्चित करने के लिए चलाया गया था कि हमारे परिणाम न केवल मूल्यांकन योग्य हैं, बल्कि अन्य ग्रामीण संविन्यास में अनुकरणीय भी हैं. हमने पहली पंक्ति के मौजूदा ‘आशा’ (सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मियों (ASHAs) को घर-घर जाकर अभियान (एच व एचएस) चलाने के लिए गाँवों के 100 परिवारों को उपचार देने का प्रशिक्षण दिया.
अपने सर्वेक्षण में हस्तक्षेप के पहले और बाद में हमने नियंत्रण समूह की सापेक्षता में परिवार-वार एलपीजी की वार्षिक और मौसमी खपत की तुलना करते हुए पाया कि दोनों प्रकार की ( ठोस ईंधन से सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और एलपीजी सब्सिडी (समूह एचएस) से संबंधित जानकारी देने के कारण एलपीजी रीफ़िल की खपत में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई. यह वृद्धि गर्मियों में उस समय रिकॉर्ड की गई थी, जब बारिश के भीगे मौसम की सापेक्षता में ठोस ईंधन की भारी उपलब्धता के कारण एलपीजी की खपत खास तौर पर कम रही.
ऐसा लगता है कि ये प्रभाव गरीब और कम शिक्षित परिवारों तक सीमित रहे. औसत से अधिक धन वाले परिवारों और उन परिवारों ने जिनके मुखिया ने प्राथमिक शिक्षा (या उससे अधिक शिक्षा) पाई है, की तुलना में औसत से कम धन वाले परिवारों और उन परिवारों ने जिनके मुखिया ने प्राथमिक से भी कम शिक्षा पाई है, अधिक रीफ़िल की खपत की है. वस्तुतः यही वे परिवार हैं, जिन्हें यह जानकारी देनी होगी कि घर के अंदर के प्रदूषण से सेहत पर किस तरह का दुष्प्रभाव पड़ता है और एलपीजी रीफ़िल पर आने वाले जेब के खर्च पर वित्तीय सब्सिडी के निहितार्थ भी उन्हें समझाने होंगे.
सिर्फ़ सेहत की सूचना (समूह एच) देने से एलपीजी रीफ़िल की खपत में ही वृद्धि नहीं हुई, बल्कि इससे व्यवहार में भी परिवर्तन हुए और इसके कारण ही घर के अंदर के धुएँ के साथ साँस लेने के अवसरों में कमी आई; केवल 5 प्रतिशत परिवार ही ऐसे थे, जिनके घरों में परंपरागत स्टोव से धुआँ बाहर निकलने का रास्ता था / या उनके घरों में किसी भी प्रकार की कोई जानकारी न रखने वाले नियंत्रण समूह की तुलना में रसोई के अलग से कमरे की संभावना थी. आखिरी भोजन बनाने के लिए केवल परंपरागत कुकिंग स्टोव इस्तेमाल करने वाले परिवारों की संख्या में केवल स्वास्थ्य संबंधी सूचनाओं से उपचार के मामले में 5 प्रतिशत कमी आई.
हमने यह पाया कि एलपीजी रीफ़िल की खरीद करने वाले केवल उन समूहों पर काफ़ी असर पड़ा है जिन्हें स्वास्थ्य और सब्सिडी दोनों ही प्रकार की सूचनाएँ मिली हैं और यह तथ्य इस बात को रेखांकित करता है कि परिवारों की आर्थिक तंगी को ध्यान में रखना भी उतना ही आवश्यक है. 8,000 रुपये की औसत मासिक आमदनी वाले परिवारों के लिए खाना बनाने के लिए आसानी से मिलने वाली लकड़ियों और गोबर के उपलों के बजाय एलपीजी के नियमित उपयोग से भारी चुनौतियाँ सामने आ खड़ी होती हैं. इसके अलावा, केवल उपचार के लिए स्वास्थ्य संबंधी सूचनाओं की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि ये परिवार आर्थिक तंगी से जूझते समय स्वच्छ ईंधन के विकल्प को अपनाते समय साँस के साथ धुएँ को अंदर लेने के अवसरों के मार्जिन को समायोजित कर लेते हैं.
नीतिगत दृष्टि से हमारे सर्वेक्षण के परिणाम यह दर्शाते हैं कि एलपीजी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एलपीजी सब्सिडी की योजना में नये सिरे से परिवर्तन किये जाने चाहिए. ऐसे परिवारों को यह जानकारी दी गई थी कि जेब से किया जाने वाला प्रति रीफ़िल खर्च लगभग 500 रुपये निर्धारित रहता है, क्योंकि सब्सिडी में रीफ़िल की खरीद में होने वाली मामूली वृद्धि करके तत्संबंधी सूचनाओं को सब्सिडी में ही समाहित कर लिया जाता है. चूँकि सरकार बाज़ार-मूल्यों में होने वाली घट-बढ़ को नकदी वापसी सब्सिडी में समाहित कर लेती है, इसलिए सब्सिडी की रकम को सीधे लाभकर्ता परिवारों के खातों में जमा करने से नकदी का वित्तीय बोझ बहुत हद तक कम हो सकता है और इसके कारण आर्थिक तंगी से जूझने वाले परिवारों को राहत मिल सकती है. सब्सिडी जमा करने से संबंधित सूचना स्थानीय भाषाओं में भी संदेश भेजकर दी जानी चाहिए.
कोविड-19 की महामारी के दौरान शुरू की गई प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत रीफ़िल की जमाराशि तीन महीनों के लिए उज्ज्वला लाभकर्ताओं के खाते में सीधे जमा करा दी जाती है और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसके कारण एलपीजी की वार्षिक खपत में 13 प्रतिशत की वृद्धि रिकॉर्ड की गई है. लेकिन सब्सिडी में इस अस्थायी और सीमित परिवर्तन से निःशुल्क सिलेंडर पाने वाले लोगों में केवल 50 प्रतिशत सफलता ही मिल पाई है. हमारे शोध-परिणामों से पता चलता है कि अधिक से अधिक परिवारों को एलपीजी की नियमित सुविधा प्रदान करने के लिए आवश्यक है कि एक बहु आयामी योजना तैयार की जाए, जिसमें स्वास्थ्य और सब्सिडी के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ सब्सिडी योजना को भी नये तरीके से संशोधित किया जाए.
फ़र्ज़ाना अफ्रीदी भारतीय सांख्यिकीय संस्थान (दिल्ली) के अर्थशास्त्र और योजना एकक में सह प्रोफ़ेसर हैं.
हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919