चिकित्सा-उपकरणों का वैश्विक उद्योग $200 बिलियन डॉलर का है. इस उद्योग में पेस मेकर, अल्ट्रा-साउंड मशीनों और सर्जिकल रोबोट आदि जटिल उपकरणों से लेकर थर्मामीटर और स्टेथेस्कोप्स आदि सरल उपकरणों तक सभी प्रकार के स्वास्थ्य- उपकरण विकसित और निर्मित होते हैं. सन् 2011 में भारत काचिकित्सा-उपकरणों का बाज़ार $3 बिलियन डॉलर मूल्य का था, जो उस साल लगभग 15 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ता रहा. उम्मीद है कि 2010-2015 की अवधि के दौरान 16 प्रतिशत की वार्षिक क्लिप की चक्रवृद्धि गति से यह आगे बढ़ता रहेगा, जो अमरीका और योरोप में इसी क्षेत्र में 2-3 प्रतिशत की प्रत्याशित वृद्धि की गति की तुलना में कहीं बेहतर है. इसके कारण ही भारत आज विशाल चिकित्सा-उपकरण बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रत्यक्ष निवेश के लिए तीन शीर्षस्थ उदीयमान बाज़ारों में से एक है. इस समय भारत में बेचे जाने वाले 75 प्रतिशत चिकित्सा-उपकरण आयात किये जाते हैं, हालाँकि कुछ चिकित्सा-उपकरणों के वैश्विक बाज़ार के शेयर में भारत का हिस्सा काफ़ी अधिक है. इनमें अरविंद आईकेयर द्वारा निर्मित कम लागत का इंट्रा-ऑक्युलर लेन्स भी शामिल है. 1.2 बिलियन लोगों की आबादी के साथ $3 बिलियन डॉलर का बाज़ार चिकित्सा प्रौद्योगिकी पर बहुत ही कम औसत खर्च दर्शाता हैः $2.50 प्रति व्यक्ति से भी कम. कम आबादी तक पहुँच के कारण बाज़ार पर पड़ने वाले दबाव से कंपनियों को इतने अवसर मिलते हैं कि वे भारत में चिकित्सा प्रौद्योगिकी के उत्पादों को लाने के प्रयास में जुटी रहती हैं. इस कारण से कंपनियों को कई अवसर मिलते हैं कि वे भारत में चिकित्सा प्रौद्योगिकी के उत्पादों को लाने का प्रयास करें.
चिकित्सा उपकरण भारी तौर पर विनियमित वैश्विक उद्योग का हिस्सा हैं और ये विनियम चिकित्सा उपकरणों के जीवन-चक्र के प्रत्येक चरण तक पहुँचते हैं: अनुसंधान और विकास, क्लिनिकल परीक्षण, बाज़ार-पूर्व अनुमोदन, निर्माण, लेबलिंग और अंततः बाज़ार में उनकी बिक्री. अमरीकी खाद्य व औषधि प्रशासन (एफ़डीए) और योरोपीय सीई मार्केटिंग एजेंसियों के अंतर्गत चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता का विनियमन रोगियों की सुरक्षा के लिए होता है और भैषजीय औषधि विनियमों के अंतर्गत अलग रास्ता अपनाया जाता है. चिकित्सा उपकरणों का विनियमन भारत के लिए अभी बिल्कुल नया है, हालांकि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीटीएससीओ) द्वारा भैषजीय औषधियों का विनियमन स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत सन् 1940 से किया जाता रहा है. भारत सरकार ने 1940 के औषधि व सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम (डीसीए) में संशोधन करते हुए सन् 2008 में चिकित्सा उपकरणों के लिए विनियामक दिशा-निर्देशों को प्रस्तावित किया था. चिकित्सा उपकरणों पर औषधि नियम लागू करने के लिए सन् 2012 में नये दिशा-निर्देश लाये गये और अद्यतन विधेयक सन् 2013 में भारतीय संसद में पेश किया जाएगा. उम्मीद की जाती है कि नये विधेयक के अंतर्गत चिकित्सा उपकरणों को विनियमित करने वाली सीडीएससीओ के अंतर्गत केंद्रीय लाइसेंसिंग अनुमोदन प्राधिकरण (सीएलएए) जैसी सरकारी एजेंसियों के माध्यम से सभी चिकित्सा उपकरणों का विनियमन किया जाएगा.
जहाँ डीसीए के अंतर्गत मुख्यतः औषधि और भैषजीय उत्पाद दोनों ही शामिल थे, लेकिन नये विनियमों में चिकित्सा उपकरणों को औषधियों से अलग करके चिकित्सा उपकरणों के रूप में विनियमित करने का प्रयास किया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन, एफ़डीए, द ग्लोबल हार्मनाइज़ेशन टास्क फ़ोर्स और उद्योग विशेषज्ञों के परामर्श से चिकित्सा उपकरणों को जोखिम के आधार पर वर्गीकृत किया गया. आम तौर पर अधिक जोखिम वाले उपकरणों पर सख्त विनियम लागू होते हैं और उनकी बाज़ार-पूर्व अनुरूपता मूल्यांकन प्रक्रिया भी अधिक सख्त होती है.
