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राज कपूर से आमिर खान तक: बॉलीवुड सितारों को सांस्कृतिक राजनयिक मानना

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20/01/2025
स्वप्निल राय

वर्ष 2021 में जब कोविड-19 महामारी का प्रकोप जारी था और जब भारत में प्रतिदिन सबसे अधिक मौतें हो रही थीं और विवादित सीमा पर झड़पों के कारण भारत और चीन के बीच संबंध खराब हो गए थे, तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने अपने वीबो अकाउंट पर भारत में अंतिम संस्कार की चिताओं का मजाक उड़ाते हुए एक तस्वीर पोस्ट की थी, और उसे हाल ही में चीन द्वारा किए गए रॉकेट प्रक्षेपण की तस्वीर के साथ जोड़ दिया था. कैप्शन में लिखा था: “चीन में आग लगाना बनाम भारत में आग लगाना” (चित्र 1 देखें). हैरानी की बात यह है कि सीसीपी पोस्ट पर चीनी नेटिज़ेंस ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दिखाई और वे सीसीपी की असंवेदनशीलता को लेकर स्तब्ध थे, और फिर पोस्ट को तुरंत हटा दिया गया और इसके बाद भारत के लिए चीनी समर्थन की घोषणा की गई. भारतीय लोगों के प्रति

चित्र 1: स्रोत: BBC, मई 2021

सम्मान का यह संदेश मुख्य रूप से आमिर खान की चीन में अपार प्रसिद्धि से प्रेरित प्रतीत हुआ था. वेबो के उपयोगकर्ताओं ने बताया कि आमिर खान महामारी के शुरुआती चरण के दौरान चीन के प्रति समर्थन व्यक्त करने वाले पहले लोगों में से थे. झिहू (चीनी रेडिट) जैसे अन्य प्लेटफ़ॉर्मों पर, दर्शकों ने भारतीयों और आमिर खान के प्रति गहरी हमदर्दी प्रकट की थी और जब कुछ महीने पहले उन्हें कोविड-19 हुआ था तो उन्होंने कामना की थी कि “आमिर खान जल्द ही ठीक हो जाएँगे और 1.3 बिलियन भारतीय जल्द से जल्द टीकाकरण के बाद सामूहिक प्रतिरक्षा हासिल कर लेंगे,” महामारी के अगले चरण के दौरान दर्शकों की हमदर्दी को आकार देने में आमिर खान की भूमिका को रेखांकित किया गया था.

उपर्युक्त उद्धरण चीन में आमिर खान के स्टारडम द्वारा निर्मित सॉफ्ट पावर की शक्ति को दर्शाता है, जो  देश की सीमाओं से परे काम करता है. जब राजनीतिक वैज्ञानिक जोसेफ नाइ ने शुरू में सॉफ्ट पावर की अवधारणा का प्रस्ताव रखा था, तो उन्होंने इसे मीडिया, उत्पादों और अन्य साधनों के माध्यम से आकर्षण पैदा करने की राष्ट्रों की क्षमता के रूप में परिभाषित किया था, जो विदेशी जनता के लिए देश को सकारात्मक आलोक में पेश करता है. पारंपरिक दृष्टि से, उन आकर्षणों के सृजन की प्रक्रिया राष्ट्र-केंद्रित या राष्ट्र द्वारा शुरू की गई होती है. मेरा तर्क है कि सांस्कृतिक कूटनीति के व्यापक दायरे में, फ़िल्मी सितारे गैर-सरकारी अभिनेताओं के रूप में कार्य कर सकते हैं, तथा उनमें राष्ट्र की सीमाओं को पार करने की क्षमता होती है. इसलिए, चीन में आमिर खान का मामला उल्लेखनीय है, क्योंकि उनका स्टारडम भारत और चीन दोनों की ओर से राष्ट्र-केंद्रित प्रयासों से परे था.

