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लड़कियों द्वारा गँवाये गये स्कूली पढ़ाई के साल: असम विद्रोह का मामला

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29/08/2016
प्रकाश सिंह

भारतीय लड़कियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. गर्भ में आते ही लड़कों के मुकाबले उनके जन्म लेने की संभावनाएँ भी बहुत कम हो जाती हैं. “खोई हुई लड़कियों” की उपस्थिति अल्ट्रासाउंड टैक्नोलॉजी की पहुँच की ज़द में आ जाती है. साथ ही लड़कियों को स्तनपान भी बहुत कम समय के लिए कराया जाता है और उन पर शिशुपालन संबंधी निवेश भी बहुत कम होता है. उम्र के साथ बढ़ते हुए लड़कों के मुकाबले उन्हें शिक्षा के अवसर भी कम ही मिलते हैं. सूखे या युद्ध के समय भारी आर्थिक आघात के बाद तो इसका दुष्प्रभाव और भी भयानक होता है, परंतु विश्व युद्धों के कारण आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी में काफ़ी इजाफ़ा हुआ. प्रथम विश्व महायुद्ध के दौरान यू.के. में पुरुष श्रमिकों के स्थान पर बहुत बड़ी तादाद में महिला श्रमिकों को रखा गया था. जुलाई 1917 में एक अनुमान के अनुसार 1.4 मिलियन महिलाओं ने पुरुषों की जगह ली थी. द न्यू स्टेट्समैन की रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान महिलाओं में “नया विश्वास जगा, आज़ादी का एहसास पैदा हुआ और गैर-व्यक्तिगत मामलों में भी उनकी रुचि पैदा हुई.”  अकादमिक साहित्य में भी इस बात को पूरी तरह से निरंतर स्वीकार किया जाता रहा ; ऐसेमोगलु, ऑथर ऐंड लाइल (2004) ने पाया कि दूसरे विश्वयुद्ध के कारण अमरीका में श्रमिक शक्ति में भाग लेने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई. सेम्यिकाना ने बताया है कि विकासशील देशों में गैर-संघर्षरत देशों के मुकाबले तज़ाकिस्तान के संघर्ष-रत अंचलों में रहने वाली महिलाओं के रोज़गार पाने की संभावनाएँ कहीं अधिक थीं और मेनन और रॉजर्स (2011) ने पाया कि माओवादियों के नेतृत्व में किये गये विद्रोह के करण नेपाल में महिलाओं के रोज़गार में वृद्धि हुई.

संघर्ष से जूझ रहे असम में लड़कियों द्वारा गँवाये गये स्कूली पढ़ाई के सालों के मामले को ही लेते हैं, जिसमें बोडो और बँगला देश से आये प्रवासियों के बीच 1979 से लगातार चलने वाले संघर्ष के कारण देरी होती रही. इसे लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष की भारी कीमत चुकानी पड़ी. इस लंबे संघर्ष में पाँच साल से कम उम्र के 40.6 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हो गए थे और यहाँ प्रति व्यक्ति आय केवल $968 अमरीकी डॉलर है. (जिसके कारण यह भारत का चौथा सबसे गरीब राज्य बन गया है). संघर्ष की लागत पुरुषों और महिलाओं की अलग-अलग पड़ती है. विद्रोहियों द्वारा की गई हिंसा में वृद्धि होने के साथ-साथ महिलाओं के खिलाफ़ घरेलू हिंसा की वारदातें भी बढ़ जाती हैं और एक स्थानीय एनजीओ नॉर्थ ईस्ट नैटवर्क (NEN) ने पाया है कि विद्रोहियों की हिंसक वारदातों में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ 83.7 प्रतिशत महिलाओं को परिवार के सदस्यों, उनके अपने पतियों या कर्मचारियों ने शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया. योजना आयोग ने 2007 में यह निष्कर्ष निकाला था कि भारत के सभी राज्यों में असम न केवल सबसे गरीब है, बल्कि वहाँ महिलाओं की सामाजिक हैसियत भी सबसे खराब है. समय के साथ-साथ असम के अलावा सभी पूर्वोत्तर राज्यों में साक्षरता के लैंगिक अनुपात का अंतराल कम होने के साथ-साथ स्कूलों में भी उनकी उपस्थिति बढ़ी. अंततः लड़कियों की शिक्षा न केवल मानवाधिकार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि उनकी काम की जगहों पर और घर में भी महिलाओं के सशक्तीकरण और भावी पीढ़ियों में स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार का मुद्दा भी इससे जुड़ा हुआ है.  
सशस्त्र गुरिल्ला समूहों में लड़कों की भर्ती से आंतरिक संघर्ष के फलस्वरूप शिक्षा पर लैंगिक अंतर का प्रभाव पड़ने लगा है और अपहरण में वृद्धि होने के कारण स्कूलों में लड़कियों की सुरक्षा में गिरावट आने लगी है और आमदनी घटने के कारण माँ-बाप लड़कों की स्कूली शिक्षा पर निवेश को भी अन्यत्र स्थानांतरित करने लगे. 

