पिछले दशक के दौरान आधुनिक सैन्य शक्ति के लगातार बढ़ते हुए और बहुत ही महत्वपूर्ण अंग के रूप में विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) का उदय हुआ है. पश्चिम के लोकतांत्रिक देशों में खास तौर पर छोटे, चुने हुए और प्रच्छन्न ऑपरेटर इकाइयों का उदय बुरी तरह युद्ध में उलझे क्षेत्रों में अत्यंत प्रभावी, कुशल और सुनिश्चित साधनों के रूप में शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है. अगर वे अच्छी तरह से प्रशिक्षित हों, युद्ध-सामग्री से सुसज्जित और साधन संपन्न हों तो विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) में यह क्षमता होती है कि वे असली सेना की तरह काम कर सकें और अगले मोर्चे की कठिन स्थितियों में भी सीमित साधनों के बावजूद महत्वपूर्ण मिशनों के लिए भी काम कर सकें. हाल ही में जारी किये गये एक प्रामाणिक अमरीकी दस्तावेज़ में लिखा है, “अनूठी क्षमता वाले और आत्मनिर्भर (अल्पावधि के लिए) विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) के छोटे यूनिटों ने अमरीकी सरकार को अनेक प्रकार के सैन्य विकल्प प्रदान किये हैं. बड़े दस्तों और परंपरागत बलों के मुकाबले इन विकल्पों में देनदारी भी कम होती है और जोखिम भी कम रहता है. ”
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अधिकांश सैन्यबलों ने बजट की संभावित कटौतियों के मद्देनज़र न केवल अपने लिए विशेष दस्तों की माँग की है, बल्कि उनकी तादाद भी बढ़ा दी है ताकि उन्हें अधिकाधिक सक्षम बनाया जा सके और उन्हें खुफिया सपोर्ट भी दी जा सके. उदाहरण के लिए अमरीका ने 9/11 के बाद विदेशों में विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) के सैनिकों की संख्या में कई गुना वृद्धि भी कर दी है. पश्चिम के लिए विशेष ऑपरेशनों और गैर परंपरागत युद्ध के लिए विशेष ध्यान देने की बात कोई नई नहीं है. वास्तव में हाल ही की रिपोर्टों से लगता है कि चीनी गणतंत्र भी अपने विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) को समान महत्व देने लगा है. हालाँकि कई मामलों में ये सैन्यबल असली कमांडो की तुलना में विशेष पैदल सेनाओं की तरह लगने लगते हैं.
कई कारणों से भारत बहुत हद तक विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) की इस क्रांति का लाभ नहीं उठा सका है. फिर भी सेना द्वारा दो नई विशेष बलों की बटालियनें खड़ी करने के कारण इसके विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) की तादाद बढ़ती जा रही है. यही कारण है कि भारत की सीमाओं के अंदर और बाहर विशेष ऑपरेशनों के लिए भारत की सैन्य क्षमता में वृद्धि हो रही है, लेकिन नौकरशाही और सैद्धांतिक मतभेदों के कारण इसमें बाधाएँ भी आ रही हैं. भारत में तत्काल संयुक्त विशेष ऑपरेशन कमांड (J-SOC) बनाने की आवश्यकता को व्यापक तौर पर मान्यता मिलने के बावजूद भी प्रत्येक सेवा तदर्थ आधार पर और असमन्वित रूप में ही अपने विशेष ऑपरेशन बल (SOF) का यूनिट बनाने में लगी हैं. अंतर सेवा गठित न हो पाने के कारण ऐसे अनेक यूनिट या तो गृह मंत्रालय के तत्वावधान में काम कर रहे हैं या विशेष रूप से भारत की खुफ़िया एजेंसियों के अधीन काम कर रहे हैं. इसका नतीजा यह होता है कि आपात् स्थिति में समन्वय की कमी रहती है और तत्काल अपेक्षित कार्रवाई नहीं हो पाती. तैनाती और कथित मिशन को लेकर दोहराव की व्यापक प्रवृत्ति भी दिखाई पड़ती है. इसके कारण अनावश्यक खर्च भी होता है और भारत के विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) के यूनिट अपनी विशेष क्षमता का पूरा उपयोग भी नहीं कर पाते.
विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) की विशिष्ट और उपयोग में आने वाली क्षमताओं से संबंधित तथ्यों के मद्देनज़र यह बेहद परेशानी की बात है, क्योंकि समय के साथ-साथ भारत के लिए विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) का महत्व बढ़ता जा रहा है. सीमापार आतंकवाद या सीमापार से होने वाली घुसपैठ जैसी जिन चुनौतियों से भारत आज जूझ रहा है, उन्हें देखते हुए थोड़े नोटिस पर ही रैपिड रिऐक्शन फ़ोर्स को तैनात करने की ज़रूरत पड़ सकती है. कभी-कभी तो सन् 2011 में ऐबोटाबाद पर अमरीका द्वारा किये गये हमले की तरह ही सीमापार प्रति आतंकवादी ऑपरेशन जैसी चुनौतियों का सामना करने की ज़रूरत भी पड़ सकती है. भारतीय विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) को टेढ़ी-मेढ़ी भारत-चीनी सीमा पर चीन के खोजी या मिले-जुले सैन्य ऑपरेशन का जवाब देने के लिए पूरी तैयारी के साथ भेजने की ज़रूरत भी पड़ सकती है, लेकिन क्रीमिया में रूस ने जिस तरीके से विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) को बिना किसी सूचना के लगाने में कामयाबी हासिल कर ली थी, उसे भारतीय सुरक्षा समुदाय को एक चेतावनी की तरह स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि चीन का जिस तरह से सीमा पर दबाव बढ़ता जा रहा है, वह भारतीय सुरक्षा के लिए खतरा बनता जा रहा है. यदि पीएलए के योजनाकार उत्तरी लद्दाख या अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्रीय इलाके में सीमाक्षेत्र को निर्विवादित बनाने के बारे में सोच रहे हैं तो संभावना इस बात की है कि वे कम से कम आरंभिक चरण में यह भी अपेक्षा करें कि विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) का व्यापक उपयोग तो किया ही जा सकता है. निवारक प्रभाव डालने के लिए बड़े आकार की थल सेना पर पूरी तरह से निर्भर रहने के बजाय भारत को चाहिए कि वह चुपचाप “क्रीमिया टाइप” ऑपरेशन का जवाब देने के लिए अधिक लचीले और नियोजित ऑपरेशन की तैयारी के लिए ज़रूरी साधन जुटाने का प्रयास करे.
साधारण तौर पर विशेष ऑपरेशन को लेकर भारत के रवैय्ये में भारी परिवर्तन लाने की तुरंत ज़रूरत है. गैर परंपरागत युद्ध से संबंधित समृद्ध बौद्धिक और ऐतिहासिक विरासत के बावजूद विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) के संबंध में समकालीन भारत की सोच विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों का मुकाबला करने से संबंधित केवल आंतरिक मिशनों पर ही केंद्रित रहनी चाहिए. और आगे बढ़कर भारत के विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) – और खास तौर पर विशेष सैन्य ऑपरेशन बलों को अभियान दल के नज़रिये से सोचना चाहिए और सेना की तरह अपने को ढालना चाहिए. भारत के विदेश सचिव के शब्दों में, वस्तुतः जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ता जाता है, उसे अपने–आपको अग्रणी शक्ति के रूप में संतुलित करते हुए गैर परंपरागत और परंपरागत दोनों ही प्रकार की सैन्य शक्ति के रूप में विकसित करना होगा. कम दृश्यता वाले सैन्य अनुप्रयोगों के लिए ऑपरेशन का क्षेत्र हिंद महासागर के बेसिन से भी आगे बढ़ सकता है और हो सकता है कि इसका विस्तार अफ्रीकी उपमहाद्वीप, मध्य पूर्व और या समुद्री दक्षिण पूर्वेशिया तक हो जाए. विदेशों में भारतीय नागरिकों और कंपनियों की बढ़ती तादाद भारत की आर्थिक शक्ति के उदय का प्रमाण है, लेकिन इसके कारण कुछ दुष्ट और निकम्मे लोगों को भारत पर निशाना साधने का अच्छा अवसर भी मिल जाता है. उम्मीद है कि भारत को बहुत बड़े पैमाने पर इज़राइल के 1976 के ऑपरेशन एंटेब्बे की तरह विदेश में मदद अभियान चलाने की तो ज़रूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन समय का तकाज़ा है कि भारत सरकार को हर तरह की आपात स्थिति का सामना करने के लिए अपने को तैयार रखना होगा.
विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) को अधिक फुर्तीला बनाने के लिए ज़रूरी है कि सीधी कार्रवाई वाले विशेष मिशनों और विशेष युद्धों पर ज़ोर दिया जाए और साइबर, इलैक्ट्रॉनिक, हवाई और जल-थल वाले सभी क्षेत्रों को सक्षम बनाने के लिए निरंतर निवेश किया जाए. भारतीय वायु सेना के गरुड़ कमांडो जैसी इकाइयों को संयुक्त ऑपरेशनों पर और ज़मीन पर सैन्य विशेष ऑपरेशन बलों (SOF) के साथ मिलकर और अधिक करीब से समन्वय करते हुए स्टैंड ऑफ़ एयर और मिसाइल हमलों के लिए संयुक्त टर्मिनल हमला नियंत्रकों (JTACs) की संख्या बढ़ाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए. ठीक निशाने पर निर्देशित हथियारों और लंबी दूरी की हवाई रक्षा प्रणाली के रूप में ऐंटी-ऐक्सेस और एरिया डिनायल क्षमताओं (A2/AD) के व्यापक प्रसार के कारण समुद्री और वायवीय परिवेश में मुकाबला और भी बढ़ने लगा है. यद्यपि भारत ने अपनी समुद्री और एयर लिफ़्ट क्षमता में भारी वृद्धि कर ली है, फिर भी इस बात के औचित्य में कोई संदेह नहीं रह जाता कि हमें लैस-ऐक्सेस सैंसिटिव प्लेटफ़ॉर्मों पर निवेश की शुरूआत करनी चाहिए और इसके लिए हम या तो किसी स्टील्थी एयरलिफ्टर के सह-विकास के लिए अमरीका के साथ मिलकर काम करें या भारतीय जलसेना समुद्री कमांडो बल (MARCOS) के लिए मिनी-सबमर्सिबलों को अधिकाधिक संख्या में प्राप्त करने का प्रयास करें.
शायद सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात तो यही होगी कि भारत सरकार यह सुनिश्चित करे कि संयुक्त विशेष ऑपरेशन कमांड (J-SOC ) के गठन के माध्यम से विशेष ऑपरेटरों को बदनाम होते हुए भी भारत की सक्रिय खुफिया एजेंसियों द्वारा “पूरी तरह से फ्यूज़्ड” अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्रदान किया जाए. इसके लिए आवश्यक होगा कि सभी संबद्ध एजेंसियों से सिविलियन आसूचना अधिकारियों को लाकर स्थायी प्रतिनियुक्ति पर संयुक्त विशेष ऑपरेशन कमांड (J-SOC ) में लगाया जाए. दोहराव से होने वाले नुक्सान से बचने के लिए आंतरिक प्रति-आतंकवादी या प्रति-विद्रोही ऑपरेशन का काम विशेष सैन्य ऑपरेशन बलों (SOF) के बजाय गृह मंत्रालय के अंतर्गत NSG जैसे विशेष बल यूनिटों पर छोड़ दिया जाए. इन यूनिटों को चाहिए कि वे विशेष अभियान वाले ऑपरेशनों के लिए और हाई ऐंड विषम युद्धों के लिए उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण और साधन सामग्री प्रदान करने पर अपना ध्यान केंद्रित करें. जिस तरह से अमरीका की नेवी सील्स के लिए अमरीका में ही भविष्य में स्वैट टाइप का कोई ऑपरेशन चलाने का कोई औचित्य नहीं है, उसी तरह से भारतीय जलसेना की मार्कोज़ (MARCOS) के लिए भी यह अकल्पनीय है कि वह भारत की ज़मीन पर प्रति-आतंकवादी मिशन की गतिविधियाँ चलाए. भारत के संयुक्त विशेष ऑपरेशन कमांड (J-SOC ) की गतिविधियों को अधिकाधिक बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि इसका अपना बजट हो, आवश्यकताओं के मान्यीकरण की अपनी प्रक्रिया हो और उन्हें प्राप्त करने की व्यवस्थित प्रक्रिया हो. अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण बात तो यह है कि भारत के विशेष बलों के पुनर्गठन के लिए आवश्यक है कि भारत के सिविलियन नेतृत्व के रवैय्ये में बदलाव आना चाहिए, क्योंकि जब भी बाहर से आरोपित सुरक्षा संबंधी खतरों का सामना करने की नौबत आई है तो इन बलों ने परंपरागत रूप में ही कुछ बोझिल तरीके से अपने काम को अंजाम दिया है. आखिर विशेष बलों को सफलतापूर्वक नियोजित तभी किया जा सकता है जब सबसे पहले तो वे निर्णय लेने में तत्परता दिखाएँ और सुरक्षा प्रबंधक इस बात के लिए इच्छुक हों कि वे न केवल बल के प्रयोग के लिए तैयार रहें, बल्कि कुछ हद तक व्यवस्थित जोखिम उठाने के लिए भी तैयार रहें.
इस्कैंडर रहमान ऐटलांटिक परिषद के दक्षिण एशिया कार्यक्रम में अनिवासी फ़ैलो हैं. ट्विटर पर @IskanderRehman के ज़रिये उनका अनुसरण किया जा सकता है.
हिंदी अनुवादः विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919