अपने दूसरे कार्यकाल के आरंभ में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा सुधारों के लिए एक महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण की शुरुआत की है. चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) का पद सृजित करके सरकार मौजूदा दौर में भारतीय सेना में स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा परिवर्तन कर रही है. इसके पहले पदाधिकारी दिवंगत जनरल बिपिन रावत थे. इस पहल के इर्दगिर्द ही सशस्त्र सेनाओं के एकीकरण पर बहस केंद्रित है. एकीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से सेना, वायुसेना और नौसेना एकल सेवा के अपने मौजूदा दृष्टिकोण को छोड़कर एक संयुक्त दृष्टिकोण को अपना रही है. एकीकरण की यह प्रक्रिया अमरीका और चीन ने अपने विशाल सेनाओं के लिए पहले ही अपना ली है. निश्चय ही यह प्रक्रिया जटिल है और यही कारण है कि इसके सामने कुछ चुनौतियाँ भी हैं. शायद सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि भारत में सेनाओं की एकल इकाई को संयुक्त इकाई में कैसे संक्रमित किया जाए.
चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) के रूप में संयुक्त इकाई के निर्माण से संबंधित मोदी के निर्णय से अनेक महत्वपूर्ण बदलाव आ गए हैं और भारत की सेना के अंदर ही बहस छिड़ गई है. इसके परिणामस्वरूप इस बहस का पहला मुद्दा तो यही है कि चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) की वास्तविक भूमिका क्या होगी. दिसंबर,2019 में जारी अपनी टिप्पणी में सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) की अपनी कोई सैन्य भूमिका नहीं होगी “ताकि वह राजनैतिक नेतृत्व को निष्पक्ष सलाह दे सके”. इसका निहितार्थ यही है कि चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) किसी कमांड श्रृंखला का हिस्सा नहीं होगा. किसी भी सैन्य पदानुक्रम में यह श्रृंखला सेना में बटालियन और वायुसेना या नौसेना के जहाज में स्क्वैड्रन लीडर से शुरू होकर संगठन के शीर्ष तक पहुँचती है. भारत में इसकी परिणति तीनों सेनाओं के प्रमुख के रूप में होती है. परंतु इसकी परिकल्पना और घोषणा के अनुसार एकीकृत मुख्यालय (जिसमें तीनों सेवाओं के प्रतिनिधि होते हैं) के निर्माण से कोई भी प्रमुख उन पर कमान करने की स्थिति में नहीं होगा. चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS), जो सभी तीनों सेवाओं का प्रतिनिधित्व करता है, किसी भी सेवा की सैन्य कमान नहीं सँभालेगा. ऐसी संगठनात्मक व्यवस्था के अंतर्गत सैन्य कमांडर राजनैतिक निर्णय लेने वाले नेताओं के साथ कैसे संवाद कर पाएँगे?
भारत की सैन्य व्यवस्था में एकीकृत सैन्य संगठन की शुरुआत अपेक्षाकृत देरी से हुई है. तीनों सेवाओं की कमान एक ही व्यक्ति को सौंपने के संबंध में और इस मामले में, चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) के संदर्भ में कई भ्रांतियाँ रही हैं. इसके पक्ष में बार-बार सिफ़ारिशें आने के बावजूद कई आपत्तियों के कारण दशकों से इस पद पर कोई नियुक्ति नहीं हो पाई. सरकार ने चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) की नियुक्ति करके इन तमाम आपत्तियों को खारिज कर दिया है. लेकिन अभी-भी चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) की ऑपरेशनल भूमिका स्पष्ट नहीं है. इस संबंध में सरकार के सामने इसे स्पष्ट करने के लिए दो प्रमुख विकल्प हैं.
पहला विकल्प तो यही है कि कमान की श्रृंखला की कड़ी बनने के बजाय चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) की भूमिका सलाहकार की रहे. इस मामले में, जो भी सर्वोच्च संयुक्त ढाँचा बनाया जाता है (प्रस्तावित संयुक्त थिएटर कमान) वह सीधे रक्षा मंत्री को ही रिपोर्ट करेगा. कुछ इसी ढंग से अमरीका में राजनैतिक नेतृत्व और सेना के बीच संवाद होता है. यहाँ जॉइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ कमेटी के अध्यक्ष (CDS के समकक्ष) की भूमिका मात्र समन्वय और परामर्श देने की ही रहती है.
