सभी देश यह प्रयास करते हैं कि वे अपने नागरिकों को किफ़ायती और अच्छे किस्म की स्वास्थ्य-सेवा उपलब्ध कराएँ. अगर भारत जैसे कम संसाधनों वाले देश को ये दो लक्ष्य ( किफ़ायती और अच्छी स्वास्थ्य सेवा) प्राप्त करने हैं तो उसे स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले मॉडल को नये सिरे से विकसित करना होगा. भारत के सामने दो प्रमुख वास्तविकताएँ हैं: भारी जनसंख्या और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कमी. यही कारण है कि हम स्वास्थ्य सेवा के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे के लिए अपेक्षित भारी निवेश नहीं कर पाते. बड़े महानगरों को छोड़कर शेष इलाकों में डॉक्टरों की बेहद कमी के कारण यह समस्या और भी भयावह हो जाती है. लाइलाज गैर-संचारी बीमारियों के तेज़ी से फैलने से जुड़ा कोई भी मुद्दा सर्वनाशक हो सकता है. एक के बाद एक सरकारों ने सप्लाई और माँग के इस अंतराल को भरने के लिए सुपर स्पेशियलिटी वाले अधिक से अधिक अस्पताल खोलकर तात्कालिक उपाय किये हैं. अगर ये उपाय बड़े स्तर पर किये जाते हैं तो न तो किफ़ायती रहते हैं और न ही स्वास्थ्य-सेवा संबंधी सप्लाई और माँग के अंतराल को भरने के लिए उपयुक्त होते हैं.
जहाँ प्राथमिक स्वास्थ्य-सेवा किसी भी स्वास्थ्य-सेवा प्रणाली का मूल आधार होती है, वहीं दिल की बीमारी और कैंसर जैसी बीमारियों के उपचार के लिए सैंकड़ों भारतीयों के लिए अपेक्षित अस्पताल-आधारित त्रिस्तरीय देखभाल की अनदेखी भी नहीं होनी चाहिए. हृदय शल्य चिकित्सक देवी शेट्टी (नारायण हैल्थ) का कहना है कि भारत जैसे आकार के देश के लिए हर साल 2.5 मिलियन हार्ट सर्जरी के ऑपरेशन करने की ज़रूरत है. महँगे निजी अस्पतालों में लगभग 100,000 अमीर रोगियों के ऑपरेशन किये जाते हैं. शेष रोगी काम के बोझ से दबे सरकारी अस्पतालों में अपने ऑपरेशन की लंबी प्रतीक्षा में खड़े रहते हैं और उनमें से अधिकांश रोगी तो ऑपरेशन से पहले ही मर भी जाते हैं. मैडिकल जर्नल The Lancet में प्रकाशित लेख में किये गए एक अनुमान के अनुसार स्वास्थ्य-सेवा न मिलने के कारण या अच्छी किस्म की स्वास्थ्य-सेवा न मिलने के कारण हर साल लगभग 2.4 मिलियन भारतीयों की मृत्यु हो जाती है.
सामान्य अस्पताल (GH) के त्रिस्तरीय स्वास्थ्य-सेवा मॉडल की समस्याएँ
क्लासिक त्रिस्तरीय (अस्पताल-आधारित) स्वास्थ्य-सेवा सामान्य अस्पताल (GH) की एक ऐसी मल्टीस्पैशियलिटी सुविधा है, जिसके अंतर्गत सभी लोगों का और सभी तरह का इलाज होता है. इसमें सबसे जटिल किस्म के विविध प्रकार के मल्टीमोडल रोगों का भी इलाज होता है और दंत-चिकित्सा, नेत्र विज्ञान और आँख, नाक और गला (ENT) चिकित्सा जैसी सीधी पद्धति भी होती है. अधिकांश रोगी इसी अंतिम वर्ग में आते हैं, क्योंकि उनकी बीमारी का संबंध किसी एक रोग की विशेषज्ञता से ही होता है और इसी तरह की प्रणाली को मानक बनाया जा सकता है. बहु-उद्देशीय सामान्य अस्पताल (GH) के संसाधनों को अधिक से अधिक बढ़ाकर उसमें विभिन्न प्रकार की विशेषज्ञताओं का समावेश करते हुए अंततः लगभग सभी बीमारियों का इलाज ऐसे अस्पतालों में किया जाता है.
