नई दिल्ली में "एक मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत (FOIP) के लिए अपने देश की नई योजना पर प्रकाश डालते हुए जापानी प्रधान मंत्री फुमियो किशिदा ने घोषणा की कि "इस (योजना) को लागू करने के लिए भारत एक अनिवार्य साझेदार है.” मार्च में अपनी यात्रा के दौरान की गई उनकी टिप्पणी ने मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में भारत और जापान की "बेहद अनूठी स्थिति" और इसे बनाये रखने और मज़बूत करने में उनकी "महत्वपूर्ण जिम्मेदारी" को रेखांकित किया है. ऑस्ट्रेलिया और अमरीका के साथ क्वाड के सदस्यों के रूप में, दोनों देशों ने व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सामूहिक योगदान को और अधिक बढ़ावा दिया है.
भारत की विदेश नीति की तीन प्राथमिकताओं अर्थात् सुरक्षा, आर्थिक विकास और स्टेटस के संदर्भ में मौजूदा सरकार द्वारा निर्दिष्ट प्रगति के मामले में जापान आज भारत के सबसे प्रमुख रणनीतिक साझेदारों में से एक है. यदि आप भारत के नेतृत्व द्वारा की गई यात्रा को उपयोगी संकेतक के रूप में मानते हैं, तो जापान वह देश था जहाँ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल (2014-19) के दौरान सबसे अधिक दौरे किये और दूसरे कार्यकाल में हिरोशिमा में जी-7 शिखर सम्मेलन सहित कम से कम तीन अधिक दौरे किये हैं.
मोदी ने अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की तरह नैस्टेड रणनीतिक साझेदारी के एक सैट के माध्यम से भारत-जापान संबंधों का निर्माण किया है: द्विपक्षीय (भारत-जापान), त्रिपक्षीय (भारत-जापान-अमरीका; भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया), और चतुर्भुज (भारत-जापान- अमरीका -ऑस्ट्रेलिया). इस व्यापक तस्वीर को ध्यान में रखते हुए, कोई भी यह समझ सकता है कि साझेदारी आज स्थायी क्यों दिखाई देती है और इसे भारत की सबसे सफल साझेदारी में से एक माना गया है.
गठबंधन नहीं, बल्कि मुद्दा-आधारित नैटवर्किंग
भारत-जापान संबंध और उसके बाद क्वाड की छानबीन तब तक नहीं की जा सकती, जब तक कि यह न समझ लिया जाए कि भारत ने शीत युद्ध के बाद की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने हितों का अनुसरण कैसे किया है. अन्य बातों के साथ-साथ भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने वाली प्रमुख विशेषताएँ हैं, सामरिक स्वायत्तता का सिद्धांत, इस सिद्धांत का अनुसरण करने के लिए रणनीतिक साझेदारी (गठबंधन नहीं) बनाना, और (स्व-सहायता से परे जाकर) भारत की आज की सबसे स्पष्ट रणनीतिक चुनौती-चीन के लिए एक नैटवर्किंग प्रतिक्रिया बनाना.
मुद्दों पर आधारित गठबंधन, न कि मूल्यों पर आधारित संबंध, भारत की रणनीतिक साझेदारी को रेखांकित करता है. भारत ने यह रणनीतिक साझेदारी अमरीका, रूस, फ्रांस और जापान जैसे प्रमुख देशों के साथ की है. मौजूदा वैश्विक संदर्भ में अब यह कोई असामान्य स्थिति नहीं है, जैसा कि नई दिल्ली में किशिदा के इस दावे से पुष्टि होती है कि "हम (जापान) मूल्यों को थोपते नहीं है.
यही कारण है कि देशों के परस्पर संबंध उनके हितों (सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि), हालात (साझा क्षेत्र, भू-राजनीतिक ढाँचा), संगठनों की सदस्यता (जैसे क्वाड, BRICS और SCO) और विवादित क्षेत्र (समुद्री, ऊर्जा, जलवायु) पर आधारित होते हैं. साझेदारी नीति निर्माताओं और राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए समान रूप से चुस्त व्यवस्था बन जाती है,यही साझेदारी अस्थिर हालात में विश्व व्यवस्था के संचालन के लिए आवश्यक लचीलापन प्रदान करती है और इसके परिणामस्वरूप एक नैटवर्क तैयार होता है जिसमें एक ऐसी रणनीति दिखाई पड़ती है जिसमें द्विपक्षीय, मिनिलेटरल (जैसे त्रिपक्षीय, चतुर्भुज), और बहुपक्षीय फ़ॉर्मेट परस्पर संबंधित बल के गुणक बन जाते हैं.
