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संक्रमण के दौर में भारत (India in Transition)

रोहन मुखर्जी
12/08/2013

दूसरों की नज़र से अपने-आपको देखना आत्मनिरीक्षण के लिए बहुत ज़रूरी है. अगर हम इस बात का अध्ययन करते रहें कि दुनिया हमें किस नज़र से देखती है तो कोई भी देश अपनी विदेश नीति के मूल स्वर और प्रभाव के बारे में बहुत कुछ समझ सकता है. जनमत द्विपक्षीय संबंधों के मामले में प्रवृत्तियों को समझने के लिए विश्वसनीय संकेतक का काम करता है और विश्लेषक आम तौर पर किसी भी देश के आकर्षक बिंदुओं (सॉफ़्ट पावर) का आकलन दूसरे समाज की धारणाओं से करते हैं. इसलिए किसी भी देश की विदेशनीति की सफलता का अनुमान किसी और मानदंड से नहीं, बल्कि दूसरे देशों के जनमतके आधार पर अधिक बेहतरढंग से किया जा सकता है.

माधव खोसला
29/07/2013

सूक्ष्म लोकतांत्रिक आदर्शों को अमलीजामा कैसे पहनाया जाए, इसका निर्णय बहुत आसान नहीं है. कुछ व्यापक निर्णय संस्थागत होते हैं, जैसे कि देश को संसद की प्रणाली अपनानी चाहिए या नहीं; और कुछ निर्णय बहुत सूक्ष्म होते हैं- जैसे चुनावी ज़िलों को किस आधार पर गठित किया जाए, चुनावी भाषणों का नियमन कैसे किया जाए, आदि..आदि. लोकतांत्रिक आदर्श को विशिष्ट संस्थागत स्वरूप प्रदान करने से उसका प्रभाव मूलतः उसकी कार्यप्रणाली पर पड़ सकता है और उस आदर्श को अपने-आपमें चुनौती भी दे सकता है.

क्रिस्टोफ़र क्लैरी
15/07/2013

सन् 1998 के परमाणु परीक्षण की पंद्रहवीं वर्षगाँठ को कुछ सप्ताह ही हुए हैं. सन् 1974 के भारत के “शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण” की चालीसवीं वर्षगाँठ को पूरा होने में साल भर से कम समय बचा है. भारत अपने परमाणु वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर गर्व का अनुभव करता है. अंतर्राष्ट्रीय  हुकूमत द्वारा प्रगति को धीमा करने के लिए किये गये प्रयासों को देखते हुए भारतीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और यहाँ तक कि नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों ने एकजुट होकर परमाणु ऊर्जा की भिन्न-भिन्न प्रकार की अवसंरचनाओं को निर्मित करने और परमाणु हथियारों को बनाने की क्षमता विकसित करने के लिए निरंतर प्रयास किये हैं.

दिनशा मिस्त्री
01/07/2013

भारत सरकार जवाबदेही के अपने तंत्र को पूरी तरह से बदल डालने की भारी आवश्यकता महसूस कर रही है. सन् 2010 में किये गये प्यू रिसर्च पोल के अनुसार 98 प्रतिशत भारतीय नागरिक सरकारी भ्रष्ट्राचार को देश की “बहुत बड़ी” या “काफ़ी बड़ी” समस्या मानते हैं. इसे लेकर नागरिकों का चिंतित होना स्वाभाविक है. हर साल रिश्वत या गबन के कारण सरकार को करोड़ों रुपये की हानि होती है. रुपयों की हानि के कारण मानव-घंटों की भी हानि होती है. कामगारों की गैर-हाज़िरी को बिना किसी वाजिब कारण के ही काम से दूर रहने की पद्धति के रूप में परिभाषित किया जाता है. यह दूसरी बड़ी समस्या है.

मिलन वैष्णव
17/06/2013

पहचान की राजनीति करना भारत के मानवीय संवाद के अधिकांश विश्लेषण का सबसे अधिक उपयोगी काम रह गया है. कई दशकों तक तो जाति और समुदाय की खाई को ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में देखा जाता था, क्योंकि इसीसे सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक गतिशीलता के  स्वरूप को आकार मिलता था. जिस हद तक लोग व्यक्तिगत स्तर पर हिंसक गतिविधियों में संलग्न  होते हैं, सामूहिक तौर पर हिंसक हो जाते हैं, सार्वजनिक हितकारी कामों को सफलता से पूरा करते हैं या चुनाव के दिन निर्णय लेते हैं – सभी कुछ जातीय पहचान के दायरे में देखा जाता है.

