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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ: अंदर की एक झलक

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20/05/2019
वाल्टर ऐंडर्सन

भारत का सबसे अधिक प्रभावशाली गैर सरकारी संगठन (NGO) है, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS). इसका तेज़ी से विकास हुआ है और इसकी चर्चा हाल ही की मेरी पुस्तक ‘The RSS: A View to the Inside’ (सहलेखकः श्रीधर दामले) में की गई है. यह पुस्तक कुछ हद तक मेरी पिछली पुस्तक ‘The Brotherhood in Saffron’ की अगली कड़ी है, जिसमें भारत में आए सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के साथ-साथ इस पुस्तक के प्रकाशित होने के तीन दशक पहले के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का लेखा-जोखा दिया गया है. 

आज के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और तीस साल पहले के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) में क्या अंतर है और यह अंतर इतना महत्वपूर्ण क्यों है? सबसे स्पष्ट अंतर तो यही है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और उसके परिवार से संबद्ध संगठन उस समय हाशिये पर रहने वाले खिलाड़ी थे और आम तौर पर देश के बाहर के लोग उन्हें जानते भी नहीं थे और भारत के लोग भी उन सबको नहीं जानते थे. इस स्थिति में नाटकीय परिवर्तन आ गया है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और उसके परिवार से संबद्ध संगठनों का खास तौर पर नब्बे के दशक से तेज़ी से विस्तार हुआ है. यह विस्तार बाज़ार में आए सुधारों के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में हुए विस्तार के तकरीबन साथ-साथ ही हुआ है. शायद इसका सबसे दिलचस्प पहलू यही है कि इसका निर्माण और विस्तार देश के तमाम भागों में फैले हुए सौ से अधिक संबद्ध संगठनों के रूप में हुआ है, जिनका फैलाव खास तौर पर पूर्व और पूर्वोत्तर में तेज़ी से हुआ है, जहाँ पहले उनकी उपस्थिति न के बराबर थी. इसमें भारत की सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) का सबसे बड़ा मज़दूर संगठन, भारतीय मज़दूर संघ, विद्यार्थियों की सबसे बड़ी विद्यार्थी परिषद और भारत की सबसे बड़ी निजी स्कूल प्रणाली शामिल थी. इनमें से अधिकांश समूहों का गठन 1994 के तीव्र वृद्धि के दौर में हुआ था. इनमें से एक निष्कर्ष हमारे नौ केस स्टडी के अध्ययन से सामने आया है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की विचारधारा पर इन तमाम संबद्ध संगठनों का गहरा प्रभाव पड़ता है.

दूसरा परिवर्तन यह हुआ है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) मुख्यतः इन तमाम संबद्ध संगठनों की लॉबिंग पर निर्भर रहने लगा है ताकि नीति-निर्माण की प्रक्रिया में उसकी भी भूमिका बनी रहे. सन् 2009 में अपने पूर्ववर्ती प्रमुख से कार्यभार ग्रहण करके मोहन भागवत सबसे अधिक मुखर और 93 साल के अपने इतिहास में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के सबसे बड़े राजनैतिक प्रमुख के रूप में उभर कर सामने आए. उन्होंने सन् 2008 में तीन भाषण दिये थे, जिनमें असाधारण परिणामों की सिफ़ारिश की गई थी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के मिशन में बदलाव के संकेत दिये थे. अब इसका उद्देश्य मुख्यतः दैनिक शाखाओं में देश के हालात में सुधार लाने के लिए देशभक्ति की भावना का संचार करने के लिए युवकों को प्रशिक्षित करना मात्र ही नहीं रह गया है. अब संगठन स्वयं ही विशिष्ट नीतिगत मामलों में अपनी पैरवी करने के लिए तत्पर है. एक ऐसा संगठन जो अब तक राजनीति और राजनीतिज्ञों से एक दूरी बनाकर रहता था और जो अपने-आपको मात्र एक सांस्कृतिक संगठन ही बताता था उसके प्रमुख भागवत जी ने अपने सब मुखौटों को उठाकर फेंक दिया है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के पूर्व प्रचार प्रमुख और वर्तमान में भाजपा के महासचिव (और मोदी के सबसे नज़दीकियों में से एक) राम माधव ने एक असाधारण प्रैस सम्मेलन में आरंभिक वक्तव्य देते हुए कहा था कि सितंबर 2018 में दिल्ली में भागवत जी के तीन-दिवसीय शिविर का उद्देश्य भारत के बुद्धिजीवियों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के वास्तविक स्वरूप से परिचित कराना था और यह स्पष्ट करना था कि इसका मिशन भारत के लिए कितना कल्याणकारी है. उन्होंने आगे बढ़कर यह भी कहा कि अतीत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का नेतृत्व प्रचार से कतराता रहा है और इसके कारण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) को बदनाम करने के लिए उसके बारे में फैलाई गई झूठी अफ़वाहों को बल मिलता रहा है. इस प्रकार उन्होंने भागवत जी के प्रयासों की तुलना सोवियत “ग्लासनोस्त” के अभियान से की और इसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के लिए हितकारी बताया.
हमें अब यह लगने लगा है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का तीसरा और तत्संबंधी परिवर्तन रहा है उसकी और तत्संबंधी संगठनों में आई व्यापक पारदर्शिता. अब वे भारत के मंच पर आत्मविश्वास से भरकर सक्रिय खिलाड़ी की भूमिका में आ गए हैं. इसका एक उदाहरण तो यही रहा है कि भागवत जी ने पुरानी सभी परंपराओं को तोड़कर सीमित निष्ठावान् कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के बजाय अपने तीनों उपर्युक्त सार्वजनिक कार्यक्रमों में आम लोगों को भी आमंत्रित किया. इसके बाद एक दिन की बैठक हरिद्वार में आयोजित की गई और फिर नागपुर में दशहरे के अवसर पर आयोजित वार्षिक समारोह में उन्होंने जिस प्रकार से अपना संबोधन दिया,वह ठीक वैसे ही था जैसे राष्ट्रपति ट्रम्प ने स्टेट ऑफ़ यूनियन को संबोधित किया था.  सितंबर की अपनी “संगोष्ठी” में भागवत जी ने मुसलमान और हिंदू-दोनों ही समुदायों द्वारा अयोध्या के जिस स्थल पर अपना दावा किया गया है, उसी स्थल पर राम के प्रस्तावित मंदिर के निर्माण, राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की आवश्यकता,खेत की उपज के वसूली मूल्यों में वृद्धि, ईसाइयों और मुसलमानों को भारतीय नागरिक के रूप में स्वीकार करने और आगामी विधान सभाओं और लोकसभा के आम चुनाव में भाजपा को ही वोट देने जैसे अनेक मुद्दों पर जनता का आह्वान किया था. और आगे बढ़कर उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि लोग इन चुनावों में नोटा (किसी को भी वोट न देना) के विकल्प का चुनाव करके अपने वोट को जाया न करें ताकि चुनाव में भाजपा की जीत के आसार बढ़ सकें.

