चुनौतियाँ और अवसर: भारत की इलेक्ट्रिक वाहन औद्योगिक नीति

12/05/2025
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इलेक्ट्रिक वाहन (EVs) अब मुख्यधारा में हैं. 2023 में वैश्विक स्तर पर बिकने वाली पाँच कारों में से एक इलेक्ट्रिक वाहन होगी. 2024 की पहली तिमाही मेंवैश्विक ईवी बिक्री में साल-दर-साल 25 प्रतिशत की वृद्धि हुईजो 2022 के समान वृद्धि दर को बनाए रखती है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि 2024 में चीन में नई कार बिक्री में इलेक्ट्रिक कारों की हिस्सेदारी 45 प्रतिशतयूरोप में 25 प्रतिशत और अमेरिका में 11 प्रतिशत से अधिक होगी. जनवरी-नवंबर 2024 सेचीन ने वैश्विक ईवी बाजार का नेतृत्व कियाजिसमें 15.2 मिलियन ईवी में से 9.7 मिलियन बेचे गए. वियतनाम और थाईलैंड में भी ईवी को पर्याप्त रूप से अपनाया गया हैजो 2023 में क्रमशः 15 प्रतिशत और 10 प्रतिशत बिक्री तक पहुँच गई है. ब्राजील (प्रतिशत)इंडोनेशिया (प्रतिशत) और मलेशिया (प्रतिशत) जैसे उभरते बाजार अनुकूल नीतियों के कारण संभावना दिखाई देती हैं. हालांकिखरीद के प्रोत्साहनों को बंद करने से उद्योग के विकास के लिए संभावित जोखिम पैदा होता है.

भारतजिसकी बाजार की हिस्सेदारी प्रतिशत हैने घरेलू ईवी और बैटरी निर्माण को समर्थन देने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना पर भरोसा किया है. अधिकांश देशों के विपरीतभारत में ईवी संक्रमण का नेतृत्व दोपहिया वाहनों-मोटरबाइक और स्कूटर द्वारा किया जाता है. यहाँहम चीनअमेरिका और अन्य देशों से सबक लेते हुए भारत के इलेक्ट्रिक मोबिलिटी परिदृश्य को आकार देने में नीति की भूमिका की जाँच कर रहे हैं. हालाँकि महत्वपूर्ण प्रगति हुई हैलेकिन ईवी पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) को पूरी तरह से विकसित करने और मौजूदा कमियों को दूर करने में इन नीतियों की प्रभावशीलता पर और अधिक जाँच की आवश्यकता है.

भारत की नीतियाँ 
नेशनल मिशन फॉर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी (NMEM) के तत्वावधान में भारत का राष्ट्रीय स्तर का EV ढाँचा स्थायी ऑटोमोटिव तकनीकों के विकास को बढ़ावा देता है. इसमें भारत में (हाइब्रिड और) इलेक्ट्रिक वाहनों का तेजी से अपनाना और निर्माण (FAME) योजनाएँ शामिल हैं. FAME I (2015) का उद्देश्य इलेक्ट्रिक दोपहियातिपहिया (जैसे ऑटो-रिक्शा)बसों और हाइब्रिड वाहनों के लिए सब्सिडी के माध्यम से EV अपनाने को बढ़ावा देना थाजबकि FAME II (2019) ने चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना को प्रोत्साहित करके और सब्सिडी वाले EV के लिए उच्च स्थानीयकरण की आवश्यकताओं को अनिवार्य करके बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया. एक अन्य बुनियादी उत्पादन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना हैजिसका उद्देश्य सब्सिडी के माध्यम से उन्नत सेल केमिस्ट्री (ACC) बैटरी और EV घटकों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना हैजिससे आयात पर निर्भरता कम हो. दूसरी ओरपीएलआई (PLI) योजना को वर्तमान में शामिल चौदह क्षेत्रों से आगे बढ़ाए जाने की संभावना नहीं है तथा इसमें संशोधन किए जाने की संभावना है.

इन पहलों के पूरक के रूप मेंसरकार ने ईवी पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) को 12 प्रतिशत से घटाकर प्रतिशत करनेईवी को परमिट आवश्यकताओं से छूट देने और ईवी चार्जिंग के लिए बिजली को सेवा के रूप में बेचने की अनुमति देने जैसे उपाय पेश किए हैं. ईवी खरीद के लिए ऋण पर अतिरिक्त आयकर कटौती जैसे बजट प्रावधान अपनाने को और प्रोत्साहित करते हैं. कर छूट की पेशकश करके राजमार्गों पर 25 किमी के अंतराल पर चार्जिंग स्टेशन जैसे चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास भी प्राथमिकता में शामिल है.

