कोविड-19 के संकट और उसके बाद के लॉकडाउन ने भारत में खास तौर पर सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिए उनके सीमित वित्तीय संसाधनों के कारण गंभीर चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं. यही कारण है कि भारत सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था में उनके महत्वपूर्ण स्थान को देखते हुए देश के 63.4 मिलियन सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) की मदद के लिए अनेक उपायों की घोषणा कर दी है. इन उद्यमों में 110 मिलियन लोग काम करते हैं और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में इनका हिस्सा 29 प्रतिशत है. इनमें सबसे बड़ी पहल थी, 4.5 मिलियन सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) को अतिरिक्त सुविधाएँ प्रदान करने के लिए 3 ट्रिलियन रुपये ( अर्थात् $40 बिलियन डॉलर) की ऋण गारंटी का प्रावधान. इसके कारण ये उद्योग अब बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) से सुविधाएँ प्राप्त कर रहे हैं. जहाँ एक ओर सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के उधारकर्ताओं को ऐसी मोहलत देना ज़रूरी था, वहीं यह मोहलत केवल छोटे अनुपात वाले उन उद्यमों को ही मिल पाई है, जिनकी पहुँच बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) तक रही है. IFC-Intellecap के 2018 के एक अध्ययन के अनुसार भारतीय सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) का ऋण अंतराल अनुमानतः 25.8 ट्रिलियन रुपये ($340 बिलियन डॉलर) का था. इसका अर्थ यह है कि इस क्षेत्र की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) की तीव्र गति से बढ़ती वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना आवश्यक है. रोज़गार की दृष्टि से इस क्षेत्र के महत्व को देखते हुए सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) को ऋण प्रदान करने के लिए बुनियादी ढाँचे में निवेश करना बहुत महत्वपूर्ण है और भविष्य में इससे बहुत लाभ मिलने की संभावना है.
ऋण के इतिहास और विश्वसनीय वित्तीय विवरणों की कमी के कारण इस क्षेत्र की फ़र्मों के ऋण मूल्यांकन की कठिनाइयों के कारण सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) को ऋण प्रदान करना भी एक बड़ी चुनौती है. इनके मूल्यांकन के लिए ऋणदाताओं को काफ़ी समय लगाना पड़ता है. यही कारण है कि लेन-देन की लागत भी बढ़ जाती है. कुछ ऋणदाता उद्यमी की निजी संपत्ति को बंधक रखकर ऋण देना ज़्यादा पसंद करते हैं. इस नीति के कारण बहुत-से संभावित सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम (MSMEs) इसके पात्र नहीं हो पाते, क्योंकि उनके पास ऐसी कोई जमानत नहीं होती. लेकिन अधिक से अधिक ऋणदाता हाल ही में विकसित तकनीकों के कारण अपने लेन-देन को अधिक से अधिक डिजिटल करते जा रहे हैं. इसके कारण सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) से संबंधित सूचनाओँ के नये स्रोतों की जानकारी मिलने लगी है. वस्तु व सेवा कर (GST) के आँकड़ों और इंडिया स्टैक जैसे ओपन ऐप्लिकेशन प्रोग्राम इंटरफ़ेस के आँकड़ों की उपलब्धता के कारण ऐसे ऋण प्रदान करना खास तौर पर उपयोगी होने लगा है. इसके अलावा व्यापार प्राप्य डिस्काउंट प्रणाली (TReDs) एक ऐसा इलैक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म है, जिसकी मदद से व्यापार प्राप्य की नीलामी की जा सकती है. यह सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के ऋणदाताओं के लिए भी उपयोगी है. जहाँ एक ओर इस क्षेत्र को ऋण प्रदान करने की प्रक्रिया परंपरागत रूप में काफ़ी महँगी पड़ती है, वहीं डिजिटल डेटा का उपयोग करने में लागत काफ़ी कम आती है. यह डेटा सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के उन ऋणदाताओं के लिए भी उपयोगी है, जो विश्वसनीय वित्तीय विवरणों के अभाव में उद्यमों को उनके नकदी प्रवाह के आधार पर ऋण प्रदान करते हैं.
