भारत की झुग्गी-झोपड़ियों के अनौपचारिक नेताओं से संबंधित इस द्विभागीय श्रृंखला के भाग एक में हमने चर्चा की थी कि किस प्रकार झुग्गी-झोपड़ियों के निवासी अपनी बस्ती के नेता बन जाते हैं और वे किस प्रकार की गतिविधियों में संलग्न रहते हैं. इस अंक में हमने उन्हीं बस्तियों की झुग्गी-झोपड़ियों के 629 वास्तविक नेताओं के नमूनों के आधार पर 2016 के ग्रीष्म में आयोजित अपने दूसरे सर्वेक्षण के निष्कर्ष निकाले हैं. व्यवस्थित रूप में और बहुत बड़े स्तर की बात तो छोड़ दें, झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं को खोजना ही बहुत बड़ी चुनौती है और हमारी जानकारी के अनुसार भारत में अब तक इससे पहले इस तरह का कोई भी सर्वेक्षण नहीं किया गया है. निश्चय ही यह सर्वेक्षण कम आय वाले लोकतांत्रिक देशों में स्थानीय स्तर के कुछेक राजनैतिक बिचौलियों में से किसी एक सर्वेक्षण का प्रतिनिधित्व तो करता ही है. नेताओं के इस सर्वेक्षण में हम जयपुर और भोपाल की झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि की रूपरेखा को आपके सामने रखने और आपके साथ यह साझा करने का प्रयास करेंगे कि हमने इनके साथ बातचीत करते हुए यह जाना कि ये लोग किस तरह से अपने समुदायों के अंदर अपना समर्थन जुटाते हैं और उसे फिर किस तरह से बनाये भी रखते हैं.
भारत की झुग्गी-झोपड़ियों के ये नेता कौन हैं?
झुग्गी-झोपड़ियों के ये नेता मुख्यतः बड़ी उम्र के हैं और अपेक्षाकृत अधिक सुशिक्षित पुरुष हैं. हमारे नमूना अध्ययन में 87.76 प्रतिशत झुग्गी-झोपड़ियों के नेता पुरुष हैं. उनकी औसत आयु 47.75 है और 11.79 वर्षों में केवल एक ही बार इसमें उल्लेखनीय अंतर आया है. हमारे नमूना अध्ययन में झुग्गी-झोपड़ियों का सबसे युवा नेता 22 वर्ष का था और सबसे वृद्ध नेता 90 वर्ष का था. इनकी शिक्षा का औसत स्तर 8वीं कक्षा है. शिक्षा का यह स्तर सामान्य निवासियों की औसत शिक्षा के स्तर से तीन वर्ष अधिक है. नमूना अध्ययन के अंतर्गत आने वाले 90 प्रतिशत नेता साक्षर हैं, जबकि नमूना अध्ययन के अंतर्गत आने वाले निवासियों की साक्षरता का स्तर 61. 85 प्रतिशत है. इन परिणामों से हमारे परीक्षण पर आधारित निष्कर्षों को बल मिलता है कि इनके निवासी झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं के रूप में शिक्षित लोगों को ही पसंद करते हैं.
झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं के अनेक प्रकार के काम-धंधे हैं. हमारे नमूना-अध्ययन के अनुसार झुग्गी-झोपड़ियों के अधिकांश नेता (26.55 प्रतिशत) छोटे-मोटे धंधों में लगे हुए हैं, जैसे- जनरल स्टोर, चाय व तम्बाकू स्टॉल, मोटर साइकिल और साइकिल की मरम्मत की दुकानें और नाई की दुकानें. झुग्गी-झोपड़ियों के 7.15 प्रतिशत अन्य नेता अल्पकालिक सरकारी पदों पर या 9.54 प्रतिशत नेता व्यावसायिक पदों पर हैं. अंतिम वर्ग उन नेताओं का है, जो बढ़ई, दर्जी, बिजलीवाले, लुहार और कसाई का काम करते हैं. इनसे कुछ कम प्रतिशत लोग हैं, निजी वेतनभोगी कामगार (5.41 प्रतिशत), ड्राइवर (5.72 प्रतिशत), और अकुशल मज़दूर (7.31 प्रतिशत). 4.45 नेता वे हैं, जो पेशेवर डॉक्टर, वकील और इंजीनियर हैं और शेष नेता कारीगर, ठेकेदार, शिक्षाकर्मी, प्रॉपर्टी डीलर, सुरक्षाकर्मी, कुशल मज़दूर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.
