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संपत्ति की असमानता को उजागर करनाः व्यक्तिगत स्तर पर डैटा संग्रह का एक केस

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15/06/2015
हेमा स्वामिनाथन

2007 के वैश्विक वित्तीय धमाके और थॉमस पिकेटी की अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक कैपिटल के कारण संपत्ति की असमानता को लेकर आजकल काफ़ी चर्चा होने लगी है. उपभोग के सर्वेक्षण पर आधारित गणनाओं को उद्धृत करते हुए लगातार केवल गरीबी को ही लेकर होने वाली चर्चा के स्थान पर संपत्ति की असमानता को लेकर चर्चा होना एक अच्छे बदलाव का संकेत है. उपभोग के लिए संपत्ति बहुत आवश्यक है और परेशानी के दौर में इसका इस्तेमाल बफ़र के रूप में होता है. कई तरीकों से तो संपत्ति का संबंध आमदनी या उपभोग के बजाय सुखद जीवन की अवधारणा से अधिक है. भावी पीढ़ियों के लिए संपत्ति की भूमिका अवसर निर्माण के लिए भी स्वीकार की गई है..

विशेष रूप से असमानता की सीमा को समझने के लिए जीनी अवशोषण दर या शीर्ष दशमकों की संपत्ति के शेयरों पर विचार किया जाता है. अखिल भारतीय ऋण व निवेश सर्वेक्षण (2002-03) पर आधारित जयदेव, मोतीराम और वकुलभरणम की रिपोर्ट के अनुसार प्रति व्यक्ति संपत्ति के लिए जीनी 0.65 है और प्रति व्यक्ति शुद्ध मूल्य के लिए 0.66 है. और हाल ही के डैटा के आधार पर क्रैडिट सासेज़ ग्लोबल वैल्थ रिपोर्ट ने भारत के संदर्भ में निष्कर्ष निकाला है कि सबसे अधिक 10 प्रतिशत धनी लोगों के पास कुल संपत्ति का लगभग तीन-चौथाई (74 प्रतिशत) भाग है.

यह विडंबना ही है कि यद्यपि इस बात को लेकर व्यापक आम सहमति है कि सुख व्यक्तियों में निहित है, लेकिन आम तौर पर जो डैटा एकत्र किया जाता है वह पारिवारिक स्तर पर होता है.   इस प्रकार व्यक्तिगत उपायों को खोजने के लिए उन स्थानों पर जहाँ कुल पारिवारिक संपत्ति को इसके सदस्यों में बराबर-बराबर विभाजित किया जाता है, प्रति व्यक्ति पद्धति ही अपनाई जाती है. कुछ लाभों के होते हुए भी इस पद्धति की दो मूलभूत सीमाएँ हैं.

पहली सीमा तो यह है कि प्रति व्यक्ति पद्धति परिवार को एक ऐसा एकीकृत ढाँचा मानती है, जिसमें संपत्ति के बारे में सभी सदस्य बराबर माने जाते हैं, इसलिए ऐसी पद्धति में असमानता को कम करके आँका जाता है. इसप्रकार इस धारणा पर भी सवाल उठाया जा सकता है. उदाहरण के लिए कर्नाटक घरेलू संपत्ति सर्वेक्षण(KHAS, 2010-11) से प्राप्त व्यक्तिगत स्तर की स्वामित्व वाली संपत्ति के डैटा से पता चलता है कि प्रति व्यक्ति पद्धति को अपनाते हुए ग्रामीण कर्नाटक के लिए संपत्ति (सकल भौतिक मूल्य पर आधारित) की जीनी 0.66 है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर की संपत्ति की जानकारी के आधार पर यह बहुत अधिक है अर्थात् 0.90 है.

दूसरी सीमा यह है कि घरेलू स्तर के डैटा संग्रह से आप घर-परिवार के अंदर की संपत्ति की असमानता का किसी भी प्रकार से विश्लेषण नहीं कर सकते. कर्नाटक घरेलू संपत्ति सर्वेक्षण(KHAS) के डैटा से पता चलता है कि आंतर घरेलू असमानता बहुत व्यापक और महत्वपूर्ण है. कर्नाटक के विवाहित पुरुषों और महिलाओं के बीच की सभी प्रकार की संपत्ति की असमानता घर-परिवार के अंदर (खास तौर पर पति-पत्नी के बीच बाँटी गई संपत्ति) की असमानता से आती है और यह असमानता एक-तिहाई है. ऐसे परिणाम बहुत अप्रत्याशित नहीं हैं क्योंकि घर-परिवार की असमानता में लिंग एक महत्वपूर्ण धुरी है, क्योंकि इस बात की कम ही संभावना होती है कि महिलाओं के पास महत्वपूर्ण संपत्ति (जमीन, मकान, रियल इस्टेट) जिनसे संपत्ति अर्जित होती है, कम ही होती है.

