मानव-रहित हवाई वाहनों की मदद से कुछ ऐसे रोबोट उड़ाये जा रहे हैं जिनसे मानव-सहित उड़ानों के कुछ लाभ तो मिलते हैं लेकिन, इनमें न तो कोई जोखिम उठाना पड़ता है और न ही किसी प्रकार की परेशानी नहीं झेलनी पड़ती है. ड्रोन नाम से प्रचलित ये रोबोट पिछले दो दशकों से इलैक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग और कंप्यूटर विज्ञान में हुई प्रगति के कारण काफ़ी चर्चा में आ गए हैं. सन् 1973 में योम कुप्पूर में और सन् 1982 में लेबनान के युद्ध में जब से इनकी क्षमता प्रमाणित हुई है, कई सैन्यबलों ने इनकी मदद से निगरानी का काम शुरू कर दिया है और ड्रोन का उपयोग हथियार के रूप में भी किया जाने लगा है. आज भारत के पास इज़राइल के बने लगभग 200 ड्रोन उसकी सेवा में हैं. साथ ही सैन्य उपयोग के लिए देसी ड्रोन बनाने की प्रक्रिया भी जारी है, लेकिन इस समय नागरिक उपयोग के लिए ड्रोन उड़ाने पर पाबंदी लगी हुई है.
ड्रोन का उपयोग केवल सैन्य उपयोग के लिए ही नहीं होता, सारी दुनिया में उनका उपयोग युद्धेतर कार्यों के लिए भी किया जा रहा है. इनका उपयोग संकट काल के दौरान केवल सहायता एजेंसियों तक ही सीमित नहीं है, किसान इसका उपयोग अपने खेतों के लिए करते हैं, पत्रकारों को इससे एक नया परिदृश्य मिलता है, वन्य संरक्षण वाले इसकी मदद से वन्यजीवन की तेज़ी से निगरानी करते हैं और अवैध शिकार करने वाले शिकारियों से जंगल की रक्षा करते हैं और सामान्य मनोरंजन के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है. इसके अलावा , ड्रोन उड़ाने का अपना ही मज़ा है.
इस तरह ड्रोन का व्यावसायिक उपयोग भी है. मानव-सहित उड़ान की तुलना में यह सस्ता विकल्प है. इसका प्रयोग उन अनुप्रयोगों के लिए भी होने लगा है, जिनका प्रयोग अब तक असंभव माना जाता था. दुर्भाग्यवश, जो भी नई प्रौद्योगिकियाँ आती हैं, उनके साथ जोखिम भी रहता है और ड्रोन भी इसके अपवाद नहीं हैं. दूसरी उड़ने वाली वस्तुओं की तरह ड्रोन भी कभी-कभी टक्कर के शिकार हो जाते हैं. ऐसे हादसे तभी ज़्यादा होते हैं जब ड्रोन का आकार बड़ा होता है और वे वजन में भारी होते हैं, क्योंकि इससे संपत्ति का नुक्सान हो सकता है और लोगों को चोट भी लग सकती है. ड्रोन उन हवाई मार्गों पर उड़ते हैं, जिनका उपयोग मानव-सहित विमानों द्वारा किया जाता है. इसलिए आकाश में उनकी टक्कर हो सकती है या टक्कर की आशंका हो सकती है. ऐसी स्थिति में इनसे बड़े हादसे भी हो सकते हैं. भले ही ड्रोन ऑपरेटर कितना भी कुशल क्यों न हो, अनायास भूलवश हादसे हो ही जाते हैं. लेकिन डर इस बात का भी है कि कुछ लोग ड्रोन का उपयोग जान-बूझ कर लोगों को नुक्सान पहुँचाने के लिए ही करते हैं.
यही कारण है कि कुछ देशों में इऩसे संबंधित नियामक निकायों ने ड्रोन के सार्वजनिक उपयोग पर तब तक पाबंदी लगा दी है जब तक कि इन समस्याओं का हल ढूँढ नहीं लिया जाता. भारत में महा निदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) ने 7 अक्तूबर, 2014 को नागरिकों द्वारा इसके उपयोग पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी थी, लेकिन अन्य देशों के नागरिक प्राधिकरणों ने पूरी तरह से पाबंदी नहीं लगाई है. अमेरिका की फ़ैडरल एवियेशन एजेंसी (FAA) ने एक चेतावनी के साथ ड्रोन के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति दी है कि इसके व्यावसायिक उपयोग के लिए लाइसेंस लेना ज़रूरी होगा. जहाँ एक ओर विभिन्न देशों के योरोपीय संघ (EU) ने इस समय ड्रोन के उड़ान के लिए अनेक विनिमय लागू कर दिये हैं, वहीं योरोपीय उड्डयन संरक्षा एजेंसी चाहती है कि इस संबंध में सभी के लिए समान विनिमय बनाये जाएँ ताकि सन् 2016 से सारे योरोपीय संघ (EU) में ड्रोन का व्यावसायिक ऑपरेशन शुरू किया जा सके.
इन देशों के विनियामक प्राधिकरणों ने समझ लिया है कि ड्रोन अब यहीं रहेगा और इसका उपयोग अर्थव्यवस्था के लिए बहुत लाभकारी हो सकता है. मानव-रहित वाहन प्रणाली अंतर्राष्ट्रीय संघ (AUVSI) एक अलाभकारी व्यापार संगठन है, जो मानव-रहित प्रणाली समुदाय को बढ़ावा देने और मानव-रहित प्रणालियों को प्रोत्साहित करने का काम करता है. इस संघ की रिपोर्ट में कहा गया है कि सन् 2025 तक अकेले अमरीका में ही व्यावसायिक ड्रोन उद्योग में 100,000 से अधिक रोज़गार के अवसर पैदा हो जाएँगे. इसका आर्थिक प्रभाव $82 बिलियन डॉलर तक होगा. ड्रोन से निर्यात बाज़ार बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है. उदाहरण के लिए जापान में अस्सी के दशक से ही ड्रोन के व्यावसायिक उपयोग के लिए लाइसेंस दिये जाने लगे थे और तब से ही यमाहा कॉर्पोरेशन खेती-बाड़ी के लिए हवाई छिड़काव हेतु ड्रोन का उत्पादन करता रहा है और अब उसका निर्यात अमरीका, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया में किया जा रहा है और इससे सन् 2013-14 के दौरान यमाहा को $41 बिलियन डॉलर का राजस्व प्राप्त हुआ था. सन् 2015 के लिए वैश्विक बाज़ार के वर्तमान अग्रणी नेताओं द्वारा प्रत्याशित बिक्री की तुलना में यह राशि बहुत कम है. शेंजेन, चीन की SZ DJI टैक्नोलॉजी कं. लिमिटेड की स्थापना सन् 2006 में की गई थी, लेकिन आज वैश्विक व्यावसायिक ड्रोन मार्केट के 70 प्रतिशत भाग पर उसका ही नियंत्रण है और उपभोक्ता ड्रोन मार्केट में उसका प्रतिशत भी कहीं अधिक है और उसका अनुमानित राजस्व $1 बिलियन डॉलर तक है.
इन देशों और कंपनियों ने ड्रोन प्रौद्योगिकी के अंतर्निहित खतरों को प्रौद्योगिकी और नीति-आधारित समाधानों को देखकर भाँप लिया था और तदनुसार उनका समाधान भी खोज लिया था. अमरीका की कंपनी FAA और यू.के. की नागरिक उड्डयन एजेंसी (CAA) ने हवाई अड्डे या अन्य अधिसूचित स्थानों के पाँच किलोमीटर के घेरे में ड्रोन उड़ाने पर पाबंदी लगा रखी है और DJI व यमहा जैसे ड्रोन निर्माता ड्रोन के कंट्रोल सॉफ़्टवेयर में ही इन नियमों को समाहित करके इनका अनुपालन सुनिश्चित कर सकते हैं. व्यवहार में तो इन प्रतिबंधित क्षेत्रों में ड्रोन का ऑपरेशन नहीं किया जा सकेगा. इन क्षेत्रों के बाहर ड्रोन के दुरुपयोग को दंडनीय अपराध माना जाएगा. अमरीका में हाल ही में दो व्यक्तियों को ड्रोन से संबंधित अलग-अलग मामलों में गिरफ़्तार किया गया था. एक मामले में तो ऑपरेटर का ड्रोन एक टैनिस मैच के दौरान स्टेडियम की सीटों की एक पंक्ति से टकरा गया था और दूसरे मामले में ऑपरेटर अपना ड्रोन एक पुलिस हैलिकॉप्टर के पास उड़ा रहा था.
