“आज खेती वैसी नहीं है जैसी पहले हुआ करती थी.” यह बात मुझे कलिम्पोंग के लोगों ने उस समय बतायी थी जब मैं कोविड के फ़ील्डवर्क के अंतराल के बाद सन् 2022 की गर्मियों में वहाँ गई थी. कुछ बदलाव आ गया था. पहले के समय में, लोग हिमालय की तलहटी में पश्चिम बंगाल के एक जिले कलिम्पोंग में एक खास वस्तु के रूप में खेती को महत्व देने में आगे रहते थे. खेती और भूमि पर स्वामित्व के अधिकार ने नेपालियों और स्वदेशी लेपचा और भूटिया लोगों को, जो कलिम्पोंग को अपना घर कहते हैं, एक अलग राजनीतिक चेतना प्रदान की.
संक्रमण के दौर में भारत (India in Transition)

भारत के नए संसद भवन में एक भित्ति चित्र दक्षिण एशिया में विवाद का विषय बन गया है. अखंड भारत की धारणा की ओर संकेत करते हुए, यह प्राचीन मानचित्र मौजूदा दक्षिण एशिया के देशों के अधिकांश भागों को अतीत की व्यापक अविभाजित राजनीतिक व्यवस्था के भाग के रूप में चित्रित करता प्रतीत होता है. इसके बाद, इस तथ्य के उद्घाटन पर पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ सामने आने लगीं. इन देशों ने इस बात पर चिंता जताई कि मानचित्र में निहित दावे कैसे उनकी स्वतंत्रता और संप्रभुता को खतरे में डालते हैं.

भावनाओं को पहचानने वाली टैक्नोलॉजी का भारतीय बाज़ार पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ा है. AI स्टार्ट-अप भारतीय नियोक्ताओं को "डार्क पर्सनैलिटी इन्वेंटरी" की पेशकश कर रहे हैं जो संभावित नियुक्तियों में अपने-जुनून और आवेग जैसे "नकारात्मक" लक्षणों की पहचान करने का दावा करते हैं. "ह्यूमन रिसोर्सेज़ टैक" लक्षण कर्मचारियों के कार्यस्थल में प्रवेश करते समय उनकी मनोदशा को वर्गीकृत करने के लिए भावना पहचान प्रणाली प्रदान करने का दावा करता है. कुछ कंपनियाँ विज्ञापनों, वीडियो और अन्य उत्तेजनाओं पर ग्राहकों की प्रतिक्रियाओं की निगरानी करने के लिए भावना पहचान प्रणालियों में भी निवेश कर रही हैं.

सच तो यह है कि बारी-बारी से G-20 सदस्य देशों की अध्यक्षता करते हुए जब भारत को इसकी अध्यक्षता करने का अवसर मिला तो नरेंद्र मोदी सरकार ने इसकी नियमित बैठकों के आयोजन को एक कार्निवल में बदल दिया. इसके कारण शिखर सम्मेलन के महत्व की तुलना में यह आयोजन भाजपा को राजनीतिक कला दिखाने का अवसर अधिक लगने लगा है. G-20 के इर्द-गिर्द जिस तरह से प्रचार-तंत्र विकसित किया गया है, उसका स्वरूप भाजपा के उस संदेश के अनुरूप है जिसमें प्रधानमंत्री को बेजोड़ वैश्विक कद के नेता के रूप में दर्शाया गया है. यह बताने के बाद, क्या G-20 शिखर सम्मेलन का भारत के लिए कोई व्यापक-आर्थिक महत्व होगा?

भारत के मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर इस तरह की सुर्खियाँ आम बात हो गई हैं कि एक रिक्शा वाले के बेटे ने इंजीनियरिंग में दाखिले की कठिनतम परीक्षा उत्तीर्ण की या फिर वह कुलीन वर्ग के नौकरशाहों की जमात में शामिल हो गया. इस तरह के समाचार भारत के गतिशील शिक्षा के क्षेत्र में समानता और असमानता दोनों ही बातों को दर्शाते हैं. समानता तो इसलिए क्योंकि ऐसे प्रत्याशियों ने कठोर परिश्रम करके यह रुतबा हासिल किया है और शिक्षा ने उनका और उनके परिवार का सशक्तीकरण किया है. असमानता इसलिए क्योंकि वे अपने समुदायों, जातियों और वर्गों में अपवाद स्वरूप ही हैं.