अपने "चाइना चैलेंज" के लिए भारत की नैटवर्किंग प्रतिक्रिया में अतिव्यापी रणनीतिक साझेदारी का एक ऐसा नेटवर्क शामिल है, जो अपने पड़ोसी के खिलाफ़ रणनीतिक प्रतिरोध को मजबूत करने और चीनी अर्थव्यवस्था पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से सैन्य और आर्थिक दोनों आयामों पर जोर देता है.
जापान के साथ भारत की बातचीत इस नैटवर्क का एक प्रमुख घटक है और बाद में, शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से भारतीय भव्य रणनीति का प्रमुख घटक है.
भारत-जापान साझेदारी को अनपैक करना
अपने पड़ोस में ही चीन की हलचल के कारण आर्थिक पूरकता और साझा आशंकाओं ने भारत और जापान को शीत युद्ध के बाद की अवधि में सबसे करीब ला दिया. पिछले दशक के दौरान, विशेष रूप से, जापान द्वारा अपने राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी हालात को बदलकर शांतिवाद से दूर रखने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के बढ़ते प्रोफ़ाइल के कारण दोनों सरकारों को अवसर मिले. दोनों देशों के बीच कोई बड़ा मतभेद नहीं है, फिर भी शीत युद्ध के दौरान दोनों ने एक-दूसरे से दूरी बनाए रखी. इस हालात के प्रमुख कारण थे; सोवियत संघ के साथ भारत की दोस्ती, अमरीका के साथ असहज संबंध और इसकी गठबंधन प्रणाली (जापान सहित), और इसकी निरंकुश आर्थिक दृष्टि जो टोक्यो के निर्यातोन्मुख दृष्टिकोण के विपरीत थी. सोवियत संघ के पतन के बाद और भारत के प्रधान मंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव द्वारा "पूर्व की ओर देखो नीति" (1993) का भारत द्वारा अनुसरण करने और भुगतान संतुलन संकट का सामना करने वाले देश के रूप में अधिक सफल एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के साथ संबद्ध होने के लिए इसमें परिवर्तन आया. 1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों (जिसके कारण जापान द्वारा भारत की आलोचना करने और उस पर प्रतिबंध लगाने) पर एक छोटे-से आघात के अलावा, यह वक्ररेखा सकारात्मक ही रही और 2018 में मोदी और जापानी प्रधान मंत्री शिंजो आबे ने इस संबंध को "विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी" का स्वरूप प्रदान किया.
द्विपक्षीय संबंधों के अंतर्गत सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और भारत के स्टेटस में स्पष्ट रूप से बढ़ोतरी होने लगी.सिस्टम का एक कारक तो यही रहा कि मुख्यतः भारत-चीन संबंधों में भारी गिरावट के कारण मोदी सरकार का झुकाव जापान की ओर तेज़ी से होने लगा. जुलाई 2020 में महामारी के बीच गलवान घाटी में हुई झड़पों के कारण चीन के प्रति भारत के रुझान में अभूतपूर्व परिवर्तन होने लगे. नई दिल्ली जापान जैसी मित्र शक्तियों के साथ संबंधों को मज़बूत करके बीजिंग के खिलाफ़ रणनीतिक प्रतिरोध को मजबूत करने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ने लगा. यही कारण है कि जापान ने "यथास्थिति को बदलने के एकतरफा प्रयासों" का विरोध करते हुए सार्वजनिक रूप से भारत के प्रति अपना समर्थन घोषित कर दिया. जापान के विदेशी विकास सहायता (ODA) कार्यक्रम के अंतर्गत भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए FDI के साथ ऋण प्रदान करना और आर्थिक सहयोग के इस एजेंडे का मुख्य केंद्रबिंदु रहा है क्षमता निर्माण.