आमिर खान अपनी फ़िल्म 3 ईडियट पायरेटेड सर्कुलेशन के कारण चीन में लोकप्रिय हो गए. फ़िल्म को पहली बार 2010 में हांगकांग इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दिखाया गया था, जिसे लोगों ने मौखिक प्रचार द्वारा खूब सराहा और यही कारण है कि बाद में बीजिंग इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल में भी इसे दिखाया गया. अनौपचारिक पायरेसी नेटवर्क के ज़रिए प्रसार के बाद आखिरकार इसे सिनेमाघरों में रिलीज़ किया गया. जब आमिर खान और अन्य लोगों को इस घटना के बारे में पता चला, तो चीन में फ़िल्म को औपचारिक रूप से रिलीज़ करने के प्रयास किए गए, जिससे फ़िल्म को व्यापक प्रशंसा मिली. हालाँकि, आमिर खान सिर्फ़ एक समकालीन उदाहरण हैं. अमिताभ बच्चन से लेकर, जिनके असाधारण स्टारडम की वजह से अफ़गानिस्तान में खुदा गवाह फ़िल्म के निर्माण के समय मुजाहिद्दीन से लड़ने में रुकावट आई, शाहरुख़ खान तक, जिनके गाने “कल हो न हो” को भारत में जर्मनी के राजदूत माइकल स्टेनर ने फिर से गाया (2012-15), भारतीय फ़िल्म सितारे सांस्कृतिक कूटनीति और सॉफ्ट पावर के लिए एक माध्यम बनते रहे हैं. यदि कोई देश सक्रिय रूप से शामिल नहीं है, तो यह कैसे संभव होगा?

अपनी पुस्तक Networked Bollywood: How Star Power Globalized Hindi Cinema में मैंने तर्क दिया है कि कुछ पुरुष मेगास्टार के पास स्टार स्विचिंग पावर होती है. मैं स्टार स्विचिंग पावर को कुछ सितारों की अपनी नेटवर्क की सीमाओं को पार करने और ऐसे कनेक्शन बनाने की क्षमता के रूप में परिभाषित करती हूँ, जहाँ पहले कोई नहीं था, जिससे उन्हें अज़रबैजान से लेकर जर्मनी तक के विविध क्षेत्रों में हिंदी फ़िल्म के लिए नये बाजारों में पैठ बनाना आसान हो जाता है. स्विच का रूपक यहाँ उत्पादक होता है क्योंकि इससे हमें यह कल्पना करने में मदद मिलती है कि कैसे सितारे, एक सर्किट के माध्यम से पहुँचने वाली बिजली की तरह, नए कनेक्शन और नेटवर्क को उजागर करते हैं.

स्टार स्विचिंग पावर के दो मुख्य घटक होते हैं. पहला घटक है आम तौर पर ऑन-स्क्रीन और ऑफ़-स्क्रीन व्यक्तित्व के माध्यम से हमें झकझोर देने वाली वास्तविक शक्ति, जो हमें भावनात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता  रखती है. हम इस तरह की शक्ति से अधिक परिचित होते हैं और इसे ही स्टारडम कहा जाता है. स्टार स्विचिंग पावर का दूसरा घटक है एक ऐसी प्रत्यक्ष और प्रभावी शक्ति, जो केवल कुछ सितारों के पास होती है, मुख्य रूप से पुरुष सितारों का पास. यह शक्ति स्टार के सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक और औद्योगिक प्रभाव के साथ-साथ उनके वर्ग, लिंग और जाति से प्राप्त होती है और उनसे प्रभावित भी होती है. सरल शब्दों में, प्रभावी शक्ति उस तरह की प्रत्यक्ष औद्योगिक और सामाजिक शक्ति को दर्शाती है जो अभिजात वर्ग और लिंग-आधारित संस्थागत और राजनीतिक नेटवर्क तक उनकी पहुँच के अलावा सितारों के महत्वपूर्ण व्यवसायी, निर्माता और बड़ी प्रोडक्शन कंपनियों के मालिक होने के साथ-साथ होती है. प्रभावशाली और वास्तविक दोनों प्रकार की शक्तियाँ एक साथ मिलकर एक स्टार को “स्विच” बनने और नए कनेक्शन चालू करने में मदद करती हैं, जो उद्योग को अपने मौजूदा औद्योगिक और भू-राजनीतिक-प्रभाव क्षेत्रों की सीमाओं को पार करने और भारतीय सिनेमा के लिए नये गैर-पारंपरिक बाजारों में प्रवेश करने में सक्षम बनाती है.