यदि आप भारत में समाचारों पर नज़र रख रहे हैं, तो इसकी बहुत कम संभावना है कि मौजूदा विध्वंस पर आपकी नज़र न पड़ी हो. विध्वंस के इस काम में 2022 में उस समय तेज़ी आई थी, जब सरकार ने "न्याय" के बहुसंख्यकवादी स्वरूप को आगे बढ़ाने के लिए विध्वंस का इस्तेमाल किया था. जहाँ एक ओर उत्तर प्रदेश में इसका स्वरूप एक खास तरह का था, वहीं दिल्ली, उत्तराखंड, जम्मू व कश्मीर और असम में भी उसी तरह के तरीके आज़माये गए. एक तरफ, "अवैध निर्माण" के आरोपों का इस्तेमाल सीधे तौर पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ किया जा रहा है ताकि उन्हें अधिक से अधिक अलग-थलग किया जा सके.

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध एक लंबे अरसे से स्वाभाविक तो माने जाते हैं,लेकिन वे उपेक्षित भी रहे हैं. स्वाभाविक इसलिए थे, क्योंकि दोनों देशों के साझा लोकतांत्रिक मूल्य हैं और साथ ही साथ उनकी सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी साझा सांस्कृतिक इतिहास के कारण ही उद्भूत हैं. और उपेक्षित इसलिए हैं क्योंकि उनकी विदेश नीति के हित अलग- अलग हैं. इसकी शुरुआत तब से हुई जब से भारत ने शीत-युद्ध के समय गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाया और ऑस्ट्रेलिया का गठबंधन अमरीका के साथ हो गया. वस्तुतः दोनों देशों के बीच परस्पर संबंधों की निर्मिति का “क्रिकेट, करी और राष्ट्रमंडल” का आधार तो सतही आधार था.

नई दिल्ली में "एक मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत (FOIP) के लिए अपने देश की नई योजना पर प्रकाश डालते हुए जापानी प्रधान मंत्री फुमियो किशिदा ने घोषणा की कि "इस (योजना) को लागू करने के लिए भारत एक अनिवार्य साझेदार है.” मार्च में अपनी यात्रा के दौरान की गई उनकी टिप्पणी ने मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में भारत और जापान की "बेहद अनूठी स्थिति" और इसे बनाये रखने और मज़बूत करने में उनकी "महत्वपूर्ण जिम्मेदारी" को रेखांकित किया है. ऑस्ट्रेलिया और अमरीका के साथ क्वाड के सदस्यों के रूप में, दोनों देशों ने व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सामूहिक योगदान को और अधिक बढ़ावा दिया है.

अमरीका के साथ भारत के सुरक्षा संबंध भारत के परंपरागत विदेशी मामलों के व्यापक संदर्भ में रूपायित होते हैं. यद्यपि भारत और अमरीका संबंधी सुरक्षा सहयोग पिछले दो दशकों में मात्रा और गुणात्मक दोनों ही दृष्टियों से परिपक्व हुए हैं, लेकिन बीच में कुछ ऐसे भी पल आए जब टीकाकारों को लगने लगा कि भारत- अमरीका संबंधों में सुस्ती आने लगी है और ये संबंध लगभग समाप्त होने वाले हैं. एक ओर "रिश्तों में बेहद गर्मजोशी" और दूसरी ओर " बेहद ठंडापन"- इसके बीच डोलते संबंधों के कारण वास्तविक दुनिया की जटिलताओं या उसमें अंतर्निहित तत्वों को समझ पाना मुश्किल हो जाता है.

मार्च 2023 में चार क्वाड देशों- ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और अमरीका की सबसे हाल ही की शिखर-स्तरीय बैठक उसी परिचित राग के साथ शुरू हुई: "हमारी आज की बैठक एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत का समर्थन करने के लिए क्वाड की दृढ़ प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है.