सामान्य अस्पताल (GH) के इस मॉडल में जटिल से जटिल और सीधे-सादे रोगों का उपचार भी एक ही छत के नीचे होता है. परिणाम, मूल्य और भुगतान के विपरीत मैट्रिक्स के जुड़ा यह एक मिला-जुला कारोबारी मॉडल है. इसके कारण लागत में अनावश्यक वृद्धि होती है और गुणवत्ता में भी गिरावट आ जाती है.
सामान्य अस्पताल (GH) के इस मॉडल पर बहुत लागत आती है. बहुविध विशेषज्ञताओं के अनुरूप सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ये अस्पताल नौकरशाही के गढ़ बन गए हैं. इनकी कारोबारी प्रक्रिया ऐसी हो गई है कि ये अस्पताल रोगियों पर केंद्रित होने के बजाय डॉक्टरों पर ही केंद्रित रहने लगे हैं. इसके अलावा, निर्धारित लागत में वृद्धि होने के कारण उपचार की लागत भी बढ़ जाती है. विभिन्न प्रकार की विशेषज्ञताओं को एक ही स्थान पर उपलब्ध कराने के कारण कर्मचारियों और स्थान का सही आकलन भी लगभग असंभव हो जाता है. सामान्य अस्पताल (GH) के जटिल संगठन और इनपुट की लागत को आउटपुट की लागत से जोड़ने की कठिन प्रक्रिया के कारण बिलिंग का तरीका अव्यवस्थित हो जाता है और अस्पताल का बिल भी बढ़ जाता है.
स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखाने
सामान्य अस्पतालों (GH) के विस्तार की समस्या ठीक वैसी ही है, जैसी समस्या साठ और सत्तर के दशक में अमरीका में बड़े पैमाने पर स्थापित बिना विशेषज्ञता वाले निर्माण संगठनों की हुई थी. इसकी प्रतिक्रिया में ही ऐसे कारखानों की परिकल्पना की गई थी, जिनकी विशेषज्ञता किन्हीं खास उत्पादों में ही होती है. नब्बे के दशक में हार्वर्ड की प्रोफ़ेसर रिजीना हर्ज़लिंगर ने अमरीका में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखानों की स्थापना का विचार सामने रखा था.
स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखानों (FHF) की विशेषज्ञता किन्हीं खास और सीमित बीमारियों और क्लिनिकल प्रक्रियाओं के लिए ही होती है. अटलांटा स्थित जॉर्जिया सिकल सैल सैंटर स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखाने (FHF) का अनूठा उदाहरण है. इसकी स्थापना उस समय की गई थी, जब गैर-विशेषज्ञता वाले केंद्रों में सिकल सैल रोगियों के इलाज में गिरावट आने लगी थी. आठ वर्षों में इस वन-स्टॉप-शॉप के कारण अस्पतालों में दाखिलों की संख्या आधी रह गई और इमर्जेंसी के दाखिलों में 80 प्रतिशत की कटौती हो गई. ऑन्टेरियो में स्थित शोल्डाइस हर्निया अस्पताल की विशेषज्ञता हर्निया के ऑपरेशन में है. शोल्डाइस में हर्निया के ऑपरेशन का खर्च अमरीका की प्रतिपूर्ति दर से 30 प्रतिशत कम होता है. कम लागत के साथ-साथ सफल ऑपरेशन के परिणाम भी सामने आए हैं. केस के बिगड़ जाने का प्रतिशत भी बाहरी अस्पतालों के 5-10 प्रतिशत के मुकाबले 0.5 प्रतिशत की दर पर ही रहता है. इसी तरह फ़िनलैंड के जॉइंट रिप्सेलमैंट के कॉक्सा अस्पताल में केस बिगड़ जाने का प्रतिशत 0.1 है, जबकि इसी प्रकार की क्रियाओं के लिए केस बिगड़ जाने का प्रतिशत सामान्य अस्पतालों (GH) में 10-12 प्रतिशत है.
स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखानों (FHF) की कार्यशैली ऐसी है जिसमें क्लिनिकल प्रक्रियाओं के लिए कलन-विधि के आधार पर मानकीकरण किया जाता है. दाखिले से लेकर डिस्चार्ज तक की रोगी की देखभाल के संपूर्ण क्रम के साथ-साथ दोहराने और नियंत्रण-योग्य संपुटित प्रक्रियाओं के माध्यम से अच्छे स्तर के पूर्वानुमान-योग्य परिणाम पाने की सुविधाएँ मिलती हैं. मानकीकरण के कारण जूनियर डॉक्टरों और नर्सों तक के क्लिनिकल पदानुक्रम की शिफ्टिंग जैसे कार्य सुगम हो जाते हैं. इस प्रकार गुणवत्ता में कमी न होने पर भी लागत में कमी आ जाती है. स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखाने (FHF) भारी मात्रा के कारण कर्मचारियों को सीखने के ऊँचे से ऊँचे अवसर प्रदान करते हैं. कर्मचारियों का अनुभव और क्रमबद्ध शिक्षण का वातावरण नवाचार और निरंतर सुधार के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान करता है.