उदाहरण के लिए, शाहरुख खान (या SRK, जैसा कि वे लोकप्रिय रूप से जाने जाते हैं) एक पुरुष मेगास्टार हैं जिनके पास अत्यधिक प्रभावशाली शक्ति है. इसके साथ-साथ वह बॉलीवुड की सबसे बड़ी प्रोडक्शन कंपनियों में से एक रेड चिलीज के मालिक भी हैं. रेड चिलीज़ के माध्यम से शाहरुख अपनी फ़िल्म ‘कल हो न हो’ को जर्मन टीवी चैनल RTL2 पर रिलीज़ करने में सफल रहे, जिससे बॉलीवुड फ़िल्मों के लिए एक अज्ञात बाज़ार में शाहरुख के लिए ऑनलाइन प्रशंसकों  की तादाद में वृद्धि हुई. फिल्म की सफलता के बाद जर्मन प्रशंसकों ने एक ऑनलाइन फ़ोरम शुरू किया, जिसके बाद इस स्टार को समर्पित एक पत्रिका भी प्रकाशित हुई. फ़ैन क्लब का यह प्रयास अब एक पूर्णकालिक बॉलीवुड एजेंसी के रूप में विकसित हो चुका है, जो अब पत्रिकाएँ प्रकाशित करता है, पॉडकास्ट और फ़िल्म कार्यक्रम आयोजित करता है. शाहरुख की स्टार-स्विचिंग शक्ति के माध्यम से, जर्मन बाज़ार बिना किसी सायास सरकारी प्रयास के एक उद्योग के रूप में विकसित हो गया है. यह घटना अंततः 2015 में आधिकारिक कूटनीति में वापस आई जब राजदूत स्टीनर ने "कल हो न हो" पर आधारित नृत्य का एक वीडियो बनाया, जिसमें पूर्व भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद भी थे.

एक नए सर्किट को बदलने और प्रकाशित करने का विचार सृजनात्मक है, क्योंकि यह रूपक हमें यह समझने में मदद करता है कि इनमें से कुछ कनेक्शन पूरी तरह से पूर्वानुमान योग्य नहीं हैं, और उनके प्रभाव को सीधे मापना कठिन है. हालाँकि, इन सबकी परिणति पुरुष मेगास्टार के कैटलिस्ट और कनेक्शन को चालू करने वाले स्विच के रूप में होती है. इस तरह, बॉलीवुड सितारे दो अलग-अलग तरह की शक्ति को एक साथ लाते हैं: पहली शक्ति उनके स्टारडम से उत्पन्न भावना के माध्यम से अनुभव की जाती है और दूसरी शक्ति प्रमुख प्रोडक्शन कंपनियों के मालिक के रूप में संस्थाओं के निर्माण के माध्यम से उत्पन्न होती है, जिनके पास नेटवर्क बनाने की शक्ति होती है. इसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने भारत तथा विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों या अफ़गानिस्तान, सोवियत संघ और अन्य देशों में बसे गैर-भारतीय दर्शकों के माध्यम से अपना प्रभाव डाला.

पुरुष मेगा स्टार की स्विचिंग शक्ति बॉलीवुड के वैश्वीकरण का मुख्य आधार बन गई, जिसका एक कारण स्वतंत्रता के बाद से लोकप्रिय सिनेमा और फ़िल्म निर्माण के प्रति भारत सरकार की उदासीनता भी है. भारतीय फ़िल्म विशेषज्ञ अरुणा वासुदेव के शब्दों में, मुख्यधारा की फ़िल्मों को भारत सरकार और सांस्कृतिक अभिजात वर्ग द्वारा अधिक से अधिक एक साधारण मनोरंजन के रूप में ही देखा जाता था और सबसे खराब रूप में, "एक टाले जाने योग्य सामाजिक आपदा" के रूप में समझा जाता था. इस संदर्भ में, स्टार उद्यमी सरकार और उद्योग के बीच मध्यस्थ के रूप में मौजूद थे, जहाँ उन्होंने सरकार पर प्रभाव बनाने के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक और कूटनीतिक संदर्भों में अपनी स्विचिंग शक्ति का इस्तेमाल किया. भारतीय कूटनीतिक शब्दावली में सिनेमा को एक साधारण जन संस्कृति माना जाता था, जिसका दर्जा भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संगीत से भी निम्न था. इस प्रकार, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR), जो 1950 में सरकार द्वारा स्थापित अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए उत्तरदायी संस्था है, ने मुख्य रूप से शास्त्रीय नृत्य और संगीत को “उच्च संस्कृति” के रूप में प्राथमिकता दी है.

