डिजिटल ट्रांसफ़ॉर्मेशन के लिए ग्लोबल क्वैस्ट ने डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) के रूप में एक नया चैंपियन पाया है. संयुक्त राष्ट्र ने सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उच्च-प्रभाव वाली पहल के रूप में डिजिटल पहचान और डिजिटल भुगतान जैसे क्षेत्रों में सामाजिक पैमाने पर काम करने वाले DPI -डिजिटल बिल्डिंग ब्लॉकों की पहचान की है. "फ़र्स्ट-मूवर" देश और दाता समूह 50-इन -5 अभियान जैसी पहल के माध्यम से अन्य देशों के बीच DPI को फैलाने के लिए रैली कर रहे हैं जो 5 वर्षों (2028 तक) में 50 देशों में DPI को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं. इस विषय पर टूलकिट और प्लेबुक. DPI के शुरुआती एडॉप्टर और मुखर प्रचारक के रूप में, भारत ने इस कहानी में कोई छोटी भूमिका नहीं निभाई है. 2023 में इसकी G20 की अध्यक्षता के कारण विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं को DPI के अर्थ और लचीलेपन, नवाचार और समावेशी विकास को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका पर आम सहमति बनाने के लिए प्रेरित किया गया. इस संदर्भ में DPI के रूप में जो कुछ भी वर्णित किया गया, वह डिजिटल पहचान के लिए आधार अर्थात् डिजिटल भुगतान के लिए एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) और हाल ही में वित्तीय क्षेत्र में डेटा प्रबंधन के लिए खाता ऐग्रीगेटर ढाँचे जैसी परियोजनाओं के साथ भारत के अनुभवों से उपजा था. "मुक्त" ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (APIs) के मानकीकरण के विचार के इर्द-गिर्द निर्मित इस तरह के हस्तक्षेपों को सामूहिक रूप से "इंडिया स्टैक" के रूप में वर्णित किया गया है.
हाल ही में प्रकाशित अपने एक आलेख, “Stack is the New Black?: Evolution and Outcomes of the ‘India Stackification’ Process,” में मैंने इंडिया स्टैक के विकास को एक उद्योग के थिंक टैंक द्वारा प्रचारित विचार से लेकर भारत में डिजिटल परिवर्तन के प्रमुख मॉडल बनने तक की प्रक्रिया के रूप में दर्शाया है. मैं इंडिया स्टैक के विकास को एक उद्योग के थिंक टैंक द्वारा प्रचारित विचार से लेकर भारत में डिजिटल परिवर्तन के एक प्रमुख मॉडल तक के रूप में देखता हूँ. इस स्टैक को सामान्यतः चार परतों - उपस्थिति-रहित, कागज-रहित, नकदी-रहित, और सहमति - के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसमें प्रत्येक परत में एकाधिक DPI समाधान होते हैं.
ऊपर उद्धृत उदाहरणों के अलावा, indiastack.global नामक यह पोर्टल, जो अपने DPI के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए भारत की पहल का एक हिस्सा है, DIKSHA (ऑनलाइन शिक्षा), DigiLocker (दस्तावेज़ प्रमाणीकरण और प्रबंधन) और आरोग्य सेतु (COVID संपर्क ट्रेसिंग) जैसे अनुप्रयोगों को इंडिया स्टैक के कुछ अन्य घटकों के रूप में सूचीबद्ध करता है.
DPI पर वैश्विक विमर्श में ऐसे हस्तक्षेपों के डिजाइन में समावेशिता, सुरक्षा, लचीलापन, विश्वास और जवाबदेही की अपेक्षाओं को रेखांकित किया गया है. परंतु, इन मूल्यों के निर्वचन (और उनकी संतुष्टि के आकलन) को बड़े पैमाने पर अक्सर स्वतंत्र नियामक निगरानी के बिना घरेलू कार्यान्वयन एजेंसियों पर छोड़ दिया जाता है. भारत के मामले में, डिजिटल बुनियादी ढाँचे के प्रसार में सरकारी दबाव नागरिकों के लिए परेशानी का सबब साबित हुआ है. इन उदाहरणों में आधार के बिना लोगों को सेवाओं और कल्याणकारी लाभों से वंचित करने के आधिकारिक फरमान से लेकर आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के तहत नए डिजिटल स्वास्थ्य IDs के नामांकन के लिए पंचायत अधिकारियों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा दबाव डालने के लिए स्थानीय अभियान शामिल हैं.
