भारत में सुन्नी और शिया मुसलमानों के बीच लगभग एक सदी से हिंसक झड़पें होती रही हैं, लेकिन राजनीति-विज्ञानियों, पत्रकारों और भारत के नीति-निर्माताओं का ध्यान इस ओर कम ही गया है. इन लोगों का ध्यान मुख्यतः हिंदू-मुस्लिम दंगों पर ही केंद्रित रहा है. अगर इस तरह की हिंसक झड़पों की उपेक्षा की गई और इनको सुलझाने में देरी की गई तो भारत का सामाजिक ताना-बाना ही बिखर जाएगा. 2020 के दशक तक किसी अन्य देश की तुलना में भारत में मुसलमानों की तादाद बढ़ने की आशंका को देखते हुए सुन्नी-शिया दंगों को अभी रोकना बेहद ज़रूरी है ताकि भारत का सामाजिक ताना-बाना बिखरने न पाए.
संक्रमण के दौर में भारत (India in Transition)


2007 के वैश्विक वित्तीय धमाके और थॉमस पिकेटी की अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक कैपिटल के कारण संपत्ति की असमानता को लेकर आजकल काफ़ी चर्चा होने लगी है. उपभोग के सर्वेक्षण पर आधारित गणनाओं को उद्धृत करते हुए लगातार केवल गरीबी को ही लेकर होने वाली चर्चा के स्थान पर संपत्ति की असमानता को लेकर चर्चा होना एक अच्छे बदलाव का संकेत है. उपभोग के लिए संपत्ति बहुत आवश्यक है और परेशानी के दौर में इसका इस्तेमाल बफ़र के रूप में होता है. कई तरीकों से तो संपत्ति का संबंध आमदनी या उपभोग के बजाय सुखद जीवन की अवधारणा से अधिक है.



पिछले दशक के दौरान आधुनिक सैन्य शक्ति के लगातार बढ़ते हुए और बहुत ही महत्वपूर्ण अंग के रूप में विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) का उदय हुआ है. पश्चिम के लोकतांत्रिक देशों में खास तौर पर छोटे, चुने हुए और प्रच्छन्न ऑपरेटर इकाइयों का उदय बुरी तरह युद्ध में उलझे क्षेत्रों में अत्यंत प्रभावी, कुशल और सुनिश्चित साधनों के रूप में शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है.

सिंगापुर के रक्षामंत्री नग इंग हेनने पिछले महीने दिये गये अपने एक बयान में यह इच्छा व्यक्त की थी कि भारत को दक्षिण चीन सागर में एक बड़ी भूमिका अदा करनी चाहिए. हाल ही के वर्षों में इसी तरह के बयान विएतनाम और फिलीपींस के नेताओं ने भी दिये हैं. दक्षिण पूर्वेशिया के नेताओं द्वारा उस क्षेत्र के सुरक्षा मामलों में भारत की भागीदारी के लिए उसे दिये गये “निमंत्रण” का मतलब है दक्षिण पूर्वेशिया में महाशक्ति के रूप में भारत का उदय और फिर एशिया में महाशक्ति के रूप में भारत का उदय.

ढोंग-पाखंड,भुलक्कड़पन, अवसरवाद और अज्ञान के विषैले मिश्रण और पैटर्नलिज़्म अर्थात् बाप-दादा की जायदाद समझने के कारण भूमि अधिग्रहण कानून खिचड़ी बन कर रह गया है. भाजपा के लिए कांग्रेस के बनाये इस कानून को पारित करने के लिए आवश्यक समर्थन जुटाना मुश्किल होता जा रहा है और अब उन्होंने मिले-जुले संकेत भेजने भी शुरू कर दिये हैं- हो सकता है कि वे इसे पारित कराने के लिए संसद का संयुक्त सत्र बुला लें, या हो सकता है कि संशोधनों के साथ तत्संबंधी अध्यादेश फिर से जारी कर दें या फिर राज्यों को इतनी छूट दे दी जाए कि वे कानून की जिस धारा को चाहें उसका पालन करें और जिसे नापसंद करते हों उसकी अनदेखी कर दें.

दो दशक पूर्व मुंबई में पाइप से सप्लाई होने वाले म्युनिसिपैलिटी के पानी की व्यवस्था संबंधी नियमों में नाटकीय परिवर्तन आया था. इस परिवर्तन के कारण ही शहर के लोकप्रिय पड़ोसी इलाकों और झोपड़पट्टी के निवासियों को म्युनिसिपल पानी की पात्रता दिलाने के लिए इन नियमों को झोपड़पट्टी पुनर्वास की आवासीय योजनाओं में शामिल कर लिया गया है. ढाँचागत योजना और सर्विस डिलीवरी के (कम से कम सिद्धांत रूप में तो ) स्थानिक और जलप्रेरित तर्कों के द्वारा पहले नियमित पानी की सप्लाई को झोपड़पट्टी पुनर्विकास योजना में पात्रता से जोड़ने के परिणाम भयावह हो चुके हैं.

26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी ने सार्क देशों के सभी प्रमुख अध्यक्षों को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था. यह एक ऐसा महत्वपू्र्ण संकेत हो सकता था जिससे कि दक्षिण एशिया में खास तौर पर द्विपक्षीय स्तर पर क्षेत्रीय सहयोग की नई शुरूआत हो सके. सन् 1985 से भारत ने चार क्षेत्रीय पहल करने में संस्थापक सदस्य की भूमिका का निर्वाह किया था, लेकिन इनमें से किसी भी पहल का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला.