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स्किलिंग इंडिया के लिए डेटा सिस्टम का डिज़ाइन

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06/10/2014
स्टीफ़ैन बैंडर, जॉर्ज हीनिंग, कौशिक कृष्णन्

इस समय भारत में बेरोज़गारी की दर 9 प्रतिशत है. तथापि  बैचलर डिग्री वाले तीन नागरिकों में से कम से कम एक के पास कोई काम नहीं है. काम करने की उम्र वाली आबादी आज 750 मिलियन से अधिक है, जो सन् 2020 में बढ़कर लगभग एक बिलियन तो हो ही जाएगी. साथ ही कृषि रोज़गार भी घट रहा है. कुल रोज़गार में से कृषि रोज़गार 50 प्रतिशत से भी कम है. ऐसा भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है. बाज़ार के इन्हीं दबावों के कारण श्रमिक वर्ग उच्च कौशल वाले काम-धंधों की ओर बढ़ रहा है. तथापि कॉलेज में शिक्षित भारतीय युवाओं के पास इन कामों के लिए अपेक्षित कौशल ही नहीं है.

शायद यही कारण है कि इसी संक्रमण को ध्यान में रखते हुए वित्तमंत्री अरुण जेतली ने स्किल इंडिया नाम से एक कार्यक्रम की घोषणा की है, जिसके अंतर्गत युवा कामगारों को काम पाने के लिए अपेक्षित प्रशिक्षण दिया जाएगा. सन् 2022 तक 500 कामगारों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है. अब तक वर्तमान संगठन राष्ट्रीय कौशल विकास निगम और अठारह अन्य मंत्रालय कौशल विकास के कार्यक्रम चला चुके हैं. स्किल इंडिया का उद्देश्य इन बिखरे हुए आरंभिक कदमों को समन्वित करना और उनके स्थान पर अन्य कार्यक्रम चलाना है. परंतु ज़रूरत इस बात की है कि सरकार न केवल अपने कार्यक्रमों को, बल्कि अपने डेटा संग्रह और मूल्यांकन प्रणालियों को भी अद्यतन करे. 

उच्च गुणवत्ता वाले डेटा को जुटाने के पीछे तर्क यही है कि सरकार विचारधारा की परवाह किये बिना ही प्रभावी नीतियों का अनुपालन सुनिश्चित करे. इसके अलावा, सही इरादों से अपनायी गयी नीतियों के परिणाम भी उल्टे हो सकते हैं. दोनों के लिए ही डेटा-आधारित विश्लेषण आवश्यक है. उदाहरण के लिए हाल ही में किये गये अनुसंधान से पता चलता है कि बाल श्रमिकों पर रोक लगाने के कारण न केवल बाल मज़दूरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, बल्कि उनकी मज़दूरी में भी गिरावट आ गई है.  

इस समय राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण श्रमिक बाज़ार के डेटा का राष्ट्रीय स्तर पर एकमात्र स्रोत है. बहुत हद तक इससे रोज़गार के स्तर पर कुछ व्यापक प्रवृत्तियों का अंदाज़ा तो हो ही जाता है. भारत की विशाल श्रमिक शक्ति और सरकार द्वारा चलाये गये आरंभिक कार्यक्रमों को देखते हुए नियोक्ता –कर्मचारी- लाभ से जुड़े अधिक गहन डेटा की आवश्यकता है ताकि नीतियों का मूल्यांकन अधिक सार्थक ढंग से किया जा सके. इस संबंध में दूसरे देशों ने काफ़ी प्रगति की है.

पचास साल पहले जर्मनी में अनुसंधानकर्ताओं की पहल पर और प्रशासन की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण संघीय रोज़गार एजेंसी ने व्यक्तिगत स्तर पर कामगारों का विशिष्ट डेटाबेस तैयार किया था. यह डेटा सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की अधिसूचनाओं और रोज़गार के बारे में कर्मचारियों द्वारा दी गई मूलभूत सूचनाओं पर आधारित है. कर्मचारियों की सामाजिक- जनसांख्यिकीय विशेषताओं के गहन समुच्चय और नियोजित करने वाले प्रतिष्ठानों से संबंधित सूचनाओं को समेकित करके एक साथ मिलाकर इसे वार्षिक आधार पर प्रस्तुत किया जाता है. विशिष्ट सामाजिक सुरक्षा नंबर का उपयोग करते हुए रोज़गार संबंधी सूचनाओं को रोज़गार संबंधी लाभों की अवधि, रोज़गार की पंजीकृत तलाश और कार्यक्रमों व प्रशिक्षण योजनाओं में सहभागिता जैसे अन्य डेटा से मिला दिया जाता है.

इसके परिणामस्वरूप मिलने वाले डेटा की मदद से अनुसंधानकर्ता कामगारों का उनके प्रशिक्षण के आरंभ से लेकर उस समय तक अनुसरण करते रहते हैं जब तक कि वे श्रमिक वर्ग को छोड़कर पेंशन प्रणाली के अंतर्गत नहीं आ जाते. इसके फलस्वरूप इस डेटा का उपयोग करते हुए जर्मनी के लगभग सभी सक्रिय श्रमिक बाज़ार संबंधी कार्यक्रमों का मूल्यांकन किया जाता है. इसके प्रमुख उदाहरण हैं, “हर्ट्ज़ सुधार ” जो सन् 2005 का एक प्रमुख श्रमिक बाज़ार सुधार कार्यक्रम था, जिसमें बेरोज़गारी लाभ संबंधी नई भुगतान योजनाओं को शुरू किया गया था और हाल ही में शुरू की गई न्यूनतम मज़दूरी भी इसमें शामिल है. 