भारत के असम राज्य के स्कूलों से संबंधित नये व्यापक पैनल के आँकड़ों का उपयोग करते हुए अपने सह-लेखक के सहयोग से मैंने स्कूलों में छात्राओं के नामांकन की दर पर हिंसक झड़पों के प्रभाव की जाँच की. उसके निष्कर्षों से पता चला कि ज़िला-वर्ष में औसत कत्लेआम की वारदातें दुगुनी हो जाने के कारण छात्राओं के नामांकन की दर में 13 प्रतिशत की गिरावट आई. साथ ही साथ भिन्न प्रकार के आँकड़ों (उल्फ़ा बॉम्बिंग) के संघर्षों की वैकल्पिक परिभाषा का प्रयोग करने पर भी नतीजे जस के तस रहे. छोटी कक्षाओं में, गाँव के स्कूलों में, अपेक्षाकृत गरीब ज़िलों में और बिना सरकारी सहायता के स्थानीय और निजी संस्थाओं द्वारा चलाये जा रहे स्कूलों में लैंगिक अंतर संबंधी प्रतिक्रियाएँ अधिक नकारात्मक रहीं. लैंगिक अनुपात में सुधार लाने के लिए सबसे अधिक ज़रूरी यही लगा कि हर विद्यार्थी के अनुरूप पेशेवर दृष्टि से योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की जाए और हर विद्यार्थी के अनुरूप अधिक महिला शिक्षकों की भर्ती की जाए. इसका निहितार्थ यही है कि नीतियाँ ऐसी बननी चाहिए कि स्कूलों में मानव संसाधन के रूप में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की जाए और अधिकाधिक महिला शिक्षकों की भर्ती की जाए. जिन नीतियों से स्कूलों के भौतिक संसाधनों पर दबाव पड़ता है, वे महिला सशक्तीकरण पर हिंसा के घातक प्रभाव को कम करने में प्रभावशाली नहीं हो पाते.

असम के नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे नीति बनाने से पहले विशेषकर भारत के अन्य क्षेत्रों में होने वाले अन्य संघर्षों के प्रभाव का भी अध्ययन करें. 1981 और 1993 के बीच पंजाब के विद्रोह के कारण हुए संघर्ष से खेती-बाड़ी की वृद्धि में कमी आई थी और निवेश में भी गिरावट आई थी, जिसके कारण लोगों की आमदनी भी घट गई थी. किसानों ने मकान बनाने पर अपने खर्च को कम कर दिया था और इस संघर्ष के कारण कुँओं और ट्यूब-वैलों के रख-रखाव पर भी बहुत असर पड़ा था. पंजाब में हुए संघर्ष के कारण शिक्षा पर विशेषकर लड़कियों की शिक्षा पर भी बुरा असर पड़ा. संघर्ष के लैंगिक अंतर का प्रभाव घर-परिवारों पर भी महसूस किया जाने लगा. जिन घर-परिवारों में लड़कियों का अनुपात लड़कों से ज़्यादा है और जो लोग हिंसा-प्रभावित ज़िलों में रहते हैं, उन्होंने शिक्षा पर खर्च भी कम कर दिया. केवल लड़की-बहुल परिवारों में ही नहीं, सभी घर-परिवारों में लड़कियों पर खर्च कम होने लगा. इसका परिणाम यह हुआ कि लड़कियों की पढ़ाई का खर्चा लड़कों की पढ़ाई पर होने लगा. इसके कारण आज भी पंजाब की ये लड़कियाँ पढ़ाई में पिछड़ी हुई हैं.  

महिलाओं पर संघर्षों का प्रभाव संदर्भ विशिष्ट होता है और संस्था विशिष्ट भी, लेकिन लगता है कि असम और पंजाब के मामले में लड़कियों की शिक्षा पर व्यापक तौर पर नकारात्मक प्रभाव ही पड़ा. सन् 2014 में नोबल शांति पुरस्कार ग्रहण करते हुए मलाला यूसफ़ज़ाई ने अपने भाषण में कहा था, “ मैं अपनी कहानी इसलिए नहीं सुना रही हूँ कि यह कोई अनूठी बात है, बल्कि मैं कहना चाहती हूँ कि यह कतई अनूठी नहीं है. यह कहानी बहुत-सी लड़कियों की है.”

नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे लैंगिक असमानता को कम करने के लिए संघर्ष के दौरान और संघर्ष के बाद भी लड़कियों की शिक्षा के लिए परिवारों को प्रोत्साहन राशि प्रदान करें. नीतियाँ भी ऐसी होनी चाहिए कि अधिक से अधिक लड़कियों को व्यावसायिक रूप में योग्य अध्यापिकाओं के रूप में भर्ती होने का अवसर मिले ताकि आज और कल भी लैगिंक अनुपात में सुधार लाया जा सके.


प्रकाश सिंह ऐमहर्स्ट कॉलेज, मैसाचुएट्स में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफ़ेसर हैं और कैसी के अनिवासी विज़िटिंग स्कॉलर हैं.

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919