इन गतिविधियों के कारण डिजिटल वित्तदाताओं (खास तौर पर फ़ाइनटैक स्टार्टअप्स के लिए) का भी उदय हो गया है. ये वित्तदाता डिजिटल सूचनाओं और कृत्रिम बुद्धि (AI) के आधार पर ऑनलाइन ऋण प्रदान करते हैं. ऑनलाइन बाज़ारों की एक नई प्रवृत्ति भी उभरने लगी है, जहाँ सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के ऋणदाता और उधारकर्ता भी आपस में लेन-देन कर सकते हैं. फ़ाइनटैक स्टार्टअप्स (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के रूप में निगमित) सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के ऋण क्षेत्र की विविधता का विस्तार करने में मदद करते हैं. एक समय था, जब सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) की ऋण प्रक्रिया पर सरकारी क्षेत्र के बैंकों का ही आधिपत्य था. दिसंबर 2018 में उनका हिस्सा 49.8 प्रतिशत था और शेष हिस्से पर निजी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) का नियंत्रण था (TransUnion CIBIL, अप्रैल 2020 पर आधारित डेटा). 2015 में छोटे वित्त बैंकों को लाइसेंस मिलने के कारण निजी बैंकों की एक नई श्रेणी सामने आ गई जो विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) पर ही केंद्रित थी. इनमें से अधिकांश इकाइयाँ बैंकिंग का लाइसेंस मिलने से पहले सूक्ष्म वित्तीय संगठन के रूप में कार्यरत थीं और अब वे सूक्ष्म वित्तीय ऋणों से आगे बढ़कर अपने पोर्टफ़ोलियो का विस्तार करने की प्रक्रिया में हैं. सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) पर केंद्रित अनेक प्रकार की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) का उदय भी हो गया है. जहाँ पहले गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs) मुख्यतः बाज़ार में ट्रकों के वित्तीयन पर ही केंद्रित रहती थीं, वहीं अब नई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs) नये क्षेत्रों की तलाश में भी जुट गई हैं, जैसे, विशिष्ट टैक्सटाइल संकुलों और कृषि मूल्य श्रृंखलाओं का वित्तीयन.
इस क्षेत्र में ऋणदाताओं की विविधता ऋणदाताओं की श्रेणी पर आधारित सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के ऋणों की डिफ़ॉल्ट दरों के स्पष्ट अंतर में प्रतिबिंबित होती है. दिसंबर 2017 और दिसंबर 2019 के बीच सरकारी क्षेत्र के बैंकों के सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) को दिये गए ऋणों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) की दर 16.6 प्रतिशत और 18.7 प्रतिशत के बीच में रही है और यह दर निजी क्षेत्र के बैंकों (जो 3.5 प्रतिशत और 5 प्रतिशत के बीच में थी) की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) की दरों की श्रेणी से काफ़ी ऊपर है. उसी अवधि में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) दर 4.9 प्रतिशत और 7.6 प्रतिशत के बीच में रही है.
