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प्राकृतिक आपदाएँ और बाल विवाहः बिहार की एक केस स्टडी

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21/12/2020
मधुलिका खन्ना एवं निष्ठा कोछड़

पिछले कुछ महीने भारत में काफ़ी उथल-पुथल के रहे हैं. जहाँ एक ओर आर्थिक मंदी और कोविड-19 पर मीडिया का पूरा ध्यान केंद्रित रहा, वहीं दो दिखने में असंबंधित रिपोर्टें भी तेज़ी से बढ़ने वाले समाचार चक्र में आईं: महिलाओं के विवाह की कानूनी उम्र 21 तक बढ़ाने का प्रस्ताव और पूर्वी भारत में बाढ़. हालाँकि बाल विवाह अधिनियम (2006) के लागू होने के बाद से बाल विवाह का स्तर 38.69 प्रतिशत से कम होकर 16.1 प्रतिशत हो गया है, पूर्वी भारत में यह समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है. लगभग 30 प्रतिशत बाल विवाह इस क्षेत्र के चार राज्यों (बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल) में होते हैं. ज़ाहिर है कि विवाह की न्यूनतम आयु पर लगी कानूनी पाबंदी भी इस क्षेत्र में युवा लोगों को विवाह-सूत्र में बँधने से नहीं रोक पाई है. साथ ही बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों का दायरा बढ़ता जा रहा है और अचानक आई बाढ़ के कहर की घटनाओं की आवृत्ति और आकार भी आगामी वर्षों में बढ़ने की आशंका है.

इस क्षेत्र में छोटी उम्र में विवाह के स्थायी स्वरूप के क्या कारण हैं? हाल ही के अपने आलेख में हमने छोटी उम्र में विवाह और प्राकृतिक आपदाओं के बीच की कड़ी को समझने की कोशिश की और पाया कि आर्थिक नुक्सान करने वाली प्राकृतिक आपदाओं के कारण बाल विवाह का स्तर बढ़ सकता है. प्राकृतिक आपदाओं और छोटी उम्र की शादियों के बीच के संबंधों के मूलभूत कारणों को समझने के लिए हमने 2008 की कोसी नदी की उस बाढ़ का अध्ययन किया, जिसके कारण बाढ़-प्रभावित क्षेत्र में भारी आर्थिक नुक्सान हुआ था.

18 अगस्त, 2008 को, नेपाल में सुनसरी जिले के कुसहा गाँव में तटबंध में दरार आने के कारण, कोसी नदी फूटकर अपने पुराने रास्ते पर लौट आई, जिसे उसने दो-सौ साल पहले छोड़ दिया था. कोसी नदी के 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अपने पुराने मार्ग पर लौट आने से बिहार का कुछ हिस्सा पूरी तरह से जलमग्न हो गया. अररिया, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल और पूर्णिया के लगभग 1,000 गाँव गंभीर रूप से प्रभावित हुए. लगभग दस लाख लोग अस्थायी रूप से विस्थापित हो गए और इसके अलावा बीस लाख लोग अन्य रूप में प्रभावित हुए. हालाँकि राज्य सरकार ने तुरंत कार्रवाई की, फिर भी कई परिवारों को बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से बाहर अपने रहने की व्यवस्था करनी पड़ी. लगभग 440,000 से अधिक लोग दिसंबर, 2008 में अपने घर लौटने से पहले चार महीने तक राहत शिविरों में रह रहे थे. इस बाढ़ के कारण जान की हानि  तो कम हुई (527 जानें गईं अर्थात् बिहार की आबादी का 0.005 प्रतिशत), लेकिन कोसी नदी में बाढ़ आने के कारण भारी आर्थिक नुक्सान हुआ. अनुमानित नुक्सान INR 5,935 मिलियन रुपये ($134.9 मिलियन डॉलर) था, जो उस साल में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का 0.5 प्रतिशत था. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस बाढ़ को “राष्ट्रीय आपदा” भी घोषित किया.