संपत्ति में महिलाओं का कम शेयर लैंगिक इक्विटी और व्यक्ति, घर-परिवार और सामुदायिक कल्याण पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का एक महत्वपूर्ण विचार-बिंदु है.आतंर घरेलू अनुसंधान आबंटन पर होने वाले अनुसंधान से इस बात का अकाट्य प्रमाण मिलता है कि महिलाओं के हाथ में आने वाली संपत्ति की वृद्धि से उनके अपने कल्याण (अपने जीवन साथी द्वारा उनके अंतरंग क्षणों में होने वाली हिंसा में कमी आती है) में वृद्धि होती है और अंतर पीढ़ीय और व्यापक सामाजिक परिणामों (बच्चों के लिए मानव पूँजी में सुधार) में भी इसके व्यापक निहितार्थ होते हैं.  आम तौर पर संपत्ति का प्रभाव महिलाओं की अपनी संस्था और उनकी हैसियत पर पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप घर-परिवार के अंदर उनकी सत्ता से जुड़े रिश्तों में भी बदलाव आ जाता है.इसलिए जहाँ यह सच है कि मकान जैसी घरेलू संपत्ति सार्वजनिक संपत्ति है, लेकिन उनमें रहने का आनंद वे भी उठाते हैं जिनकी उन पर मिल्कियत नहीं होती. स्वामित्व से आर्थिक सशक्तीकरण होता है और इससे व्यक्ति के जीवन के अन्य आयाम भी प्रभावित होते हैं.यही कारण है कि पारिवारिक संबंध बहुत खराब होने पर भी महिलाएँ अपना घर छोड़कर जाने से हिचकती हैं क्योंकि अपना कहने के लिए उनके पास बहुत कम संपत्ति होती है.

सर्वेक्षण में खास तौर पर पूछा जाता है कि परिवार के पास रिहाइश के लिए कितनी ज़मीन या स्थान है. यह जानकारी बहुत कम ही ली जाती है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य के पास कितनी संपत्ति है. ऐसी जानकारी जुटाने में बहुत-सी दिक्कतें आती हैं. पारिवारिक संपत्ति के सर्वेक्षण का काम खास तौर पर बहुत लंबा खिंचता है. साथ ही डैटा की गुणवत्ता भी कम हो सकती है. लोग जानकारी देने में आनाकानी भी कर सकते हैं और गैर-सैंपलिंग की गलतियाँ भी हो सकती हैं.   

इन समस्याओं को सुलझाने के लिए आप स्वयं भारत और अन्य विकासशील देशों में डैटा संग्रह के लिए किये गये अनेक प्रयोगों से सीख तो ले ही सकते हैं. सन् 2010-11 में लैंगिक संपत्ति अंतराल परियोजना (GAGP) के अंतर्गत इक्वेडर, घाना और कर्नाटक (भारत) से व्यक्तिगत स्तर पर संपत्तियों का डैटा एकत्र किया गया है. इन सर्वेक्षणों में प्रत्येक परिवार के दो प्रत्यर्थियों से साक्षात्कार किया गया था.लैंगिक संपत्ति अंतराल परियोजना (GAGP) के अंतर्गत कुछ ऐसे प्रश्न तैयार किये गये थे, जिन्हें व्यक्तिगत स्तर की संपत्ति के स्वामित्व के आकलन के लिए सामान्य पारिवारिक सर्वेक्षणों में शामिल किया जा सकता था. दूसरा बृहत् प्रयास संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकीय मंडल (UNSD) के तत्वावधान में इस समय नौ देशों के सहयोग से व्यक्तिगत स्तर पर संपत्ति का डैटा एकत्र करने की एक मार्गदर्शी योजना चलाने के लिए लैंगिक समानता के लिए साक्ष्य व डैटा (EDGE) कार्यक्रम के रूप में चलाया जा रहा है. लैंगिक संपत्ति अंतराल परियोजना (GAGP) से प्राप्त सीख के आधार पर अगर तीसरे व्यक्ति के साक्षात्कार से प्राप्त जानकारी में थोड़ा भी लाभ दिखाई देता हो तो लैंगिक समानता के लिए साक्ष्य व डैटा (EDGE) कार्यक्रमके अंतर्गत परीक्षण करने के लिए प्रत्येक परिवार के कम से कम दो सदस्यों से और सबसैम्पलों में तीन सदस्यों से भी जानकारी एकत्र कर ली जाती है.  

लेकिन सबसे गंभीर बाधा तो अधिकांश विद्वानों और नीति-निर्माताओं की इस मान्यता के कारण है कि आम तौर पर संपत्ति का स्वामित्व केवल मुखिया और अन्य सदस्यों के हाथों में ही निहित होता है. खास तौर पर महिलाओं के हाथ में किसी संपत्ति का स्वामित्व नहीं होता. असल में तो डैटा संग्रह करने वाली एजेंसियाँ भी अक्सर यही दावा करती हैं कि परिवार के सदस्य भी संपत्तियों पर व्यक्तिगत स्वामित्व का पता नहीं लगा सकते हैं, क्योंकि यह विचार ही उनके लिए बेगाना है और अगर वे ऐसा करने में सक्षम भी हों तो भी वे ऐसा नहीं करेंगे (शायद घर की शांति बनाये रखने के लिए या फिर परिवार के मुखिया के प्रति सम्मान बनाये रखने के लिए).लेकिन कर्नाटक घरेलू संपत्ति सर्वेक्षण(KHAS) के अनुभव ने इस धारणा को नकार दिया है, क्योंकि इस सर्वेक्षण में परिवार के सदस्यों ने स्वेच्छा से संपत्तियों का स्वामित्व रखने वाले सदस्यों को चिह्नित कर लिया गया है.

