ज़रा कल्पना कीजिए कि आप एक बिल्कुल नये किस्म के काम के लिए विदेश जा रहे हैं और वहाँ जाकर आपको पता चलता है कि $4,700 डॉलर में आपको किसी नियोक्ता के हाथों बेच दिया गया है. यह असंभव-सा लगता है, लेकिन भारत की 39 वर्षीय हैदराबादी महिला की यह असली कहानी है. यह वही महिला है जो पिछले साल सुर्खियों में छाई हुई थी. सलमा को धोखे से कपटी भर्ती एजेंटों द्वारा उसके नियोक्ता को बेच दिया गया था. सलमा ने जब उससे निकाह करने से इंकार कर दिया तो उसके नियोक्ता ने उस पर बहुत ज़ुल्म ढाए. भारत की विदेशमंत्री के हस्तक्षेप से सलमा तो मुंबई पहुँच गई, लेकिन ऐसे ही हालात के शिकार ऐसे अनेक कुशल और अकुशल ब्लू कॉलर प्रवासी हैं जो इतने भाग्यशाली नहीं हैं.
सत्तर के दशक में खाड़ी के देशों में भारी मात्रा में तेल मिलने के बाद इन देशों में आने वाले दक्षिण एशियाई ब्लू कॉलर प्रवासी मज़दूरों पर उनके नियोक्ताओं द्वारा ज़ुल्म ढाने की बातें भी आम तौर पर सामने आती रही हैं. बाहर से देखने पर तो यही लगता है कि भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत के कारण इन देशों के साथ समझौता-वार्ताएँ करते समय भारत लाभप्रद स्थिति में ही रहता होगा, लेकिन खाड़ी देशों के अलग-अलग स्थानीय कानून के कारण स्थानीय दूतावासों को अनेक कठिनाइयों से जूझना पड़ता है. यौन हिंसा से जुड़े कानूनी नियमों में अनेक कमियाँ इसका एक अच्छा उदाहरण है: ये दूतावास यौन हिंसा के शिकार प्रवासियों की मदद तो कर सकते हैं, लेकिन स्थानीय कानूनी ढाँचे की कमियों के कारण वे इन लोगों को राहत नहीं दिलवा पाते.
फिर भी प्रवासन को अपने आप में गलत नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन यह सबके लिए तभी लाभप्रद रह पाएगा, जब सभी संबंधित पक्षकार अर्थात् कामगार, गंतव्य देश और भारत सरकार इसके लिए सुरक्षित उपाय करें. यह दावा भी झूठा है कि भारत सरकार सुरक्षित प्रवासन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपाय अपनाने में विफल रही है. भारत सरकार द्वारा इस दिशा में अनेक उपाय किए गए हैं, जैसे सन् 2014 में भारतीय मज़दूरों की माँग करने वाले विदेशी नियोक्ताओं के पंजीकरण के लिए “eMigrate” नाम से ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म शुरू किया गया था.
प्रवासी मज़दूरों के शोषण के पीछे दो बहुत पुराने अपराधी हैं, अनौपचारिक प्रवासन चैनल और भर्ती एजेंट और ये ही अपराधी सलमा बेगम की दुर्दशा के लिए भी ज़िम्मेदार हैं. ऐसे तत्वों से जूझने के लिए ही सरकार ने भर्ती की प्रक्रिया को औपचारिक स्वरूप प्रदान करने के लिए और रोज़गार के इच्छुक मज़दूरों की भर्ती करने वाले संदिग्ध एजेंटों की पकड़ को कमज़ोर करने के लिए eMigrate प्लेटफ़ॉर्म की शुरुआत की. यह भी सच है कि eMigrate प्लेटफ़ॉर्म में भी कुछ कमियाँ हैं और जब तक इन कमियों को दूर नहीं कर लिया जाता तब तक विदेशों में सलमा जैसे हालात में फँसे कामगारों को पूरी तरह से निश्चिंत नहीं किया जा सकता.
“ईसीआर” कैटेगरी में आने वाली 30 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं पर लगी मौजूदा प्रतिबंध में छूट देना.
पहली बात तो यह है कि उत्प्रवासन निकासी आवश्यक (ईसीआर) मोहर के अधीन प्रवासन की माँग करने वाली महिलाओं के लिए अपने पासपोर्ट पर ईसीआर की मोहर लगते ही eMigrate के लिए परेशानियों का सिलसिला शुरू हो जाता है. इस मोहर का संबंध 1983 के उत्प्रवासन अधिनियम से है. इस अधिनियम के अनुसार जिन व्यक्तियों ने दसवें ग्रेड की परीक्षा पास नहीं की है और जो सूचीबद्ध अठारह देशों (खाड़ी देशों को मिलाकर) में प्रवासन के इच्छुक हैं, उनके लिए उत्प्रवासियों के संरक्षक (Protector of Emigrants) की पूर्वानुमति आवश्यक होगी. संयोगवश यह मामला हाल ही में सुर्खियों में तब आया, जब सरकार ने यह प्रस्ताव किया कि ईसीआर की मोहर वाले प्रवासियों को सरल पहचान के लिए अलग रंग का पासपोर्ट जारी किया जाएगा. बाद में यह प्रस्ताव रद्द कर दिया गया.
