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क्या एमओओसी भारत में उच्च शिक्षा के विस्तार में मदद कर सकते हैं ?

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30/12/2013
गेल क्रिस्टेंसन और ब्रैंडन ऐल्कर्न

भारत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारी चुनौतियों का सामना कर रहा है. सन् 2007 में प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत के लगभग आधे ज़िलों में उच्च शिक्षा में नामांकन “बहुत ही कम” है और दो तिहाई भारतीय विश्वविद्यालय और 90 प्रतिशत भारतीय कॉलेज गुणवत्ता की दृष्टि से औसत से भी बहुत नीचे हैं. इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है कि शिक्षा की माँगों को पूरा करने में शासन की विफलता के कारण ही भारत के संभ्रांत और मध्यम वर्ग के विद्यार्थी भारत में और भारत के बाहर भी सरकारी संस्थाओं को छोड़कर निजी संस्थाओं की ओर रुख करने लगे हैं. सरकारी संस्थाओं से यह पलायन भारतीयों की शिक्षा संबंधी माँगों को पूरा करने में शासन की क्षमता को निरंतर कमज़ोर कर रहा है और इस समस्या को और भयावह बनाता जा रहा है. दुर्भाग्यवश निजी संस्थाओं में संकीर्ण व्यावसायिक मार्ग पर चलने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और आंतरिक प्रशासन कमज़ोर होने लगा है और शासकीय नियमों में शिथिलता आने लगी है.

बड़े पैमाने पर मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम (एमओओसी) चलाकर न केवल भारत की उच्च शिक्षा संबंधी चुनौतियों का पूरी तरह से सामना किया जा सकता है, बल्कि उच्च शिक्षा में भारत की पहुँच और गुणवत्ता को कुछ हद तक बढ़ाया भी जा सकता है. पिछले दो वर्षों के दौरान एमओओसी ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित किया है. विश्व-भर के कुछ अग्रणी विश्वविद्यालयों ने कोर्सेरा और ईडीऐक्स जैसे एमओओसी प्रदाताओं के साथ भागीदारी भी शुरू कर दी है ताकि विश्व-भर के लाखों विद्यार्थियों को उच्च स्तर के ऑन-लाइन पाठ्यक्रम निःशुल्क मुहैय्या कराये जा सकें.  

एमओओसी के समर्थक सामाजिक, आर्थिक या राष्ट्रीय पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना सभी को शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराने की संभावित क्रांति की बात करने लगे हैं. लेकिन कुछ लोग इस बात को लेकर सतर्कता बरतने की बात करते हैं कि इससे उच्च शिक्षा संबंधी स्थानीय संस्थाओं का महत्व घटने लगेगा और भौतिक (फ़िज़िकल) विश्वविद्यालयों में विशिष्ट संभ्रांत वर्ग के छात्रों को व्यक्तिनिष्ठ शिक्षा की सुविधा प्रदान करके शैक्षणिक असमानता को और भी बढ़ावा मिलेगा, जबकि अधिकांश छात्र वर्चुअल शिक्षा तक सीमित रह जाएँगे, जिससे शिक्षा की लागत में तो कमी आ जाएगी, लेकिन गुणवत्ता में भी गिरावट आ जाएगी.

भारत में उच्च शिक्षा के संदर्भ में एमओओसी के संभावित प्रभाव को समझने के लिए और इस बात पर विचार करने के लिए कि एमओओसी किस तरह से प्रभावी और समान परिणाम हासिल कर सकता है, हमें पहले एमओओसी के भागीदारों को अच्छी तरह से समझना होगा. इस समस्या के समाधान के लिए पैन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय ने उन तमाम विद्यार्थियों का सर्वेक्षण कराया था जिन्होंने कम से कम कोर्सेरा के एमओओसी (जो विश्व का सबसे बड़ा एमओओसी प्रदाता है) के किसी एक पाठ्यक्रम में नामांकन करवाया हो. जुलाई 2013 में यह सर्वेक्षण करवाया गया था और उस समय पैन ने 800,000 से अधिक विद्यार्थियों को बत्तीस पाठ्यक्रमों की पेशकश की थी..

कोर्सेरा द्वारा संचालित एमओओसी लेने वाले विद्यार्थियों में अमेरिका के बाद भारतीय विद्यार्थियों की संख्या दूसरे नंबर पर (अर्थात् 10 प्रतिशत) है. उपयोगकर्ताओं के उनके आईपी पतों के आधार पर किये गये भू-देशीय विश्लेषण से पता चलता है कि इस उपयोगकर्ताओं में से अधिकांश उपयोगकर्ता भारत के शहरी इलाकों तक ही सीमित हैं. इनमें से 61 प्रतिशत उपयोगकर्ता भारत के पाँच बड़े शहरों में से किसी एक शहर में बसे हुए हैं और 16 प्रतिशत उपयोगकर्ता अगले पाँच बड़े शहरों में बसे हुए हैं. मुंबई और बैंगलोर में उपयोगकर्ताओं की तादाद सबसे ज़्यादा है. भारत के कुल कोर्सेरा विद्यार्थियों में से 18 -18 प्रतिशत इन दोनों शहरों से हैं.        