स्वास्थ्य-सेवा में भारी सुधार लाने के लिए स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखानों (FHF) की संकल्पना को राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाना होगा. इसे समन्वित करने के लिए मात्र लाभकारी क्षेत्र बहुत उपयोगी नहीं होगा. सरकार को अपनी भूमिका का सही निर्वाह करते हुए स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखानों (FHF) के निर्माण की प्रक्रिया में स्वास्थ्य-सेवा से जुड़े गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और चिकित्सकों की सहकारी संस्थाओं के साथ भागीदार बनाना चाहिए. इस प्रक्रिया में लगने वाले समय को देखते हुए मध्यवर्ती कदम के तौर पर स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखानों (FHF) को बड़े सरकारी अस्पतालों के अंदर ही निर्मित कर लेना चाहिए. इस प्रकार की इकाइयों के संसाधन स्वतंत्र रूप से ही जुटाये जाने चाहिए और उन्हें अपने काम में पर्याप्त स्वायत्तता दी जानी चाहिए. स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित हर कारखाना (FHF) राष्ट्रीय रूप में परस्पर जुड़े हुए ग्रिड का एक नोड होना चाहिए. ऐसा ग्रिड सुदूर स्थलों पर स्थित स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखानों (FHF) को वर्चुअल नैटवर्क के ज्ञान को प्राप्त करने में मदद करेंगे. उदाहरण के लिए मानकीकृत देखभाल के प्रोटोकॉल को केंद्रीय नोड से वितरित किया जा सकेगा और खरीद की प्रक्रिया में विक्रेताओं से सौदा करते समय नैटवर्क की अपेक्षाओं को समेकित करके लागत की कार्यकुशलता को अधिकाधिक बढ़ाया जा सकेगा. स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखाने (FHF) विशेषज्ञताओं के दो क्षेत्रों में पहले ही जड़ें जमा चुके हैं : आँखों की देखभाल और प्रसूति-विज्ञान. राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड एक ऐसा उदाहरण है, जिससे पता चलता है कि इस प्रकार के मॉडल से किस प्रकार से देश-भर के कैंसर के अधिक से अधिक मरीज़ों की देखभाल की जा सकती है. अब हमें अन्य विशेषज्ञताओं के लिए भी इस अनुभव का लाभ उठाते हुए व्यवस्था करनी होगी.
भारत के सामने अनूठी चुनौतियाँ यही हैं कि आम लोगों के लिए अच्छे स्तर की और किफ़ायती स्वास्थ्य-सेवाएँ कैसे उपलब्ध कराई जाएँ. स्वास्थ्य-सेवा पर केंद्रित कारखाने (FHF) भारत के बहुसंख्यक रोगियों को लाभान्वित करने के लिए एक ऐसा मॉडल प्रदान कर सकते हैं जिसे क्रमबद्ध रूप में आगे बढ़ाया जा सकता है और कम लागत पर अच्छी देखभाल भी की जा सकती है. अगर भारत व्यापक मिशन वाली अपनी परियोजनाओं को लागू करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (IT) की अपनी क्षमताओं को उससे जोड़ सकता है तो वह अच्छे स्तर की स्वास्थ्य-सेवा के क्षेत्र में भी ग्लोबल ऐपिसैंटर क्यों नहीं बन सकता. ऐसी क्षमताएँ उन तमाम देशों के रोगियों को आकर्षित करेंगी जिनके पास इस प्रकार की व्यापक और भारी मात्रा में देखभाल करने वाले नैटवर्क के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाएँ नहीं हैं.
स्वामिनाथन सुब्रमणियम पिछले दो दशकों तक बायो फ़ार्मास्युटिकल उद्योग से संबद्ध रहे हैं और इस समय स्वास्थ्य-सेवा उद्योग में स्वतंत्र रूप में सलाहकार का काम कर रहे हैं. उन्होंने अपनी डॉक्टरेट की पढ़ाई युनिवर्सिटी ऑफ़ पैन्सिल्वेनिया स्कूल ऑफ़ मैडिसिन में की है. यह लेख उनकी पुस्तक Healing Hands (दिसंबर 2019) से लिया गया है.
हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919.