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आगे बढ़ें! नारिकुरवरों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए राजनीतिक मार्ग प्रशस्त

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16/01/2023
क्रिस्टीना-इओना ड्रैगोमिर

दिसंबर 2022 की शुरुआत में, लोकसभा और राज्यसभा ने नारिकुरवर (नारिकोरवन के प्रस्तावित नाम परिवर्तन के साथ) और कुरुविक्करण समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने के पक्ष में मतदान किया. 2 जनवरी, 2023 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त करने के बाद इस विधेयक को नारिकुरवर समुदाय द्वारा अपनी विजय के रूप में घोषित किया गया. उन्होंने कहा कि "यह पहली बार है जब हमारे अनुरोध को आधिकारिक तौर पर भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है और संसद के दोनों सदनों द्वारा इसे पारित किया गया है. हम उन सभी राजनेताओं के प्रति आभारी हैं जिन्होंने इस विधेयक को पारित करवाने में मदद की है. राजनेताओं के साथ-साथ सभी लोग व्यापक रूप से इस बात पर सहमत हैं कि [नारिकुरवर के] लोगों के कल्याण के लिए यह कदम आवश्यक था.”

नारिकुरवर एक अर्ध-बंजारा समुदाय है, जो मुख्य रूप से तमिलनाडु में बसा हुआ है. मनके बनाने के उनके कौशल के कारण उन्हें "मनके वाले लोग" (bead people) कहा जाता है वे अपने मनके मंदिरों के सामने और त्योहारों पर बेचते हैं. परंतु, वनों की अपनी जानकारी, हथियारों के उपयोग और लंबी दूरी तक यात्रा करने की क्षमता के कारण नारिकुरवरों की पहचान ज़्यादातर शिकारियों के रूप में होती है. वे अपने अतीत पर गर्व करते हैं और भारत के उत्तरी भागों से दक्षिणी क्षेत्रों में यात्रा करने वाले अपने पूर्वजों की कहानियाँ सुनाते हैं. इन तमाम परिवर्तनों के बावजूद, उन्होंने अपनी घुमंतू जीवन-शैली को बनाए रखा है.

हालाँकि, दिक्कतें तब आती हैं, जब उनके अतीत की कहानी उनके रोज़मर्रा के जीवन से टकराती है. नारिकुरवर समुदाय के लोगों को अक्सर समाज के हाशिये पर धकेल दिया जाता है और स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और औपचारिक रोज़गार की सुविधाएँ उन्हें नहीं मिल पातीं. सामुदायिक संघर्ष भी अक्सर ऐतिहासिक रूप में निहित पूर्वाग्रहों से टकराते रहते हैं जो उन्हें और भी हाशिए पर धकेल देते हैं.

पिछले साठ वर्षों से, नारिकुरवर पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी से बाहर निकलने और बुनियादी अधिकार पाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. उन्हें यह समझ में आ गया है कि अपनी विकट परिस्थितियों से ऊपर उठने के लिए सबसे पहले कानूनी दर्जा प्राप्त करना होगा; आरक्षण की मौजूदा प्रणाली उनके लिए अधिकारों और सामाजिक-आर्थिक राजनीतिक गतिशीलता तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करती है.

अब तक, नारिकुरवरों को सबसे पिछड़े वर्ग (MBC) के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन इस मान्यता के कारण भी उन्हें शिक्षा और रोज़गार नहीं मिल पाया. "बस यह नाममात्र के लिए ही था जो उन्होंने हमें दिया था," एक उच्च शिक्षाप्राप्त तैंतीस वर्षीय नारिकुरवर नेता राजशेखरन ने कहा, जो अपने समुदाय के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अथक रूप से काम करता रहा है.  वह पहले से जानता है कि शिक्षा से क्या लाभ होते हैं और उसे यकीन है कि जब नारिकुरवरों की नई पीढ़ी (औपचारिक रूप से) शिक्षित होगी, तो वे अपने समुदाय की नियति को बदलने में सक्षम होंगे.