राज्य सरकारों ने भी माँग-पक्ष के लिए प्रोत्साहनअनुसंधान और विकास (R&D) सहायताश्रम प्रोत्साहन और बुनियादी ढाँचे के विकास के  अनुरूप नीतियाँ बनाकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. कर्नाटकमहाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यजो ईवी पंजीकरण में अग्रणी हैंने निवेश को आकर्षित करने और स्थानीय ईवी पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystems) को बढ़ावा देने के लिए व्यापक नीतियाँ बनाई हैं.

अन्य देशों की नीतियाँ
ईवी अपनाने की दिशा में वैश्विक स्तर पर दबाव अमेरिकाचीन और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा लागू की गई नीतियों में स्पष्ट है. यू.एस. मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम (IRA), चीन का नया ऊर्जा वाहन अधिनियम (NEV), और यूरोपीय संघ का नेट-ज़ीरो इंडस्ट्री ऐक्ट (NZIA) ने स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर वैश्विक बदलाव को दर्शायाजबकि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और प्रतिस्पर्धा के लिए विभिन्न रणनीतियों और निहितार्थों को प्रदर्शित किया. प्रत्येक क्षेत्र का दृष्टिकोण उनकी अनूठी प्राथमिकताओं के अनुरूप हैफिर भी सामान्य विषयों में वित्तीय प्रोत्साहनबुनियादी ढाँचा विकास और रणनीतिक व्यापार नीतियाँ शामिल हैं.

अमेरिका ने ईवी अपनाने को बढ़ावा देने के लिए कॉर्पोरेट औसत ईंधन अर्थव्यवस्था (CAFE) के  मानकों और राष्ट्रीय सब्सिडी कार्यक्रम जैसी नीतियों का लाभ उठाया है. IRA ने जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा निवेश के लिए $370 बिलियन का आवंटन कियाजिसमें घरेलू EV उत्पादन पर जोर दिया गया. मई 2024 तक चीनी EV पर आयात शुल्क बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने जैसे संरक्षणवादी उपाय वैश्विक EV बाज़ारों में अमेरिका की प्रतिस्पर्धी स्थिति को मजबूत करने के प्रयासों को रेखांकित करते हैं. हालाँकिअमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन ने IRA को खत्म करने की योजना बनाई है.

NZIA का उद्देश्य  विशेष रूप से बैटरी और भंडारण प्रौद्योगिकियों में अपने नेट-जीरो औद्योगिक आधार की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना है. NZIA यूरोपीय क्रिटिकल रॉ मैटेरियल्स ऐक्ट द्वारा पूरक व्यवस्था के माध्यम से सप्लाई चेन्स को सुरक्षित रखता है और गैर-ईयू संसाधनों पर निर्भरता को कम करने के लिए साझेदारी में विविधता लाता है. यूरोपीय संघ ने 2024 में अनुचित सब्सिडी और प्रतिस्पर्धी प्रथाओं पर चिंताओं का हवाला देते हुए चीनी ईवी पर टैरिफ भी लगाया है.

चीन की एनईवी नीति विद्युतीकरण में उसके नेतृत्व का अभिन्न अंग है. व्यापक सब्सिडीबैटरी प्रौद्योगिकी में निवेश और विनियामक अधिदेशों की विशेषता के कारणयह लीथियम-आधारित बैटरी सप्लाई चेन के महत्वपूर्ण हिस्से को कवर करती है.

ईवी उत्पादन में चीन का प्रभुत्व उसके ऑटोमोटिव उद्योग को उन्नत करने और वायु प्रदूषण से निपटने की रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप है. चीन अब इलेक्ट्रिक वाहनों और सौर पैनलों के लिए बैटरी के मामले में अग्रणी है. इसने उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन से प्राप्त लीथियम-आयन बैटरी के निर्माण में विशेषज्ञता का लाभ उठाकर ईवी बाजार में अपनी स्थिति मजबूत कर ली है.

अन्य देशों में नीतिगत समर्थन में ईवी की खरीद और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की शुरुआत के लिए समर्थन शामिल हैजबकि अन्य देश आंतरिक दहन इंजन वाली कारों के उपयोग को हतोत्साहित करने का प्रयास करते हैं. प्रत्यक्ष समर्थन के उपायों में खरीद की सब्सिडीआयात कर छूट और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए खरीद और परिचालन कर छूट शामिल हैं. सऊदी अरब और दक्षिण अफ्रीका को छोड़कर अन्य G20 देशों ने ईवी अपनाने का समर्थन करने के लिए अनेक तंत्र (mechanisms ) लागू किए हैं. उदाहरण के लिएफ्रांस और इटली "मालस" (“malus”) प्रणाली जैसे अप्रत्यक्ष उपायों को अपनाते हैंजो उच्च CO2 उत्सर्जन वाले वाहनों पर उच्च कर लगाते हैं.