अनित मुखर्जी
03/06/2013

सन् 1992 में प्रायः उद्धृत किये जाने वाले एक निबंध में जॉर्ज टनहम ने निरंतर प्रचारित किंतु सत्य से परे एक भूराजनीतिक विचार को सामने रखा था कि भारतीयों में रणनीतिक संस्कृति का अभाव है. टनहम द्वारा आधुनिक भारत के सभी कूटनीतिज्ञों को एक साथ नकार देने से कुछ भारतीय विचारक बेहद नाराज़ हो गए थे जबकि कुछ लोगों ने उनके इस विचार को अविलंब स्वीकार कर लिया था. हाल ही की  एक कवर स्टोरी में ‘द इकॉनॉमिस्ट’ ने महाशक्ति बनने की भारत की इच्छा के मार्ग में आने वाली अनेक चुनौतियों का विश्लेषण तो अच्छा किया है, लेकिन रणनीतिक संस्कृति की उसकी परिभाषा बौद्धिक रूप से लचर है.

सी. मोहन राजा
20/05/2013

यदि चीनी-भारतीय संबंधों का यही ऐतिहासिक क्रम बना रहता है तो जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में हाल ही में भारत-चीन के सैन्य संबंधों में आये गतिरोध के बाद भी द्विपक्षीय संबंधों में आसन्न कायाकल्प को लेकर जल्द ही भारी प्रचार होगा और यह भी चर्चा होगी कि इससे विश्व में कैसे बदलाव आएगा. भारत ने जब चीन को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि यथास्थिति बनाये रखने में असफल होने के परिणामस्वरूप द्विपक्षीय संबंधों पर भारी असर पड़ सकता है तो भारत के दावित क्षेत्र में चीनी सुरक्षा बलों द्वारा तीन सप्ताह तक जारी घुसपैठ मई के आरंभ में समाप्त हो गयी.

ऋतु कमल
06/05/2013

चिकित्सा-उपकरणों का वैश्विक उद्योग $200 बिलियन डॉलर का है. इस उद्योग में पेस मेकर, अल्ट्रा-साउंड मशीनों और सर्जिकल रोबोट आदि जटिल उपकरणों से लेकर थर्मामीटर और स्टेथेस्कोप्स आदि सरल उपकरणों तक सभी प्रकार के स्वास्थ्य- उपकरण विकसित और निर्मित होते हैं. सन् 2011 में भारत काचिकित्सा-उपकरणों का बाज़ार $3 बिलियन डॉलर मूल्य का था, जो उस साल लगभग 15 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ता रहा. उम्मीद है कि 2010-2015 की अवधि के दौरान 16 प्रतिशत की वार्षिक क्लिप की चक्रवृद्धि गति से यह आगे बढ़ता रहेगा, जो अमरीका और योरोप में इसी क्षेत्र में 2-3 प्रतिशत की प्रत्याशित वृद्धि की गति की तुलना में कहीं बेहतर है.

श्रुति राजगोपालन
22/04/2013

आज भारत में सार्वजनिक हित के मामलों को तभी महत्व मिलता है जब उच्चतम न्यायालय इस पर ज़ोर डालता है. सामान्य और विशेष दोनों ही प्रकार के हितधारकों के प्रतिनिधि न्यायपालिका में सक्रिय होकर याचिका दाखिल करते हैं. किसी भी विषय पर होने वाले वाद-विवाद से भारतीय न्यायपालिका को महत्व मिलता है और वह सक्रिय भी बनी रहती है. एक ऐसे युग में जहाँ अधिकांश संस्थाओं पर राजनीति हावी होने लगी है, न्यायपालिका ही एकमात्र संस्था बची है जिस पर नागरिकों का विश्वास अभी भी कायम है और उन्हें लगता है कि वहाँ उनकी सुनवाई ठीक तरह से हो सकती है.