झुग्गी-झोपड़ियों के इन नेताओं के काम-धंधे का स्वरूप उन झुग्गी-झोपड़ियों के आम निवासियों से किस रूप में भिन्न है? नमूना-अध्ययन के अंतर्गत आने वाले 45 प्रतिशत निवासी या तो अकुशल मज़दूर हैं या परिवहन के काम-धंधों में लगे हैं या फिर व्यावसायिक कामों में लगे हुए हैं. झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं में जो लोग इन काम-धंधों में लगे हैं, उनकी तुलना में इन निवासियों का प्रतिशत लगभग दुगुना है. दूसरा काम-धंधा जो सबसे अधिक आम है, वह है घरों के निर्माण में लगे मज़दूरों का. इनमें भी नमूना-अध्ययन के अंतर्गत आने वाले निवासियों में महिलाओं की संख्या काफ़ी अधिक है. नमूना-अध्ययन के अंतर्गत आने वाले निवासियों में 11 प्रतिशत लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के उपर्युक्त छोटे-मोटे कारोबारों में संलग्न हैं. इनमें से 5 प्रतिशत वे छात्र भी हैं जो सुरक्षाकर्मियों, शिक्षाकर्मियों, कारीगरों और पेशेवर कामों में लगे तीन प्रतिशत शेष निवासियों के अंतर्गत आते हैं. इसलिए भारत की झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं में से अधिकांश लोग आम निवासियों की तुलना में छोटे कारोबारी, सरकारी कर्मचारी और पेशेवर लोग हैं और बहुत कम नेता ऐसे हैं, जो भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के अकुशल मज़दूर हैं. इन परिणामों से स्पष्ट है कि ये निवासी किस प्रकार के नेताओं को पसंद करते हैं.
यह उल्लेखनीय है कि भारत की झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं में भारी विविधता है. नमूना-अध्ययन के अंतर्गत आने वाली झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं में 160 जातियाँ हैं, जिनमें हिंदुओं में प्रचलित जातियों के पदानुक्रम के अनुसार अधिकांश जातियाँ आ जाती हैं और इनमें अधिकांश संख्या अनुसूचित जनजाति के लोगों और मुस्लिम जाटों की है. इनमें 70.75 प्रतिशत हिंदू थे और शेष 26.87 प्रतिशत अधिकांशतः मुस्लिम थे. इनमें से कुछ प्रतिशत सिक्खों, ईसाइयों और बौद्धों (2,39 प्रतिशत) का भी था. इनमें से ज़्यादातर लोग अध्ययन के अंतर्गत आने वाले दो राज्यों राजस्थान (58,19 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (26,71 प्रतिशत) के थे. अन्य लोग बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के थे
हमारे नमूना-अध्ययन के अंतर्गत आने वाले झुग्गी-झोपड़ियों के अधिकांश नेता किसी न किसी पार्टी से स्पष्टतः जुड़े हुए थे. नमूना अध्ययन के अंतर्गत आने वाले नेताओं में से 554 (86.49 प्रतिशत) नेताओं का किसी न किसी राजनैतिक पार्टी से संबंध रहा है. इनमें से 215 ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को और 321 ने भाजपा को समर्थन दिया. 415 (76.29 प्रतिशत) नेता इन पार्टियों के संगठन में पदाधिकारी भी रहे. सार्वजनिक सेवाओं में उच्च से उच्चतर पदों पर अपनी जगह बनाने के लिए और दलाली की गतिविधियों में संलग्न रहने के कारण किसी न किसी शक्ल में वास्तविक इनाम पाने के लिए झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं में किसी पक्ष विशेष के प्रति झुकाव रहने पर हैरानी नहीं होनी चाहिए.
क्या झुग्गी-झोपड़ियों के नेता गठबंधन करते हैं (और नहीं करते हैं)
सर्वेक्षण के हमारे आँकड़े भारतीय राजनीति में प्रचलित अनेक परंपरागत धारणाओं को चुनौती देते हैं. सबसे पहले तो हम यह समझ लें कि जहाँ चुनाव के दौरान नेता लोग खुलकर उपहार और नकदी बाँटने की बात मानते हैं, वहीं बहुत कम लोगों को लगता है कि इससे कोई लाभ भी होता है. वस्तुतः इन नेताओं को लगता है कि केवल 10 प्रतिशत निवासी ही इन उपहारों से प्रभावित होकर मतदान करते हैं. इसके बजाय इन नेता लोगों का विश्वास है कि रोज़मर्रे के जीवन में चुनाव के दौरान जो सद्भावना वे अर्जित करते हैं, वही उनकी कामयाबी में सहायक होती है. दूसरी बात यह है कि ये नेता लोग भी केवल अपनी जाति के सदस्यों के पक्ष में नहीं रहते हैं. हमारी झुग्गी-झोपड़ियों के अधिकांश निवासी अलग-अलग जातियों, विविध धर्मों, राज्यों और भाषिक समुदायों से आते हैं. बस्तियों की विविधता के कारण नेताओं के लिए ज़रूरी है कि वे सभी का समर्थन पाने के लिए बहु-जातीय गठबंधन का निर्माण करें. हमने इन नेताओं से पूछा कि वे पिछले पाँच निवासियों के जातीय समूहों के बारे में बताएँ जिन्होंने उनसे मदद माँगी हो. 77 प्रतिशत नेताओं ने अनेक जातियों के निवासियों के नाम बताए. भारत की विविध प्रकार की झुग्गी-झोपड़ियों में किसी भी नेता के लिए केवल अपने जातीय समुदाय के आधार पर क्लाएंट नेटवर्क बनाना राजनैतिक दृष्टि से कतई प्रभावी रणनीति नहीं हो सकता.