विवाह के समय पर आई कोसी बाढ़ के प्रभाव को समझने के लिए हमने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे दौर का उपयोग किया और अंतरों-में-अंतर के प्रक्रिया के अंतर्गत शादी के समय में आई सामयिक घट-बढ़ के साथ-साथ बाढ़ के संसर्ग का लाभ उठाया. इस प्रक्रिया में शादी के समय पर बाढ़-प्रभावित और बाढ़ से अप्रभावित सभी ज़िलों में बाल विवाह में अंतर की तुलना करते हुए बाढ़ के प्रभाव की गणना उन जोड़ों की शादी की उम्र  में अंतर से की गई थी, जिनकी शादी 2001 और 2008 (जब इनमें से कोई भी समूह बाढ़ से प्रभावित नहीं हुआ था) के बीच में हुई थी और जिनकी शादी सितंबर 2008 और 2015 (जब वे लोग बाढ़-प्रभावित इलाके में रहते थे और जिन्हें इस बाढ़ के कारण आर्थिक नुक्सान झेलना पड़ा था) के बीच में हुई थी. यदिआप मान लेते हैं कि इन दो समूहों में शादी के समय में बाढ़ के अभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता तो अंतरों-में-अंतर अर्थात् दो अंतरों में अंतर से निकला अनुमान शादी के समय पर कोसी की बाढ़ के प्रभाव को दर्शाता है. डाटा में वे 18,797 महिलाएँ और 3,033 पुरुष शामिल हैं, जिनकी शादी 2001 और 2016 के बीच में अर्थात् बाढ़ आने (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे दौर में बिना किसी निर्धारित क्रम के केवल 15 प्रतिशत विवाहित पुरुषों का साक्षात्कार किया गया था) के सात साल पहले और बाद में हुई थी. महत्वपूर्ण बात यह है कि कोसी की बाढ़ और शादी के समय के बीच के कारण के संपर्क की वैधता प्रमाणित करने के लिए बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र में पचास के दशक में कोसी नदी के दोनों ओर बाँध निर्माण के समय से लेकर कई दशकों तक भारी बाढ़ का प्रकोप नहीं देखा गया है. सन् 2008 में जब से बारिश का सामान्य मौसम आने लगा है, पाँच बाढ़-प्रभावित ज़िलों के लोग बाढ़ का पूर्वानुमान बिल्कुल भी नहीं लगा पाए थे.

इस प्रक्रिया के द्वारा हमने दर्शाया है कि कोसी की बाढ़ ने शादी के लिए पुरुषों और महिलाओं दोनों की उम्र कम कर दी है, जिसके कारण पुरुष बाल विवाह में 6.9 प्रतिशत पॉइंट्स और महिला बाल विवाह में 3.6 प्रतिशत पॉइंट्स की वृद्धि हुई है. अगर हम अपने आँकड़ों को 3,033 जोड़ों तक सीमित कर देते हैं तो पुरुष बाल विवाह के मामलों में 7.1 प्रतिशत पॉइंट (p-मूल्य: 0.13) की वृद्धि हो गई है. यह वृद्धि पुरुष बाल विवाह के मामलों में वृद्धि के परिमाण के समान है. हमने यह भी पाया है कि बाढ़ आने के 2.5 वर्षों के अंदर होने वाली शादियों के कारण ही यह परिणाम सामने आया है. बाल विवाह पर बाढ़ का प्रभाव उन ज़िलों में कहीं अधिक था, जहाँ संपत्ति का नुक्सान अधिक भीषण था.

कोसी नदी की बाढ़ बाल विवाह की दरों को क्यों प्रभावित करती है? ऐसी आपदा से हुए आर्थिक नुक्सान के कारण कुछ परिवार अपने बेटे का विवाह करा कर उससे मिले दहेज़ से बुरे समय में निर्वाह कर सकते हैं. यदि ऐसा होता है तो चूँकि अमूमन पुरुष अपने से कम उम्र की महिलाओं से विवाह करते हैं, महिलाओं में भी बाल विवाह का दर भी बढ़ सकता है. अंततः हमने पाया कि शादी के समय पुरुषों और महिलाओं की आयु क्रमशः दस महीने और 4.5 महीने कम हो गई. निश्चय ही पुरुषों और महिलाओं की शादी की उम्र में कमी समान रूप से बराबर होने की ज़रूरत नहीं है. चूँकि महिलाओं की शादी के समय उनकी उम्र पुरुषों की तुलना में कम रहती है, इसलिए हमें उम्मीद करनी चाहिए कि पुरुषों और महिलाओं की उम्र का यह अंतराल कम होता जाएगा. 

