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धन-प्रेषण में आई गिरावट के झटके का असर भारत कैसे कम कर पाएगा?

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15/06/2020
रूपक ज्योति बोराह

भारत ने कोरोना वायरस की महामारी के कारण दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फँसे हुए अपने नागरिकों के प्रत्यर्पण के लिए सबसे बड़ा अभियान (वंदे भारत मिशन) शुरू कर दिया है. अब तक लगभग 45,000 लोगों का प्रत्यर्पण हो चुका है. हालाँकि यह मिशन प्रत्यर्पित लोगों की विशाल संख्या को देखते हुए अपने आप में ही बहुत बड़ा काम था, लेकिन इससे भी बड़ी चुनौती इन लोगों की घर वापसी के बाद सामने आएगी. नई दिल्ली को धन प्रेषण में आने वाली भारी गिरावट से उत्पन्न समस्याओं से जूझना होगा, क्योंकि अपने घर लौटने के बाद प्रत्यर्पित भारतीय प्रवासियों पर उनके गृह देशों में उनकी नौकरियों में कटौती की तलवार लटक रही होगी. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में धन प्रेषण में 23 प्रतिशत की भारी गिरावट आने की आशंका है और 2019 में $83 बिलियन की राशि इस साल वैश्विक महामारी के कारण घटकर $64 रह जाएगी. सन् 2018 में भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में धन प्रेषण का हिस्सा 2.9 प्रतिशत था. सबसे अधिक गिरावट का एहसास खास तौर पर खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीय कामगारों के प्रत्यर्पण से होगा. तेल के मूल्यों में आई गिरावट के कारण इनमें से कुछ देश तो पहले से ही उनके देश में काम करने वाले कामगारों की संख्या कम करने पर विचार कर रहे थे. 

भारत पर आर्थिक प्रभाव
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक व सामाजिक मामला विभाग (DESA) द्वारा जारी किये गए आँकड़ों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों के मूल देशों के क्रम में भारत का स्थान सबसे ऊपर है. भारत के 17.5 मिलियन लोग विदेशों में काम करते हैं. इनमें से 8.5 मिलियन लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं. उनके धन प्रेषण की रकम प्रसंगवश भारत को भेजे जाने वाले धन प्रेषण की कुल रकम के आधे से भी अधिक है. धन प्रेषण से भेजी गई यह रकम भारत में रहने वाले उनके परिवार के खानपान, शिक्षा, इलाज और अन्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है. इसलिए धन प्रेषण में आई गिरावट का सीधा प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, क्योंकि यही धन प्रेषण प्रवासियों के भारत में रहने वाले अधिकांश परिवारों के लिए आमदनी का अतिरिक्त और महत्वपूर्ण स्रोत है.

धन प्रेषण में गिरावट ऐसे समय में आई है जब महामारी के कारण लागू किये गए लॉकडाउन के चलते भारत सरकार अपनी अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने के प्रयासों में जुटी है. विदेशों से भारत में प्रत्यर्पित होने वाले इन प्रवासी कामगारों को अपने देश में ही उनकी योग्यता के अनुसार काम पर लगाना भी ज़रूरी है. इस समय भारत सहित सारी दुनिया के नियोजकों के लिए बहुत बड़ा काम है, क्योंकि वे बाज़ार की मंदी के कारण मौजूदा कर्मचारियों की छँटनी करने में जुटे हैं. इसके अलावा, भारत को सबसे पहले अपने घरेलू कामगारों को रोज़गार देने के लिए कुछ अवसर तलाशने होंगे.

धन प्रेषण का सबसे बुरा असर केरल जैसे भारतीय राज्य पर पड़ेगा, क्योंकि धन प्रेषण से सबसे अधिक रकम केरल में ही आती है. यह उस समय और भी मुश्किल होता, जब सन् 2018 में इस राज्य को भारी बाढ़ का कहर झेलना पड़ा था. इसके अलावा, भारत के एयर लाइन उद्योग को भी भारी झटका लगेगा, क्योंकि कुछ एयर लाइन कैरियर तो भारत और खाड़ी देशों के बीच यात्रियों के यातायात से ही मुनाफ़ा कमाते रहे हैं.