इस समय eMigrate के अनुसार 30 साल की कम उम्र वाली ईसीआर कैटेगरी की मोहर वाली भारतीय महिलाओं को प्रवासन की अनुमति बिल्कुल नहीं है. इसका आशय यह है कि इस कैटेगरी वाली महिलाएँ सूचीबद्ध अठारह देशों में प्रवास नहीं कर सकतीं. यह कदम अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा बार-बार ज़ारी की गई चेतावनियों के विरुद्ध है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जून, 2017 को जारी किए गए प्रैस रिलीज़ में महिलाओं के प्रवासन पर प्रतिबंध के संबंध में कहा गया है, “… महिलाओं के प्रवासन पर प्रतिबंध लगाने से अक्सर जबरन मज़दूरी या मानव तस्करी को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि ऐसे हालात में इन कामगारों को ऐसे भर्ती एजेंटों या दलालों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिन्होंने अपना पंजीकरण नहीं करवाया होता. जो महिलाएँ इन प्रतिबंधों के बावजूद प्रवास करती हैं, उन्हें किसी तरह की मुसीबत आने पर मदद मिलने में भी दिक्कत आती है और सरकार की निगरानी में न रहने के कारण वे भर्ती एजेंसियों के शोषण की शिकार हो जाती हैं. ”
हालाँकि ईसीआर कैटेगरी में आने वाली 30 वर्ष से कम उम्र की इन महिलाओं पर यह प्रतिबंध एक अच्छे इरादे से ही लगाया गया था, लेकिन इसी के कारण ये महिलाएँ अनौपचारिक प्रवासन चैनलों के चंगुल में फँस जाती हैं और फिर उनकी मानव-तस्करी की आशंका और भी बढ़ जाती है. इसलिए इस प्रतिबंध को हटाना बेहद ज़रूरी है.
क्षेत्रीय समझौता-ज्ञापन (MOUs) जैसे उपायों की खोज
खाड़ी देशों में ब्लू कॉलर कामगारों की दुर्दशा को देखते हुए ही भारत सरकार ने कुछ खाड़ी देशों के साथ समझौता-ज्ञापनों (MOUs) पर हस्ताक्षर किये हैं ताकि बार-बार शोषण का शिकार होने वाले दोनों समूहों अर्थात् नर्सों और घरेलू महिला कामगारों के अधिकारों को संरक्षण दिया जा सके. eMigrate प्लेटफ़ॉर्म से दोनों ही सरकारों द्वारा कामगारों के लिए किये जाने वाले प्रयासों को सिस्टम के द्वारा समन्वित किया जा सकेगा और इन समझौता-ज्ञापनों (MOUs) का पालन किया जा सकेगा.
इस पर भी गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और प्रवासी-अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि हर खाड़ी देश और भारत के बीच समझौता-ज्ञापनों (MOUs) पर हस्ताक्षर होना भी काफ़ी नहीं होगा. आज आवश्यकता इस बात की है कि क्षेत्रीय स्तर के बजाय समग्र रूप में करार किये जाएँ. क्षेत्रीय स्तर के बजाय समग्र रूप में करार न होने के कारण भारतीय मज़दूरों को किसी एक खाड़ी देश की सीमा से दूसरे खाड़ी देश की सीमा के पार ले जाकर मानव तस्करी की आशंका बनी रहती है. प्रवासी अधिकार संगठन ने उन स्थलों को भी चिह्नित किया है जहाँ महिलाओं को संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से पड़ोसी राज्यों में ले जाकर उनकी मानव तस्करी की जाती है. “एजेंटों के लिए भारतीय महिलाओं को गैर-कानूनी तौर पर टूरिस्ट वीज़ा दिलाना बहुत आसान होता है. एक बार संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में आने के बाद ये एजेंट इन महिलाओं को शरण देकर संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का वीज़ा खत्म होने से पहले ही किसी अन्य खाड़ी देश में काम दिला देते हैं. काम का वीज़ा होने के कारण इन महिलाओं को खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के अन्य देशों में जाने से रोका नहीं जाता. इस प्रक्रिया में दूतावास के नियमों की भी अनदेखी की जाती है. ये महिलाएँ अपने गृहदेश के दूतावास की जानकारी के बिना ही और मूल देश और गंतव्य देशों के बीच हस्ताक्षरित समझौता-ज्ञापनों (MOUs) के प्रावधानों की उपेक्षा करके दूसरे देश में पहुँचा दी जाती हैं. ”