दूसरा विकल्प चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) और सेवा प्रमुखों की टीम को कमान की श्रृंखला के अंदर लाना है ताकि चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) के नेतृत्व में सामूहिक कमान बॉडी के प्रमुख के रूप में उनकी भूमिका का निर्वाह हो सके. भारत के संदर्भ में यह ग्रुप स्टाफ़ कमेटी का प्रमुख (COSC) कहलाता है और फिर यह ग्रुप असैन्य नेतृत्व और अधीनस्थ सैन्य कमांडरों के बीच मध्यस्थता करता है. इससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) के पास एक स्पष्ट जनादेश है और वह इसके निष्पादन के लिए उत्तरदायी है. हालाँकि, ऐसा करना दिसंबर 2019 में सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश (जिसमें सुधार की आवश्यकता है) के विपरीत हो जाएगा.
चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) के नेतृत्व में स्टाफ़ कमेटी का प्रमुख (COSC) अधिक सशक्त होगा और यह कम से कम भारत के निकट भविष्य के लिए दो कारणों से अधिक अनुकूल भी होगा. सबसे पहले, एकीकरण की इस मौजूदा प्रक्रिया की परिणति इस पद पर काम शुरू करने से पहले ही मतभेदों के दौर के रूप में हो सकती है. इसके लिए आवश्यक है कि इस पर एक पेशेवर संस्था द्वारा कहीं अधिक निगरानी रखी जाए, जैसा कि पहले किया जाता रहा है. अंततः जब एक बार नव निर्मित एकीकृत ढाँचे मज़बूत हो जाएँगे, तो उन्हें चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) और स्टाफ़ कमेटी के प्रमुख (COSC) के रूप में समन्वय और सलाहकार का काम देने पर विचार कर किया जा सकता है. दूसरी बात यह है कि इस तरह एक-एक कदम चलने से संक्रमण की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है, खास तौर पर ऐसे दौर में जब भारत पाकिस्तान और चीन के साथ अनसुलझी सीमाओं पर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है.
यदि चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) के नेतृत्व में स्टाफ़ कमेटी का प्रमुख (COSC) कमान की जिम्मेदारियाँ लेता है, तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि अगले कुछ वर्षों में इन सेवाओं का वैशिष्ट्य बनाये रखा जाए और पूरे उत्साह से उसे संरक्षित रखा जाए है. तभी इसे बेहतर ढंग से एकीकृत किया जा सकेगा. इसका संचालन सैनिक के बुनियादी स्तर से लेकर ऑपरेशनल क्षेत्र तक विभिन्न स्तरों पर होता है. सेवाओं के बीच यह अंतर सैनिकों, नाविकों और एयरमैन की भर्ती के शैक्षणिक स्तर के साथ शुरू होता है. जहाँ एक ओर सेना में सैनिकों की भर्ती कक्षा 10 की परीक्षा पास करने पर शुरू होती है, वहीं नाविकों और एयरमैनों की भर्ती के लिए प्रत्याशियों को गणित और भौतिकी विषयों के साथ 12 वीं कक्षा पास करना आवश्यक होता है. ये अंतर सेवाओं के अंदर भी बने रहते हैं. उदाहरण के लिए जलयानों पर आदेश अंग्रेज़ी में ही दिये जाते हैं और विभिन्न प्रकार की कार्रवाइयों के लिए पारिभाषिक शब्दावली भी अंग्रेज़ी में ही होती है. दूसरी ओर भाषागत विविधताओं के बावजूद सैनिकों से संवाद के लिए आम तौर पर हिंदी का अधिक प्रयोग किया जाता है.
इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों में, प्रत्येक सेवा ने अपनी परिस्थितियों के अनुरूप अपने मानव संसाधन पैरामीटर बनाए लिये हैं. वायुसेना के लड़ाकू पायलट 54 वर्ष में और नौसेना अधिकारी 56 वर्ष में सेवानिवृत्त हो जाते हैं और उसके बाद उन्हें चार साल के लिए पुनर्नियोजित करने का भी प्रावधान है. नौसेना अधिकारी जिनकी पदोन्नति कैप्टन ( सेना में कर्नल के समकक्ष) के रैंक में हो जाती है, स्वतः ही कोमोडोर ( सेना में ब्रिगडियर के समकक्ष) के रूप में पदोन्नति के लिए पात्र हो जाते हैं. हालाँकि वायुसेना और सेना में इसका पालन नहीं होता. सेवाओं की वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों के अलग-अलग फ़ॉर्मेट होते हैं और ग्रेडिंग पैरामीटरों का भी अलग-अलग ढंग से पालन किया जाता है. एक सेवा में जिसे उत्कृष्ट माना जाता है, दूसरी सेवा में वह अधिक्रमण का कारण बन सकता है, इससे रेटिंग भी खराब हो सकती है.
हालाँकि निरंतर प्रयास से इस तरह के पहलुओं की अनदेखी की जा सकती है,लेकिन इन सभी सेवाओं की अपनी- अपनी विशिष्ट संस्कृति भी होती है. इन सेवाओं की विशिष्टता का यह भी एक कारण होता है. इन बातों को तो समझा जा सकता है और विशेष प्रकार के उत्तरदायित्वों के निर्वाह के लिए इनकी आवश्यकता भी होती है, लेकिन सैन्य कार्रवाई के समय जब सांस्कृतिक भिन्नताएँ सामने आती हैं तो ये बातें उजागर हो भी सकती हैं. एक सैनिक जो आतंकवाद विरोधी दस्ते में काम करता है, वह उस व्यक्ति से बहुत अलग तरीके से सोचता है और कार्य करता है, जिसने शांतिकाल के दौरान नियम पुस्तिका का पालन किया होता है, जहाँ सभी कुछ साफ़ तौर पर वर्णित होता है. समय के साथ-साथ यह अधिकारियों के चरित्र का अंग बन जाता है और तीनों सेवाओं के अधिकारियों का नज़रिया ऑपरेशनल ढंग से देखने और शांतिकाल की नियमित स्थितियों को बिल्कुल अलग तरीके से देखने का नज़रिया बन जाता है. इसका मतलब यह नहीं है कि संरचनात्मक एकीकरण से मुख्यतः दिलों और दिमाग का मिलन हो ही नहीं सकता. इसके विपरीत, इन चुनौतियों से पता चलता है कि निर्णय लेने वाले अधिकारियों और खास तौर पर सेवाओं को इन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए ताकि ज़रूरत पड़ने पर वे आवश्यक सुधार लागू कर सकें.
चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) के पद के सृजन से भारत ने सैन्यबलों और रक्षा प्रतिष्ठानों के एकीकरण की बहुत लंबे समय से विलंबित प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है. इस पहल की कामयाबी बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) के जनादेश को स्पष्ट किया जाए, सेना के सेवा-विशिष्ट दृष्टिकोणों को अलग रखा जाए और अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों के निर्वाह के लिए एकल रवैया ही अपनाया जाए. राजनेताओं को चाहिए कि वे चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (CDS) की नियुक्ति और उससे संबंधित सुधारों को सेना के कायाकल्प की दिशा में पहला कदम समझें, अंतिम नहीं. यह कदाचित् समग्र रूप में इस प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है.
कर्नल विवेक चड्ढा (सेवानिवृत्त) मनोहर परिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान में रिसर्च फ़ैलो है और CDS and Beyond: Integration of the Indian Armed Forces (नॉलेज वर्ड पब्लिशर्स, नई दिल्ली,2021) नामक पुस्तक के लेखक हैं.
Hindi translation: Dr. Vijay K Malhotra, Former Director (Hindi), Ministry of Railways, Govt. of India <malhotravk@gmail.com> Mobile : 91+991002991/WhatsApp:+91 83680 68365