राजशेखरन के अनुसार अभी तो वे संसाधनों और अपने से अधिक शक्तिशाली और बेहतर सुविधा संपन्न समुदायों के साथ आरक्षित सीटों के लिए अनुचित होड़ में जुटे हैं. तमिलनाडु में अन्य सबसे अधिक पिछड़े समुदाय (MBC) उनसे कहीं अधिक संगठित और शिक्षित हैं और साथ ही सामाजिक-आर्थिक संसाधनों से अधिक संपन्न भी हैं, और इसलिए, उन्हें अधिकार भी मिल गए हैं. यही कारण है कि राजशेखरन अपने और अपने समुदाय के कठिन संघर्ष के बावजूद नारिकुरवरों की कानूनी स्थिति को सबसे अधिक पिछड़े समुदाय (MBC) से अनुसूचित जनजाति (ST) में बदलने के प्रबल समर्थक हैं.

नारिकुरवर समुदाय कोई ऐसा विशिष्ट आदिवासी समूह भी नहीं है,जिसे स्पष्ट रूप से अनुसूचित जनजाति (ST) वर्गीकरण के अंतर्गत रखा जा सके. अनुसूचित जनजाति (ST) के दर्जे का दावा करने वाले अन्य समुदायों के विपरीत, नारिकुरवर किसी पैतृक भूमि का दावा नहीं करते हैं, बल्कि बंजारा के रूप में अपनी पहचान बताते हैं और खुद को ऐतिहासिक रूप से अपराधी समुदायों से अलग करने की कोशिश करते हैं. उन्हें अक्सर उन राजनेताओं का समर्थन भी नहीं मिलता, जो वोट पाने की लालसा के कारण ही किसी समुदाय का समर्थन करते हैं. वे इस छोटे से समुदाय को कोई महत्वपूर्ण वोटिंग ब्लॉक भी नहीं मानते हैं. उन्हें अन्य अनुसूचित जाति (ST) के समुदायों के साथ प्रतिस्पर्धा के रूप में भी देखा जाता है जो पहले से ही सीमित संसाधनों और आरक्षित सीटों को एक और समुदाय के साथ साझा करने को तैयार नहीं हैं. लेकिन जब भी इन मामलों पर चर्चा होती है, तो नारिकुरवर अक्सर जवाब देते हैं, “हमें इसकी आवश्यकता है, क्योंकि हमारा समुदाय बहुत पीड़ित है.”

अनुसूचित जाति (ST) का दर्जा हासिल करने से पहले, नारिकुरवारों ने अपने काम से कई राजनीतिक मुकाम तय किए हैं. राजशेखर कहते हैं, “साठ साल से हमारा यह सपना रहा है. लेकिन सपने को कानूनी मान्यता दिलवाने का मार्ग हमेशा सरल नहीं होता. उनके जमीनी काम ने तीन दशक पहले राजनीतिक आकार लेना शुरू किया था, जब नारिकुरवर के नेताओं ने तमिलनाडु की स्थानीय सरकार को याचिका दी थी और कई राजनेताओं ने उनके मकसद के प्रति सहानुभूति दिखाई थी. लेकिन अन्य प्रदेशों की राजनीति के समान तमिलनाडु की राजनीति भी स्थिर नहीं रहती. जैसे ही सरकार बदलती है, नारिकुरवरों को उनका समर्थन भी खत्म हो जाता है. लेकिन नारिकुरवर के नेताओं ने हार नहीं मानी और जो भी सरकार सत्ता में रही, उसे याचिकाएँ भेजते रहे. उन्होंने सरकार को बार-बार चिट्ठियाँ लिखना जारी रखा, लेकिन इन चिट्ठियों का अक्सर जवाब नहीं आता था.

