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भारत में बदला और एकल स्टॉक के भावी सौदों की कौतूहल-भरी लोकप्रियता

11/03/2013
नील मैत्रा

सन् 1993 में भारतीय पूँजी बाज़ार के इतिहास के सबसे बड़े घोटाले का पर्दाफ़ाश होने के कुछ समय के बाद ही भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बदले के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी. बदला तंत्र ऐसा है जिसमें व्यापारी अपना कारोबार बिना किसी करार के भी कर सकते हैं और  अंतर्राष्ट्रीय वित्त आयोग और आर्थर ऐंडरसन की तत्कालीन ख्याति-प्राप्त फ़र्म जैसे विचित्र स्रोतों से शेयर या पैसा उधार लेने पर इसकी काफ़ी आलोचना हो चुकी थी. पाबंदी के कुछ वर्षों के बाद ही इकॉनॉमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली  में एक लेख प्रकाशित हुआ था, जिसमें बदला शब्द के प्रति सेबी की टिप्पणी का उल्लेख भी किया गया था, जिसका प्रयोग उन्होंने “कैरी फ़ॉर्वर्ड” की व्यंजना का उपयोग करने के बजाय बड़ी आनाकानी से किया था.  

पाबंदी के कारण भारतीय शेयर बाज़ार का कारोबार अच्छी तरह नहीं हो पाया था. भारतीय शेयर बाज़ार (बीएसई) फ़रवरी, 1995 में 3250 पॉइंट तक नीचे लुढ़क गया था और बदले की बाज़ी लगाने वालों ने दावा किया था कि इस पाबंदी ने बाज़ार की नकदी को भी प्रभावित किया था. अक्तूबर, 1995 तक सेबी ने अपनी पाबंदी भी वापस ले ली. बदले का कारोबार फिर से शुरू हो गया, लेकिन “कैरी फ़ॉर्वर्ड” की सीमा के साथ 20 करोड़ रुपये प्रति दलाल और नब्बे दिन की कारोबारी सीमा और कारोबार पर 10 प्रतिशत मार्जिन के साथ इसे नियमित कर दिया गया था.  शेयर बाज़ार के भागीदारों के बीच बदला कारोबार की लोकप्रियता के कारण सेबी रोलिंग स्टॉक प्रणाली की शुरूआत होने तक और जुलाई, 2001 में बदले पर पक्के तौर पर पाबंदी लगाने तक अगले पाँच वर्षों में बदले पर पाबंदी और कानूनी रूप देने के बीच संतुलन बनाता रहा.

सेबी द्वारा बदले पर कभी पाबंदी लगाने या कभी उसे कानूनी रूप देने या फिर उसे नियमित करने के लिए लंबे समय तक किये गये प्रयासों के बावजूद कुछ लोगों का कहना है कि भारतीय डैरिवेटिव मार्केट के विकास के लिए बदले के परिणाम रोचक और गैर-इरादतन होते हुए भी दीर्घकालीन रहे. खास तौर पर इस बात पर किसी को भी हैरानी हो सकती है कि भारतीय डैरिवेटिव मार्केट  में एकल स्टॉक भावी सौदों की लोकप्रियता के निर्धारण में बदला कारोबार के लंबे इतिहास की भी भूमिका रही है. यद्यपि बदले पर पाबंदी अब हटने वाली नहीं है, फिर भी भारतीय निवेशक बदले के कारोबार से काफ़ी मिलते-जुलते डैरिवेटिव उत्पादों के पक्ष में रहे हैं.  

द ऑक्सफ़ोर्ड कम्पेनियन टु इकॉनॉमिक्स इन इंडिया में प्रकाशित असानी सरकार के 2006  के शोधपत्र में यह पाया गया था कि भारत का इक्विटी डैरिवेटिव का बाज़ार फल-फूल रहा था. खास तौर पर यह भी देखा गया है कि भारत के एकल स्टॉक के भावी सौदे, जो कुछ मामलों में बदला तंत्र से मिलते-जुलते हैं, भी काफ़ी फलते – फूलते रहे हैं. एकल स्टॉक के भावी सौदे  के एक ठेके में पार्टियाँ कंपनी की निर्दिष्ट संख्या में इक्विटी के विनिमय पर आज के मूल्य (भावी मूल्य या स्ट्राइक मूल्य) पर निर्दिष्ट भावी तारीख को डिलीवरी निर्देशित होने पर सहमत भी हुई हैं. सन् 2006 के इस शोधपत्र में गंभीरतापूर्वक यह पाया गया है कि “इस सफलता का एक कारण बदला कारोबार से खुदरा व्यापारियों का पूर्व परिचय भी हो सकता है, जिसकी कुछ विशेषताएँ डैरिवेटिव कारोबार से मिलती- जुलती थीं.” इससे यह निष्कर्ष निकलता–सा लगता है कि अंतर्निहित परिस्थितियों में आये बदलाव के बावजूद एकल-स्टॉक भावी सौदों की लोकप्रियता एक ही प्रकार के रास्ते पर चलने के क्लासिक उदाहरण के कारण हुई और पिछली प्रथाओं के संबंध में लिये गये सीमित निर्णयों के कारण हुई.   

