चीन की बढ़ती ताकत के चिंताजनक स्वरूप के मद्देनज़र अनुकूल भूराजनैतिक परिस्थितियों के बावजूद भारत और जापान के आपसी संबंध अभी तक बहुत प्रगाढ़ नहीं हो पाये हैं. दोनों के बीच “प्रत्यक्ष अंतराल" बने रहने के कारण संबंध बहुत प्रगाढ़ नहीं हो पाये हैं.
संक्रमण के दौर में भारत (India in Transition)
सन् 1993 में भारतीय पूँजी बाज़ार के इतिहास के सबसे बड़े घोटाले का पर्दाफ़ाश होने के कुछ समय के बाद ही भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बदले के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी. बदला तंत्र ऐसा है जिसमें व्यापारी अपना कारोबार बिना किसी करार के भी कर सकते हैं और अंतर्राष्ट्रीय वित्त आयोग और आर्थर ऐंडरसन की तत्कालीन ख्याति-प्राप्त फ़र्म जैसे विचित्र स्रोतों से शेयर या पैसा उधार लेने पर इसकी काफ़ी आलोचना हो चुकी थी.

यदि वैश्वीकरण एक खेल है तो लगता है कि भारत इसके विजेताओं में से एक विजेता हो सकता है. पिछले दशक में भारत के आर्थिक विकास की दर का रिकॉर्ड बहुत शानदार रहा है और इसने तेज़ी से आगे बढ़ते हुए हाई टैक सैक्टर में प्रवेश पा लिया है. यह संक्रमण जितना आईसीटी (सूचना व संचार प्रौद्योगिकी) में स्पष्ट दिखायी देता है, उतना किसी और सैक्टर में दिखायी नहीं देता. जहाँ चीन ने आईसीटी हार्डवेयर के क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल किया है, वहीं भारत ने सॉफ़्टवेयर के क्षेत्र में अपनी शक्ति का लोहा मनवा लिया है.

31 दिसंबर, 2012 को भारत ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाये रखने के लिए विश्व की प्रमुखतम बहुपक्षीय संस्था संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपना सातवाँ दोवर्षीय अस्थायी सदस्यता का कार्यकाल पूरा किया है. आरंभ में कई विश्लेषकों ने इस अवधि को दिल्ली द्वारा वांछित और संभावित स्थायी सीट के लिए एक “प्रयोग” माना था.

इनडोर अर्थात् घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण का सेहत पर पड़ने वाले भारी नकारात्मक दुष्परिणामों के बावजूद दुनिया के लगभग पचास प्रतिशत घरों के लोग खाना पकाने के लिए ठोस जैवपिंड का ईंधन ही इस्तेमाल करते हैं. भारत में हालात और भी खराब हैं, जहाँ 83 प्रतिशत ग्रामीण घरों के लोग और लगभग 20 प्रतिशत शहरी घरों के लोग अभी-भी खाना बनाने के प्राथमिक ऊर्जा स्रोत के रूप में लकड़ी या गोबर का इस्तेमाल करते है. एक अनुमान के अनुसार परंपरागत चूल्हे में इस प्रकार की बिना प्रोसेस की हुई जैवपिंड की ऊर्जा को जलाने से लगभग आधे मिलियन लोग हर साल अकाल मृत्यु के शिकार होते हैं.

विश्व के परिदृश्य पर सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति के एक खिलाड़ी के रूप में भारत के उदय के कारण नयी आशाओं और आकांक्षाओं को बल मिला है. आर्थिक शक्ति होने के साथ-साथ अब भारत ज्ञान शक्ति के रूप में, नवोन्मेष और सृजनात्मक विचारों के केंद्र के रूप में भी उभरने लगा है. लेकिन यही हमारा अभीष्ट मार्ग और मंज़िल नहीं है. इसमें संदेह नहीं कि भारत के पास इस मंज़िल तक पहुँचने के साधन तो हैं, लेकिन जब तक बुनियादी संस्थागत परिवर्तन नहीं होते तब तक इन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता.

इतिहास के प्रवाह में स्वाधीन भारत की महिलाएँ आगे तो आयी हैं, लेकिन पिछले पैंतीस वर्षों में ही उन्होंने वैश्वीकरण की उत्तर-औद्योगिक क्रांति और उसके बाद आयी सकारात्मक गतिविधियों को महसूस किया है. इन गतिविधियों के कारण घर में,कार्यस्थलों पर, अपने सहकर्मियों के साथ और आम तौर पर पूरे समाज में भी बुनियादी तौर पर बदलाव आया है. यह ठीक वैसा ही सामाजिक बदलाव था,जैसा कि साठ के दशकों में अमरीकी महिलाओं ने महसूस किया था.

भारत के कृषि विपणन और वितरण प्रणाली में थोक बाज़ारों या मंडियों की विशेष भूमिका है.इस प्रकार भारतीय कृषि के भविष्य के बारे में होने वाले महत्वपूर्ण वाद-विवाद में महत्वपूर्ण तत्व हैं, खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने की और खाद्य संबंधी मुद्रास्फीति के प्रबंधन की चुनौतियाँ और राष्ट्र के खाद्यमार्गों के विशाखन के चरित्र और नियंत्रण पर उठते प्रश्न. राज्य के विपणन संबंधी विभिन्न अधिनियमों के अंतर्गत स्थापित और स्थानीय रूप में गठित कृषि उपज विपणन समितियों (APMCs) के प्रबंधन के अंतर्गत मंडी ही किसानों और उनकी उपज के पहले खरीदारों के बीच “पहला महत्वपूर्ण लेन-देन” होता है.

भारत के संभ्रांत वर्ग में- खास तौर पर उच्च वर्ग के बुद्धिजीवियों में- भारत की जनगणना 2011 में जाति-आधारित गणना के सवाल पर इतना विरोध और चिंता क्यों है? मेरा उत्तर बहुत सरल-सा है: भारत कानूनी तौर पर एक जातिगत समाज बन जाएगा. अब तक जाति को संवैधानिक मान्यता अशक्तता (जैसे, छुआछूत,अत्याचार और सामाजिक पिछड़ेपन) के आकलन के लिए ही मिली हुई है.इस गणना से जाति को राष्ट्रीय वर्ग के रूप में औपचारिक मान्यता मिल जाएगी.