अप्रैल-मई 2024 में होने वाले भारत के आम चुनावों में, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने 2019 के प्रदर्शन को, बेहतर न सही तो दोहराने की उम्मीद ज़रूर कर रही है. उन चुनावों में, उनकी पार्टी और उसके सहयोगियों ने 45 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था और 543 सदस्यीय लोकसभा में 300 से अधिक सीटें जीती थीं. कुछ पर्यवेक्षकों ने इतनी भारी जीत की आशा की थी, जिसके लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व, भाजपा के बेहतर पार्टी संगठन और वित्तीय बंदोबस्त के उच्च स्तर और हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और सामाजिक कल्याण के कुशल मिश्रण जैसे कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया था.
संक्रमण के दौर में भारत (India in Transition)

कृत्रिम मेधा (AI) में मानवीय क्षमताओं को बढ़ाने और कई उद्योगों में विकास को बढ़ावा देने की अपार क्षमता है. इससे शासन, स्वास्थ्य संबंधी देखभाल और शिक्षा परिणामों में काफी सुधार होने की आशा है. परंतु, इसकी क्षमता का तब तक एहसास नहीं हो सकता है जब तक कि कृत्रिम मेधा (AI) के निर्माण ब्लॉक कुछ प्रमुख कंपनियों या उन देशों के हाथों में केंद्रित रहेंगे जहाँ वे स्थित हैं.

जब औपचारिक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना कठिन हो और विवाद के समाधान के पारंपरिक मानदंड पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हों तो विवादों का समाधान कैसे किया जाता है? मैं इसे कुछ विशेष प्रकार के प्रकरणों से स्पष्ट करना चाहूँगा; लोग औपचारिक अदालत जैसा ढाँचा अपनाते हुए, लगभग आधिकारिक प्रक्रियाओं की नकल करते हुए, विवाद को अनौपचारिक रूप से सुलझा लेते हैं. लोग विवाद के समाधान की प्रक्रियाएँ स्थापित करते हैं जो कॉस्मेटिक रूप में औपचारिक प्रणाली के समान होती हैं और ऐसा व्यवहार करती हैं जैसे कि पूरी प्रक्रिया कानूनी हो.

भू-राजनीतिक उतार-चढ़ाव और बढ़ते तनाव के बीच, हिंद-प्रशांत दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक और भू-राजनीतिक क्षेत्रों में से एक बना हुआ है. इस साझा स्थल में 40 अर्थव्यवस्थाएँ, दुनिया की 65 प्रतिशत आबादी (लगभग 4.3 बिलियन लोग) और $ 47.19 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक गतिविधियाँ शामिल हैं. इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है, जिससे लाखों लोगों की जान खतरे में पड़ गई है और आशंका इस बात की भी है कि वैश्विक आर्थिक विकास पर इसका भारी असर पड़े.

यूरोप और मध्य पूर्व में क्रूर सैन्य संघर्ष के साथ, साइबर सुरक्षा के मानदंडों पर संयुक्त राष्ट्र ओपन-ऐंडेड वर्किंग ग्रुप की बहुपक्षीय बैठकों पर दुनिया का बहुत कम ध्यान गया है. फिर भी, संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाएँ जो साइबरस्पेस के लिए सड़क के नियम स्थापित करने के लिए डिज़ाइन की गई थीं, दशकों से अमेरिका, यूरोपीय संघ और उनके सहयोगियों के बीच वैचारिक ध्रुवीकरण के कारण बाधित हुई हैं, जिन्हें अक्सर "उदारवादी" शिविर कहा जाता है. इन्हें चीन, रूस और "सत्तावादी" खेमे के खिलाफ़ खड़ा किया गया था.


भारत में, संरचनात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप महिला कार्यबल की संरचना में बड़ा बदलाव आया है. महिला श्रम शक्ति में घटती भागीदारी पर होने वाली बहस में अधिक उम्र की कम पढ़ी-लिखी महिलाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है. सन् 1983 में 33 प्रतिशत महिलाएँ सन् 1983 में, कामकाजी उम्र की लगभग 33 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएँ वैतनिक रोज़गार में थीं. 2017 में यह प्रतिशत गिरकर लगभग 20 हो गया था. तब से ग्रामीण भारत में महिलाओं के लिए रोज़गार दर में वृद्धि हुई है.


प्रौद्योगिकी की नीति की दृष्टि से, 2023 में चंद्रयान -3 मिशन की सफलता - जिसके कारण भारत चंद्रमा पर रोवर उतारने वाला चौथा देश बन गया और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास ऐसा करने वाला पहला देश बन गया - एक तर्कसंगत सवाल पैदा होता है: अगर बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा संचालित प्रयास भारत को एक वास्तविक अंतरिक्ष शक्ति बना सकते हैं, तो क्या उनमें से कुछ सबक लेकर भारत को सेमिकंडक्टर शक्ति बनने में मदद मिल सकती है?

जम्मू-कश्मीर में जनसंख्या संबंधी आँकड़ों का जुनून उतना ही पुराना है जितना कि राज्य के भारत में विलय और पाकिस्तान द्वारा इसके कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा करने का विवाद. हाल ही में, 2019 में भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से यह आग फिर से भड़क गई, जिसने जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करने वाले प्रावधानों को छीन लिया. जहाँ एक ओर जनसंख्या के आँकड़े जम्मू-कश्मीर की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, वहीं डेटा की गुणवत्ता भी विवादास्पद हो जाती है.

औद्योगिक नीति के इस विचार की अब वैश्विक स्तर पर चर्चा होने लगी है कि सरकार विभिन्न प्रयोजनों के लिए अर्थव्यवस्था के कुछ भागों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. संयुक्त राज्य अमरीका (USA) का मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसके अंतर्गत उन उद्योगों का समर्थन करने के लिए सरकारी सब्सिडी, करों में छूट, ऋण और अनुदान का उपयोग होने लगा है जिन्हें अमेरिका ने महत्वपूर्ण मान लिया है. भारत के लिए भी यह प्रवृत्ति कोई नई बात नहीं है.

संभावना इस बात की है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में युद्ध के बढ़ते खतरों के बारे में होने वाली बातचीत पर मुख्यतः ताइवान का युद्ध हावी रहेगा. रॉस बैबेज की पुस्तक The Next Major War में ताइवान पर चीनी हमले को उस चिंगारी के रूप में चिह्नित किया गया है जो इस क्षेत्र को निगल सकती है.