सन् 2010 में इंटरनैशनल रिसर्च जर्नल ऑफ़ फ़ाइनैंस ऐंड इकॉनॉमिक्स में प्रकाशित आशुतोष वशिष्ठ और सतीश कुमार के हाल ही में किये गये अध्ययन से भी यह पुष्टि हुई है कि राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के भावी सौदों और वैकल्पिक सैगमेंट में बेचे गये उत्पाद और एकल स्टॉक के भावी सौदे ही मात्रा और संख्या की दृष्टि से कारोबारी करारों में सबसे अधिक लोकप्रिय रहे. निश्चय ही एकल स्टॉक के भावी सौदों की लोकप्रियता का एक और कारण यह भी था कि उनकी लिखतें बहुत सरल थीं और खुदरा निवेशकों को आसानी से सुलभ रहीं. लेकिन फिर भी किसी को भी इस बात पर भी हैरानी हो सकती है कि एकल स्टॉक के भावी सौदों की लोकप्रियता का कारण यह तथ्य भी था कि वे बाज़ार के अनेक भागीदारों के बीच लोकप्रिय बदला कारोबार से मिलते-जुलते थे. 

यहाँ अलग तरह के वे तथ्य भी सामने रखने होंगे जिनसे इस सपाट सिद्धांत का रुख भी बदला –सा नज़र आता है. एकल स्टॉक के भावी सौदे एनएससी पर बीएससी की तुलना में कहीं अधिक लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं. इसके विपरीत, बीएससी में इंडैक्स के भावी सौदे एकल स्टॉक के भावी सौदों की तुलना में कहीं अधिक लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं. फिर भी सन् 1993 में सेबी पर पाबंदी लगने के कारण यह बीएससी था, जिसने बदले का कानूनी बनाये रखने के लिए सबसे अधिक लॉबिंग की. सन् 2000 में द इकॉनॉमिस्ट ने यह अनुमान लगाया था कि बीएससी पर किया गया 90 प्रतिशत कारोबार बदला कारोबार था.  अगर कोई ऐसा बाज़ार होता जहाँ एकल-स्टॉक भावी सौदों के ज़रिये व्यापारी बदला तंत्र के अनुरूप कोई तंत्र लाना चाहते तो वह बीएससी ही होता. लेकिन आज के बीएससी बाज़ार के भागीदार एकल-स्टॉक भावी सौदों की तुलना में इंडैक्स के भावी सौदों को प्राथमिकता देना चाहते थे. 

सन् 1995 के उत्तरार्ध में सेबी द्वारा बदला कारोबार पर लगी पाबंदी को हटवाने में पहले-पहल बीएसई को मिली सफलता के कुछ समय बाद ही एनएसई ने इंडैक्स के भावी सौदों पर कारोबार शुरू करने की अनुमति देने के लिए सेबी से संपर्क किया था. परंतु आज एनएससी पर इंडैक्स के भावी सौदों पर कारोबार करना एकल-स्टॉक के भावी सौदों की तुलना में सुदूर भविष्य की बात लगती है. किसी को भी इस बात पर हैरानी हो सकती है कि क्या बीएससी और एनएसई ने पिछले पंद्रह वर्षों में अपनी भूमिकाएँ आपस में बदल ली हैं.           

एकल-स्टॉक के भावी सौदों की उल्लेखनीय सफलता का एक संभावित कारण यह हो सकता है कि उनकी लिखतें अपेक्षाकृत आसान होती हैं और खुदरे उपयोक्ता को ये सुलभ भी रहती हैं.  यदि उनकी सफलता का यही एकमात्र कारण होता तो एनएससी और बीएसई दोनों में ही ये बराबर लोकप्रिय होते. एक और सही कारण यह भी हो सकता है कि निफ़्टी की तुलना में इंडैक्स के रूप में सनसैक्स को कहीं अधिक मान्यता मिली है, लेकिन यह तथ्य भी पूरी तरह से स्पष्टीकरण नहीं दे सकता. सनसैक्स की अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रियता से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि एनएसई की तुलना में बीएसई के इंडैक्स के भावी सौदे कहीं अधिक हैं, लेकिन इससे अनिवार्यतः यह स्पष्ट नहीं होता कि एकल-स्टॉक के भावी सौदों के कारोबार की तुलना में बीएसई के इंडैक्स के भावी सौदों का कारोबार कहीं अधिक क्यों होता है?

तीसरे स्पष्टीकरण में पहले और दूसरे स्पष्टीकरणों के कुछ तत्व मिले-जुले हैं. इंडैक्स के रूप में सनसैक्स निफ़्टी की तुलना में कहीं अधिक लोकप्रिय है. लेकिन यह भी तो कहा जा सकता है कि सनसैक्स को कहीं अधिक मान्यता मिली हुई है और किसी एक स्क्रिप की तुलना में वह अपने ही स्क्रिपों के साथ मिलकर अधिक नज़दीकी से ट्रैक किया जाता है. कोई इस स्पष्टीकरण को भी उपयुक्त मान सकता है कि आखिर इस तथ्य के बावजूद कि एकल-स्टॉक के भावी सौदों में उन बदला तंत्रों की कहीं अधिक विशेषताएँ होती हैं जो पहले बीएसई को नियमित करती थीं, बीएसई का एकल-स्टॉक के भावी सौदों के कारोबार की तुलना में कहीं अधिक इंडैक्स के भावी सौदों का कारोबार क्यों होता है?

 

नील मैत्रा वाशिंगटन डीसी में कॉर्पोरेट और प्रतिभूतियों के अधिवक्ता हैं.

Neel Maitra is a corporate and securities lawyer in Washington DC.

हिंदी अनुवादः विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@hotmail.com>