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भारत में चिकित्सा उपकरणों के लिए विनियामक व्यवस्था का निर्माण

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27/07/2015
ऋतु कमल

भारत सरकार द्वारा चिकित्सा उपकरण उद्योग को विनियमित करने के अपने संकल्प और अनेक अंतरिम पैबंद जैसे दिशा-निर्देशों की घोषणा के लगभग एक दशक के बाद राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति  (NMDP-2015) के व्यापक प्रारूप की घोषणा की गई है और दिलचस्पी रखने वाले हितधारकों द्वारा इसकी समीक्षा के लिए इसे सार्वजनिक कर दिया गया है. चिकित्सा उपकरणों का वैश्विक उद्योग  $200 बिलियन डॉलर का है. इस उद्योग में अनिवार्य स्वास्थ्य-सेवा उपकरणों का विकास और निर्माण किया जाता है. इन  उपकरणों में थर्मामीटर और स्टेथस्कोप जैसे सरल उपकरणों से लेकर पेसमेकर, अल्ट्रासाउंड मशीनों और सर्जिकल रोबोट जैसे जटिल उपकरण भी शामिल हैं. इस वैश्विक कारोबार में भारत का हिस्सा लगभग $4 बिलियन डॉलर है, जो आनुपातिक दृष्टि से बहुत ही कम है, लेकिन इस कारोबार में 15 प्रतिशत की दर से तीव्र वृद्धि हो रही है. भारतीय फ़र्मास्युटिकल क्षेत्र, जो विश्व में तीसरा बड़ा बाज़ार है, की तुलना में भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग आकार की दृष्टि से दस शीर्ष वैश्विक बाज़ारों की सूची में मुश्किल से ही अपनी जगह बना पाया है. इसके अलावा, जीवंत घरेलू फ़ार्मा क्षेत्र के विपरीत भारत में बिकने वाले 75 प्रतिशत से अधिक चिकित्सा उपकरण आयात किये जाते हैं.

व्यापार असंतुलन में सुधार लाना
राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति  (NMDP-2015) का उद्देश्य है, इन उपकरणों के आयात पर निर्भरता में कमी लाना. इसके उद्देश्य में कहा गया है, "आयात पर निर्भरता में कमी लाकर “मेक इन इंडिया” के अभियान को मज़बूत बनाना और रोगियों के लिए किफ़ायती और सुलभता की खास ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए   चिकित्सा उपकरणों के लिए मज़बूत आधार की स्थापना करना." यद्यपि नीति के प्रारूप में कार्यान्वयन से संबंधित ब्यौरे बहुत कम दिये गये हैं, लेकिन इससे भारत में चिकित्सा उपकरणों के विनियमन के लिए एक व्यापक ढाँचा तो तैयार हो ही गया है. इसमें राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति  (NMDP) के नाम से एक नये निकाय का प्रस्ताव किया गया है, जो चिकित्सा उपकरण उद्योग के लिए केंद्रीय सरकार की एजेंसी का काम करेगा. यदि उपर्युक्त रूप में उसे कार्यान्वित कर लिया जाए तो वर्तमान स्थिति में यह स्वागत योग्य कदम होगा, क्योंकि इससे चिकित्सा उपकरण बनाम फ़र्मास्युटिकल्स के विकास और विनिर्माण में भारी मतभेद होने के बावजूद चिकित्सा उपकरणों को विनियमित किया जा सकेगा.

नीति के प्रारूप में चिकित्सा उपकरणों के घरेलू अनुसंधान, विकास और विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक वित्तीय और कराधान संबंधी लाभों की चर्चा की गई है. इन लाभों में अनुसंधान व विकास के  अनुमोदित व्यय पर करों में भारी रियायत, सहायता पूँजी और छोटे एवं मझले उद्यमों (MSME) के वित्तपोषण और विनिर्माण के लिए कच्चे माल के आयात पर ज़ीरो ड्यूटी भी शामिल है. इनमें से आखिर में वर्णित लाभ वर्तमान कराधान ढाँचे में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव है. भारत में विनिर्मित अधिकांश चिकित्सा उपकरणों में आयातित कच्चे माल का उपयोग किया जाता है और वर्तमान कराधान ढाँचे में देश में ही बने उत्पादों पर प्रभावी दर पर टैक्स लगाकर उन्हें दंडित किया जाता है और यह दर पहले से ही निर्मित आयातित चिकित्सा उत्पादों पर लगने वाली ड्यूटी से कहीं अधिक होती है. 