आधार, ABDM, आरोग्य सेतु और DigiLocker जैसी परियोजनाएँ एक प्रकार के DPI के उस गवर्नेंस मॉडल को दर्शाती हैं, जहाँ बुनियादी ढाँचे का स्वामित्व और प्रबंधन सीधे सरकार द्वारा किया जाता है. ऐसी परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी तकनीकी विकास प्रक्रिया में चुनिंदा व्यक्तियों और व्यवसायों के साथ बातचीत और तत्पश्चात् उस प्रणाली को उपयोगकर्ताओं के रूप में अपनाने से आती है. उदाहरण के लिए, वित्तीय व्यवसायों द्वारा ‘अपने ग्राहक को जानें’ (KYC) की जाँच के लिए आधार-आधारित प्रमाणीकरण APIs का उपयोग या ABDM के तहत अस्पतालों और डायग्नॉस्टिक्स प्रयोगशालाओं के बीच प्रस्तावित डेटा एक्सचेंज.
दूसरे मॉडल में, सरकार DPI के प्रमोटर या समर्थक के रूप में कार्य करती है, लेकिन इसका स्वामित्व एक अलग उद्योग-स्वामित्व वाली कॉर्पोरेट इकाई के पास होता है. भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI), जो कई अन्य भुगतान पहलों के अलावा UPI प्रणाली का भी स्वामी है, इस संरचना को दर्शाता है. NPCI की शेयरधारिता बैंकों और भुगतान संस्थाओं के एक कंसोर्शियम के पास है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम शामिल हैं, लेकिन सरकार अपने-आपमें शेयरधारक नहीं है. देश में ई-कॉमर्स की पहुँच बढ़ाने के लिए बनाया गया ओपन नैटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) भी इसी तरह के मॉडल का अनुसरण करता है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रवर्तित ONDC का स्वामित्व बैंकों और वित्तीय संस्थानों के मिश्रण में एक गुणवत्ता मानकीकरण निकाय और एक डिजिटल समाधान इकाई के साथ इसके संस्थापक सदस्यों के रूप में निहित है.
सन् 2011 में, इंडिया स्टैक प्रस्तावक, नंदन नीलेकानी की अध्यक्षता में गठित विलक्षण परियोजनाओं के तकनीकी सलाहकार समूह (TAGUP) ने "एक सार्वजनिक उद्देश्य के साथ निजी कंपनियों" में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के स्वामित्व को निहित करने के विचार को स्पष्ट किया. NPCI और ONDC जैसी संस्थाओं के लिए “लाभ-रहित” संरचना को अपनाना उनके सार्वजनिक उद्देश्य पर जोर देने के तरीकों में से एक बन गया है. इसका तात्पर्य यह है कि इन संस्थाओं द्वारा अर्जित लाभ उनके सदस्यों में वितरित नहीं किया जा सकता है और इसे कंपनी की गतिविधियों में पुनः निवेश किया जाना चाहिए. शेयरधारकों के प्रोत्साहनों पर नजर रखने के अलावा, यह स्वामित्व मॉडल सरकारी व्यवस्था की तुलना में निर्णय लेने में बेहतर दक्षता तथा भर्ती और खरीद प्रक्रियाओं में लचीलापन प्रदान कर सकता है. परंतु, इन लाभों के साथ-साथ इस संरचना से विभिन्न प्रकार की प्रतिस्पर्धा और शासन संबंधी चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं.