नीति संबंधी प्रभावशीलता और चुनौतियाँ
क्या ब्राज़ीलभारत या दक्षिण अफ़्रीका जैसे देश चीन की हरित औद्योगिक नीति की नकल कर सकते हैंइन तीन उभरती अर्थव्यवस्थाओं में संरचनात्मक रूप से अलग-अलग ऑटोमोटिव उद्योगघरेलू पूर्व शर्तेंनीति और उद्यम प्रतिक्रियाएँ और प्रारंभिक औद्योगिक विकास परिणाम शामिल हैं.

भारत में, FAME जैसी राष्ट्रीय नीतियों और स्थानीय पहलों के माध्यम से चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का समर्थन किया गया है और टाटा मोटर्स जैसे घरेलू ईवी निर्माताओं के उभरने में मदद की है. चूँकि भारत में घरेलू ऑटोमोबाइल ब्रांड हैंइसलिए ईवी सप्लाई चेन में निवेश का स्तर ब्राज़ील और विशेष रूप से दक्षिण अफ़्रीका की तुलना में अधिक है. चीन की तुलना में भारतीय ईवी बाज़ार अभी भी छोटा है: 2019 में भारत में 0.6 मिलियन की तुलना में चीन में 250 मिलियन यूनिट बेची गईं, जबकि ऊपर उल्लिखित भारतीय पहलों ने विकास को बढ़ावा दिया हैईवी पारिस्थितिकी तंत्र  (ecosystem) को पूरी तरह से विकसित करने में उनकी पर्याप्तता के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न जस के तस बने हुए हैं.

एक ओर भारत ने ईवी प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने के लिए अनुसंधान एवं विकास (R&D ) केंद्र स्थापित किए हैंचीन और अमेरिका की तुलना में इसका शैक्षणिक उत्पादन और पेटेंटिंग गतिविधियाँ कम हैं. एक विघटनकारी उद्योग के सामान्य जीवनचक्र में इन्नोवेटर्स, शुरुआती ऐडॉप्टर और उसके बाद का विस्तार शामिल होते हैं. भारत मेंईवी क्षेत्र एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुँच गया हैजहाँ अगले कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर विनिर्माण की उम्मीद है. लीथियम-आयन बैटरी और ईवी विनिर्माण के लिए पूंजीगत वस्तुओं पर सीमा शुल्क में कटौती जैसे सरकारी उपाय इस बदलाव को गति देने के लिए तैयार हैं. इस वर्ष के बजट में 25 महत्वपूर्ण खनिजों को सीमा शुल्क में छूट प्रदान की गई है, और महत्वपूर्ण खनिज मिशन की स्थापना की गई हैजिससे बैटरी विकास में मदद मिलने की संभावना है.

भारत के कोयले पर निर्भर बिजली मिश्रण भी ईवी के पर्यावरणीय लाभों को बाधित करता है. इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए अक्षय ऊर्जा में पर्याप्त निवेश और भारत के बिजली क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन की आवश्यकता होगी. इसी तरहगति को बनाए रखने के लिए R&D क्षमताओं को बढ़ाना और किफायती चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करना आवश्यक है. वैश्विक स्तर परईवी बाजार में प्रतिस्पर्धा ने भू-राजनीतिक तनाव को जन्म दिया है. चीनी ईवी पर अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा टैरिफ में बढ़ोतरी और महत्वपूर्ण खनिजों पर चीन द्वारा निर्यात प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय व्यापार गतिशीलता के साथ औद्योगिक नीति के इंटरसैक्शन को दर्शाता है.

निष्कर्ष 
2024 के पहले ग्यारह महीनों मेंवैश्विक ईवी और हाइब्रिड कारों की 70 प्रतिशत बिक्री चीन में हुई. इसी समयचीन का व्यापार शेष लगभग ट्रिलियन डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर था. लोहाइस्पात और एल्युमीनियम जैसे विशिष्ट क्षेत्रों पर नए अमेरिकी प्रशासन द्वारा चीन पर लगाया गया टैरिफ इन बाजारों को नया आकार देने का एक प्रयास है. इससे पहलेयूरोपीय संघ ने अनुचित सब्सिडी और प्रतिस्पर्धी प्रथाओं का हवाला देते हुए चीनी ईवी पर टैरिफ लगाया था. चीनी ईवी के बारे में अन्य सरोकार यूरोपीय संघअमेरिका और अन्य जगहों पर मौजूद हैं.  ब्राज़ीलतुर्कीभारत और इंडोनेशिया ने चीन के निर्यात पर बड़ी बाधाएँ लगाई हैंउन्हें डर है कि उनके नवजात उद्योग चीनी हमले के सामने खत्म हो सकते हैं. चीन ने भी महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर और अब इलेक्ट्रॉनिक्ससौर पैनलों और ईवी के लिए मशीनरी के निर्यात को प्रतिबंधित करके जवाबी कार्रवाई की है.

