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अफ्रीका पर केंद्रितः भारत की गतिविधियों का उभरता केंद्र उप-सहारा अफ्रीका

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11/08/2014
अर्न्ट मिचाएल

पिछले कुछ वर्षों में जिस परिमाण में उप-सहारा अफ्रीका के साथ भारत के व्यापार में भारी वृद्धि हुई है वह अपने-आप में ही इस बात का प्रमाण है कि उप-सहारा अफ्रीका भारत की नई धुरी है; भारत और उप-सहारा अफ्रीका के बीच सन् 2012 में व्यापार $60 बिलियन डॉलर का हो गया. उसी वर्ष अन्य देशों (योरोपीय संघ ($567.2 बिलियन डॉलर), अमरीका ($446.7 बिलियन डॉलर) और चीन ($220 बिलियन डॉलर) के साथ व्यापार में उल्लेखनीय कमी हुई. तथापि, भारत की व्यापारिक गतिविधियों से यह संकेत मिलता है कि भारत का नया केंद्रबिंदु वह क्षेत्र है, जहाँ उसने आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में विशेषकर संपूर्ण अफ्रीकी महाद्वीप में विशेष कार्यक्रम चलाये हैं.

आर्थिक दृष्टि से भारत की गतिविधियों के तीन स्तंभ हैं, पहला है, निवेश कार्यक्रमः अफ्रीकी कार्यक्रम को धुरी बनाकर द्विपक्षीय व्यापार और निवेश के क्षेत्रों को चिह्नित किया जाता है और इससे द्विपक्षीय व्यापार को प्रोत्साहन भी मिलता है और पाँच वर्ष की प्रत्येक अवधि के लिए $550 बिलियन डॉलर का निवेश का लक्ष्य रखा गया है. इसके माध्यम से चौबीस अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार करने वाली भारतीय कंपनियों को निर्यात में सबसिडी मिलती है और अफ्रीकी सरकारों और क्षेत्रीय संगठनों को लाइन ऑफ़ क्रैडिट मिलता है. साथ ही, अफ्रीका- भारत आंदोलन की पहल (टीम-9 पहल) के तकनीकी आर्थिक दृष्टिकोण के केंद्रबिंदु वे नौ पश्चिमी अफ्रीकी देश हैं, जिन्हें $550 बिलियन डॉलर की एलओसी मिली हुई है. इसके अलावा, भारत के निर्यात को अफ्रीका के चौंतीस कम से कम विकसित देशों (एलडीसी) से उनके बाज़ारों में तरजीही पहुँच मिलती है और भारत ने अफ्रीका को अपनी एलओसी $5.4 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने का वचन दिया है. इन सरकारी पहलों के अलावा निजी क्षेत्र की कंपनियाँ भी वहाँ पर भारी मात्रा में लाखों बिलियन डॉलर के वित्तीय निवेश कर रही हैं और अपनी परियोजनाएँ चला रही हैं. ये कंपनियाँ हैं, अपोलो टायर्स, आर्सलरमित्तल, भारती ऐंटरप्राइज़ेज़, ईस्सर ग्रुप, गोदरेज ग्रुप, रिलाएंस इंडस्ट्रीज़ या टाटा ग्रुप. अंतिम दो कंपनियाँ तो विविध क्षेत्रों में संलग्न हैं, जैसे तेल की खोज, खनन, प्राकृतिक संसाधन, बुनियादी ढाँचा विकास, निर्माण, ऊर्जा,  लॉजिस्टिक्स , सूचना व संचार प्रौद्योगिकी विकास, मोटर वाहन आउटपुट ऑपरेशन, रियल इस्टेट, शिक्षा या स्वास्थ्य- सेवाएँ.

दूसरा स्तंभ है, विकास में मदद, खास तौर पर भारतीय तकनीकी व आर्थिक सहकारिता (आईटीईसी) कार्यक्रम के रूप में. आईटीईसी का काम है, कृषि के क्षेत्र में क्षमता निर्माण, सिविल या सैन्य प्रशिक्षण या परामर्श सेवाएँ. कुल मिलाकर भारत ने अब तक उप-सहारा अफ्रीका को $1 बिलियन डॉलर की ऐसी सहायता प्रदान की है. इस प्रकार यह क्षेत्र आईटीईसी की सहायता प्राप्त करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र हो गया है. साथ ही भारत उप-सहारा अफ्रीका को विकास के लिए सबसे अधिक मदद करने वाला देश हो गया है जबकि ओईसीडी की विकास सहायता समिति (डीएसी) से इसका कोई संबंध नहीं है. इसलिए भारत के सहायता कार्यक्रम ओईसीडी के नियमों से बँधे नहीं होते और भारत के लिए यह भी महत्वपूर्ण नहीं है कि वह प्राप्तकर्ता देशों द्वारा बनाये गये नियमों के अनुरूप अपने विकास कार्यक्रमों को चलाने के लिए लोकतांत्रिक सरकारों से संपर्क करे या निरंकुश शासकों से.