अधिकांश मूल्यांकनों की लागत भी सरकार को बहुत ही कम पड़ती है. जर्मनी के कर्मचारी-नियोक्ता जैसे संसाधनों का डेटा उच्च गुणवत्ता का स्वर्णिम मानदंड बन गया है. चूँकि गोपनीयता का निर्वाह करते हुए भी यह डेटा सार्वजनिक तौर पर अनुसंधान के लिए सुलभ है, इसलिए इसका उपयोग श्रमिक अर्थव्यवस्था पर होने वाले शैक्षिक अनुसंधान के लिए किया जाने लगा है. कुछ नियम भी बनाये गये हैं ताकि डेटाबेस के प्रत्येक व्यक्ति की निजता का ख्याल रखा जा सके. संघीय रोज़गार एजेंसी का एक अनुसंधान डेटा केंद्र है. केंद्र की सुविधा को खास तौर पर इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि अनुसंधानकर्ताओं को निजता के कानून का अनुपालन करते हुए सुरक्षित वातावरण में गोपनीय माइक्रो डेटा सुलभ कराया जा सके. जर्मन आरडीसी के अनेक फ़ील्ड ऑफ़िस अमेरिका में खोले गये है ताकि शैक्षणिक अनुसंधानकर्ताओं को विश्लेषण के लिए डेटा उपलब्ध कराया जा सके.

भारत को इस प्रकार का डेटा सैट निर्मित करने के लिए शुरुआत से काम नहीं करना होगा. असल में अधिकांश आवश्यक कच्चा डेटा तो पहले से ही जुटा लिया गया है. अनेक उद्योगों को कर्मचारी भविष्य निधि और कर्मचारी राज्य बीमा नियमों के अनुपालन के लिए पहले से ही कर्मचारियों को दिये गये वेतन की सूचना देनी ही पड़ती है. व्यक्तिगत स्तर पर कर्मचारियों को भी अपनी आय से संबंधित कर विवरणी भरनी पड़ती है. भारत में आर्थिक लाभ संबंधी सभी कार्यक्रमों के डेटा खुद ही जुटाने और रखने पड़ते हैं. सिर्फ़ एक ही चीज़ बाकी रह जाती है और वह है विभिन्न स्रोतों से आने वाले डेटा को परस्पर जोड़ना और उसे सही करना.

यह तर्क भी दिया जा सकता है कि ऐसे डेटाबेस का निर्माण इसलिए भी फ़िज़ूल है, क्योंकि भारत की अधिकांश श्रमशक्ति अनौपचारिक या ठेके पर आधारित है. लेकिन यह समस्या तो हर प्रकार के डेटा संग्रह में है और एनएनएसओ के डेटा में भी यही समस्या है. इसके विपरीत  इससे बड़े स्तर के लाभ भी मिल सकते हैं. हर प्रकार के काम के पक्के डेटा से तो भारत की श्रमिक नीति का आधार और भी पक्का हो सकता है. डेटा जुटाने की इस प्रक्रिया से जो जानकारी मिलती है उससे भारत की श्रमिक नीति से संबंधित नियमों को इस तरह से बनाया जा सकता है कि उसमें अधिकाधिक श्रमिकों की औपचारिक भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके. बेहतर डेटा की मदद से सरकार और बाहरी एजेंसियाँ अधिक कुशलता से निवेश कर सकेंगी. सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि कच्चे डेटा के संग्रह का काम, जो सबसे अधिक महँगा पड़ता है, पहले से ही शुरू किया जा चुका है.

जर्मनी के अनुभव का संदेश बहुत स्पष्ट हैः डेटा जुटाने की ज़िम्मेदारी नौकरशाही की नहीं है और यह प्रक्रिया बहुत महँगी भी नहीं है. प्रशासनिक डेटा के निर्माण, रख-रखाव और उसे अनुसंधान के लिए उपलब्ध कराने से भारतीय श्रमिक बाज़ार पर उच्च स्तर का अनुसंधान का काम किया जा सकेगा. ज़ाहिर है इससे नीति-निर्माताओं और भारत की जनता को बहुत लाभ मिलेगा. जब तक भारत ऐसी प्रणालियों में निवेश नहीं करता, तब तक श्रम बाज़ार के लिए प्रभावी नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन नहीं किया जा सकता और यह भी नहीं समझा जा सकता कि श्रम बाज़ार काम कैसे करता है.

 

स्टीफ़ैन बैंडर रोज़गार अनुसंधान संस्थान की जर्मन संघीय रोज़गार एजेंसी के अनुसंधान डेटा केंद्र में अध्यक्ष हैं. 

डॉ. जॉर्ज हीनिंग रोज़गार अनुसंधान संस्थान की जर्मन संघीय रोज़गार एजेंसी के अनुसंधान डेटा केंद्र में वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता हैं. 

कौशिक कृष्णन् कैलिफ़ोर्निया विवि, बर्कले में अर्थशास्त्र में पीएचडी के छात्र हैं.

 

हिंदीअनुवादःविजयकुमारमल्होत्रा, पूर्वनिदेशक(राजभाषा), रेलमंत्रालय, भारतसरकार<malhotravk@gmail.com>               मोबाइल: 91+9910029919.