कोरोना वायरस की महामारी का असर अमरीका में रहने वाले भारतीय प्रवासियों पर भी पड़ेगा, क्योंकि कोरोना की महामारी के कारण सबसे अधिक मौतें अमरीका में ही हुई हैं.   कोरोना के कारण सबसे अधिक लोग भी अमरीका में ही बेरोज़गार हुए हैं और इसका असर भारतीय प्रवासियों पर भी पड़ेगा. वैसे भी यह चुनावी वर्ष है और राष्ट्रपति ट्रंप पर अमरीकी नागरिकों को पहले नौकरी देने का दबाव बना रहेगा. अनुमान लगाया गया है कि दस देशों में बसे लगभग दस मिलियन NRIs (अनिवासी भारतीय) कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं.

भारत इस झटके से कैसे उबर पाएगा?
हालाँकि भारत अल्पकालिक अवधि में तो धन प्रेषण में आई गिरावट से होने वाले नुक्सान की भरपाई नहीं कर पाएगा, लेकिन भारत को चाहिए कि वह विदेशों से प्रत्यर्पित कुछ प्रवासी कामगारों को ऊँचे मूल्य के क्षेत्रों में लाभप्रद कामों पर लगाने का उपाय कर ले. इसके कारण ब्रेन ड्रेन के एक हिस्से को नई दिल्ली को अपने ही देश में वापस लाने का मौका मिल जाएगा. इसी ब्रेन ड्रेन के कारण अतीत में कुछ बेहद मेधावी भारतीय अपना देश छोड़कर विदेशों में जा बसे थे.

नई दिल्ली यह कैसे कर पाएगा? हालाँकि कोविड-19 से भारत को मुक्त कराने में अभी काफ़ी समय लग सकता है, लेकिन सबसे पहले इसे ऑटोमोबाइल, तेल व गैस, निर्माण और बंदरगाहों जैसे क्षेत्रों में घरेलू क्षमता को बढ़ाना होगा. इस बात का विस्तृत अध्ययन करना होगा कि प्रवासी भारतीयों की किन क्षेत्रों में सबसे अधिक छँटनी हुई है और ऐसे क्षेत्रों में ही अपने देश के अंदर अधिकाधिक रोज़गार के अवसर पैदा करने का प्रयास करना होगा.

दूसरी बात यह है कि पाकिस्तान और बांग्ला देश जैसे दक्षिण एशिया के देश भी धन प्रेषण में आई गिरावट से प्रभावित हुए हैं. नई दिल्ली ने पहले ही ‘सार्क कोविड-19 आपात् निधि’ के लिए $10 मिलियन डॉलर के योगदान का वचन दे दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च में अन्य सार्क देशों के नेताओं के साथ वीडियो सम्मेलन करते हुए इस निधि की सबसे पहले पेशकश की थी. नई दिल्ली धन प्रेषण में आई इस गिरावट से निपटने और प्रवासी कामगारों को फिर से रोज़गार देने के उपायों को भी अन्य सार्क देशों के साथ समन्वित करने का प्रयास कर सकता है.

तीसरी बात यह है कि भारत को IT क्षेत्र की अपनी ताकत को और भी बढ़ाना होगा. उन राज्यों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जा सकती है, जो विदेश में अपना रोज़गार गँवाने वाले प्रवासी भारतीयों के लिए IT क्षेत्र में रोज़गार के अवसर निर्मित कर सकते हों. पिछले साल IT-BPM (सूचना प्रौद्योगिकी एवं कारोबार प्रक्रिया प्रबंधन) ने लगभग $177 बिलियन डॉलर मूल्य के कारोबार भारत में पैदा किये थे और लगभग 4.1 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान किया था. 

चौथी बात यह है कि भारत के बाहर विदेशों में काम करने वाले अधिकांश भारतीय प्रवासी कामगार निर्माण के क्षेत्र में काम कर रहे थे. अगर उन्हें भारत में ही रोज़गार प्रदान करना है तो बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में भारी निवेश करना होगा. यहाँ सागरमाला जैसी परियोजनाओं का उद्देश्य होना चाहिए, “भारत के तटीय क्षेत्रों, नौकावहन करने योग्य जलमार्गों और समुद्री क्षेत्रों का व्यापक विकास”. ऐसी परियोजनाएँ बहुत लाभप्रद सिद्ध होंगी. इस पहल में नई दिल्ली को जापान जैसे मित्र-देशों के साथ भी सहयोग करना होगा. जापान ऐसी परियोजनाओं के लिए भारत को अपेक्षित निधि उपलब्ध करा सकता है. जापान पहले से ही भारत को बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में भारी धनराशि उपलब्ध करा रहा है.