यह चिंता का विषय है कि सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) को ऋण देने वाली सबसे बड़ी ऋणदाता श्रेणी अर्थात् सरकारी क्षेत्र के बैंकों का सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) की दर भारत में दिसंबर, 2019 में 18.7 प्रतिशत थी. यह भारत में समग्र व्यावसायिक ऋण देने की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) की 17.3 प्रतिशत की दर से अधिक थी.(ये आँकड़े अप्रैल 2010 के TransUnion CIBIL के डेटा पर आधारित हैं) इन संख्याओं से पता चलता है कि आवश्यकता इस बात की है कि देश में सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) को ऋण देने के लिए समर्थन देने के उद्देश्य से बुनियादी ढाँचे में निवेश किया जाए ताकि ऋणदाता आगे बढ़कर निर्णय लेने में सक्षम हो सकें. उदाहरण के लिए सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के क्षेत्र के ऋणदाता और उधारकर्ता ऋणदाताओं को प्रोत्साहन राशि देने से संबंधित नीतिगत पहल से लाभान्वित हो सकें ताकि विभिन्न ऋण संस्थाओं में उत्पन्न होने वाले डेटा को अधिक से अधिक मात्रा में पूल किया जा सके. इस प्रकार की पूलिंग के बुनियादी रूप से सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के वित्तीय विवरण डेटा का भंडार बनाया जा सकेगा ताकि इनकी मदद से विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के ऋणदाताओं के लिए बैंचमार्क विकसित किये जा सकें. इनमें से अधिकांश प्रकार औपचारिक वित्तीय प्रणाली के लिए नये हो सकते हैं.
पूलिंग का कहीं अधिक उन्नत रूप ऋणदाताओं के वित्तीय निष्पादन, ऋण और डिफ़ॉल्ट डेटा को व्यवस्थित कर सकेगा ताकि पूर्वानुमान लगाने के लिए ऋणदाता-स्तर के मॉडलों की तुलना में अधिक मज़बूत और श्रेष्ठ क्रैडिट मॉडल विकसित किये जा सकें.. इस प्रकार की पहल का एक उदाहरण है, जापान में प्रचलित “साख जोखिम डेटाबेस”. इसके माध्यम से सदस्य बैंक लघु व मध्यम उद्यमों (SMEs) के वित्तीय निष्पादन और डिफ़ॉल्ट से संबंधित डेटा को साझा कर सकते हैं. यह डेटाबेस खास तौर पर लघु व मध्यम उद्यमों (SMEs) को ऋण प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ही बनाया गया था. निजता के संरक्षण के लिए ग्राहकों के नाम साझा नहीं किये जाते, लेकिन उसी इकाई से संबंधित प्रविष्टि को ऐल्गॉरिथम के प्रयोग के साथ जोड़ दिया जाता है. भारतीय संदर्भ में ऐसा साख जोखिम डेटाबेस बनाना उपयोगी होगा, जो बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) को संबद्ध कर सके, क्योंकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs) भी सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के ऋण क्षेत्र में महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं. मॉडल स्थापित करने की लागत का खर्च सदस्य संगठनों को उठाना होगा. साख ब्यूरो के मामले में यह अनिवार्यता है और इससे डेटाबेस के निर्माण में मदद मिलेगी. ऐसी पहल सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) को ऋण प्रदान करने के लिए अतिरिक्त सूचना स्रोतों के निर्माण से संबंधित 2019 की सिन्हा समिति की सिफ़ारिश के अनुरूप होगी.
डिजिटल डेटा की उपलब्धता, सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के नये प्रकार के ऋणदाताओं की प्रविष्टि और ऋण प्रदान करने के नये उपाय ऐसे सकारात्मक कदम हैं जिनसे पहली बार वाले अधिक से अधिक सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के उधारकर्ताओं को ऋण प्रदान किया जा सकेगा. फिर भी इस प्रक्रिया में निश्चय ही जोखिम तो है, क्योंकि ऋणदाता एक नये क्षेत्र में प्रवेश कर रहे होंगे और नये प्रकार के ग्राहकों के बारे में सीख रहे होंगे. अब यह आवश्यक है कि सीखे गए पाठों को मिल-जुलकर साझा करने के लिए बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रक्रिया में निवेश किया जाए. इसकी मदद से सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) के ऋणदाताओं को आकर्षक और चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में काम करने का अवसर मिलेगा और अधिकाधिक ऋण देने और ऋण के बेहतर पोर्टफ़ोलियो हासिल करने का अवसर मिल सकेगा.
सविता शंकर CASI की अनिवासी विज़िटिंग स्कॉलर हैं.
हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919