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विषाक्त इतिहास: भारत में चिप निर्माण की योजनाएँ और व्यावसायिक सुरक्षा

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09/12/2024
जसून चेलत

भारत के पास सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए बड़ी योजनाएँ हैं. चिप निर्माण की दुनिया में भारत अपेक्षाकृत नया है, जिस पर ताइवान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका का दबदबा है. पिछले कुछ वर्षों में भारत ने इस क्षेत्र में निवेश के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2024 में एक कार्यक्रम में कहा था, "हमारा सपना है कि दुनिया के हर उपकरण में भारत में बनी चिप हो. हाल के वर्षों में, नई दिल्ली ने भारत सेमी-कंडक्टर मिशन के भाग के रूप में इस क्षेत्र में 76,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जिससे भारत में चिप्स का निर्माण करने की योजना बनाने वाली कंपनियों को भारी सब्सिडी मिल रही है, और उम्मीद है कि 2023 तक इस उद्योग का मूल्य 29 बिलियन डॉलर से लगभग चार गुना बढ़कर 2030 तक 109 बिलियन डॉलर हो जाएगा.

इतना बड़ा विस्तार अपने साथ कई प्रश्न लेकर आता है, जैसे कि क्या सरकार के निवेश से वास्तव में उस सीमा तक रोज़गार सृजन होगा जैसा दावा किया गया है. लेकिन इस क्षेत्र में भारत के बड़े कदम से बनी सभी सुर्खियों के बीच, एक बात पर कम ध्यान दिया गया है: भारतीय श्रमिकों के लिए इसका क्या अर्थ होगा.  

देश में विनिर्माण उद्योगों में, विशेषकर व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा में, श्रम अधिकारों के लिए पहले से ही खराब ढाँचा मौजूद है. अन्य देशों में किए गए शोध और श्रमिकों के अनुभवों से प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि चिप निर्माण की रासायनिक रूप से गहन प्रक्रिया गंभीर स्वास्थ्य खतरों से जुड़ी है. साथ ही, सरकार व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए अपने श्रम कानूनों को संहिताबद्ध करने की योजना बना रही है, जिसका उद्देश्य रसायनों और विषाक्त पदार्थों के लिए अनुमेय सीमाओं को निर्धारित करने वाले विनियमों को समाप्त करना है, जबकि निगरानी या निरीक्षण के बुनियादी ढाँचे में कोई सुधार नहीं किया जा रहा है जो इस अंतर को पाट सकता है. व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा पर मज़बूत तंत्र स्थापित किए बिना तथा मौजूदा कानूनों में सुधार किए बिना, भारत में उद्योग के तेज़ी से विस्तार से इसके श्रमिकों के लिए खतरनाक परिणाम हो सकते हैं.

विषाक्त इतिहास
सेमीकंडक्टरों का निर्माण रासायनिक दृष्टि से गहन है और इसमें जटिल प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं, जिन्हें चिप पर परतों की संख्या के आधार पर सौ बार तक दोहराया जाता है. उद्योग विनिर्माण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों की जानकारी को भी बारीकी से सुरक्षित रखता है. उद्योग के शुरुआती दिनों में, साठ से नब्बे के दशक तक, अमेरिका चिप्स का अग्रणी निर्माता था और इस क्षेत्र में सबसे अधिक संख्या में कर्मचारी कार्यरत थे. उन वर्षों में विनिर्माण प्रक्रिया के दौरान उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों को जिन रसायनों के संपर्क में आना पड़ा, उन्हें कैंसर, प्रजनन-स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और गर्भपात की उच्च दर से जोड़ा गया है. कैलिफोर्निया में अस्सी के दशक के प्रारंभ में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि सेमीकंडक्टर उद्योग में कामगारों के बीच व्यावसायिक बीमारियों की दर तुलनात्मक रूप से अधिक थी, जो राज्य के औद्योगिक संबंध विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार 1978 में अन्य उद्योगों की तुलना में चार गुना तक पहुँच गई थी. 

नब्बे के दशक तक, अमेरिका में सेमीकंडक्टर के निर्माण से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के बारे में अधिक आँकड़े सामने आ चुके थे. सन् 1992 में, आईबीएम ने चिप निर्माण में प्रयुक्त होने वाले कुछ रसायनों - जैसे एथिलीन ग्लाइकॉल ईथर (EGEs) - को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की घोषणा की थी. ऐसा कंपनी द्वारा कराए गए एक अध्ययन के बाद किया गया था, जिसमें इन यौगिकों के संपर्क में आने वाले श्रमिकों में गर्भपात की दर औसत से अधिक पाई गई थी. उसी वर्ष, सेमी-कंडक्टर उद्योग एसोसिएशन द्वारा कराए गए एक अध्ययन में महिला श्रमिकों में स्वतःस्फूर्त गर्भपात की उच्च दर की ओर इशारा किया गया, तथा निर्माण क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं में यह दर और भी अधिक थी.

इस दौरान, देश में कई सेमीकंडक्टर निर्माताओं पर उन श्रमिकों द्वारा मुकदमा दायर किया गया, जो कैंसर, दीर्घकालिक बीमारियों और प्रतिकूल प्रजनन-स्वास्थ्य प्रभावों से ग्रस्त थे, जिसके परिणामस्वरूप कई मामलों में अदालत के बाहर समझौता हुआ. 2006 में, 1969 से 2001 तक आईबीएम के कारखानों में काम करने वाले लगभग 32,000 लोगों पर किए गए एक अध्ययन में सामान्य आबादी की तुलना में कैंसर (मस्तिष्क, गुर्दे और त्वचा से संबंधित कैंसर सहित) की दर अधिक पाई गई. यह डेटा सर्वप्रथम आईबीएम के दो कर्मचारियों द्वारा कंपनी के खिलाफ़ दायर मुकदमे के बाद प्रकाश में आया, जिसने इस जानकारी को विशेषज्ञों के विश्लेषण के लिए जारी कर दिया.

