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हिंद-प्रशांत में भारतः “कम रिज़ॉल्यूशन” वाली उदार व्यवस्था का लाभ उठाना

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08/05/2023
केट सुलिवन डी एस्ट्राडा

मार्च 2023 में चार क्वाड देशों- ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और अमरीका की सबसे हाल ही की शिखर-स्तरीय बैठक उसी परिचित राग के साथ शुरू हुई: "हमारी आज की बैठक एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत का समर्थन करने के लिए क्वाड की दृढ़ प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है.

लेकिन यह "मुक्त और खुला हिंद-प्रशांत" है क्या? क्वाड सदस्यता के संदर्भ में "स्वतंत्रता और खुलेपन" पर बात करना व्यावहारिक सुरक्षा साझेदारी के लिए बयानबाजी से कुछ अधिक ही है. "स्वतंत्रता और खुलेपन" जैसे शब्द इन प्रमुख क्षेत्रीय अभिनेताओं द्वारा इस क्षेत्र में चीन की भूमिका और व्यवहार की वैधता पर सवाल उठाने के लिए तय की गई बयानबाजी की तरह हैं. हिंद-प्रशांत को "स्वतंत्र और मुक्त क्षेत्र" के रूप में पेश करने का मकसद यही है कि इस क्षेत्र में वही देश शामिल होने चाहिए जो नियमों का पालन करते हैं और जो इन मूल्यों का निर्वाह भी करते हैं और जो देश इन नियमों और मूल्यों का पालन नहीं करते, उन्हें इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं मिलना चाहिए.

क्वाड में और उसके माध्यम से भारत का दाँव स्पष्ट है: हिंद-प्रशांत के निर्माण के माध्यम से और इस विशेष चौकड़ी की सदस्यता के माध्यम से, हाल ही में नई दिल्ली की अपनी स्थिति और एजेंसी का तेज़ी से विकास हुआ है. फिर भी हिंद-प्रशांत की उदार दृष्टि के भीतर भारत का समावेश और उससे लाभ उठाना शुरू में जितना जटिल लग सकता है, वास्तव में यह उससे कहीं अधिक जटिल है. भारत - अपने नेताओं के विमर्श और नीतियों दोनों के ही माध्यम से - "स्वतंत्रता और मुक्त" के स्पष्टतः साझा क्वाड उद्देश्यों के कई पहलुओं को अच्छी तरह समझता है. इस क्षेत्र में हम जो कुछ भी देखते हैं - और भारत जिसका समर्थन करता है – वह है कम रिज़ॉल्यूशन वाली उदार व्यवस्था. यह दृश्य रूपक एक ऐसी व्यवस्था को चित्रित करता है जिसके विवरण बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट नहीं किये गए हैं : यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसकी मानक विषय सामग्री कठोर होने के बजाय लचीली है और जो बाहरी रूप से " समान विचारधारा " को कभी-कभी गहरे नहीं, बल्कि अधिक सतही रूप से पेश करती है.

इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद और इससे भी पहले, भारत द्वारा उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था अपनाने के कारण भारत ने व्यापक रूप से उदारवादी विचारों वाले देशों से अपील की थी कि वे भौतिक लाभांश की व्यापक खोज के हिस्से के रूप में उसे मान्यता दें और हैसियत प्रदान करें. आर्थिक संदर्भ में, भारत ने 1991 के आर्थिक संकट और अंतर्राष्ट्रीय मानक निधि (IMF) के संरचनात्मक समायोजन के बाद की माँगों के बाद विश्व अर्थव्यवस्था में अपने-आपको पूरी तरह से एकीकृत कर लिया. भारतीय राजनीति के स्तर पर, भारत के प्रतिनिधियों ने सार्वजनिक भाषणों और बहुपक्षीय स्तर पर की गई पहलों में भारत के दशकों लंबे और काफ़ी हद तक सफल लोकतांत्रिक अनुभव पर ज़ोर दिया. और, एक उदार सुरक्षा व्यवस्था से संकेत लेते हुए, भारत ने 2000 के दशक की शुरुआत में अमरीका के साथ एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए. भारत और अमरीका 2016 में आगे बढ़कर अपने रक्षा सहयोग को उन्नत करेंगे और 2017 से क्वाड के माध्यम से सुरक्षा सहयोग का एक व्यापक और गैर-बाध्यकारी रूप विकसित करेंगे.

शीत युद्ध के बाद उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रमुख मानदंडों के साथ महत्वपूर्ण संयोजन के बावजूद, भारत की प्रतिबद्धता अभी भी बनी हुई है. भारत और अंतर्राष्ट्रीय मामलों की विशेषज्ञ दीपा ओलापल्ली ने इसके लिए "वाद्य और आंशिक" शब्दों का प्रयोग किया है.  भारतीय नेताओं ने अमरीका के नेतृत्व वाली उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रमुख तत्वों का विरोध किया है क्योंकि भारत के अनुभव इस संबंध में हमेशा सकारात्मक नहीं रहे हैं. भारत के लिए, उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का कार्य आवश्यक रूप से चुने गए और खारिज किए गए तत्वों के  साथ विश्वास की तुलना में एक मानक और भौतिक संसाधन के रूप में अधिक रहा है.