बाजार-संबंधी संदर्भों में भारत की DPI संबंधी बैठकों ने दो प्रकार के प्रतिस्पर्धी प्रभाव उत्पन्न किए हैं. पहला और व्यापक रूप से प्रचारित, सकारात्मक प्रभाव यह है कि इससे सिस्टम के प्रतिभागियों के बीच अंतर-संचालन के माध्यम से प्रतिस्पर्धा को सक्षम बनाया जा सकेगा. यह अंतर-संचालनीयता ही है जो GooglePay का उपयोग करने वाले ICICI बैंक खाताधारक को SBI बैंक खाते वाले Paytm उपयोगकर्ता को तत्काल UPI भुगतान करने में सक्षम बनाती है. इसी प्रकार, ONDC ई-कॉमर्स की मूल्य श्रृंखला को अनेक छोटे-छोटे लेन-देनों में विभाजित करने का प्रयास कर रहा है, जिन्हें विभिन्न हितधारकों द्वारा निष्पादित किया जा सकेगा. इसका लक्ष्य उन सायलोज़ को तोड़ना है जो उपयोगकर्ताओं को विशिष्ट नेटवर्कों में बाँध देते हैं, जैसे कि अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसे बड़े ई-कॉमर्स बाज़ारों द्वारा संचालित नैटवर्क, और इस प्रक्रिया में इसका लक्ष्य अंतर-संचालन और प्रतिस्पर्धा को सुविधाजनक बनाना भी है.
परंतु, DPI परिनियोजन का अनुभव एक महत्वपूर्ण द्वितीय-क्रम का प्रश्न भी उठाता है - क्या इस तरह के प्रतिस्पर्धा-प्रेरित हस्तक्षेप, अवसंरचनात्मक एकाधिकार के कारण प्रतिस्पर्धा को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं? इसके बाद की चर्चाएँ 2022 के एक आलेख पर आधारित हैं जिसमें मैंने तर्क दिया था कि भारत के डिजिटल बुनियादी ढाँचे के विकल्प एक नई “alt big tech” के उदय की ओर संकेत कर सकते हैं. यह शब्द इन अवसंरचनाओं पर सरकार द्वारा समर्थित एकाधिकार, उनके डेटा एकत्रीकरण के लाभ, गेटकीपिंग संबंधी कार्यों और सभी नैटवर्क के प्रतिभागियों द्वारा पालन किए जाने वाले तकनीकी मानकों पर नियंत्रण को दर्शाने के लिए बनाया गया है. इनमें से कई विशेषताएँ बड़ी टैक इंडस्ट्री द्वारा उत्पन्न सरोकारों की याद दिलाती हैं, भले ही दोनों समूह अपने व्यावसायिक उद्देश्यों के संदर्भ में बहुत भिन्न हैं.
TAGUP समिति ने पाया कि डिजिटल अवसंरचना संचालक, जिन्हें उन्होंने राष्ट्रीय सूचना उपयोगिताओं के रूप में नामित किया था, अनिवार्य रूप से "upfront sunk-लागत, पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं और आसपास के ईको सिस्टम से नैटवर्क के बाहरी कारकों" के कारण प्राकृतिक एकाधिकार के रूप में काम करते हैं. तदनुसार, समिति ने प्रतिस्पर्धी सूचना की उपयोगिताओं की भूमिका के साथ-साथ उनके बीच अंतर-संचालन को भी मान्यता प्रदान की. परंतु, DPI कार्यान्वयन की वास्तविक राजनीति ने ऐसा होने से रोका है. NPCI के लिए एक प्रतियोगी को पेश करने का असफल प्रयास इसे ही दर्शाता है.
अभी तक, NPCI भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा भुगतान अम्ब्रेला इकाई के रूप में कार्य करने के लिए अधिकृत एकमात्र संस्था है. सन् 2019 में, RBI ने NPCI के लिए एक या एक से अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने की पहल की. इसका उद्देश्य भुगतान के परिचालनों को एक ही इकाई में केन्द्रित होने से रोकना था, जिससे प्रणालीगत और परिचालन संबंधी जोखिम उत्पन्न हो सकते थे तथा एकाधिकारवादी प्रवृत्तियाँ पैदा हो सकती थीं. हालाँकि, पाँच साल बाद भी RBI ने इस योजना पर कोई कार्रवाई नहीं की है. RBI ने अपनी निष्क्रियता के लिए इस तथ्य को जिम्मेदार ठहराया है कि उसे प्राप्त आवेदनों में से कोई भी इतना नवोन्मेषी नहीं था कि उस पर आगे विचार किया जा सके. हालाँकि, लोकप्रिय टिप्पणियों में प्रतिरोध के आधार के रूप में कई अन्य तर्क प्रस्तुत किए गए हैं, जिनमें NPCI की शक्तियों के लिए खतरा और डिजिटल भुगतान में बड़ी तकनीक की उपस्थिति के बारे में चिंताएँ शामिल हैं.
