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संक्रमण के दौर में भारत (India in Transition)

देबश्री मुखर्जी
26/04/2021

एक बात तो ऐसी है जिससे सभी इतिहासकार सहमत हो सकते हैं, और यह बॉम्बे फ़िल्म उद्योग को आकार देने वाला बुनियादी तत्व है, और वह है इसकी भयानक अनिश्चितता. व्यावसायिक दृष्टि से सशक्त और वैश्विक रूप में मान्यता प्राप्त इस फ़िल्म उद्योग को हम आज “बॉलीवुड” नाम से जानते हैं. इसका उदय ब्रिटिश राज में उस समय हुआ था, जब कोई भी वित्तीय संस्था अनिश्चितता से भरे इस उद्योग को हाथ लगाने के लिए भी तैयार नहीं थी. और बहुत कम कारीगर इससे जुड़कर अपना मान-सम्मान दाँव पर लगाने को तैयार होते थे और इस फ़ील्ड को वर्जित मानते थे.

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विमल बालसुब्रमणियम, अपूर्व यश भाटिया और सब्यसाची दास
12/04/2021

भारत सरकार ने लोक सभा चुनाव और सभी राज्यों की विधानसभा चुनाव को एक ही तारीख पर आयोजित करने का प्रस्ताव रखा है। हालाँकि “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की नीति का समर्थन नीति आयोग और भारतीय विधि आयोग जैसी कई संगठनों ने किया है, फिर भी मीडिया में इस पर भारी बहस और चर्चा हो रही है। इस प्रस्ताव का मुख्य तर्क यही है कि चुनावों का सरकारी खज़ाने पर भारी असर पड़ता है, सरकारी प्रशासन चुनाव प्रबंधन में व्यस्त रहती है और बार-बार चुनाव होने के कारण शासन-व्यवस्था पर झटका लगता है। वहीं दूसरी ओर कुछ विश्लेषक यह बताते हैं कि इसके कारण भारत का संघीय ढाँचा कमज़ोर पड़ सकता है। अगर राष्ट्रीय चुनाव और राज्यों के चुनावों

हिमांशु झा
29/03/2021

हाल ही के समय तक भारत में शासन तंत्र की प्रक्रिया रहस्य के पर्दे में ढकी रही है. यह गुलामी के दिनों का पुनरावर्तन है. उन दिनों कानून का शासन ऑफ़िशियल सीक्रेट ऐक्ट, 1923 (OSA),द सिविल सर्विसेज़ कंडक्ट ऐक्ट रूल्स (1964) और इंडियन ऐविडेंस ऐक्ट (1872) की धारा 1, 2 और 3 और भारत सरकार की नियमावली और कार्यालय प्रक्रिया जैसे कानूनों से संचालित होता था. 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (RTIA) के लागू होने के बाद इसमें परिवर्तन आ गया. यह एक ऐसा अधिनियम था जिसमें भारत के नागरिकों को अधिकार दिया गया कि उन्हें सरकारी सूचनाओं को हासिल करने का कानूनी अधिकार होगा.

नीलोश्री बिस्वास
15/03/2021

हिंदी सिनेमा का जन्म यात्रा, मुजरा और तमाशा जैसे घरेलू मनोरंजन से ही हुआ था. यही कारण है कि जो भी सिनेमा उस समय निर्मित हुए थे, उनमें नाटकीय तत्व बहुत अधिक मात्रा में होता था और प्रचलित गाने और नाच भी भरपूर होते थे. 1941 की ‘सिस्टर’, 1943 की ‘पराया धन’ या फिर 1945 की ‘बचपन’ जैसी सामाजिक फ़िल्मों में भी अति भावना से पूर्ण नाटकीयता बहुत अधिक होती थी. यह वह समय था, जब भारत अपनी आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहा था, दमनकारी साम्राज्यवादी शासन तंत्र का अत्याचार जारी था और भारत सामाजिक भेदभाव की अपनी अंतर्निहित समस्या से जूझ रहा था.

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मानव के एवं इंदीवर जोन्नालगड्डा
01/03/2021

मई 2020 में कोविड-19 की महामारी से उत्पन्न प्रवासियों के आवासीय संकट की पृष्ठभूमि में शहरी विकास मंत्रालय, भारत सरकार (MoHUA) ने शहरी प्रवासियों के लिए किराये वाली किफ़ायती आवास-गृह अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) योजना की घोषणा की थी । यह योजनागत हस्तक्षेप प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U) के अंतर्गत पाँचवीं पहल थी.

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रम्या पिन्नामनेनी एवं श्रावंती एम.शेषशायी
15/02/2021

16 जनवरी, 2021 को भारत में विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के पहले चरण का शुभारंभ  हुआ। इसका उद्देश्य कोविड-19 से बचाव के लिए लगभग 300 मिलियन अग्रिम मोर्चे के कर्मियों को टीका लगाना है। इस टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत भारत में स्वदेशी रूप में विकसित कोवैक्सीन (भारत बायोटैक/ आई.सी.एम.आर. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद) और स्वदेशी रूप में उत्पादित कोविशील्ड (सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया/ ऑक्सफ़ोर्ड -ऐस्ट्राजेनेका) टीके लगाये जा रहे हैं। यह वैश्विक महामारी के ग्यारह महीने की घेराबंदी के संभावित अंत की शुरुआत का संकेत है।

निर्विकार जस्सल
01/02/2021

वियोजन की संरचना कुछ इस तरह से की जानी चाहिए ताकि वंचित वर्ग के हितों का अच्छी तरह से ख्याल रखा जा सके. कई दशकों से समाज विज्ञान इस प्रश्न से जूझता रहा है, लेकिन इस विषय पर अधिकतर शोध-कार्य कोटे के विशिष्ट स्वरूप पर ही केंद्रित रहा है. लेकिन अनिवार्य कोटा, भले ही वह राजनीति से संबंधित हो या शिक्षा से या निजी क्षेत्र से संबंधित हो सिर्फ़ एक प्रकार के कोटे को ही दर्शाता है.

वेदा वैद्यनाथन
18/01/2021

वैसे तो कोविड-19 की वैश्विक महामारी के कारण अनेक प्रकार की अनिश्चितताएँ आ गई हैं और उसका दुष्प्रभाव वैश्विक समुदाय, अर्थव्यवस्थाओं और प्रणालियों पर भी पड़ा है, लेकिन भारत पर जो इसका असर पड़ा है, वह बहुत गंभीर है। जहाँ एक ओर इस महामारी के कारण  भारी विनाश हुआ है और इसके कारण विश्व-भर के देश अंतःसंबंधीय वैश्विक प्रणालियों के आधार पर संकीर्ण और आत्मनिरीक्षण परक दृष्टिकोण अपनाने पर विवश हो गए हैं, वहीं यह भी आवश्यक हो गया है कि इस बात की भी जाँच-परख की जाए कि खास तौर पर अफ्रीका के देशों के साथ स्वास्थ्य लाभ की प्रक्रिया के इर्द-गिर्द भागीदारी को कैसे बढ़ाया जाए।

ब्रोतोती रॉय
04/01/2021

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सभी देशों, क्षेत्रों और समुदायों पर अलग-अलग अनुपात में पड़ता है. जो स्थान और आबादी पहले से ही सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर है, उन पर वैश्विक तापन जगत् का सबसे अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है. भारतीय संदर्भ में हाल ही के शोध कार्यों से पता चलता है कि भारत के 75 प्रतिशत ज़िले जलवायु के हादसों के सबसे अधिक शिकार होते हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर की जलवायु संबंधी वार्ताओं से पता चलता है कि भारत जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से अच्छी तरह परिचित है.