तीसरे स्तंभ का संबंध हाइड्रोकार्बन या प्राकृतिक संसाधनों से है. कभी-कभी भारत की सरकारी और निजी कंपनियों ने तेल या गैस के फ़ील्ड के लिए और उनकी खोज के ठेकों के लिए चीनी सरकार द्वारा समर्थित कंपनियों के साथ कड़ी प्रतियोगिता का प्रयास भी किया है. सन् 2012 में भारत के कच्चे तेल का लगभग 20 प्रतिशत आयात अंगोला, नाइजीरिया, सूडान या दक्षिण अफ्रीका से होने लगा था.

कूटनीति के दायरे में भारत गुट-निरपेक्ष आंदोलन (नाम) के माध्यम से उप-सहारा के अनेक अफ्रीकी देशोंऔर जी-20 या जी-77 के साथ मिलकर काम कर रहा है. ब्रिक्स और आईबीएसए (भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका ) संवाद मंच के ढाँचे में नियमित रूप से उनके साथ मिलकर काम कर रहा है. इसके साथ ही भारत व्यापक सैन्य गतिविधियों मे भी संलग्न है ; भारत अफ्रीकी अधिकारियों को नियमित प्रशिक्षण देता है और सैन्य प्रशिक्षण संस्थाओँ के ढाँचे में उन्हें सलाह भी देता है. इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि भारत ने मोज़ाम्बिक, मेडागास्कर और सेशेल्स के साथ रक्षा समझौते भी किये हैं. भारत ने नौवहन की गतिविधियों की निगरानी के लिए रडार निगरानी स्टेशन के निर्माण के लिए मेडागास्कर में ज़मीन भी किराये पर ली है. भारतीय जलसेना हिंद महासागर रिम में समुद्री डाकुओं के हमलों से भारतीय जहाजों की रक्षा के लिए अधिकाधिक सक्रिय होती जा रही है.  आईबीएसए-एमएआर (भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका-समुद्री अभ्यास) दक्षिण- दक्षिण सहयोग के क्षेत्र में पहला बड़ा सैन्य सहयोग था. भारत के रक्षा क्षेत्र ने कई अफ्रीकी देशों को गश्ती जहाजों और हल्के हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति की है और साथ ही अफ्रीका में संयुक्त राष्ट्र के कई मिशनों के लिए सैनिक भी प्रदान किये हैं.

उप- सहारा अफ्रीका में भारत की गतिविधियों की अनूठी बात है,संपूर्ण अफ्रीका के स्तर पर उसकी बढ़ती भागीदारी. इंडियन चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के साथ मिलकर भारत के पैट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने सन् 2004 में पहले अखिल अफ्रीका- भारत- अफ्रीका हाइड्रोकार्बन सम्मेलन का आयोजन किया था. इसके अलावा, सभी अफ्रीकी क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों (आरईसी) के साथ प्रत्यक्ष व्यापार- से- व्यापार के अवसरों और संस्थागत सहयोग के लिए भारत-अफ्रीका भागीदारी कनक्लेव है.

 इसके अलावा, सन् 2008 और 2011 में अफ्रीका- भारत मंच की दो महत्वपूर्ण शिखर वार्ताएँ भी हो चुकी हैं. सर्वाधिक अखिल अफ्रीकी प्रभाव वाली परियोजना है, अखिल अफ्रीकी ई नेटवर्क, जो अफ्रीकी संघ (एयू) के साथ मिलकर $116 मिलियन डॉलर का संयुक्त उद्यम है. परियोजना का उद्देश्य अंततः टेली एजुकेशन, टेली मेडिसिन, या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए अफ्रीका व्यापक नेटवर्क का कार्यान्वयन है. इन विभिन्न अखिल अफ्रीकी दृष्टियों के परिणामस्वरूप ही, भारत मात्र द्विपक्षीय संबंधों की संकीर्ण सीमा से आगे निकल कर व्यापार और राजनीतिक सहयोग करने के लिए कई नए और लाभदायक चैनल खोल पाया है.