अमरीका के बाद जापान दूसरा देश था -जिसके साथ भारत ने 2019 में 2 + 2 मंत्रिस्तरीय संवाद स्थापित किया, जिससे दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की वार्षिक बैठक के लिए एक रूपरेखा तैयार हुई. इसके अलावा रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी (2015) के हस्तांतरण से संबंधित एक समझौते के साथ-साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास और विभिन्न सेवाओं में प्रशिक्षण, सैन्य-तकनीकी सहयोग और साझा ल़ॉजिस्टिक्स सपोर्ट (2020 में अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौता) आदि से यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों देशों के बीच एक ऐसा सुरक्षा एजेंडा तय हो गया है जो काफ़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है. किशिदा सरकार ने हाल ही में भागीदार देशों की "सुरक्षा और निवारक क्षमताओं" को बढ़ाने के लिए एक नई विदेशी सुरक्षा सहायता (OSA) योजना के साथ अपने ODA कार्यक्रम का विस्तार करने की घोषणा की है. इस घोषणा का भारत में स्वागत किया जाएगा.
परमाणु सप्लायर्स ग्रुप (2008) जैसे प्रतिष्ठित "क्लबों" में भारत के प्रवेश के लिए और क्षेत्रीय और हिंद-प्रशांत संस्थानों में परस्पर समन्वय के लिए भारत के स्टेटस के गैर-भौतिक पहलुओं को आगे बढ़ाने के लिए जापान ने भारत का समर्थन किया. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के संबंध में उनके हालिया मतभेदों (अर्थात् रूस की निंदा करने में भारत की झिझक) के बावजूद भारत-जापान संबंधों का आधार है, चीन पर दोनों देशों की साझा चिंताएँ और यही कारण है कि निकट भविष्य में इसके बदलने की संभावना नहीं है. इसलिए, दोनों पक्ष अपनी द्विपक्षीय प्रगति को बनाए रखने के लिए कुछ मुद्दों पर असहमत होने के लिए सहमत हैं. इसका लाभ उन्हें त्रिपक्षीय और चतुर्भुज नैटवर्क पर मिलता है.
त्रिपक्षीय देश और क्वाड
पुराने गठबंधनों के कमज़ोर होने और बड़े बहुपक्षीय ढाँचों की निरर्थकता के कारण इन देशों ने मिनिलेटरल व्यवस्थाओं को उपयोगी पाया है. इसके कारण उन्हें हैजिंग, सॉफ्ट-बैलेंसिंग, या सहयोगी देशों के साथ बेहतर समन्वय करने में मदद मिलती है. भारत और जापान एक त्रिपक्षीय सैटिंग, यानी भारत-जापान-अमेरिका (2011 से) और भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया (2015 से) संवाद के भीतर अमरीका या ऑस्ट्रेलिया के साथ काम कर रहे अपने मौजूदा संबंध को मजबूत करते हैं. दोनों की शुरुआत ऐसे समय में हुई थी जब नई दिल्ली अपने वैश्विक नज़रिये में अपने दाँव की हानि को सीमित करना चाहता था और बीजिंग का खुले तौर पर विरोध करने के लिए भी इच्छुक नहीं था.
उदाहरण के लिए, केंद्रित क्षेत्रों के संदर्भ में, भारत-जापान-अमरीका त्रिपक्षीय देशों का उद्देश्य क्षेत्रीय आर्थिक क्षमता विकास के लिए विकल्प स्थापित करना है, जबकि भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया संवाद के अंतर्गत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सप्लाई-चेन को लचीला बनाने के लिए महामारी के कारण आए व्यवधानों पर ध्यान दिया जा रहा है. इसलिए, त्रिपक्षीय व्यवस्था चतुर्भुज मंच अर्थात् क्वाड के कामकाज के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. इसके कारण भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमरीका को अतिरिक्त लाभ मिलता है.