अमरीका, योरोप और अन्य विकसित बाज़ारों में चिकित्सा उपकरणों से संबंधित विनियमों का उद्देश्य मुख्यतः चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता, संरक्षा और प्रभाविता को ही सुनिश्चित करना होता है. कराधान और व्यापार संबंधी प्रोत्साहन का काम दूसरे सरकारी निकायों पर छोड़ दिया जाता है. भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग के आशावादी स्वरूप को देखते हुए यह तर्कसंगत ही लगता है कि राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति  (NMDP) को इस क्षेत्र को व्यापक प्रोत्साहन देने का काम सौंपा जाए, लेकिन इस काम में उद्योग के लिए नौकरशाही की अनावश्यक बाधाओं और भ्रमजाल फैलाने का जोखिम भी बना रहेगा, क्योंकि यह उद्योग अन्य अनेक सरकारी निकायों के अधिकार-क्षेत्र में भी आ सकता है और इनमें परस्पर एक दूसरे से टकराव की स्थिति भी पैदा हो सकती है.

रोगी की सुरक्षा
राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति  (NMDP-2015) में भारत में बिकने वाले चिकित्सा उपकरणों में रोगियों की  सुरक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर खास तौर पर ध्यान दिया गया है. बाज़ार- पूर्व अनुमोदन से संबंधित दिशा- निर्देशों के लिए और अधिक विस्तृत प्रस्तावों पर पहले से ही काम करते हुए इस नीति में चिकित्सा उपकरणों से संबंधित मेक-इन-इंडिया की मार्किंग को मज़बूत बनाने पर विशेष बल दिया गया है, जिसे भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा जारी किया जाएगा और चिकित्सा उपकरणों के निर्माण में तत्संबंधी अंतर्राष्ट्रीय मानकों (ISO 13485) का पूरा ध्यान रखा जाएगा. अगर इसका कार्यान्वयन सही ढंग से हो जाता है तो इसका अर्थ होगा कि वैश्विक समन्वय के दिशा- निर्देशों का इसमें पूरा पालन किया जाएगा. इन दिशा- निर्देशों में रोगी के जोखिम के आधार पर चिकित्सा उपकरणों का वर्गीकरण और मूल्यांकन किया जाता है. इससे भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) की मार्किंग का भी मूल्य बढ़ जाएगा.

इस नीति के प्रारूप में PPP अर्थात् सार्वजनिक और निजी भागीदारी के आधार पर चिकित्सा उपकरणों के परीक्षण, मूल्यांकन और लाइसेंसिंग के लिए परीक्षण केंद्रों की स्थापना का प्रस्ताव है. इसका प्रस्तावित ढाँचा योरोप के सी-ई मार्किंग सिस्टम की तरह है, जिसमें ISO की गुणवत्ता के मानकों के अनुसार विनिर्माण स्थलों और/या चिकित्सा उपकरणों के मूल्यांकन के लिए तीसरी पार्टी की अनुरूपता के लिए अधिसूचित निकाय नाम से प्रसिद्ध मूल्यांकन निकायों का उपयोग किया जाता है. अमरीका के FDA के लिए स्टाफ़ की भर्ती और वित्तपोषण अमरीकी सरकार द्वारा किया जाता है. इसमें उत्पादों का संसाधन-बहुल पूर्व- बाज़ार मूल्यांकन किया जाता है, इसमें सुरक्षा और कुशलता का खास तौर पर ख्याल रखा जाता है और यह चिकित्सा उपकरणों के विनियमन का सर्वोत्तम वैश्विक मानक है. भारत में प्रस्तावित नीति के कार्यान्वयन के विशेष बिंदुओं पर और अधिक जानकारी की आवश्यकता होगी और कुछ सरोकारों का भी ध्यान रखना होगा.