यह सामरिक दृष्टिकोण तो बना रहता है, लेकिन युद्धाभ्यास के लिए भारत की गुंजाइश पहले से अधिक हो सकती है. हिंद-प्रशांत और क्वाड में प्रमुख उदार अभिनेता के रूप में अमरीका, हिंद-प्रशांत को एक उदार सुरक्षा व्यवस्था के रूप में सुनिश्चित करने में विशेष सामाजिक शक्ति बने रखने का अधिकार रखता है. जापान और ऑस्ट्रेलिया, हाल के नेतृत्व में आए बदलावों के विभिन्न क्षणों में, क्वाड के विचार को एक समुदाय के रूप में सामने रखता है जो निर्दिष्ट उदार मूल्यों के आधार पर साझा सुरक्षा प्रदान करता है. इसके विपरीत, भारत वैध उदारवादी पहचान और व्यवहार के बारे में लचीले स्थापित विचारों को बनाए रखने के लिए काम कर रहा है. इसके कारण नई दिल्ली अक्सर अपने विशिष्ट हितों को आगे बढ़ाने में सफल हो जाता है और अमरीका  और उसके सहयोगियों की छाया में "उदार समाजवादी" की भूमिका से बच जाता है.

"मुक्त और खुले" हिंद-प्रशांत के लिए क्वाड के सदस्यों की प्रतिबद्धता की उच्च-स्तर की जाँच से पता चलता है कि क्वाड के साथ भारत के जुड़ाव का पैटर्न विशेष रणनीतिक और राजनीतिक दृष्टि को प्रदर्शित करता है. सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात तो यह है कि भारत चीन को रोकने की कोई स्पष्ट सामूहिक रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए इच्छुक नहीं है. 2020 के मध्य में गलवान घाटी में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच सीमा पर तनावपूर्ण और एक बिंदु पर हिंसक झड़प के बाद से, रणनीतिक साझेदारी के लिए नई दिल्ली का रुझान बढ़ गया है और विशेष रूप से अमरीका के साथ रणनीतिक सहयोग पर इसकी सावधानी कम हुई है. फिर भी, भारत के उच्च रणनीतिकार कठिन सुरक्षा लाइनों के साथ क्वाड के गहन संस्थाकरण के विरोधी हैं. उदाहरण के लिए, भारत ने दक्षिण चीन सागर में गश्त के माध्यम से नौवहन की स्वतंत्रता को लागू करने में अमरीका का साथ नहीं दिया है और रूस के साथ उच्च-स्तरीय रक्षा सहयोग जारी रखा है. यह बाद की नीति अन्य तीन क्वाड भागीदारों के साथ भारत की इंटरऑपरेबिविटी को सीमित करती है, जबकि अन्य तीन क्वाड भागीदारों की साझेदारी आपस में उन्नत तकनीकी आदान-प्रदान के गहन स्तर को संभव बना देती है.

निश्चित रूप से, 2017 के बाद से, भारत ने शिखर स्तर की बैठकों में भाग लेने और कार्य समूह में शामिल होने जैसे क्वाड के संस्थाकरण के तत्वों को अपनाया है. हालाँकि, क्वाड के साथ अपने संबंधों में भारत सतर्कता अपनाता रहा है. भारतीय नेताओं ने उस स्थान के क्षेत्रीय तर्कों का विरोध किया है जिसके आधार पर क्वाड की परिकल्पना की गई थी.

सिंगापुर में 2018 शांगरी-ला संवाद में दिये गए एक प्रमुख बयान में, भारत के प्रधान मंत्री, नरेंद्र मोदी ने तर्क दिया था कि "भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र को एक रणनीति या कुछ सदस्यों के क्लब के रूप में नहीं देखता है". इसके बजाय भारत क्षेत्रीय स्तर पर “समावेशिता" को प्राथमिकता देता है और विशेष रूप से, "हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किसी भी तरह की व्यवस्था लागू करने और निर्णय लेने के लिए आसियान (ASEAN) की “केंद्रीयता" को मान्यता प्रदान करता है. भारत द्वारा 2019 में शुरू की गई हिंद-प्रशांत समुद्री पहल में भी विशिष्ट दृष्टिकोण के बजाय समान समावेशी दृष्टिकोण को व्यक्त किया गया था और यह पहल साझा मूल्यों के बजाय बुनियादी सामान्य हितों पर आधारित नियमों पर केंद्रित थी, जिसमें संस्थाकरण की कोई योजना नहीं थी.

