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शहरी प्रवासियों के लिए किराये वाले किफ़ायती आवास-गृहः अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) योजना: समस्याएँ और संभावनाएँ

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01/03/2021
मानव के एवं इंदीवर जोन्नालगड्डा

मई 2020 में कोविड-19 की महामारी से उत्पन्न प्रवासियों के आवासीय संकट की पृष्ठभूमि में शहरी विकास मंत्रालय, भारत सरकार (MoHUA) ने शहरी प्रवासियों के लिए किराये वाली किफ़ायती आवास-गृह अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) योजना की घोषणा की थी । यह योजनागत हस्तक्षेप प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U) के अंतर्गत पाँचवीं पहल थी. किराये पर आवास व्यवस्था की यह एकमात्र योजना है। अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) योजना प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U) के अंतर्गत किरायेदारी से संबंधित चिर-प्रतीक्षित परिवर्तन है । घर के स्वामित्व से हटकर यह परिवर्तन जन आवास नीति के अंतर्गत किराये वाले आवास के रूप में हो गया है। शहरी प्रवासियों की आवास संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इस योजना के अंतर्गत प्रवासियों की माँग को बढ़ाकर किराये वाले किसी भी स्थल पर किफ़ायती घर का विकल्प देने का वायदा किया गया है।

हम शहरी प्रवासियों की आवास संबंधी विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं के आलोक में कार्यान्वयन की संभावित चुनौतियों पर विचार करने के लिए किराये वाली किफ़ायती आवास-गृह (ARHC) योजना के प्रस्तावित परिचालन संबंधी दिशा-निर्देशों की जाँच करेंगे। आवास योजनाओं के नीति संबंधी इतिहास और फ़ील्ड अध्ययन के संदर्भ में इन दिशा-निर्देशों की जाँच करते हुए हमने किफ़ायती आवास-गृह (ARHC) योजना के नीतिगत डिज़ाइन से संबंधित विभिन्न प्रकार की संभावनाओं और प्रभावोत्पादकता पर टिप्पणी की है और पाया है कि यह योजना गरीब प्रवासियों की आवास संबंधी माँग के गतिशील स्वरूप से कुछ ही कम रह गई है । हमारा तर्क यह है कि प्रभावी बने रहने के लिए इस योजना के डिज़ाइन में अच्छी तरह से परिभाषित लक्ष्य वाले लाभार्थियों के साथ भागीदारी से संबंधित परामर्श होना ही चाहिए।

प्रवासियों की आवास संबंधी आवश्यकताएँ
अध्ययन से पता चलता है कि प्रवासी अपने गंतव्य शहरों में बढ़ोतरी आवास दृष्टिकोण अपनाते हैं, जिसके कारण वे मौजूदा अनौपचारिक बस्तियों में अपेक्षाकृत सस्ती दर पर किराये के ठिकाने खोज लेते हैं। काम-धंधे कीअसुरक्षितता, अनौपचारिक सामाजिक सुरक्षा-लाभों के अभाव, कम और अनियमित आमदनी और बार-बार स्थान बदलने के कारण अनौपचारिक काम-धंधे के संदर्भ में किराये के घरों में दी गई छूट विशेष रूप से उपयोगी है। किराये का ठिकाना मात्र निवास स्थल ही नहीं है, बल्कि एक ऐसा संभावित कार्यस्थल या मंच है जहाँ से शहरी संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं और यह प्रवासियों के सगे-संबंधियों का ठिकाना भी है। इन सबको मिलाकर ही “आवास” बनता है. ।बढ़ोतरी आवासन की यह समग्र प्रक्रिया और बहुविध कार्यात्मक उपयोगिता की सुविधा अनौपचारिक आवासन के माध्यम से गरीब प्रवासियों को उपलब्ध है। परंतु किरायेदारी के अनौपचारिक संबंध बहुत अस्थिर होते हैं और इससे निजी मकान मालिकों को किरायेदारों पर मनमानी करने के अधिकार मिल जाते हैं। अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) योजना जैसे किराये वाले जन आवास कार्यक्रम से हालात पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन यह असर तभी होगा जब उसका जटिल वास्तविकता से सामना होगा।

अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) एक प्रतिक्रियात्मक नीति-निर्धारण दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है जिसमें सरकार ने कोविड-19 महामारी से उत्पन्न समस्याओं का जवाब में ये योजना बनाई  है। इस कारणवश नीति निर्माताओं को समस्या-समाधान सीमित समय और संसाधनों को मद्देनज़र रख के करना पड़ता है। इस प्रकार, विभिन्न हितधारकों के साथ भागीदारी और सहयोगी परामर्शों की अनुपस्थिति में  यह योजना अपर्याप्त तरीके से डिजाइन किए जाने का जोखिम उठाती है।स्थल, वर्गीकरण और किफ़ायत के संदर्भ में आवासन के विकल्पों की श्रृंखला के लिए उनकी आवश्यकता के कारण भागीदारी का दृष्टिकोण, खास तौर पर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के अंतर्गत नियोजित प्रवासी परिवारों के मामले में बहुत महत्वपूर्ण है।

किराये वाली आवासीय योजनाओं के बाद
अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) शहरी प्रवासियों के लिए किराये वाले जन-आवासों के निर्माण का यह कोई पहला प्रयास नहीं है। बंबई विकास विभाग (BDD) ने 1920 के दशक में इन योजनाओं को सबसे पहले मिल में काम करने वाले प्रवासियों के लिए लागू किया था। राज्य सरकार ने सन् 1921 में सिंगल रूम के मकान बनाने की ज़िम्मेदारी का निर्वाह करते हुए मुंबई में बीडीडी चॉल के नाम से मशहूर चॉल का निर्माण किया था। जैसा कि भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में उल्लेख किया गया है कि बीडीडी ने किरायेवाले पचास हज़ार घर बनाने की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की थी, लेकिन निर्माण की बढ़ती लागत और किराये की रकम देने में लाभार्थियों की असमर्थता के कारण यह परियोजना मात्र पन्द्रह हज़ार घर बनाकर ही रोक देनी पड़ी।लगभग सौ साल के बाद 2008 में महाराष्ट्र राज्य सरकार ने शहरी प्रवासियों के लिए इसी प्रकार की किराये वाली आवास योजना शुरू की थीः मुंबई महानगरीय क्षेत्र विकास प्राधिकरण- किराये वाली आवास योजना (MMRDA–RHS) । इस योजना का महत्वाकांक्षी लक्ष्य था, जन-निजी भागीदारी (PPP) विधि अपनाते हुए 2008 से 2013 के बीच पाँच वर्षों की अवधि में सिंगल रूम वाले पाँच लाख घरों का निर्माण करना । अंततः यह परियोजना निम्नलिखित अनेक कारणों से अनुपयुक्त सिद्ध हुई । न रहने लायक आबादी के घनत्व का लक्ष्य, निजी खिलाड़ियों का दिलचस्पी न लेना और किराये के आवास स्टॉक के प्रबंधन में जन-एजेंसियों की असमर्थता । यहाँ उल्लिखित दोनों ही योजनाओं में भारी परिवर्तन करना पड़ा । राज्य नियंत्रित बीडीडी चाल से लेकर निजी भागीदारी वाले एमएमआरडीए-आरएचएस योजना, इन दोनों योजनाओं में सरकारी दृष्टिकोण की एक स्पष्ट बदलाव का प्रदर्शन किया गया है। मुंबई महानगरीय क्षेत्र विकास प्राधिकरण- किराये वाली आवास योजना (MMRDA–RHS) के अनुभव से पता चलता है कि निजी खिलाड़ियों की कम भागीदारी होने पर निजी बाज़ार पर अधिक निर्भरता के कारण किराये वाली किफ़ायती आवास-गृह (ARHC) योजना के कार्यान्वयन में रुकावटें आ सकती हैं । आम तौर पर नीति संबंधी इतिहास से पता चलता है कि महत्वाकांक्षी डिज़ाइन के आवर्ती पैटर्न निम्नलिखित कारणों से सफल नहीं हो पाते । या तो वे लाभार्थियों की आवश्यकताओं और क्षमता के अनुरूप नहीं होते या फिर आकर्षक प्रोत्साहनों के बावजूद निजी हितधारकों द्वारा उनकी खरीद कम होती है ।

अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (.आर.एच.सी.) के सामने आने वाली चुनौतियाँ
इन निष्कर्षों के आलोक में नीति संबंधी प्रलेखों को अच्छी तरह से पढ़ने के बाद हमने अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) योजना के कार्यान्वयन में आनेवाली संभावित अड़चनों से जुड़ी चुनौतियों को चिह्नित कर लिया है. पहला, राज्य द्वारा सीधे हस्तक्षेप के बजाय, अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) योजना कार्यान्वयन के लिए अन्य बाजार के खिलाड़ियों पर बहुत अधिक निर्भर करती है।