लगभग दो हज़ार विद्यार्थियों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं के आधार पर किये गये इस सर्वेक्षण से पता चलता है कि एमओओसी लेने वाले अधिकांश भारतीय विद्यार्थी युवा हैं, पुरुष हैं और सुशिक्षित भी हैं. इनमें से दो तिहाई विद्यार्थियों की उम्र तीस से भी कम है और तीन-चौथाई से अधिक विद्यार्थी पुरुष हैं और उनके पास कॉलेज की डिग्री भी है. कॉलेज की डिग्री वाले कुछ विद्यार्थी तो स्नातकोत्तर की पढ़ाई भी कर रहे हैं और इनमें से अधिकांश पूर्णकालिक नौकरी कर रहे हैं (और शेष विद्यार्थी या तो स्व-नियोजित हैं या अंशकालीन नौकरी कर रहे हैं). उपयोगकर्ताओं के आधार पर किये गये सर्वेक्षण पर हैरानी की कोई बात नहीं है और यह ठीक उसी तरह है जैसे हाल ही में सैल फ़ोन, नया मीडिया और अन्य प्रौद्योगिकी अपनाने वाले उपयोगकर्ताओं की स्थिति है.

इस सर्वेक्षण से पता चलता है कि गणित, मानविकी और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बाद विद्यार्थी सबसे अधिक व्यवसाय, अर्थशास्त्र और समाज विज्ञान के पाठ्यक्रमों को ही लेना पसंद करते हैं. यह तथ्य कि एमओओसी के उपयोगकर्ताओं में सबसे अधिक संख्या भारतीयों की है, इस बात की ओर इंगित करता है कि अच्छी किस्म की शिक्षा की भारत में बेहद माँग है,जिसे अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है. लेकिन यदि हम चाहते हैं कि एमओओसी भारत की उच्च शिक्षा की चुनौतियों को पूरा करने के लिए अर्थक्षम और सही मार्ग प्रदान करे तो हमें बहुत-से काम करने होंगे.   

सर्वप्रथम हमें बुनियादी प्रौद्योगिकीय ढाँचा तैयार करना होगा, जिसमें कंप्यूटरों, मोबाइल उपकरणों और उच्च-गति वाले इंटरनैट की सुविधाओं को और विकसित करना होगा ताकि भारत के अधिकाधिक लोगों तक ऑन-लाइन शिक्षा की पहुँच बढ़ायी जा सके. जब तक प्रौद्योगिकीय बाधाएँ दूर नहीं होंगी तब तक केवल संभ्रांत वर्ग के कुछेक विद्यार्थी ही शिक्षा के इस विकल्प का चुनाव कर सकेंगे और इससे भारत में शिक्षा के अवसरों में असमानता की स्थिति और भी बिगड़ती जाएगी. 

एमओओसी प्रदाताओं को कम से कम लागत वाली, व्यापक कवरेज वाली और अपने स्वामित्व वाली मोबाइल फ़ोन की भारतीय क्रांति से अपने-आपको जोड़ना होगा. दिसंबर 2013 में कोर्सेरा ने ऐसे मोबाइल ऐप जारी किये थे जिनकी मदद से उपयोगकर्ता पाठ्यक्रमों को ब्राउज़ कर सकते हैं, उनमें अपना नामांकन करा सकते हैं, लैक्चर देख सकते हैं और मोबाइल उपकरण से ही पूरी प्रश्नोत्तरी भर भी सकते हैं. हालाँकि फ़ोरम पर पोस्ट करने और प्रश्नोत्तरी भरने से इतर कुछ असाइनमैंट अभी भी मोबाइल पर उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी कोर्सेरा द्वारा जारी किये गये मोबाइल ऐप भारत जैसे देश में जहाँ ब्रॉडबैंड कवरेज बहुत सीमित है, एमओओसी की पहुँच को सुगम बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. एमओओसी प्रदाताओं को मोबाइल की दुनिया में प्रवेश करने के लिए बैंकिंग उद्योग के मुकाबले ज़्यादा बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि उनकी वीडियो की विषय-वस्तु, प्रश्नोत्तरी और असाइनमैंट के लिए स्मार्टफ़ोन की ज़रूरत पड़ती है,जबकि मोबाइल बैंकिंग के कुछ काम मात्र एसएमएस सेवाओं के ज़रिये ही निपटाये जा सकते हैं. लेकिन 3जी और 4जी के इंटरनैट के कारण अब स्मार्टफ़ोन और टेबलैट की सुविधा भारत में बढ़ती जा रही है और जैसे-जैसे उनके दाम कम होते जाएँगे, उनकी सुविधाओं का भी तेज़ी से विस्तार होता जाएगा.