सितारे और फिल्में, विशेषकर मुख्यधारा की हिंदी फ़िल्में, राजनयिक आदान-प्रदान के दायरे से बाहर रहीं. इसके विपरीत चीन या रूस जैसे देशों में वैचारिक या राजनीतिक विचारों को प्रचारित करने के लिए उनकी सरकारें फ़िल्मों को सीधे वित्तपोषित करती हैं. और अमेरिका या दक्षिण कोरिया जैसे देश अपनी सॉफ्ट पावर को प्रस्तुत करने के लिए अपने लोकप्रिय मनोरंजन उद्योगों पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं और उन्हें प्रत्यक्ष रूप से समर्थन देते हैं, आंशिक रूप से उन्हें अन्य निर्यातों के साथ जोड़ा जाता है. यूनेस्को के उन शुरुआती अध्ययनों को याद करें, जिनमें अमेरिकी टीवी शो (विशेष रूप से मनोरंजन) के शेष विश्व में एकतरफ़ा प्रवाह की ओर संकेत किया गया था - यह प्रवाह संरचनात्मक रूप से अमेरिकी टीवी की आसान उपलब्धता में निहित था, जिसे राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की निर्यात नीतियों द्वारा संभव बनाया गया था, जिसने हॉलीवुड-निर्मित टीवी और फिल्म सामग्री को दुनिया भर में अमेरिकी आर्थिक हितों के स्वाभाविक विस्तार और निर्यात बढ़ाने के तरीके के रूप में स्थापित किया था. इसके परिणामस्वरूप, डलास (1978-1991) जैसे टीवी शो अमेरिकी सांस्कृतिक वर्चस्व के उदाहरण बन गए. इसके विपरीत, भारत की सॉफ्ट पावर, इसके मुख्यधारा के फ़िल्म उद्योग और करिश्माई उद्यमी सितारों के माध्यम से, आकस्मिक हैं और अधिक सटीक रूप से कहें तो मात्र एक संयोग है.

अगर विस्तार से बताएँ तो जब भारत ने पहली बार 1 अप्रैल, 1950 को चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे, तो वह ऐसा करने वाला एशिया का पहला गैर-साम्यवादी/समाजवादी राष्ट्र – था तो एक राजनयिक, राजनेता और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित को चीन में भारत के सांस्कृतिक और सद्भावना मिशन का नेतृत्व करने का काम सौंपा गया था. “इस यात्रा से दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, क्योंकि जैसा कि श्रीमती पंडित ने कहा, "चीनी अधिकारियों ने भारतीय सामाजिक और आर्थिक स्थितियों को दर्शाने वाली एक पूर्ण-अवधि की फ़ीचर फ़िल्म देखने की तीव्र इच्छा बार-बार व्यक्त की थी.” फ़िल्मों पर ज़ोर देना इसलिए ज़रूरी समझा गया था, क्योंकि माओ के लिए सिनेमा की एक विशेष भूमिका थी. माओ के लिए, फ़िल्में सिनेमाई प्रतीकों के माध्यम से शिक्षा देने, विचारधारा को प्रचारित करने और राजनीतिक मिथकों का निर्माण करने का एक तरीका थीं. भारतीय अधिकारियों को एक उपयुक्त फ़िल्म खोजने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा क्योंकि लोकप्रिय हिंदी फ़िल्मों को "अनुपयुक्त" माना जाता था, जो कि "समाज का सबसे निचला स्तर" था (फिल्म समीक्षक अरुणा वासुदेव और चिदानंद दास गुप्ता के भारतीय सिनेमा के बारे में देश की धारणाओं और विचारों पर लिखे गए लेख इस विषय पर अधिक जानकारी प्रदान करते हैं). आख़िरकार राज कपूर की आवारा और वी. शांताराम की मराठी फ़िल्म अमर भूपाली को चुना गया. यह आदान-प्रदान महत्वपूर्ण था क्योंकि बाद में आवारा माओ की पसंदीदा फिल्म बन गई.  

