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भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधः अब उपेक्षित नहीं

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19/06/2023
प्रिया चाको

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध एक लंबे अरसे से स्वाभाविक तो माने जाते हैं,लेकिन वे उपेक्षित भी रहे हैं. स्वाभाविक इसलिए थे, क्योंकि दोनों देशों के साझा लोकतांत्रिक मूल्य हैं और साथ ही साथ उनकी सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी साझा सांस्कृतिक इतिहास के कारण ही उद्भूत हैं. और उपेक्षित इसलिए हैं क्योंकि उनकी विदेश नीति के हित अलग- अलग हैं. इसकी शुरुआत तब से हुई जब से भारत ने शीत-युद्ध के समय गुट-निरपेक्षता की नीति को अपनाया और  ऑस्ट्रेलिया का गठबंधन अमरीका के साथ हो गया. वस्तुतः दोनों देशों के बीच परस्पर संबंधों की निर्मिति का “क्रिकेट, करी और राष्ट्रमंडल” का आधार तो सतही आधार था. ऑस्ट्रेलिया पहले तो ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एशिया और प्रशांत क्षेत्र में ऐंग्लो-सैक्सन वर्चस्व का एक उप-साम्राज्य समर्थक था और बाद में अमरीका का. भारत ने इन अधि‍क्रमिक राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाओं की आलोचना की और उनका विरोध भी किया और विशेष रूप से जवाहरलाल नेहरू के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के आधार पर विकसित भारतीय सभ्यता की असाधारण धारणाओं को बढ़ावा दिया. ऑस्ट्रेलिया ने शीत-युद्ध के उत्तरकाल में भी अमरीका के साथ अपना गठबंधन और ऐग्लोस्फ़ियर बनाये रखा और भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाये रखी. हालाँकि भारत की अर्थव्यवस्था का नब्बे के दशक में उदारीकरण हो गया और इसकी वृद्धि का मुख्य आधार विस्तृत सर्विस सैक्टर हो गया और ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था विशेष रूप से चीन को निर्यात किये जाने वाले उसके संसाधनों और शैक्षिक सेवाओं पर निर्भर थी. इसका अर्थ यह था कि संबंधों को गहन बनाने के लिए आर्थिक समानताओं की गुंजाइश बहुत कम थी.

लेकिन पिछले पाँच वर्षों में मुख्य रूप से चीन के साथ बढ़ते तनाव के कारण परिस्थितियों में नाटकीय परिवर्तन होने लगा. 2017 में चीन के साथ ऑस्ट्रेलिया के संबंध तेज़ी से बिगड़ने लगे. नीति-निर्माताओं का ध्यान ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत क्षेत्र में चीन की “दखलंदाज़ी” के खतरे पर लगातार केंद्रित रहने लगा,क्योंकि ऑस्ट्रेलिया प्रशांत क्षेत्र को अपना “प्रभाव क्षेत्र” मानता था. इसके कारण चीनी हस्तक्षेप को रोकने, ऑस्ट्रेलिया में चीनी निवेश पर अंकुश लगाने, अमरीका के साथ अपने गठबंधन को मज़बूत करने और जापान और भारत जैसे देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने की इच्छा के नाम पर ऑस्ट्रेलिया में अनेक दूरगामी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किये गए और इनके परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलियाई लोगों की सिविल लिबर्टी पर प्रहार होने लगा. जैसे-जैसे ऑस्ट्रेलिया और चीन के संबंध बिगड़ते गये, चीन ने पिछली लिबरल-नैशनल गठबंधन सरकार के खिलाफ़ राजनयिक "रोक" लगा दी, कुछ ऑस्ट्रेलियाई कृषि वस्तुओं और वस्तुओं के आयात को प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया और छात्रों को ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने से हतोत्साहित किया जाने लगा. इससे चीन से दूर ऑस्ट्रेलिया के बाज़ारों में विविधता लाने को बढ़ावा मिला. 2020 तक, विवादित सीमा पर चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच टकराव के बाद, चीन के साथ भारत के रिश्ते भी खराब हो गए थे. 1975 के बाद पहली बार हताहतों की संख्या में वृद्धि हुई. 2021 और 2022 के बीच झड़पें तो हुईं, लेकिन घायलों की हालत बहुत गंभीर नहीं थी और विवाद को सुलझाने के लिए की गई वार्ताएँ भी विफल रहीं. भारत ने स्थानीय उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए विनिर्माण योजनाएँ शुरू करके और कुछ चीनी टैक्नोलॉजी पर ड्यूटी, गैर-टैरिफ़ रोक और प्रतिबंध लगाकर और भारत में चीनी निवेश पर प्रतिबंधों के माध्यम से चीन पर भारी आर्थिक निर्भरता को कम करने की कोशिश की.

ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ चीन के संबंधों में एक साथ खटास आने के कारण दोनों देशों के बीच गहन संबंध बनाने में मदद मिली है. सन् 2020 में दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक भागीदारी की घोषणा कर दी गई और अंततः मालाबार समुद्री अभ्यास में भाग लेने की ऑस्ट्रेलिया की चिरसंचित इच्छा भी पूरी हो गई और इसकी मेज़बानी वह इस वर्ष कर रहा है. ऑस्ट्रेलिया ने अब भारत का दर्जा बढ़ाकर उसे "शीर्ष स्तरीय" सुरक्षा भागीदार बना दिया है और लंबे समय से विलंबित आर्थिक समझौते के लिए बातचीत में तेज़ी आ गई है, जिसके परिणामस्वरूप पिछले साल एक अंतरिम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. जहाँ एक ओर ऑस्ट्रेलिया हमेशा ही भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों का अधिक उत्साही समर्थक रहा है, लेकिन अब भारत आगे बढ़कर अधिक उत्साह दिखा रहा है और भारत में ऑस्ट्रेलियाई मंत्रिस्तरीय यात्राओं के अनुरूप 2022 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा करने के लिए अनेक मंत्रियों को भेज दिया.

क्वाड दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण बहुपक्षीय सहकारी तंत्र बन गया है. भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका का क्वाड गठबंधन पहले संयुक्त बयान जारी करने से बचता था और इसके नेता प्रमुख बहुपक्षीय आयोजनों के साइडलाइंस पर ही मिलकर संवाद किया करते थे. लंबे समय से क्वाड देशों में सबसे अधिक सतर्क रहने वाला भारत क्वाड की अपनी प्रेस विज्ञप्ति में भी रक्षा मुद्दों या चीन का ज़िक्र करने से बचता रहा है. परंतु, 2021 के बाद से, सरकार ने बुनियादी ढाँचे के निर्माण और महत्वपूर्ण टैक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों सहित व्यापक एजेंडा को रेखांकित करते हुए संयुक्त क्वाड बयान जारी करना शुरू कर दिया है, लेकिन इसके साथ ही साथ उसमें दक्षिण और पूर्वी चीन समुद्र के बारे में भी चिंता व्यक्त की गई है, जो परोक्ष रूप से चीन की गतिविधियों और महत्वाकांक्षाओं को संदर्भित करता है. द्विपक्षीय स्तर पर भी, ऑस्ट्रेलिया ने सेमिकंडक्टर जैसी महत्वपूर्ण टैक्नोलॉजी के लिए विश्वसनीय और पारदर्शी सप्लाई चेन बनाने, ई-कॉमर्स और AI जैसे उभरते क्षेत्रों में टैक्नोलॉजी के वैश्विक शासन को आकार देने और चिकित्सा उपकरणों और टीके जैसे क्षेत्रों में सहयोगात्मक नवाचार को आगे बढ़ाने के लिए भारत को एक भागीदार के रूप में चिह्नित किया है.

लोगों से लोगों के बीच संपर्क भी मज़बूत हुए हैं. भारत इस समय ऑस्ट्रेलिया में प्रवासियों और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है. डीकिन विश्वविद्यालय भारत में कैंपस स्थापित करने वाला पहला विदेशी विश्वविद्यालय बनने जा रहा है. एक नये लेबर मॉबिलिटी समझौते के माध्यम से छात्रों, शोधकर्ताओं, स्नातकों और व्यापार से जुड़े लोगों के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाया जा है. इसके अलावा, राजनेताओं और रक्षा और सुरक्षा विश्लेषकों के बीच अब बड़ी संख्या में "भारत समर्थक " लोग मौजूद हैं जो चीन के आलोचक हैं और भारत को साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ एक समान विचारधारा वाले भागीदार के रूप में लोगों के सामने पेश करते हैं. इन्हीं मूल्यों के आधार पर वे "नियम-आधारित" व्यवस्था को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग ने तो भारत सरकार के "गहन इतिहास और सभ्यतागत ज्ञान" के साथ "सभ्यतावादी शक्ति" के वक्तव्य को भी स्वीकार कर लिया है, जिसे अब हिंदू राष्ट्रवादी लैंस के माध्यम से प्रचारित किया जा रहा है जिसके अतंर्गत भारत की सभ्यता हिंदू सभ्यता है और मुसलमानों को आक्रामक और गुलाम बनाने वाली सल्तनत के रूप में माना जाता है. रायसीना डायलॉग में नरेंद्र मोदी के साथ अपने व्यक्तिगत प्रशंसा पत्रों और फोटो अवसरों के माध्यम से भारत के ऑस्ट्रेलियाई समर्थकों को भारत सरकार के प्रचार अभियानों में लक्षित किया गया है. दिल्ली दौरे पर आए प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बानीज़ का नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम में मोदी ने एक नायक की तरह स्वागत किया. स्वागत के दौरान वह रथ पर सवार थे. रथ परिवहन का एक ऐसा साधन है, जिसका हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति में बहुत महत्व है. सिडनी में, अल्बानीज़ ने एक भारतीय राजनीतिक रैली की तरह आयोजित एक कार्यक्रम में मोदी को "बॉस" के रूप में सम्मानित करने के लिए भगवे रंग की टाई पहनी थी. यह रंग सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उग्र हिंदू राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ है. इस कार्यक्रम को प्रवासी भारतीयों ने आयोजित किया गया था और इसमें भाजपा के प्रवासी मित्रों के नेता भी शामिल थे.

