1992 में, भारत ने स्थानीय लोकतंत्र में दुनिया का सबसे बड़ा प्रयोग किया गया था. उस वर्ष पारित भारतीय संविधान के 73वें संशोधन के अंतर्गत ग्रामीण भारत में लाखों निर्वाचित स्थानीय राजनेताओं को नीति कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त अधिकार सौंप दिये गए थे. परिणामस्वरूप, गाँव के राजनेताओं को सरकारी कार्यक्रमों से लाभ के लक्ष्यीकरण पर अधिकार प्राप्त हुए, जैसे कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (MGNREGA) योजना में नौकरियों का आवंटन.
संक्रमण के दौर में भारत (India in Transition)

अगस्त के महत्वपूर्ण घटनाक्रम के बाद बांग्लादेश सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहा है - जिसके कारण पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को व्यापक विरोध के कारण 15 साल तक सत्ता में रहने के बाद देश छोड़कर भागना पड़ा - इसका असर सीमा के पार भारत में भी महसूस किया जा रहा है. अपदस्थ अवामी लीग सरकार में एक कथित सहयोगी को खोने से लेकर हिंदू अल्पसंख्यकों पर कथित अत्याचारों के खिलाफ़ घरेलू विरोध प्रदर्शन तक, भारत को बदलते हालात से उत्पन्न अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से किसी का भी आसानी से समाधान नहीं हो सकता.

भारत में, जैसा कि विश्व के अधिकांश हिस्सों में होता है, अब यह देखना आम बात हो गई है कि लोग अपने स्मार्टफोन को उठाकर किसी चीज़ या व्यक्ति के खिलाफ़ या उसके साथ खड़े होते हैं; यह डिजिटल अभिलेखागार में लिखने, भूगोल और संस्कृति के भीतर खुद को स्थापित करने, अपनी पहचान वाली सामाजिक दुनिया के साथ संबंधों को चिह्नित करने का एक सामान्य कार्य है. लेकिन ये चित्र हमारे फ़ोन और हार्ड ड्राइव पर सुरक्षित रहते हैं, तथापि वे प्लेटफ़ॉर्मों और सोशल वैब के माध्यम से खोजे जा सकते हैं, तथा उनके मेटाडेटा का पता लगाया जा सकता है और उन्हें ट्रैक किया जा सकता है.
"अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था" प्रमुख शक्तियों की विदेश नीति को समझने के लिए एक उपयोगी अवधारणा है जो अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की बृहद संरचना को अपने लाभ के लिए आकार देने का प्रयास करती है. हाल के वर्षों में, नई दिल्ली ने अपनी पसंद की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का वर्णन करने के लिए “नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था” (RIO) की अवधारणा का उपयोग किया है. भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में सिंगापुर में शांगरी-ला डायलॉग के दौरान दिये गए अपने एक महत्वपूर्ण भाषण में “नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था” (RIO) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की घोषणा की थी.

महाशक्तियों की बढ़ती प्रतिद्वंद्विता के बीच, दिसंबर 2022 से नवंबर 2023 तक G-20 में भारत का नेतृत्व उसकी कूटनीतिक सूझबूझ की परीक्षा थी. क्या भारत पश्चिम और रूस के बीच कटु मतभेदों के बावजूद सफलतापूर्वक एक सम्मेलन की मेजबानी करने और एक संयुक्त बयान जारी करने में सक्षम होगा, साथ ही विकसित और विकासशील देशों के बीच की खाई को भी पाट सकेगा? क्या भारत इस प्रक्रिया में अपना वैश्विक कद बढ़ा पाएगा, या विवादों में फंस जाएगा? अभी भी कोई निष्कर्ष नहीं निकला है, लेकिन आम सहमति यही है कि भारत इन दोनों मामलों में सफल रहा है.