दूसरी बात यह है कि दुनिया के कुछ सबसे बढ़िया विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित अधिकांश एमओओसी बहुत ही चुनौतीपूर्ण और माँग वाले पाठ्यक्रम हैं, जिनके लिए अधिकांश प्रत्याशी विद्यार्थी तैयार नहीं हैं.    विश्वविद्यालय- स्तर के पारंपरिक पाठ्यक्रम चलाने के अलावा एमओओसी प्रदाताओं को पूर्व विश्वविद्यालय-स्तर के पाठ्यक्रम भी चलाने चाहिए जिससे कि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की पूर्ति की जा सके. इसके अलावा उन तकनीकी प्रमाणीकरणों की भी भारी माँग है, जो विद्यार्थियों को उच्च-कौशल वाले क्षेत्रों में व्यावसायिक प्लेसमैंट के लिए तैयार करते हैं. इन ज़रूरतों के लिए तैयार होने पर एमओओसी उन संस्थाओं के बोझ को कम करने में मदद कर सकते हैं जो पहले से ही ऐसे प्रमाणीकरण की पेशकश कर रहे हैं और इससे और अधिक विविध और प्रतियोगी तकनीकी प्रमाणीकरण उद्योग को विकसित करने में मदद मिलेगी. भारत में शैक्षणिक माँगों में बहुत ही अधिक विविधता है और एमओओसी प्रदाताओं को यह सोचना चाहिए कि इन माँगों की पूर्ति कैसे की जा सकती है. एमओओसी प्रदाता भारत की असमान शैक्षणिक माँगों की पूर्ति के लिए विविधीकरण की नीति को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं.


अंततः शैक्षणिक माँगों को समझने और उन्हें पूरा करने के लिए एमओओसी प्रदाताओं को भारत में निवेश करना होगा. इस तथ्य के बावजूद कि कोर्सेका सबसे बड़ा एमओओसी प्रदाता है और कोर्सेका ने न तो अब तक किसी भी भारतीय संस्था के साथ पाठ्यक्रमों को चलाने की पेशकश की है और न ही वे भारतीय भाषाओं के कोई पाठ्यक्रम ही चलाते हैं, फिर भी एमओओसी के सबसे अधिक विद्यार्थी भारतीय ही हैं. दूसरे एमओओसी प्रदाता ईडीऐक्स ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बंबई के साथ भागीदारी ज़रूर की है, लेकिन उसके विस्तार की अभी और भी गुंजाइश है. भारत में उच्च शिक्षा के संदर्भ में पूर्ति और भारी माँग के बीच असंतुलन और किफ़ायती व अच्छी किस्म की शिक्षा की आवश्यकता को देखते हुए, भारत एमओओसी प्रौद्योगिकी के विकास के लिए आदर्श स्थान है. भारतीय संस्थाओं को सक्रिय भागीदार बनकर सभी तरह की पृष्ठभूमि से आने वाले भारतीय विद्यार्थियों के लिए उनकी विशेष रुचि के आधार पर भारतीय भाषाओं की विषयवस्तु को डिज़ाइन करना चाहिए और उसे उपलब्ध कराना चाहिए.

अधिकाधिक भारतीय विद्यार्थियों तक एमओओसी की पहुँच को बढ़ाकर भी भारतीय उच्च शिक्षा की बुनियादी समस्याओं को सुलझाया नहीं जा सकेगा. लेकिन जैसा कि हाल ही की घटनाओं से पता चलता है कि नयी प्रौद्योगिकी के ज़रिये भारत-भर में विविध प्रकार की विषयवस्तुओं को भी बहुत तेज़ी से प्रसारित किया जा सकता है. एमओओसी अधिकाधिक विद्यार्थियों को बहुत कम लागत पर उच्च स्तर की विषयवस्तु उपलब्ध करा सकते हैं. 

अगर इन पाठ्यक्रमों की पहुँच को सुगम बनाने के मार्ग में आने वाली प्रौद्योगिकीय, शैक्षणिक और सांस्कृतिक बाधाओं को दूर कर दिया जाए तो लाखों भारतीय विद्यार्थी अच्छे स्तर की उच्च शिक्षा सहजता से प्राप्त कर सकेंगे और इससे नाटकीय रूप में भारत में और विश्व-भर में भी उच्च शिक्षा के परिदृश्य को बदला जा सकेगा.


गेल क्रिस्टेंसन पैन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय में प्रोवोस्ट के वैश्विक पहल कार्यालय में कार्यपालक निदेशक हैं.   

ब्रैंडन ऐल्कर्न पैन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय में प्रोवोस्ट के वैश्विक पहल कार्यालय में परियोजना प्रबंधक हैं.   

हिंदी अनुवादः विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@hotmail.com>