फिर भी अभी बहुत-सी चुनौतियाँ सामने हैं. उन्नत हथियारों के मामले में रूस पर भारत की निर्भरता ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के सुरक्षा सहयोग को सीमित कर देगी, क्योंकि रूस के प्रति उसका अविश्वास और रूसी और पश्चिमी हथियार प्रणालियों के पारस्परिक प्रभाव से सुरक्षा का जोखिम पैदा हो सकता है. युक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से रूस के साथ भारत की "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी" मजबूत हुई है. भारत ने रूस के आक्रमण की निंदा करने से इंकार कर दिया है, इसने रूसी ऊर्जा की खरीद बढ़ा दी है, यह रूस के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है,वह टैक्नोलॉजी और विनिर्माण की सप्लाई चेन के संबंधों को मज़बूत करना चाहता है और वह बैंक भुगतान की सुविधा के लिए रूस की वित्तीय संदेश प्रणाली को अपना रहा है ताकि रूसी बैंकों पर पश्चिमी प्रतिबंधों से बचा जा सके.

ऑस्ट्रेलिया-भारत के आर्थिक संबंध आज भी संकीर्ण हैं और उस पर कोयले का निर्यात हावी है. भारतीय कंपनियाँ ऑस्ट्रेलिया को भारत में बिजली उत्पादन के विस्तार के लिए भारत द्वारा नियंत्रित वैश्विक सप्लाई चेन से जोड़ने के लिए ऑस्ट्रेलिया में खनन के क्षेत्र में प्रमुख निवेशक रही हैं. कोयले की नई परियोजनाओं में निवेशकों और उधारदाताओं की कमी के कारण ये योजनाएँ खटाई में पड़ गई हैं.क्वींसलैंड में गैलिली बेसिन में भारतीय कंपनी GVK हैनकॉक की बड़े पैमाने की योजनाबद्ध खदानें अब निष्क्रिय पड़ी हैं और उसी क्षेत्र में अदानी की कारमाइकल खदान आरंभ में नियोजित मात्रा का छठा हिस्सा कोयला ही पैदा करती है.

कृषि में मंडियों की पहुँच को उदार बनाने में भारत की अनिच्छा और महत्वपूर्ण लेबर को गतिशीलता की अनुमति देने में ऑस्ट्रेलिया की अनिच्छा के कारण पूर्ण मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं. वीज़ा संबंधी धोखाधड़ी के आरोपों और वीज़ा प्रणाली में आमूल-चूल बदलाव की योजना के बाद ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने के लिए भारतीय छात्रों की तेजी से हो रही आमद में कमी आ सकती है.

जहाँ एक ओर उम्मीदें टैक्नोलॉजी के सहयोग पर टिकी हुई हैं, वहीं खुले बाजारों, IP संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का ढोल पीटने वाले और डिजिटल अधिनायकवाद के बारे में चिंता व्यक्त करने वाले ऑस्ट्रेलिया और अन्य क्वाड देशों के विपरीत, भारत की टैक्नोलॉजी संबंधी नीतियाँ सोशल मीडिया की सेंसरशिप और इंटरनेट ब्लैकआउट द्वारा डैटा स्थानीकरण और टैक्नो- अधिनायकवाद जैसी नीतियों के माध्यम से टैक्नो- राष्ट्रवाद की ओर उन्मुख हैं. इसके परिणामस्वरूप, भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था पर G20 ओसाका घोषणा और डैटा के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इंटरनैट के भविष्य पर की गई घोषणा जैसी बहुपक्षीय वैश्विक टैक्नोलॉजी शासन संबंधी पहल को स्वीकार नहीं किया था.