इसके लिए ज़रूरी है कि हम इस सवाल पर विचार करें कि संपत्तियाँ कैसे अर्जित की गईँ. आम तौर पर ये संपत्तियाँ बाज़ार, राज्य (सरकारी कार्यक्रमों) के माध्यम से मिली होती हैं या उत्तराधिकार में या फिर उन्हें उपहार में मिली होती हैं. यह पता लगने के बाद पति-पत्नी के बीच संपत्ति की भारी असमानता पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इन सभी मामलों में महिलाएँ घाटे में ही रहती हैं.महिलाएँ आम तौर पर घरेलू कामकाज में ही व्यस्त रहती हैं, जैसे बच्चों और बड़े-बूढ़ों की देखभाल और घर का कामकाज. उनकी कोई अपनी पर्याप्त आमदनी नहीं होती जिससे वे संपत्ति जमा कर सकें.अन्य विकासशील देशों की तुलना में हमारे देश में महिला श्रम शक्ति की सहभागिता की दर केवल 33 प्रतिशत (2012) ही है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह दर 50 प्रतिशत है.

पति-पत्नी के बीच की संपत्ति के अंतराल को समझने के लिए विवाह के अंदर संपत्ति के स्वामित्व के नियामक कानून को समझना भी ज़रूरी है. भारत में संपत्ति का अलग से वैवाहिक कानून है, जिसका अर्थ यह है कि विवाह से अर्जित संपत्ति कानूनी तौर पर पति-पत्नी की संयुक्त संपत्ति होने के बजाय व्यक्तिगत संपत्ति ही रहती है. दक्षिण अमरीका के देशों (और भारत के राज्य गोआ) से यह व्यवस्था अलग है, क्योंकि इन देशों में (और गोआ में भी) पति-पत्नी में से किसी एक के द्वारा विवाह से प्राप्त संपत्ति पति-पत्नी की संयुक्त संपत्ति मानी जाती है. कर्नाटक घरेलू संपत्ति सर्वेक्षण(KHAS) से प्राप्त निष्कर्षों से पता चलता है कि पुरुषों की आम तौर पर व्यक्तिगत स्तर पर अचल संपत्ति होती है और पति-पत्नी की संयुक्त संपत्ति बहुत कम होती है. इसप्रकार, महिलाओं का भले ही घर की देखभाल में कितना भी योगदान क्यों न हो, लेकिन वैवाहिक संपत्ति पर हमेशा उनका कानूनी अधिकार नहीं होता.  

उत्तराधिकार का नियमन मुख्यतः सामाजिक परंपराओं से ही होता है, जहाँ बेटियों को बेटों के बराबर नहीं माना जाता. महिलाएँ भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार नहीं होतीं और मात्र पारिवारिक सपोर्ट पाकर उत्तराधिकार में प्राप्त होने वाली संपत्ति से अपना अधिकार छोड़ देती हैं. कर्नाटक घरेलू संपत्ति सर्वेक्षण(KHAS) के डैटा से इस बात की पुष्टि होती है. लगभग 82 प्रतिशत स्वामित्व वाले प्लॉट और लगभग  56 प्रतिशत रिहाइशी मकान पुरुषों को उत्तराधिकार में मिले थे, जबकि इसकी तुलना में केवल 21 प्रतिशत और 16 प्रतिशत क्रमशः महिलाओं को मिले थे.

अब समय आ गया है जब हम एक परिवार के अंदर प्रचलित प्रणाली को उजागर करते हुए असमानता पर की जाने वाली शोध के अंतिम सीमांत को उजागर करना शुरू कर दें. यह निश्चित है कि एक परिवार अपने व्यक्तियों के कुल जोड़ से कहीं अधिक है, लेकिन जेस्टेल्टियन जोड़ की शुरुआत भी व्यक्ति से ही होनी चाहिए.

एक स्थान तो ऐसा है जहाँ हमें कर्नाटक घरेलू संपत्ति सर्वेक्षण(KHAS) प्रणाली को भारत-भर के विविध सामाजिक और आर्थिक संदर्भों के माध्यम से दोहराना शुरू करना होगा. इससे हमें एक ऐसा मंच मिलेगा जिसकी मदद से इस प्रकार के डैटा संग्रह से जुड़ी मूलभूत चुनौतियों को चिह्नित और हल किया जा सकेगा और हम इससे एक ऐसी प्रश्नावली बना सकेंगे जिसे राष्ट्रीय स्तर के संपत्ति से जुड़े सर्वेक्षणों में समन्वित किया जा सकेगा.

हेमा स्वामिनाथन बेंगलोर स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान के सरकारी नीति केंद्र में सहायक प्रोफ़ेसर हैं. वे कैसीमें भी नॉन-रैज़िडेंट विज़िटिंग स्कॉलर हैं. 

 

 

हिंदी अनुवादः विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919