स्पष्ट रूप से साझा अन्य क्षेत्रीय उदारवादी मूल्य सतह के नीचे भी अधिक असंगत हैं. क्वाड नेताओं ने "समुद्री क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय कानून की भूमिका को प्राथमिकता देने का संकल्प लिया है, विशेष रूप से जैसा कि समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन  (UNCLOS) में परिलक्षित होता है. “फिर भी भारत का नौवहन की स्वतंत्रता पर रुख चीन के समान है: भारत अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र में विदेशी सैन्य जहाजों की गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के अधिकारों का दावा करता है, जबकि प्रथागत कानून की अमरीकी रीडिंग इसके विपरीत है. इसके परिणामस्वरूप, भारत नेविगेशन संचालन अमरीकी स्वतंत्रता का लंबे समय से शिकार रहा है.

महत्वपूर्ण बात तो यह है कि घरेलू उदारवादी पहचान वाले चार लोकतांत्रिक देशों की इस क्वाड साझेदारी के लिए अमरीका की सिविल सोसायटी की खुली आलोचना के कारण भारत की सत्तारूढ़ हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली सरकार के मंत्रियों को बाहर निकाल दिया गया है, क्योंकि मोदी के नेतृत्व में भारत में उदारवाद पनप रहा है. अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया सभी ने आधिकारिक तौर पर यह चिंता व्यक्त करने से बचने की कोशिश की है कि भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है. क्वाड देश लगातार लोकतंत्र के रूप में अपनी साझा पहचान का सामूहिक उत्सव मनाते रहते हैं, जबकि  सामूहिक रूप से उनके दिल में एक विरोधाभास पनपता है: इसने पूरे क्षेत्र में घरेलू शासन मॉडल में विविधता के लिए सहिष्णुता के साथ-साथ भारत में उदारवाद और लोकतांत्रिक क्षरण के लिए अनुमेय स्थान बना लिया है.

इस क्षेत्र से परे, हिंद-प्रशांत के भीतर कुछ क्वाड हितों के समन्वय से अमरीकी, जापानी या ऑस्ट्रेलियाई प्रतिबद्धताओं को भारत सीधे-सीधे नहीं अपना सकता है. जैसा कि जयशंकर ने नवंबर 2022 में तर्क दिया था, "क्वाड को कभी भी इस रूप में नहीं देखा गया कि चारों देशों का सभी मुद्दों पर समान दृष्टिकोण हो."

व्यवस्था के संक्रमण की अवधि के बीच, पहचान के वैध रूपों और कार्रवाई को आकार देने वाले मूल्यों पर विवाद की आशंका हो सकती है. चूँकि हिंद-प्रशांत व्यवस्था अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है, इसलिए हम उम्मीद करेंगे कि भारत क्वाड समूह के संबंधों की शर्तों और हिंद-प्रशांत व्यवस्था की प्रकृति को इस तरह से आकार देगा जो उसकी अपनी पहचान और हितों को दर्शाता हो. निरंतर होने वाले परिवर्तन का मौजूदा संदर्भ और इस क्षेत्र में भारत के भौतिक और वैचारिक संतुलन कार्य के लिए उत्तरदायी अनिवार्य महत्व के कारण भारत को उस प्रकार की पहचान और व्यवहार पर अधिक मदद देता है जिसे उदार स्थान के रूप में वैध माना जा सकता हो.

अंततः, हिंद-प्रशांत के भीतर, कम-रिज़ॉल्यूशन वाली उदारवादी पहचान और मूल्य अनिश्चय की ऐसी स्थिति में हैं जिसमें भारत हैसियत में वृद्धि के साथ-साथ चीन के खिलाफ़ एक अल्पकालिक सुरक्षा कवच भी चाहता है. परंतु, क्वाड बनाम अमरीका के भीतर और बाहर अन्य संरक्षक या अमेरिका के नेतृत्व वाली उदार अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के अनुयायी निम्नलिखित कारणों से पहले से ही हिंद-प्रशांत की व्यवस्था के निर्माण पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं: भारत द्वारा पारंपरिक गठबंधन की अस्वीकृति, औपचारिक संस्थानों का विरोध, क्षेत्रीय समावेशन पर ज़ोर और अपनी लोकतांत्रिक पहचान पर बाहरी निर्णय को स्वीकार करने से इंकार करना.

वे ऐसे कम-रिज़ॉल्यूशन वाले उदार आदेश के अस्तित्व की पुष्टि करते हैं, जहाँ "स्वतंत्र और खुले" शब्दों का उपयोग किया जाता है और लचीले ढंग से इस संधि के तीन सहयोगियों-अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया- के बीच अंतराल को पाटने के साधन के रूप में इसे समझा जाता है और क्षेत्रीय व्यवस्था के संक्रमण की अवधि के दौरान चीन के सामाजिक बहिष्कार के संदर्भ में भारत इसे देखता है.

केट सुलिवन डी एस्ट्राडा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दक्षिण एशिया के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के ऐसोसिएट प्रोफेसर हैं और वह “India and Order Transition in the Indo-Pacific: Resisting the Quad as a ‘Security Community’.” शीर्षक वाले The Pacific Review के लिए हाल ही में लिखे गए open access लेख के लेखक हैं.

 

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (हिंदी), रेल मंत्रालय, भारत सरकार

Hindi translation: Dr. Vijay K Malhotra, Director (Hindi), Ministry of Railways, Govt. of India

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