वास्तव में, NPCI ने UPI साथ कई उपलब्धियां हासिल की हैं. लोकप्रियता और लेन-देन के पैमाने के संदर्भ में यह प्रणाली काफी बढ़ गई है. इसमें आवर्ती भुगतान अधिदेश और NPCI के स्वामित्व वाले RuPay क्रेडिट कार्ड के साथ अंतर-संचालन जैसी नई सुविधाएँ भी शामिल की गई हैं. इसके अलावा, विदेशों में भुगतान प्रणालियों के साथ UPI के सीमा-पार एकीकरण की दिशा में उल्लेखनीय कदम उठाए गए हैं, जिसमें Google Pay के साथ इसका नवीनतम गठजोड़ भी शामिल है.
फिर भी, UPI को भारत के भुगतान नवाचार के शिखर के रूप में देखना गलत होगा. ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच, उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी, बैंक सर्वर में व्यवधान, नेटवर्क विफलता और वास्तव में, उत्पाद नवप्रवर्तन जैसे मुद्दों के समाधान के लिए अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है. इन अंतरालों को पाटने के लिए UPI के भीतर प्रतिस्पर्धी ताकतों को NPCI के प्रभुत्व के लिए व्यवहार्य प्रतिस्पर्धी चुनौतियों के साथ सह-अस्तित्व में रहने की आवश्यकता होगी.
NPCI की उत्पाद संबंधी पेशकश के बीच तरजीही सौदेबाजी और गूगल जैसे बाजार के सहभागियों के साथ वाणिज्यिक व्यवस्थाओं जैसे कार्यों को उसी नजरिए से देखा जाना चाहिए, जिस नजरिए से वे किसी बड़ी प्रौद्योगिकी इकाई के लिए देखे जाते हैं. यही बात NPCI के अन्य बाजार के हस्तक्षेपों के लिए भी सही है, जैसे UPI ऐप्स के लिए मार्केट कैप निर्दिष्ट करना, जिसका कार्यान्वयन कई बार स्थगित किया जा चुका है, और यह तय करना कि नया प्रवेशकर्ता किस गति से अपना व्यवसाय बढ़ा सकता है. इसके अलावा, सार्वजनिक जवाबदेही और उचित प्रक्रिया की गारंटी का अभाव ऐसे बुनियादी ढाँचे की निष्पक्षता पर संदेह की छाया डालता है. NPCI जैसी संस्थाओं को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत सार्वजनिक पारदर्शिता दायित्वों के दायरे से बाहर रखना इसका एक उदाहरण है.
ये सरोकार निजी DPI के स्वामित्व के बारे में नहीं हैं, बल्कि विशेष रूप से ऐसे एकाधिकार द्वारा पोषित नई शक्ति संरचनाओं के प्रकाश में उपयुक्त प्रतिस्पर्धा, प्रशासन और जवाबदेही सुरक्षा के अभाव के बारे में हैं. DPI की जन-भावना और प्रतिस्पर्धा समर्थक परिणामों की कल्पना करने के बजाय, इन विशेषताओं को कानून और व्यवहार में उचित रूप से प्रदर्शित किया जाना चाहिए. इन कदमों पर विचार करने की जिम्मेदारी कार्यान्वयन करने वाली घरेलू एजेंसियों पर है, लेकिन कुछ हद तक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और दाता समुदाय पर भी है, जो DPI की ओर वैश्विक दौड़ को बढ़ावा दे रहे हैं.
स्मृति परशीरा एक वकील हैं और सार्वजनिक नीति की अनुसंधानकर्ता भी हैं. वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में पीएचडी कर रही हैं.
हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (हिंदी), रेल मंत्रालय, भारत सरकार
Hindi translation: Dr. Vijay K Malhotra, Former Director (Hindi), Ministry of Railways, Govt. of India
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