2017 में शुरू हुई क्वाड की दूसरी पारी के बाद से, सभी चार सदस्य आक्रामक चीन के प्रबंधन के विचार के इर्द-गिर्द दृढ़ता से एकजुट हो गए हैं, क्योंकि चीन "नियम-आधारित व्यवस्था" को कमज़ोर कर रहा है. एक साथ मिलकर उन्होंने एक FOIP की वकालत की है, बीजिंग के लालच-भरे वित्तपोषण और ऋण प्रथाओं की निंदा की है, और अपनी अर्थव्यवस्थाओं को इससे दूर रख रहे हैं.
हालाँकि शुरू में भारत को चीन का सीधे तौर पर विरोध करने में हिचकिचाहट हुई, लेकिन बाद में 2020 में चीन-भारत की झड़पों के बाद से इस मंच के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का संकेत देने और अपने हितों के लिए क्वाड के एजेंडे को आगे बढ़ाने से भारत पीछे नहीं हटा. महामारी के सम्मिलित वैश्विक प्रभावों के कारण सभी चार सदस्य देशों ने अब चीन के संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है. भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी, जिसे कभी इस ग्रुप की सबसे कमजोर कड़ी के रूप में देखा जाता था, 2020 के बाद से बहुत तेज़ी से आगे बढ़ी है. दोनों पक्षों ने आर्थिक पूरकता के संबंध में दोहरा निर्माण किया है. ऑस्ट्रेलिया भी मालाबार नौसैनिक अभ्यास (भारत, जापान और अमरीका के बीच) में शामिल हो गया है और क्वाड नौसेनाओं के बीच सैन्य पारस्परिकता को बढ़ाते हुए इस साल पहली बार इसके तट पर अभ्यास किया गया था. बाद में द्विपक्षीय साझेदारी को मज़बूत करने से बड़े ग्रुप को लाभ होता है, जिसके कारण इसके समग्र कार्यसंचालन में वृद्धि होती है.
लेकिन क्वाड एशियाई नैटो नहीं है और शायद यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है. यह समान सोच रखने वाले भागीदारों का एक ढीला-ढाला नैटवर्क है, जो मिलकर व्यापक उद्देश्य को प्राप्त करते हैं. भले ही उनके बीच होने वाले संवादों को देखकर लगता हो कि उनकी पहल का स्वरूप असैन्य ढंग का है,लेकिन अगर हम ध्यान से उनके मौजूदा द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय तंत्र को देखें तो इन चारों देशों ने नियमित रक्षा सहयोग, खुफ़िया जानकारी को साझा करने और लॉजिस्टिक्स सपोर्ट के लिए अपना बेस बना लिया है. साथ ही, चतुर्भुज ढाँचे के मूलभूत स्वरूप में गैर-भौतिक और वैचारिक तत्व भी शामिल हैं, जो "लोकतांत्रिक ढाँचे" से ही विकसित हो रहे हैं, जैसा कि 2012 में अबे ने FOIP रणनीति को बढ़ावा देने के लिए इसे लोगों के सामने रखा था. इस तरह की वैचारिक कनैक्टिविटी भारत की स्टेटस पाने की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करती है और यह नई दिल्ली के "नैट सुरक्षा प्रोवाइडर" होने के केंद्रीय दृष्टिकोण को एक नैटवर्किंग प्रतिक्रिया के माध्यम से पूरा करती है जिसमें भारत-जापान साझेदारी की एक रचनात्मक भूमिका होती है.
जैसा कि किशिदा ने कहा था कि नई दिल्ली टोक्यो के हिसाब से निश्चय ही एक “अनिवार्य” भागीदार बन गया है. जापान की ओर से उसकी 2022 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में भारत के साथ सहयोग का भी उल्लेख है. भारत के साथ यह सहयोग "अपने सहयोगी और समान विचारधारा वाले देशों के बीच एक बहुस्तरीय नैटवर्क" विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है, जो बदलती वैश्विक व्यवस्था के लिए उसकी स्वयं की नेटवर्क-आधारित प्रतिक्रिया को दर्शाता है. क्षितिज पर संघर्ष के कोई प्रत्यक्ष मुद्दे नहीं होने के कारण, भारत-जापान भागीदारी के लिए पूर्वानुमान आशावादी बना हुआ है.