निर्दिष्ट मज़दूरी का निर्धारण
eMigrate प्लेटफ़ॉर्म में एक और संशोधन किया गया है: न्यूनतम मज़दूरी को निर्दिष्ट किया गया है या हरेक प्रवासी गंतव्य देश में “निर्दिष्ट मज़दूरी” से क्या आशय है. विदेशों में काम करने वाले प्रवासी मज़दूरों के लगातार होते अवमूल्यन को देखते हुए सरकार की यह मान्यता सही है कि निर्दिष्ट मज़दूरी केवल ज़रूरी ही नहीं, कामगारों के आर्थिक सशक्तीकरण के लिए भी आवश्यक है. इससे निर्दिष्ट मज़दूरी के गलत डिज़ाइन के कारण कुछ कैटेगरी के कामों में लगे मज़दूर विदेशी नियोक्ताओं के लिए बहुत महँगे साबित हो रहे हैं. इसका नतीजा यह हुआ है कि ये नियोक्ता अब रिक्तियों को भरने के लिए भारत के बाहर के दक्षिण एशियाई देशों की ओर देखने लगे हैं, क्योंकि मज़दूरी की इन नई सीमाओं में उनके लिए भारतीय मज़दूर महँगे साबित हो रहे हैं. विडंबना यही है कि निर्दिष्ट मज़दूरी के कारण सलमा बेगम जैसे कई कामगारों को लाभ मिलने के बजाय नुक्सान अधिक हो रहा है, क्योंकि अब विदेशी नियोक्ता उनके स्थान पर बंगलादेशी या पाकिस्तानी कामगारों को तरजीह देने लगे हैं.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2016 की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि अब निर्दिष्ट मज़दूरी का डिज़ाइन अप्रासंगिक हो गया है. इस रिपोर्ट के अनुसार जब निर्दिष्ट मज़दूरी की परिकल्पना की गई थी, तब मज़दूरी की इन दरों को गंतव्य देशों में मज़दूरी की प्रचलित बाज़ार दरों से मिलान करके देखने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया था. इसका मतलब यह हुआ कि कुछ ऐसे भी काम धंधे हैं, जिनके लिए मज़दूरी की जिस दर पर विदेशी नियोक्ता काम देने के इच्छुक होते हैं या जो दर वे दे सकते हैं, भारतीय प्रवासी कामगार उससे कहीं अधिक सकल या ऊँची दर की अपेक्षा करते हैं. इसके अलावा, निर्दिष्ट मज़दूरी तय करते समय दक्षिण एशिया के उन देशों से उसकी तुलना भी नहीं की गई होती, जहाँ से अक्सर खाड़ी देशों के लिए कामगारों का प्रवासन होता है. इसका मतलब यह हुआ कि बंगलादेशी या पाकिस्तानी कामगार उन दरों पर भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं जो भारतीय कामगारों की तुलना में कहीं अधिक प्रतिस्पर्धी हैं.
इस समस्या के समाधान का बस यही उपाय है कि निर्दिष्ट मज़दूरी का निर्धारण कैसे किया जाता है. इसके लिए आवश्यक है कि गंतव्य देश में प्रचलित बाज़ार दरों का सर्वेक्षण करने के साथ-साथ दक्षिण एशिया के अन्य देशों में इसी प्रकार के काम-धंधों के लिए प्रचलित मज़दूरी की दरों के साथ उसकी तुलना भी कर लेनी चाहिए.
यह ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि ये कदम व्यापक समाधान का मात्र एक अंश ही है. प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा को कम करने के लिए और भी अनेक उपाय करना आवश्यक होगा. इन प्रवासी मज़दूरों के गंतव्य देश में जाने से पहले ही कुछ कठोर कदम उठाने होंगे. गैर-कानूनी भर्ती करने वाले एजेंटों और उनके सब-एजेंटों को कठोर से कठोर दंड देना होगा. प्रवासन की जटिलता और इन प्रवासी कामगारों की भारी भीड़ को देखते हुए हमें ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए अभी बहुत कुछ करना होगा जिससे कि सलमा बेगम जैसे हालात उनके लिए पैदा न हों.
नम्रता राजू हार्वर्ड कैनेडी स्कूल में सार्वजनिक प्रशासन में मास्टर की उम्मीदवार हैं.
हिंदी अनुवादः विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919