परंतु इस समय कुछ खास वर्ग के उपकरणों तक ही सीडीएससीओ में पंजीकृत कराने की अपेक्षा सीएलएए की रहती है जो भारत के आधिकारिक राजपत्र की अधिसूचना (कुल मिलाकर 21 उपकरण वर्ग हैं) के अंतर्गत आते हैं. इनमें शामिल हैं, कार्डियक स्टैंट्स, बोन सीमेंट, इंट्रा-ओक्युलर लेन्स, ऑर्थोपैडिक उपकरण और हार्ट वाल्व. चूँकि सीएलएए में इस समय कुछ उपकरणों की ही बाज़ार-पूर्व समीक्षा की आवश्यकता रहती है, लेकिन अन्य सभी उपकरणों की भारत में बिक्री से पूर्व पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती. अधिसूचित सूची के आधार पर आयातित चिकित्सा उपकरणों के लिए यदि पहले ही अमरीका (एफ़डीए) या योरोपियन संघ ( सीई मार्किंग) से अनुमोदन ले लिया गया है,तो उन्हें अलग-से अनुरूपता मूल्यांकन कार्यविधि से गुज़रे बिना भी भारतीय बाज़ारों में बेचा जा सकता है.
अपेक्षाकृत निष्प्रभावी विनियम नये उत्पाद के विकास में कुछ बाधाएँ भी खड़ी कर देते हैं. विनियमों के अभाव में इन उपकरणों को आसानी से बाज़ार-पूर्व अनुमोदन मिल जाता है जबकि जटिल विनियामक व्यवस्थाओं में इस प्रकार का अनुमोदन प्राप्त करने के लिए कहीं अधिक कड़े मानदंडों से गुज़रना पड़ता है. परंतु ऐसे वातावरण से क्लिनिशियनों, उनके रोगियों और उन निवेशकों की नज़र में चिकित्सा उपकरणों की विश्वसनीयता नहीं रहती, जो इन उत्पादों और कंपनियों के लिए पैसा लगाने में दिलचस्पी रखते हैं. जब तक कि मानकों को अच्छी तरह से लागू नहीं कर लिया जाता तब तक उन्हें खरीदने का निर्णय करने वाले डॉक्टरों और अन्य लोगों के लिए यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि कौन- से उपकरण खरीदने लायक हैं.
विनियमों से न केवल उत्पादों की बिक्री प्रभावित होती है, बल्कि इनसे उन उपकरणों के आयात और निर्यात पर भी असर पड़ता है. जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, भारत में बेचे जाने वाले 75 प्रतिशत उत्पाद आयातित होते हैं. इसका प्रमुख कारण आयात के पक्ष में होने वाला कराधान है. इस समय चिकित्सा उपकरणों पर लगने वाले आयात शुल्क औसतन 10 प्रतिशत है, जिसे आम तौर पर ग्राहकों से वसूला जाता है. चूँकि उत्पाद का आयात एसआईसीओआई (अर्थात् आयात के कारण होने वाली बिक्री) के आधार पर होता है, इसलिए इस पर वैट नहीं लगता. लेकिन यदि उपकरणों और उनके हिस्सों का आयात अपने ही देश में चिकित्सा उपकरणों के उत्पादन के लिए किया जाता है तो उसी आयात शुल्क में उत्पादन शुल्क और वैट भी जुड़ जाएगा. इसका अर्थ यह हुआ कि देश में निर्मित उपकरणों पर कराधान फ़िनिश्ड आयातित चिकित्सा वस्तुओं के 10 प्रतिशत शुल्क से कहीं अधिक होता है. भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग (एआईएमईडी) सरकार से घरेलू चिकित्सा उपकरण उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए स्थानीय तौर पर निर्मित उत्पादों पर कर-संरचना को बदलने के लिए अनुरोध करता रहा है. वे विभिन्न राज्यों में एकरूपता लाने के उद्देश्य से भी कर-संरचना में परिवर्तन लाने के लिए दबाव डाल रहे हैं.
जहाँ भारत में उदार विनियामक परिवेश नवोन्मेषकारियों और उद्यमियों के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद है, वहीं विनियामक व्यवस्था में कई कारणों से परिवर्तन आवश्यक हैं. पहली बात तो यह है कि अविनियमित बाज़ार रोगी को असुरक्षित उत्पादों से नहीं बचा सकता और इससे समग्र रूप में इस क्षेत्र में विकास भी बाधित होता है. दूसरी बात यह है कि उत्पादों के अनुमोदन से बाज़ार में फर्क पड़ता है. इससे बेहतर और सुरक्षित उत्पादों को कामयाबी मिलती है. विनियमों के अभाव में नये उत्पादों के नवोन्मेषकारियों को मिलने वाला लाभ नहीं मिल पाता. अंततः वर्तमान शुल्क और आयात शुल्क की संरचना से देशी चिकित्सा उपकरणों के निर्माता निरुत्साहित हो जाते हैं, क्योंकि फ़िनिश्ड आयातित चिकित्सा वस्तुओं पर शुल्क कम होता है. इसके फलस्वरूप चिकित्सा प्रौद्योगिकी में व्यापार घाटा बहुत अधिक बढ़ जाता है. बेहतर विनियामक व्यवस्था के लिए पहला कदम है, चिकित्सा उपकरण विनियमन विधेयक का अनुमोदन, जिसके कारण भारत में औषधियों से अलग चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावशालिता को सुनिश्चित करने के लिए एक नियंत्रण प्रणाली का विकास किया जा सकता है.
ऋतु कमल उदीयमान बाज़ारों के लिए चिकित्सा प्रौद्योगिकी के विकास से संबद्ध स्टैंडफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के बायोडिज़ाइन प्रोग्राम में काम करती हैं. 2008-09 में वे कैसी रिसर्च ऐसोसिएट रही हैं. उनसे ritu.kamal@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
हिंदी अनुवादः विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@hotmail.com>