तीसरी बात यह है कि हमारा सर्वेक्षण यह दर्शाता है कि झुग्गी-झोपड़ियों के नेताओं को यहाँ के निवासियों के साथ अपना प्रेम भाव बनाये रखने के लिए निरंतर काम करना होगा. भारत के झुग्गी-झोपड़ियों के निवासी अपनी बस्ती के किसी एक नेता या पार्टी बॉस के अधीन नहीं होते. वे लगातार झुग्गी-झोपड़ियों के प्रतिस्पर्धी वातावरण में अपने नेताओं के विकल्पों की जाँच-परख करते रहते हैं. अन्य सम्माननीय मतदाताओं की तरह झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों को भी अगर लगता है कि कोई और नेता या पार्टी उनकी बस्ती के लिए अधिक फ़ायदेमंद है तो वे भी अपनी पसंद अक्सर बदल डालते हैं. 95 प्रतिशत (2,199 में से 2,078) निवासियों ने बताया कि वे चुनाव में मतदान करते हैं. 2,078 में से एक तिहाई निवासियों ने बताया कि उन्होंने पिछले कई चुनावों में अलग-अलग पार्टियों को वोट दिया है. अंततः ऐसी जगहों पर भारत में पार्टी और मतदाताओं के परस्पर संपर्क से जुड़ी आम धारणा बदल जाती है और मतदान का रवैय्या भी तदनुसार बदल जाता है. उदाहरण के लिए, झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों से संबंधित हमारे सर्वेक्षण में 112 (21 प्रतिशत) मुस्लिम निवासियों ने भारत की हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा का समर्थन किया. और हमारे नमूना सर्वेक्षण के अनुसार झुग्गी-झोपड़ियों के 169 मुस्लिम नेताओं में से 27 प्रतिशत (46 निवासियों) ने भाजपा का समर्थन किया था. इनमें से 34 मुस्लिम समर्थकों को पार्टी के अंदर औपचारिक पद भी मिले. यह भी याद रखना होगा कि चूँकि हमारे आँकड़े केवल दो शहरों तक ही सीमित हैं, इसलिए हम किसी राष्ट्रव्यापी पैटर्न का दावा नहीं कर सकते. फिर भी हमें लगता है कि इस सर्वेक्षण से, जो भले ही कितना ही अधूरा क्यों न रहा हो, भारत की झुग्गी-झोपड़ियों के ईको-सिस्टम से बहुत महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलकर सामने आते हैं.
झुग्गी-झोपड़ियों में अनौपचारिक प्राधिकरण और समुदाय द्वारा संचालित विकास
समुदाय द्वारा संचालित विकास को समझने के लिए भारत में झुग्गी-झोपड़ियों से निकलने वाले नेताओं के उद्भव, आविर्भाव और गतिविधियों को समझना बेहद ज़रूरी है. स्थानीय लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहन और बढ़ावा देने की प्रक्रिया समकालीन अंतर्राष्ट्रीय विकास संबंधी नीतियों (मंसूरी और राव 2015 को देखें) की केंद्रीय धुरी बन गई है. इन प्रवृत्तियों के देखते हुए 2000 के दशक के आरंभ से ही भारत के शहरी विकास कार्यक्रमों में स्थानीय नागरिकों की भागीदारी पर लगातार ज़ोर दिया जाने लगा है. उदाहरण के लिए, राजीव आवास योजना राज्यों और स्थानीय सरकारों के लिए एक मार्गदर्शिका-सी बन गई है, जिसके आधार पर यह तय किया जाता है कि झुग्गी-झोपड़ियों के सामुदायिक संगठन कैसे बनाए जाएँ और उन्हें कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ सौंपी जाएँ. हमारे फ़ील्डवर्क और सर्वेक्षण के शोध से पता चलता है कि इन झुग्गी-झोपड़ियों में नेता नीचे से ऊपर आते हुए अनौपचारिक नेतृत्व और राजनैतिक संगठन में कैसे आगे बढ़ते हैं. ये वो कार्यकर्ता और नेटवर्क हैं जिनसे ज़मीन पर काम करने वाले विकासकर्ताओं का पाला पड़ता है. इसलिए आवश्यक है कि सामुदायिक विकास संबंधी कार्यक्रमों के निर्माण और कार्यान्वयन, दोनों के लिए ही सावधानी से इन पर विचार किया जाना चाहिए.
ऐडम ऑएरबैक अमेरिकन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इंटरनैशनल सर्विस में सहायक प्रोफ़ेसर हैं.
तारिक़ थैचिल वैंडरबिल्ट विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के सह प्रोफ़ेसर हैं.
हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919