इस योजना में उल्लेख किया गया है कि कार्यान्वयन संबंधी एजेंसियों के लिए आवश्यक है कि वे या तो खाली पड़े पुराने सरकारी मकानों की मरम्मत करवाएँ या फिर नये आवासीय यूनिट बनवाएँ । जैसा कि मुंबई महानगरीय क्षेत्र विकास प्राधिकरण- किराये वाली आवास योजना (MMRDA–RHS) के संदर्भ में चर्चा की गई थी कि इस योजना के सामने यह जोखिम भी आ सकता है कि इसे अपनाने के लिए निजी क्षेत्र का कोई खिलाड़ी सामने न आए । दूसरी चुनौती यह है कि नीति संबंधी प्रलेखों में इस योजना के संभावित लाभार्थियों को चिह्नित करने की किसी साधन-परीक्षण विधि (means-testing method) का उल्लेख नहीं किया गया है. चूँकि पात्रता के अंतर्गत आय के किसी मानदंड का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए हो सकता है कि इस योजना में सबसे अधिक गरीब आबादी के अधिकांश लोगों का उल्लेख ही न हो और उनसे कुछ बेहतर आय वाले लोगों का उल्लेख हो । तीसरी चुनौती यह है कि किसी व्यक्तिविशेष को आबंटित किये गए निवास स्थान का उपयोग केवल निवास के प्रयोजन के लिए ही किया जा सकता है और परिसर के अंदर किसी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि नहीं चलाई जा सकती । यह शर्त शहरी प्रवासियों की जीवन शैली के अनुरूप नहीं है क्योंकि वे तो अपने निवास स्थान से ही घर पर आधारित काम भी करते हैं । चौथी चुनौती यह है कि इस योजना के अंतर्गत व्यक्तिगत स्तर के लाभार्थियों के लिए किसी प्रकार की छूट का प्रावधान नहीं है । ये लाभार्थी शहर में रहते हुए ही अनिवार्यतः अपने परिवार और जीवन का विस्तार करते हैं । ये प्रवासी आम तौर पर बढ़ोतरी आवास प्रक्रिया को अपनाते हैं, जिसके अंतर्गत शहरी माहौल में किफ़ायती और लचीले आवासीय विकल्प की गुंजाइश रहती है । अंतिम चुनौती यही है कि भागीदारी प्रक्रिया को न अपनाने के कारण यह योजना प्रवासियों को अपने घर की सुविधाओं के संदर्भ में बहुत ही कम सुविधाएँ प्रदान करती हैं । इसके बजाय इस योजना में रियल इस्टेट विकासकर्ताओं, काम-धंधा दिलाने वाले ठेकेदारों और अनौपचारिक नियोक्ताओं जैसे निजी खिलाड़ी बहुत लाभ में रहते हैं । इन निजी खिलाड़ियों का प्रवासियों के जीवन पर पहले से ही भारी नियंत्रण रहता है ।
हमारा विश्वास है कि अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) योजना की शहरी प्रवासियों में निश्चय ही भारी माँग होगी । लेकिन हमारा सुझाव है कि इस योजना के अवांछित परिणामों को कम करने के लिए लक्ष्य समूह की स्पष्ट परिभाषा तय करना और सही पात्रों की स्क्रीनिंग के लिए उपयुक्त साधन-परीक्षण विधि (means-testing method) को शामिल करना आवश्यक होगा । इसके अलावा नीतिगत लक्ष्यों को लोगों की आवश्यकताओं के साथ जोड़ने के लिए भागीदारी प्रणाली द्वारा लक्ष्य समूह की माँग के विशिष्ट स्वरूप पर अच्छी तरह से ध्यान देना ज़रूरी है । इन स्पष्टीकरणों के आधार पर अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्स (ए.आर.एच.सी.) योजना  लागू करने के लिए और अधिक मज़बूत, गतिशील और किफ़ायती मॉडल अपनाया जा सकता है. 

मानव के (manav_k@iitb.ac.in) IIT, बंबई के नीति अध्ययन केंद्र में पीएच.डी के शोधार्थी हैं. वह आवासीय नीति और आवासीय अधिकारों पर शोध कर रहे हैं.

इंदीवर जोन्नालगड्डा (indivarj@sas.upenn.edu) नृवंशविज्ञान (Anthropology) में पीएच.डी के शोधार्थी हैं और वह पेंल्सिल्वेनिया विवि के दक्षिण एशिया अध्ययन विभाग में शहरी अनौपचारिक बस्तियों, नागरिकता और संपत्ति के अधिकारों पर शोध-कार्य कर रहे हैं.

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919