अक्तूबर, 2014 में भारत के महा निदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) द्वारा जारी की गई अधिसूचना के अनुसार, संरक्षा और सुरक्षा से जुड़े होने के कारण और अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) द्वारा ड्रोन के लिए अभी तक अपने मानक और अनुशंसित परिपाटी (SARPs) जारी न किये जाने के कारण अगली सूचना जारी होने तक भारत में नागरिक ड्रोन पर पाबंदी जारी रहेगी. एक साल बीत जाने के बाद भी महा निदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) ने अभी तक कोई विनियम जारी नहीं किये हैं. उम्मीद है कि ICAO द्वारा सन् 2018 तक उसकी मानक और अनुशंसित परिपाटियाँ (SARPs) जारी कर दी जाएँगी, लेकिन इसकी समग्र प्रक्रिया सन् 2025 और उससे आगे तक चलने की संभावना है. 2025 में अभी बहुत समय बाकी है. अगर महा निदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) तब तक ड्रोन के नागरिक उपयोग की अनुमति नहीं देता तो भारत की अर्थव्यवस्था को होने वाला नुक्सान और राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा बहुत बढ़ सकता है. महा निदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) की पाबंदी के बावजूद आज भी भारत में छोटे-छोटे ड्रोन आयात, निर्मित या उड़ाये जा सकते हैं. इसका अर्थ यह है कि भारत में ड्रोन के उपयोक्ता आज भी गैर-कानूनी और अनियमित अर्थव्यवस्था से जुड़े हैं और यह ड्रोन के विनियमित उपयोग की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक है. दोनों ही स्थितियों में ड्रोन तो उड़ रहे हैं, लेकिन अगर उनकी उड़ान विनियमित होती है तो उड़ान भरने वाले व्यक्ति और निगम केवल वही ऑपरेशन कर सकेंगे जो सरकार द्वारा अनुमोदित होंगे और सरकार को इसकी जानकारी होगी.
अंततः भारत में ड्रोन की सुरक्षित उड़ान के लिए यह समझना आवश्यक होगा कि भारत के विशिष्ट भूभाग पर इनका सबसे अच्छी तरह इस्तेमाल कैसे किया जाए और इसके लिए किस प्रकार का अनुसंधान और विकास आवश्यक होगा और निश्चय ही इस प्रकार का अनुसंधान और विकास बाज़ारोन्मुख परिवेश में ही सबसे अच्छी तरह हो पाएगा और यह तब संभव नहीं होगा जब तक कि ड्रोन के नागरिक उपयोग की अनुमति नहीं होगी. जब तक इसका मूल कारोबारी मॉडल ही गैर-कानूनी रहेगा, तब तक लाभ कमाने वाली कंपनियों के निर्माण का काम बहुत जटिल होगा.
दूसरे देशों के नागरिक उड्डयन विनियामकों की तरह महा निदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) को भी ड्रोन के नागरिक उपयोग को अनुमति देने के लिए आगे बढ़कर अपनी भूमिका का निर्वाह करना होगा, फिर भले ही उसका उपयोग व्यावसायिक हो या अन्यथा कोई और हो. इस दिशा में महा निदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) के अंतर्गत एकल-खिड़की लाइसेंसिंग योजना की शुरुआत पहला महत्वपूर्ण सोपान सिद्ध हो सकता है, जहाँ ड्रोन के उपयोगकर्ताओं को विशेष परिस्थितियों में ही रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय से विशेष अनुमति प्राप्त करने के लिए आवेदन करना होगा. ड्रोन गो/नो-गो स्पैटियल डेटाबेस की सहायता से ही महा निदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) इनके उपयोगकर्ताओं के बीच अंतर करेंगे और इसे उनके निर्माताओं द्वारा ड्रोन सिस्टम में अनिवार्यतः कोडित भी किया जा सकेगा. महा निदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) को आकार और वजन के आधार पर भी ड्रोन में अंतर करना चाहिए. अगर ड्रोन का आकार छोटा और वजन कम होता है तो उसमें जोखिम की आशंका भी कम ही होती है. ड्रोन का विनियमन करते समय ही इसकी पहचान कर ली जानी चाहिए.
भले ही हमें मछुआरों के लिए भारत के समुद्रतट पर मछलियों का पता लगाना हो या पूरे भारत के संरक्षित क्षेत्रों में गैर-कानूनी ढंग से शिकार करने वाले शिकारियों पर निगरानी रखनी हो या बेहतर मदद के लिए असम और बंगाल में बसने वाले शरणार्थियों की बस्तियों का मानचित्रण करना हो या फिर राष्ट्रीय राजमार्गों की गुणवत्ता का मूल्यांकन करना हो तो ड्रोन को ठीक उसी तरीके से व्यवस्थित किया जा सकता है जैसे कि भारत में इन कामों को अंजाम दिया जाता है. इसलिए भारत में ड्रोन के नागरिक उपयोग पर पूरी पाबंदी लगाने से समस्या का समाधान होने के बजाय इसके विकास में बाधा ही पड़ेगी. ड्रोन अब यहाँ गये हैं और यहीं रहने वाले हैं, इसलिए जितनी जल्दी भारत के नागरिकों को उसके उपयोग की अनुमति मिल जाएगी, उतनी ही जल्दी हम उनका उपयोग शुरू कर पाएँगे.
शशांक श्रीनिवासन भारत में स्पैटियल एनैलिस्ट और कार्टोग्राफ़र के रूप में काम करते हैं. उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से कंज़र्वेशन लीडरशिप प्रोग्राम में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है.
हिंदीअनुवादःविजयकुमारमल्होत्रा, पूर्वनिदेशक(राजभाषा), रेलमंत्रालय, भारतसरकार<malhotravk@gmail.com> / मोबाइल: 91+9910029919