भारत की ईवी नीतियाँ हरित ऊर्जा में परिवर्तन के लिए निरंतर प्रयास को दर्शाती हैंजिसमें FAME II, PLI योजनाएँ और राज्य-स्तरीय प्रोत्साहन जैसी पहल इसकी रणनीति का आधार हैं. हालाँकि, EV अपनाने की पूरी क्षमता का एहसास करने के लिए नवजात बैटरी उद्योगअपर्याप्त चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और कोयला-गहन बिजली उत्पादन जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिए. इसके अलावाभारतीय उपभोक्ता कीमत के प्रति संवेदनशील हैंऔर इलेक्ट्रिक कारें अधिक महंगी हैं.

ईवी संक्रमण की पूरी क्षमता को साकार करने के लिए लघु एवं मध्यम उद्यम (SME) का समर्थन महत्वपूर्ण होगा. SME, जो भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैंको ईवी घटक सप्लाई चेन को मजबूत करने के लिए उसके अनुरूप प्रोत्साहन की आवश्यकता है. चीन की हरित औद्योगिक नीतियों की नकल करना ब्राजीलभारत और दक्षिण अफ्रीका जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए चुनौतियों का सामना करना हैक्योंकि उनके ऑटोमोटिव उद्योगों और नीतिगत वातावरण में संरचनात्मक अंतर हैं. ब्राजील में एक बड़ा ऑटो उद्योग हैजिस पर विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (SME) का वर्चस्व हैजो दक्षिण अमेरिका के असेंबली हब के रूप में काम करता है. दक्षिण अफ्रीका का छोटा उद्योग यूरोप को निर्यात पर ध्यान केंद्रित करता हैजो न्यूनतम घरेलू नवाचार के साथ आयातित घटकों पर बहुत अधिक निर्भर करता है. भारत में तीन देशों में सबसे मजबूत ऑटोमोटिव घटक क्षेत्र (मुख्य रूप से ICE) हैजिसमें घरेलू फर्म 70 प्रतिशत राजस्व उत्पन्न करती हैं.

भारत का ईवी संक्रमण प्रक्षेप पथ भू-राजनीति पर भी निर्भर करता हैजिसमें महत्वपूर्ण खनिजोंप्रौद्योगिकी और वित्तपोषण तक पहुँच शामिल है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह संक्रमण व्यापक डीकार्बोनाइजेशन के लक्ष्यों के साथ संरेखित होनीतिउद्योग और शिक्षा जगत् में समन्वित प्रयासों और संसाधनों और प्रौद्योगिकी को सुरक्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी. इन चुनौतियों का समाधान करकेभारत खुद को संधारणीय गतिशीलता की ओर वैश्विक बदलाव में अग्रणी खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकता है.

जैसे-जैसे वैश्विक ईवी परिदृश्य विकसित होता जाता हैभारत की औद्योगिक नीति को तत्काल प्रोत्साहन और दीर्घकालिक स्थिरता के लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाना चाहिए. चीन की बाजार संबंधी रणनीतियोंअमेरिका की प्रोत्साहन संरचनाओं और यूरोपीय संघ के विनियामक ढाँचों से सबक लेते हुएभारत एक प्रतिस्पर्धी और पर्यावरण की दृष्टि से स्थायी ईवी पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) बनाने के लिए अपनी नीतियों को परिष्कृत कर सकता है. बुनियादी ढाँचे में रणनीतिक निवेशवैश्विक OEMs के साथ साझेदारी और स्थानीय नवाचार को बढ़ावा देना भारत के इलेक्ट्रिक मोबिलिटी भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण होगा. जैसे-जैसे भारत अपनी नीतियों को परिष्कृत करना जारी रखता हैये तमाम सबक प्रभावी कार्यान्वयन का मार्गदर्शन कर सकते हैं जो आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता का समर्थन करते हैं.

साओन रे

Author

साओन रे भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER)नई दिल्ली में प्रोफेसर हैं. वे भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों पर A Primer on Electric Vehicles in India: A Machine-Generated Literature Overview 2025th Edition (Springer, 2024) की सह-संपादिका हैं.

(Hindi Translation by Vijay K. Malhotra)
हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (हिंदी), रेल मंत्रालय, भारत सरकार