यह देखते हुए कि पिछले दशक में अधिनायकवाद की ओर इसके झुकाव के व्यापक सबूत मौजूद हैं, भारत को एक जीवंत उदार लोकतंत्र मानने वाले और उसका समर्थन करने वाले लोग इसे संज्ञानात्मक विसंगति की एक विशेषता बताते हैं. इस विसंगति को कम करके बताने के लिए, भारत के समर्थक इसे कम महत्व देते हैं, इसे छोटा बनाकर प्रस्तुत करते हैं, उससे बचने का प्रयास करते हैं और जानबूझकर इसके प्रति अपना अज्ञान प्रकट करने जैसी रणनीतियों का सहारा लेते हैं. जब मोदी को बदनाम करने के लिए विपक्षी नेता राहुल गाँधी की सज़ा पर अल्बनीस से टिप्पणी करने के लिए कहा गया, तो अल्बनीस ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और भारत की घरेलू राजनीति के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है. मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान, अल्बानीज़ ने भारत की घरेलू राजनीति पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया और जब मोदी ने हिंदू मंदिरों की दीवारों पर खालिस्तान समर्थकों द्वारा भारत विरोधी नारों का ज़िक्र करते हुए उनसे निपटने की माँग की तो उन्हें अल्बानीज़ ने वायदा किया कि वे भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच मैत्रीपूर्ण और मधुर संबंधों को नुक्सान पहुँचाने वाले सभी तत्वों के खिलाफ़ "कड़ी कार्रवाई" करेंगे. उच्चायुक्त बैरी ओ'फेरेल ने भारत में कार्यकर्ताओं और छात्रों की गिरफ्तारियों को गौण कार्रवाई बताया और इसके विपरीत कई सबूतों के बावजूद, भारत के बहुलतावादी लोकतंत्र और मजबूत संस्थानों की सराहना की.

राजनेताओं और संस्थानों द्वारा व्यापक और बढ़ती दंडमुक्ति और मिलीभगत के सबूतों के बावजूद, भारत समर्थक मानते हैं कि भारत का लोकतंत्र अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा से निपटने में सक्षम है. वे मानते हैं कि भारत की विविधता किसी एक समुदाय को एक लंबे समय तक अपना वर्चस्व कायम करने से रोकती है, भले ही वह वर्ग समूह-उच्च जाति, उच्च मध्यम वर्ग के हिंदू पुरुषों का ही क्यों न रहा हो और लंबे समय तक भारत की राजनीति, मीडिया, उच्च शिक्षा, सिविल सेवा और अदालतों पर उनका वर्चस्व रहा हो. यह समूह भाजपा का मुख्य समर्थन आधार है और वही उसे नेतृत्व भी प्रदान करता है. यह समूह संस्थानों और सार्वजनिक संस्कृति को ऐसे तरीकों से नया आकार दे रहा है जो उसकी शक्ति को मजबूत करते हैं. ये भारत के समर्थक लोग भारत पर भाजपा के हिंदू राष्ट्रवाद के महत्व को कम करके आँकते हैं, क्योंकि उनका दावा है कि भारत का मध्यम वर्ग सत्तारूढ़ पार्टी की विचारधारा का समर्थन नहीं करता है, लेकिन फिर भी मोदी को वोट देता है क्योंकि मोदी भारत को फिर से महान् बनाने का वायदा करते हैं. उसका यह समर्थन उन तमाम सर्वेक्षण डेटा और विद्वानों के निष्कर्षों के बावजूद जारी है, जो दर्शाता है कि औसत भारतीय मतदाता अब भाजपा के हिंदू-केंद्रित और मुस्लिम विरोधी समग्र दृष्टिकोण को स्वीकार करता है और इस मध्यम वर्ग में विश्वविद्यालयों के सुशिक्षित पेशेवर भी शामिल हैं और वे इन विचारों को समाज में प्रचारित करने में संलग्न रहते हैं.

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध अब उपेक्षित नहीं रहे, लेकिन उनके भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों में महत्वपूर्ण मतभेदों को दूर करना चुनौतीपूर्ण रहेगा. भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों के इतिहास में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना यही है कि ऑस्ट्रेलिया के भारत समर्थक इन रिश्तों को स्वाभाविक बनाने के अपने उत्साह में मोदी के सार्वभौमिक रूप से प्रशंसित नेता होने के दावों को और चमकाते हैं, भारत के हिंदू राष्ट्रवादी पुनर्ब्रांडिंग को बढ़ावा देते हैं, विपक्ष को कमजोर करते हैं और भारत के हिंदू वर्चस्ववादी चुनावी निरंकुशता के मॉडल को बढ़ावा देते हैं.

प्रिया चाको एडिलेड विश्वविद्यालय में राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विभाग में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की वरिष्ठ लैक्चरर हैं.

 

 

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (हिंदी), रेल मंत्रालय, भारत सरकार

Hindi translation: Dr. Vijay K Malhotra, Director (Hindi), Ministry of Railways, Govt. of India

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