मिस्र में बच्चन की स्टारडम, स्टार प्रभाव और सांस्कृतिक कूटनीति की एक ऐसी ही कहानी बयां करती है. मध्य पूर्व के अन्य भागों के विपरीत, जहाँ भारतीय सिनेमा ने घुमावदार गैर-सरकारी नेटवर्कों के माध्यम से अपनी जगह बनाई, मिस्र एक उल्लेखनीय अपवाद के रूप में सामने आया, क्योंकि मिस्र के दूसरे राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासेर, शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्षता के लिए नेहरू के आवाहन में उनके मुख्य सहयोगी थे.  इसके परिणामस्वरूप, दोनों देशों के बीच किसी न किसी तौर पर औपचारिक रूप में फ़िल्मों का आदान-प्रदान होने लगा, जिसमें एक भारतीय-मिस्र फ़िल्म एजेंसी (अल-विकला अल-मिसरिया अल-हिंदिया ली-तौजीअल-अफलाम) मुख्य वितरक थी. गुटनिरपेक्ष संबंधों के बावजूद, 1970 में जब अनवर सादात ने नासिर का स्थान लिया तो इसमें भारी परिवर्तन आ गया. अमेरिका के साथ शीत युद्ध के कारण वैचारिक दूरी के अलावा, सादात का मानना ​​था कि भारतीय फ़िल्में मिस्र के स्थानीय उद्योग और नैतिकता के लिए हानिकारक थीं. हालाँकि, बच्चन और उनकी फ़िल्में एक दिलचस्प अपवाद बनी रहीं और उनकी व्यापक लोकप्रियता के कारण उन्हें प्रदर्शित किया जाता रहा. जब बच्चन 1991 में मिस्र गए, तो उनका स्वागत किसी और ने नहीं, बल्कि अनवर सादात की पत्नी जेहान अल-सादत ने किया.

इन सभी मामलों में, स्टार की स्विचिंग पावर से सितारों को देश की सीमाओं को पार करने में मदद मिलती है, तथा वे सांस्कृतिक कूटनीति में महत्वपूर्ण गैर-सरकारी अभिनेता बन जाते हैं. प्रशंसकों के माध्यम से, भावनात्मक आकर्षण और उनके सिनेमा द्वारा निर्मित जुड़ाव (प्रशंसकों की भावनात्मक अर्थव्यवस्था) के माध्यम से, सितारे भारत के बारे में सकारात्मक धारणा बनाते हैं और ऐतिहासिक रूप से ऐसा करते रहे हैं तथा सॉफ्ट पावर का विकास करते रहे हैं. इससे यह भी पता चलता है कि चीन में आमिर खान जैसे सितारों और अतीत में अन्य सितारों के प्रति दर्शकों का भावनात्मक समर्पण, जिसे मैं व्यक्तिगत तौर पर सामाजिक अभिनेताओं में भावनात्मक निवेश कहती हूँ, इन आकर्षणों को परिभाषित करने में मदद करता है और साझा अनुभवों और विकासपरक वास्तविकताओं में निहित सांस्कृतिक प्रतिध्वनि का निर्माण करता है. सिनेमाई सांस्कृतिक कूटनीति भारतीय लोक कूटनीति की परिपाटी में एक बाहरी परिपाटी है क्योंकि इसे सीधे सरकार द्वारा नहीं चलाया जाता है. इसलिए, यह कौतूहल की बात है कि भारत सरकार समकालीन संदर्भ में पुराने समय के समानांतर “बढ़िया स्वाद और संस्कृति” पर आधारित कला सिनेमा या नाट्य प्रदर्शनों और फोटो अवसरों के बीच क्यों झूल रही है, लेकिन कभी भी अपने लोकप्रिय मुख्यधारा के फ़िल्म उद्योग और भू-राजनीति में सितारों का रणनीतिक रूप से लाभ नहीं उठा पाई है.

स्वप्निल राय मिशिगन विश्वविद्यालय, एन आर्बर में फ़िल्म, टेलीविज़न और मीडिया विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं.  वह Networked Bollywood: How Star Power Globalized Hindi Cinema (कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी प्रेस, 2024) की लेखिका हैं.

 

Hindi translation: Dr. Vijay K Malhotra, Former Director (Hindi), Ministry of Railways, Govt. of India

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