चौथा परिवर्तन यह हुआ कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) परिवार से संबद्ध संस्थाओं के सदस्य, खास तौर पर नीति निर्माण प्रक्रिया में और विकासमूलक प्रक्रिया में सीधे दखल देने लगे. सरकार की इन नीतियों का इन संगठनों के सदस्यों के हितों पर भारी असर पड़ता है. उदाहरण के लिए कृषि संबंधी संस्थाएँ खेती के समर्थन मूल्य, पानी, बिजली और उर्वरक आदि की लागत और ग्रामीण स्कूलों के पाठ्यक्रम जैसे विषयों में भी रुचि लेने लगे. इन विषयों से संबंधित नीति की पैरवी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की कृषि संस्था (भारतीय किसान संघ) जैसे संगठन करने लगे और इसका श्रेय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) को मिलने लगा. राजनीति में इस प्रकार का हस्तक्षेप सन् 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के जिस मॉडल की स्थापना इसके पहले प्रमुख के.बी.हेडगेवार ने की थी, उससे बिल्कुल हटकर था. उस समय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का प्रमुख उद्देश्य हिंदू समाज को मज़बूत और संगठित करना था. यह कहा जाता था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का प्रशिक्षण व्यक्तियों के चरित्र-निर्माण के लिए होता था और इससे ऐसी सामूहिक चेतना का निर्माण होता था जो अंततः राजनीति को प्रभावित करती थी. इस नीति की कई हिंदू राष्ट्रवादियों ने आलोचना की थी, जिनमें सबसे प्रमुख थे वी.डी. सावरकर, जिनके हिंदुत्ववादी दर्शन से प्रेरित होकर सन् 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की स्थापना की गई थी. इसके बावजूद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का नेतृत्व टस से मस न हुआ. उनके अनुसार उनका मूल मंत्र है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के प्रशिक्षण के माध्यम से तैयार होने वाले लोग इतने पूर्ण हो जाते हैं कि वे परिवर्तन लाने में सक्षम हो जाते हैं. सावरकर इससे इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने कटाक्ष करते हुए लिखा, “ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की समाधि पर यही लिखा जाएगा कि संघ का आदमी पैदा हुआ, शाखा में गया और वहीं मर गया.” भागवत जी के अनुसार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के स्वयं सेवक का जीवन शाखा के इर्द-गिर्द घूमने और व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास करने तक ही सीमित नहीं रहेगा. इसके बजाय उन्होंने संकेत दिया कि वह समाज की मुख्य धुरी बनेगा और समाज में परिवर्तन लाने के लिए राजनैतिक सत्ता को विवश कर देगा. 