जब उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई और बातचीत के दरवाज़े भी नहीं खुले तो उन्होंने वैकल्पिक रास्तों की तलाश शुरू कर दी. राज्य सरकार के बजाय अब उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर संपर्क करना शुरू कर दिया. 2016 से, नारिकुरवार दिल्ली की सामूहिक यात्राएँ कर रहे हैं. दिल्ली जाकर वे रहने के ठिकाने और अन्य संसाधनों के अभाव में भयानक मौसम की मार झेलते हुए जंतर मंतर पर भूख हड़ताल करते रहे हैं. मीडिया के कवरेज के बिना भी उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा. (कुरुविक्करण समुदाय के साथ) नारिकुरवारों को अनुसूचित जनजाति (ST) की सूची में शामिल करने से संबंधित विधेयक लोकसभा तक कई बार पहुँच चुका है. 2016 में तो यह विधेयक लोकसभा के पटल पर रखा भी जा चुका था और उस पर चर्चा होने जा रही थी, लेकिन उसी दिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक ही नोटों के विमुद्रीकरण की घोषणा कर दी. देश में ज्वाला भड़कने के कारण भारतीय संसद में किसी का भी ध्यान नारिकुरवारों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने से संबंधित विधेयक को पारित कराने पर नहीं गया.

इस आघात के बावजूद, नारिकुरवरों ने तमिलनाडु में वापस जाकर अपने समुदाय के सामने तथ्यों को प्रस्तुत किया और उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त करने के महत्व के बारे में समझाने का प्रयास किया. इस बार, उनके राजनीतिक प्रयासों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया. जनसंचार माध्यमों की मदद से, नारिकुरवरों ने अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की वकालत की और वैश्विक स्तर के विद्वानों और संगठनों के साथ नियमित रूप से संपर्क बनाये रखा. ऐसा करते हुए उन्होंने बाहरी लोगों द्वारा उन पर थोपी गई पहचान के बजाय खुद अपनी अलग पहचान बनाई.

अनेक सामूहिक प्रयासों के परिणामस्वरूप, आज नारिकुरवर समुदाय अपने नए अनुसूचित जनजाति (ST) के दर्जे का (भारी उम्मीदों के साथ) अपना जश्न मना रहा है. जनजातीय समाज की तैंतीस वर्षीय सचिव अनुराधा ने कहा, "अनुसूचित जनजाति (ST) के इस दर्जे के माध्यम से,अनेक वर्षों के संघर्ष के बाद, हम शिक्षा, रोज़गार के अवसर, आजीविका और अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकताओं के संदर्भ में आगे बढ़ सकते हैं."

नारिकुरवर की यह विजय एक युग की विजय है और सामाजिक न्याय प्राप्त करने की दिशा में उनके आगे के रास्ते का एक बड़ा कदम है. यह एक ऐसा कदम है जो यह साबित करता है कि विभिन्न राजनीतिक स्तरों पर अथक और जटिल रणनीति बनाकर किसी भी समुदाय को सफलता मिल सकती है. लेकिन यह सिर्फ़ शुरुआत है. भारत में आरक्षण प्रणाली की अक्सर राजनीतिक हलकों में सभी पक्षों द्वारा आलोचना भी की जाती है और इसके उन्मूलन या इसके विस्तार के लिए तर्क भी दिये जाते हैं. यह ज़ाहिर है कि सात दशक से पहले बनाई गई इस व्यवस्था में आज भारत की गतिशीलता को प्रतिबिंबित करने के लिए सुधार और परिवर्तन की आवश्यकता है. ऐसा करते समय अनेक चुनौतियाँ सामने आएँगी और वंचित समूहों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिशीलता के लिए मार्ग प्रशस्त करते हुए कामयाबी भी हासिल की जा सकेगी.

क्रिस्टीना-इओना ड्रैगोमिर न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में लिबरल स्टडीज़ की क्लिनिकल सहायक प्रोफेसर हैं और Power on the Move: Adivasi and Roma Accessing Social Justice” (2022) की लेखिका भी हैं. वह CASI 2016 में विज़िटिंग स्कॉलर रही हैं.

 

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (हिंदी), रेल मंत्रालय, भारत सरकार

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