इस स्पष्टीकरण के समर्थन में हमने यह पाया कि हिंदू परिवारों पर कोसी की बाढ़ का असर अधिक था; दहेज़ लेन-देन की परंपरा इन परिवारों में ज्यादा सक्रिय है. इसी प्रकार, बाढ़ के द्वारा बाल विवाह पर असर भूमिहीन परिवारों पर ज्यादा है; इन परिवारों को आपदा के बाद निर्वाह करने के लिए ज्यादा मुश्किल हुई होगी. हम यह भी दर्शाते हैं कि बाढ़ का असर स्कूल बिल्डिंग पर और स्कूल भर्ती पर नहीं पड़ा, जिससे यह पक्का हो जाता है कि बच्चों के स्कूल छोड़ने के कारण बाल विवाह में वृद्धि नहीं हुई. कोसी की बाढ़ के कारण लैंगिक अनुपात में आए परिवर्तन का कोई साक्ष्य भी नहीं मिला है, जिससे कि इस स्पष्टीकरण को रद्द किया जा सके कि हमारे मुख्य निष्कर्ष भू-जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर निर्भर करते हैं.

इन परिणामों से पता चलता है कि प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े आर्थिक नुक्सान की प्रतिक्रिया में बाल विवाह एक महत्वपूर्ण प्रतियोगी तंत्र हो सकता है. अगर निर्णय लेने वाले माँ-बाप दीर्घकालीन परिणामों पर विचार नहीं करते तो बाल विवाह के और भी दुष्प्रभाव हो सकते हैं. उदाहरण के लिए हमने पाया कि कोसी की बाढ़ ने विवाहित पुरुषों और महिलाओं के बीच माध्यमिक स्कूल की पूर्णता की दर घटा दी. हमें महिलाओं के आर्थिक परिणामों पर बाढ़ के विपरीत प्रभाव का भी प्रमाण मिला है जहाँ महिलाओं के काम करने की संभावना कम हो गई है, और उनके पास अपना धन होने की संभावना कम हो गई है. इस प्रकार के पैटर्न मौजूदा साहित्य से मेल खाते हैं कि जल्दी शादी होने से शिक्षा, स्वास्थ्य, काम और उनके बच्चों की मानव पूँजी जैसी महिलाओं के लिए कल्याणकारी गतिविधियों के विभिन्न पक्षों में कमी आ जाती है. इसलिए आर्थिक आघात के आलोक में छोटी उम्र की शादी से यदि माता-पिता के दृष्टिकोण में उचित भी हो, इसके कारण युवा जोड़े पर खास तौर पर महिला पर दीर्घकालीन दुष्प्रभाव हो सकते हैं.

इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि विवाह की परंपरा एक ऐसे चैनल की तरह है, जिसके माध्यम से आपदाओं का महिलाओं पर दीर्घकालीन स्थायी प्रभाव पड़ सकता है. नीतिगत प्रतिक्रियाओं पर ऐसी सोच जिसके कारण बाल विवाह और प्राकृतिक आपदाओं को अलग कर दिया जाए, आज उस समय खास तौर पर महत्वपूर्ण हो जाती है, जब पूर्वी भारत बार-बार बाढ़ के प्रकोप से जूझ रहा हो. इसके अलावा, कोविड-19 की महामारी के दौरान आजीविका के नुक्सान के कारण खास तौर पर पहले से ही अनेक गरीब युवा लोग जल्दी शादी करने के लिए मजबूर हो गए हैं. कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि पिछले कुछ महीनों में बाल विवाह की वारदातों में वृद्धि हुई है. नीतिगत दृष्टि से यह पहचानना ज़रूरी है कि यदि आपदा बीमा या कम लागत वाला ऋण आसानी से उपलब्ध हो जाता है तो प्रभावित परिवार के पास दहेज की प्रथा के अलावा भी उपाय रहेगा जिससेआर्थिक आघात झेलने के बाद निर्वाह किया जा सके ताकि प्राकृतिक आपदाओं और बाल विवाह के बीच के संपर्क सूत्र को कमज़ोर हो जाए.

मधुलिका खन्ना और निष्ठा कोछड़ जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में पीएच.डी. के प्रत्याशी हैं.

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919