विस्तृत संघ परिवार में विभिन्न हितों के प्रतिनिधियों को शामिल करना पाँचवाँ परिवर्तन है. यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के संगठन-परिवार में आपस में नीति संबंधी मतभेदों को दूर करने के लिए लगातार मध्यस्थता के प्रयास किये जा रहे हैं और बहुत-से लोग संघ के लिए अलग-अलग ढंग से नीतिगत आधार की पैरवी करने लगे हैं. इस पुस्तक में अनेक तरह की केस स्टडी के माध्यम से मध्यस्थता के इन प्रयासों का विश्लेषण किया गया है. जहाँ एक ओर हमने आंतरिक मतभेदों का विश्लेषण किया है, वहीं हम सचमुच यह देख कर हैरान भी रह गए कि नीति संबंधी मामलों में बढ़ते मतभेदों के बावजूद संघ से संबद्ध संस्थाओं में परस्पर एकजुटता की भावना भी बनी रही. भारत के अनेक बड़े संगठनों और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) में यही सबसे बड़ा अंतर है. इन तमाम बड़े संगठनों का स्वरूप संघ की तुलना में बहुत कमज़ोर है. हमारा निष्कर्ष यही है कि संघ परिवार में अंतर्निहित एकजुटता के तीन प्रमुख कारण हैं, जिनमें अभी तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है.

पहला कारण तो यह है कि संघ से संबद्ध छोटे से छोटे और बड़े से बड़े अनेक संगठनों और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) में भी पूर्णकालिक कार्यकर्ता या प्रचारक (संगठन मंत्री प्रणाली पर आधारित) ही प्रशासनिक प्रमुख रहते हैं. ये वही लोग हैं जिन्हें प्रशिक्षु के रूप में कठोर प्रशिक्षण दिया जाता है और फिर आगे जाकर कोई न कोई काम जीवन-भर के लिए सौंपा जाता है. दूसरा अपरिवर्तनीय तत्व यही है कि यह प्रशिक्षण दैनिक, साप्ताहिक और मासिक रूप में चलने वाली स्थानीय शाखाओं में दिया जाता है और अब इनकी इकाइयों की संख्या बढ़कर 70,000 से ऊपर हो गई है, जिनमें लगभग बीस लाख नियमित प्रतिभागी भाग लेते हैं. इसके अलावा कई लाख और लोग भी हैं, जिन्हें चरित्र-निर्माण का प्रशिक्षण दिया जाता है और ऐसे हज़ारों लोगों से की गई मुलाकात से हमें लगता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) परिवार में एकजुटता का महत्वपूर्ण कारण है राष्ट्रीय भावना के साथ राष्ट्रनिर्माण का उनका संकल्प.  तीसरा पहलू है प्रत्येक संगठन की अपनी स्वायत्तता. यही कारण है कि ये लोग अपने सदस्यों की आकांक्षाओं का ख्याल रखते हैं.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के सामने अनेक सामाजिक चुनौतियाँ भी आएँगी जिनके कारण उनमें तनाव और बढ़ेगा और अपनी उस एकता को बनाये रखने के लिए उनके धैर्य की भी कठिन परीक्षा होती रहेगी जो अब तक उनकी दृढ़ता का मूलभूत कारण रहा है. उनकी दृढ़ता की कसौटी यही रहेगी कि वे इन तमाम मसलों का समाधान कैसे करते हैं.

जाति या जाति-प्रथा – केवल जाति की मूल अवधारणा के कारण ही नहीं- के प्रचलन के कारण हिंदू एकता के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के दीर्घकालीन लक्ष्य को धक्का लगा है और लगता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) आज भी दुविधा में है कि इस चुनौती का सामने कैसे किया जाए. समान अवसर प्रदान करने से जुड़े मुद्दे पर लगातार विमर्श होते रहना इस मसले का मात्र एक ही पहलू है.

भाजपा की जीत से दक्षिणपंथी उग्रवादियों का मनोबल जाहिर तौर पर बढ़ गया है और वे सांस्कृतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अक्सर हिंसक वारदातों में भी लिप्त हो जाते हैं.   भाजपा के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) को इस तरह की वारदातों को पूरी तरह से रोकना होगा, क्योंकि इसके कारण भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) दोनों ही देश-विदेश में असमंजस की स्थिति में आ जाते हैं और इसके कारण देश की धर्मनिरपेक्षता का ताना-बाना छिन्न -भिन्न होने लगता है. शहरी और ग्रामीण इलाकों में बढ़ती आर्थिक और सांस्कृतिक खाई और चौड़ी होने लगती है और इसके कारण हिंदू एकता को क्षति पहुँचती है, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) का मूल लक्ष्य है और संघ को चाहिए कि वह नासूर की तरह बढ़ती इस समस्या से निपटने के लिए व्यापक संकल्प करे.  

वाल्टर ऐंडर्सन जॉन्स हॉपकिन्स विवि के उन्नत अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन स्कूल में दक्षिण एशिया अध्ययन के वरिष्ठ सह प्रोफ़ेसर हैं.

 

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919