सबसे पहले तो हमें यह ध्यान रखना होगा कि चिकित्सा उपकरणों के जोखिम पर आधारित वर्गीकरण को अच्छी तरह से परिभाषित किया जाए और उसका पालन भी किया जाए.  इस समय तो केंद्रीय औषधि मानक संगठन द्वारा अव्यवस्थित रूप में ही उत्पादों को छाँट कर उनका मूल्यांकन कर दिया जाता है. इस प्रक्रिया में कार्डियाक स्टैंट, बोन सीमेंट और इंट्रा-ऑकुलर लैंस तो शामिल रहते हैं, लेकिन भारत में बिक्री से पहले दूसरे सभी चिकित्सा उपकरणों के पंजीकरण की आवश्यकता नहीं समझी जाती है. सभी प्रकार के चिकित्सा उत्पादों को परिभाषित करने और उनका मूल्यांकन करने के लिए सार्थक विनियमन होना चाहिए और वह इतना व्यापक होना चाहिए कि उसमें सभी प्रकार के नये नवोन्मेषों को समाहित किया जा सके. दूसरी बात यह है कि बीआईएस-मार्किंग प्रणाली जैसी नई और राष्ट्रीय प्रणाली शुरू होने के बावजूद भारत में आज भी योरोपीय सीई-मार्किंग का ही व्यापक रूप में प्रचलन है और उसे विश्वसनीय भी माना जाता है. नई नीति के नियम बिल्कुल स्पष्ट और दक्षतापूर्ण होने चाहिए ताकि स्वदेशी और आयातित सभी प्रकार के चिकित्सा उपकरणों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों का उपयोग किया जा सके और भारत के बाज़ारों में भी उसका पालन किया जा सके. अंततः किसी भी अन्य विनियामक प्रस्ताव की तरह यह चिंता तो इस प्रस्ताव के साथ भी बनी रहेगी कि इन नियमों का सही और व्यापक रूप में पालन किया जाता है या नहीं.

राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति  (NMDP-2015) में भारत में चिकित्सा उपकरणों की बिक्री पर मूल्य नियंत्रण के कुछ ऐसे प्रस्ताव भी हैं, जो नीतिगत प्रस्ताव के सबसे अधिक विवादास्पद मुद्दे रहे हैं, लेकिन उद्योग और अन्य हितधारकों ने आम तौर पर इनका स्वागत किया है. इनमें राष्ट्रीय फ़र्मास्युटिकल मूल्यनिर्धारण एजेंसी (NPPA) के अधीन एक नये मूल्यनिर्धारण डिविज़न को गठित करने और चिकित्सा उपकरणों को अनिवार्य वस्तु सूची के अंतर्गत एक अलग मद के रूप में रखने का प्रस्ताव भी है. इसमें सरकार और औद्योगिक समूहों के बीच होने वाले उन तमाम तरह के मतभेदों से बचने का प्रावधान है, जैसे मतभेद हाल ही में फ़र्मा क्षेत्र में देखने को मिले थे. साथ ही इसमें नई प्रौद्योगिकियों के लिए पेटेंट संरक्षण का प्रावधान भी रहेगा. रोगियों के लिए इन उपकरणों को किफ़ायती बनाने के प्रयास में ऐसा नहीं होना चाहिए कि घरेलू चिकित्सा उपकरण उद्योग में उभरते नवोन्मेष का गला ही घोट दिया जाए. अंतिम निष्कर्ष तक पहुँचने  के लिए और विवरण भी जुटाने होंगे.

समग्र रूप में यही कहा जा सकता है कि भारत में एक स्वतंत्र चिकित्सा उपकरण विनियामक संस्था बनाने की आवश्यकता एक लंबे समय से अनुभव की जा रही थी और राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति  (NMDP-2015) का प्रस्ताव उस दिशा में चिर प्रतीक्षित और सही कदम है. नीति के विवरण जल्द से जल्द जारी किये जाने चाहिए और इसके लिए लंबित कानून पारित किया जाना चाहिए ताकि घरेलू चिकित्सा उपकरण उद्योग के आधार को सुदृ़ढ़ करने और रोगियों के हितों के संरक्षण के लिए विनियामक व्यवस्था कारगर ढंग से लागू की जा सके.

ऋतु कमल अर्ली स्टेज अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा प्रौद्योगिकी स्टार्टअप में कार्यरत हैं. 2008-09 के दौरान वह कैसी में रिसर्च ऐसोसिएट थीं. ट्विटरः@kamal_ritu

 

हिंदीअनुवादःविजयकुमारमल्होत्रा, पूर्वनिदेशक(राजभाषा), रेलमंत्रालय, भारतसरकार<malhotravk@gmail.com> / मोबाइल: 91+9910029919