अंततः अच्छी-खासी तादाद में पूर्व अफ्रीका और दक्षिण अफ्रीका में बसे प्रवासी भारतीयों की भूमिका भारत और अफ्रीका के बीच एक आर्थिक और राजनीतिक ट्रांसमिशन बेल्ट के रूप में हो गई है. एक अनुमान के अनुसार भारत के बाहर रहने वाले भारतीय मूल (पीआईओ) के पच्चीस मिलियन लोगों में से छह मिलियन लोग उप-सहारा अफ्रीका में रहते हैं. भारतीय मूल के इन विविध और निर्वासित लोगों में दूसरी और तीसरी पीढ़ी के भारतीय, मज़दूर, और अमीर व्यापारी शामिल हैं और अपनी आर्थिक असमता के बावजूद धनप्रेषण, विकास, और व्यापारिक अवसरों की दृष्टि से ये मूल्यवान् संसाधन हैं.

इन सबमें से भारत की विदेश नीति के कुछ नए आयाम भी उभर कर सामने आये हैं, जैसे वाणिज्यिक और राजनीतिक कूटनीति का एकीकरण और चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक सक्रिय उद्यमी की  भूमिका निभाने के लिए भारत की इच्छा. दोनों ही देश खास तौर पर हाइड्रोकार्बन की खोज के अधिकार और भूमि अधिग्रहण के क्षेत्र में वास्तविक प्रतिस्पर्धा में लगे रहे हैं, लेकिन पैसे की राजनीति का सफलतापू्र्वक इस्तेमाल करने और राजनीतिक लाभ उठाने में चीनी कंपनियों के मुकाबले कुछ बिडिंग राउंड्स में भारत कुछ पीछे रह गया है. हालांकि पिछले वर्षों में, कई बिडिंग राउंड्स - अंगोला और नाइजीरिया - अब भारत के पाले में आ गए हैं. इसमें न केवल बड़ी रकम की पेशकश की गई, बल्कि एक ही साथ बुनियादी ढांचे में भारी निवेश और विशेष रूप से अफ्रीकी कामगारों को रोज़गार का वादा भी किया गया.

ये उदाहरण अफ्रीका से निपटने के विशेष "भारतीय तरीके" को प्रदर्शित करते हैं जबकि अन्य देशों के  तौर-तरीके भारत से कुछ अलग ढंग के हैं. एक बात तो यह है कि भारत अब हर अफ्रीकी देश के साथ अलग-अलग ढंग से संपर्क बना सकता है, द्विपक्षीय स्तर पर या फिर आरईसी के फ्रेम में या फिर विशेष रूप से अपनी अनूठी अखिल अफ्रीकी परियोजनाओं के माध्यम से. भारत अपने बर्ताव और उससे जुड़ी ऊँची प्रतिष्ठा के कारण अन्य देशों के लिए, विशेषकर चीन के लिए एक तरह का रोल मॉडल या अनुकरणीय उदाहरण बन गया है. भारत ने अफ्रीकी संघ (एयू) को अखिल अफ्रीकी ई नेटवर्क सौंप दिया है. उसके बाद चीन ने भी भारत के अखिल अफ्रीकी दृष्टिकोण का अनुसरण करते हुए अफ्रीकी संघ (एयू) के लिए नए मुख्यालय का निर्माण किया है. इसके अलावा, हाल ही के अध्ययन से पता चला है कि भारत स्वामित्व पर ज़ोर देता है और वह अफ्रीकियों को रोज़गार भी प्रदान करता है. भारत के इन गहन प्रयासों के कारण उप- सहारा अफ्रीका भारत का समर्थन करेगा और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत को इससे काफ़ी लाभ होगा और अंतर्राष्ट्रीय हितधारक के रूप में सौदेबाजी के मामले में भारत की स्थिति मज़बूत होगी. इस तरह संयुक्त राष्ट्र या विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस विशेष संबंध का दीर्घकालीन प्रभाव पड़ेगा. सन् 2011 में भारत - अफ्रीकी मंच के शिखर सम्मेलन के दौरान, सभी उपस्थित अफ्रीकी देशों ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की थी कि वे संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने के लिए भारत का समर्थन करते हैं.

इन गतिविधियों के लिए भारत द्वारा अपनाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की रणनीतियों से पता चलता है कि भारत में अब अफ्रीका के इस नए खेल में परिवर्तन लाने की सचमुच क्षमता है और अन्य देशों के सोचने के तरीके को प्रभावित करने और उप-सहारा अफ्रीका से निपटने की भी क्षमता है.

 

 

डॉ. अर्न्ट मिचाएल फ्राइबर्ग विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में वरिष्ठ लैक्चरर हैं और अनेक पुरस्कारों से सम्मानित पुस्तक "भारत की विदेश नीतिः और क्षेत्रीय बहुपक्षीयता" (पलग्रेव मैकमिलन, 2013) के लेखक भी हैं.

 

हिंदीअनुवादःविजयकुमारमल्होत्रा, पूर्वनिदेशक (राजभाषा),रेलमंत्रालय, भारतसरकार <malhotravk@hotmail.com> मोबाइल : 91+9910029919.