एक बात इस समय भारत के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकती है और वह है, तेल के मूल्यों में कमी. 2020 के वित्त वर्ष (FY20) में भारत के तेल के आयात बिल में कच्चे तेल के मूल्यों में मंदी आने के कारण 10 प्रतिशत की गिरावट की आशंका है. 2021 के वित्त वर्ष (FY21) के लिए यह अनुमान लगाया गया है कि आयात बिल $64 बिलियन डॉलर तक और भी लुढ़क सकता है. अगर तेल के मूल्य आज की मौजूदा स्थिति की तरह ही निचली दर पर बने रहते हैं तो भी नई दिल्ली अपने तेल आयात बिल पर भारी सौदेबाजी करके बचत कर सकता है. इस धनराशि से भारत धन प्रेषण में आई गिरावट के नुक्सान की अच्छी तरह से भरपाई कर सकेगा.

आगे आने वाली बाधाएँ
आज यह कहना तो आसान होगा, लेकिन इसे कार्यान्वित करना बहुत कठिन है, खास तौर पर तब जब देश इस समय कोरोना की महामारी से जूझ रहा है. इसके लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच समन्वय स्थापित करना भी आवश्यक होगा. हालाँकि इस समय नई दिल्ली का सारा ध्यान उचित रूप में कोरोना वायरस से मुकाबला करने में लगा है, लेकिन दीर्घकालीन योजना के रूप में नई दिल्ली को अन्य देशों में खास तौर पर बहुत कुशल कामगार भारतीयों के अन्य देशों में निष्क्रमण से निपटने के लिए ब्लूप्रिंट भी तैयार कर लेना चाहिए.

ये कुशल भारतीय प्रवासी जिन देशों में काम कर रहे थे, वहाँ से अब भारत लौट आए हैं. लगता है कि अब नये सिरे से अर्थव्यवस्था की शुरुआत करनी होगी और इसके लिए भारत में उद्यमिता के कार्यकलापों को बढ़ाने के लिए इन कुशल भारतीय प्रवासियों की मदद ली जा सकती है. इनमें से कुछ कामगारों, जैसे नर्सों की खास तौर इन हालातों में बेहद ज़रूरत है. दूसरी ओर कुछ निम्नस्तरीय कुशल प्रवासी भारतीय कामगारों की कामकाजी परिस्थितियाँ उन देशों में बहुत दयनीय थीं, जहाँ वे काम करते थे. सरकार को चाहिए कि वह इन कामगारों के लिए दीर्घकालीन योजना तैयार करे. 

इस समय धन प्रेषण में आई गिरावट से भारत की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी, लेकिन साथ ही इससे प्रवासी कामगारों को अपने ही देश में एकबारगी अच्छा रोज़गार दिलाने का अवसर भी मिलेगा. प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में “आत्मनिर्भर भारत” का आह्वान किया है और उनके इस मिशन में स्वदेश लौटे प्रवासी भारतीयों की मुख्य भूमिका हो सकती है. धन प्रेषण में आई यह गिरावट परोक्ष रूप में एक सुनहरा अवसर भी बन सकती है.

रूपक ज्योति बोराह जापान रणनीतिक अध्ययन मंच, टोक्यो में वरिष्ठ रिसर्च फ़ैलो हैं. उनकी पुस्तकें हैं, The Elephant and the Samurai: Why Japan Can Trust India (2017) और Act-East Via the Northeast: How India’s Northeast is Strengthening the Kizuna (Bond) Between India, Japan and ASEAN? (2019). वह जापान अंतर्राष्ट्रीय मामला संस्थान (JIIA), ऑस्ट्रेलिया राष्ट्रीय विश्वविद्यालय (ANU) और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विज़िटिंग फ़ैलो भी रहे हैं.  

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919