नीराश बर्मन अपनी जमीन पर खेती करने में असमर्थ हैं, जो अब भारत-बांग्लादेश सीमा और भारत द्वारा अपनी तरफ बनाई गई बाड़ के बीच आती है, क्योंकि सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने कई प्रतिबंध लगा रखे हैं. अपने घरेलू खर्चों की प्रतिपूर्ति और प्रबंधन के लिए उन्होंने अपने घर के पास ही गाँजा उगाना शुरू कर दिया. कुछ वर्षों तक सफलतापूर्वक खेती करने के बाद, BSF और पुलिस के नोटिस में यह बात आ गई. उन्होंने उनके घर पर छापा मारा, उनके खेतों को जला दिया, और अब उनके ग्रामीण इलाकों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है. उसी सीमा पर स्थित एक अन्य गाँव में भूमिहीन परिवार में पले-बढ़े हसन अली के पास आजीविका के बहुत कम विकल्प थे.

सन् 1977 में जब तमिल सिनेमा के मेगास्टार एम. जी. रामचंद्रन ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी तो वे उस प्रतिष्ठित पद पर आसीन होने वाले पहले भारतीय अभिनेता बने. अगले कुछ दशकों तक, M.G.R.और फिल्म जगत् से गहरे संबंध रखने वाले अन्य लोग राज्य के शीर्ष निर्वाचित पद पर बने रहे. उल्लेखनीय नामों में एम. करुणानिधि, पाँच बार मुख्यमंत्री और पटकथा लेखक, और जे. जयललिता, छह बार मुख्यमंत्री रहीं, जिन्होंने M.G.R. के साथ अभिनय करके फिल्म जगत् में प्रसिद्धि प्राप्त की, जिनके साथ उनके घनिष्ठ व्यक्तिगत संबंध भी थे.

भारत संक्रमण के दौर से गुज़र रहा है लेकिन सभी भारतीय समृद्ध नहीं हो पा रहे हैं. देश की विकास-गाथा में असमानता का बढ़ना तथा सरकार द्वारा अपने नागरिकों को गरीबी और बच्चों में कुपोषण जैसी अन्य प्रकार की आर्थिक दुर्दशा से बाहर निकालने में विफलता देखी गई है. यद्यपि स्वतंत्र भारत के इतिहास में गरीबी उन्मूलन के कल्याणकारी कार्यक्रम किसी न किसी रूप में मौजूद रहे हैं, लेकिन उनका प्रभाव सीमित ही रहा है. समावेशी विकास के लिए पुनर्वितरण का महत्व पिछले दो दशकों में ही सामाजिक नीति एजेंडे में शीर्ष पर आ गया है.

डिजिटल ट्रांसफ़ॉर्मेशन के लिए ग्लोबल क्वैस्ट ने डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) के रूप में एक नया चैंपियन पाया है. संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उच्च-प्रभाव वाली पहल के रूप में डिजिटल पहचान और डिजिटल भुगतान जैसे क्षेत्रों में सामाजिक पैमाने पर काम करने वाले DPI -डिजिटल बिल्डिंग ब्लॉकों की पहचान की है. "फ़र्स्ट-मूवर" देश और दाता समूह 50-इन -5 अभियान जैसी पहल के माध्यम से अन्य देशों के बीच DPI को फैलाने के लिए रैली कर रहे हैं जो 5 वर्षों (2028 तक) में 50 देशों में DPI को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं. इस विषय पर टूलकिट और प्लेबुक.

"उपनिवेशवाद से मुक्ति" की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों (IR) के एक गंभीर विद्वान् के रूप में काम करते हुए पिछले कुछ वर्षों में, मैंने जो चाहा है उसमें सतर्क रहना सीख लिया है. अकादमिक ज्ञान को उपनिवेशवाद से मुक्त करने का मतलब पारंपरिक रूप से विचार और जाँच के पश्चिमी-केंद्रित रूपों पर सवाल उठाना है जिन्हें सार्वभौमिक विचारों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. इसका मतलब है पश्चिम को सैद्धांतिक बैंचमार्क और अनुभवजन्य फोकस बिंदु से हटाना और उन तमाम तरीकों को गंभीरता से लेना, जिनसे शाही विरासत समकालीन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से आकार ग्रहण करती है.