श्रमिकों के लिए इसी प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी खतरे तब देखे गए जब चिप बनाने वाले उद्योग ने अपना विनिर्माण कार्य एशिया में स्थानांतरित कर दिया. शोध से पता चला कि अमेरिका में चिप निर्माण से जिन रसायनों को “चरणबद्ध तरीके से हटा दिया गया” था, उनका उपयोग दक्षिण कोरिया में निर्माताओं द्वारा अभी भी किया जा रहा है, साथ ही अन्य रसायनों का भी उपयोग किया जा रहा है, जिनकी विषाक्तता के बारे में सीमित जानकारी और मूल्यांकन उपलब्ध है. चिप बनाने वाली इकाइयों में कार्यरत श्रमिकों में ल्यूकेमिया के साथ-साथ अन्य कैंसर और ट्यूमर विकसित हो रहे थे, तथा गर्भपात की दर भी अधिक थी. सन् 2007 में श्रमिकों के परिवारों और श्रमिक कार्यकर्ताओं द्वारा शुरू की गई एक लंबी कानूनी लड़ाई और सार्वजनिक अभियान के बाद, देश में सेमीकंडक्टर के अग्रणी निर्माता सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स ने सन् 2018 में अपने श्रमिकों से माफ़ी माँगी और “हमारे सेमीकंडक्टर और एलसीडी कारखानों में स्वास्थ्य जोखिमों को ठीक से प्रबंधित करने में विफल रहने” के लिए प्रति मामले 133,000 डॉलर का मुआवजा देने पर सहमति व्यक्त की. कंपनी ने चिप निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों और कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के बीच किसी संबंध को स्वीकार नहीं किया.

पारदर्शिता और जवाबदेही
महामारी विज्ञान संबंधी अध्ययनों में आम तौर पर कुछ रसायनों और मनुष्यों पर उनके प्रभाव के बीच स्पष्ट संबंध स्थापित करना कठिन होता है. हमारे पास ऐसे श्रमिकों द्वारा मुकदमेबाजी का इतिहास है, जिन्हें व्यावसायिक रोग हो गए हैं, तथा कम्पनियों द्वारा अक्सर नुकसान पहुँचाने के लिए दोष स्वीकार किए बिना अदालत के बाहर ही मामले का निपटारा कर लिया जाता है. ये भारत जैसे देशों के लिए महत्वपूर्ण सबक हैं, जो सेमीकंडक्टर उद्योग के तीव्र विकास के मार्ग पर आक्रामक रूप से आगे बढ़ रहे हैं.  अन्य देशों के अनुभव से इस क्षेत्र में व्यावसायिक स्वास्थ्य से संबंधित दो प्रमुख मुद्दे सामने आते हैं: चिप निर्माण में रसायनों के उपयोग के बारे में जानकारी का अभाव, तथा विनिर्माण में प्रयुक्त सामग्री या प्रक्रियाओं के संबंध में पारदर्शिता या जवाबदेही का अभाव.      

उद्योग का इतिहास रहा है कि यह श्रमिकों को उनके द्वारा प्रयोग किये जा रहे रसायनों या उनके संभावित खतरों के बारे में सूचित करने में विफल रहा है. तकनीकी प्रगति के कारण मानव स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव का पर्याप्त आकलन किए बिना ही विनिर्माण में नए रसायनों को शामिल किया जा रहा है. विनिर्माण इकाइयों में, श्रमिक शरीर को ढकने वाले सूट पहनते हैं, लेकिन ये मुख्य रूप से चिप्स/सिलिकॉन वेफ़र्स को संदूषण से बचाने के लिए डिजाइन किए गए हैं, न कि श्रमिकों को विषैले रसायनों के संपर्क में आने से बचाने के लिए. जहाँ रसायनों के उपयोग या स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के लिए श्रमिकों को दिए जाने वाले मुआवजे में परिवर्तन हुए हैं, जैसे कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया में, ये श्रमिक समूहों के निरंतर अभियानों का परिणाम थे. व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य प्रशासन (OSHA), जो अमेरिका में व्यावसायिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करने वाली नियामक एजेंसी है, यह मानती है कि कई रसायनों की अनुमेय सीमाएँ पर्याप्त रूप से अद्यतन नहीं हैं या विनिर्माण प्रक्रिया में तेज़ी से हो रहे बदलावों के अनुरूप नहीं हैं. व्यावसायिक स्वास्थ्य कानून, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य अधिनियम, 1970 में पहली बार पेश किए जाने पर अधिकांश स्वीकार्य जोखिम सीमाएँ जारी की गई थीं.

भारत के लिए सबक
व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा पर नियामक तंत्र की स्थिति को देखते हुए, सेमीकंडक्टर विनिर्माण में स्वास्थ्य जोखिमों का इतिहास भारत के लिए चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है. हाल ही में अधिनियमित व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा संहिता, 2020 में “खतरनाक” उद्योगों की एक सूची है जिसमें “सेमी-कंडक्टर विनिर्माण उद्योग” भी शामिल है. इससे यह उन प्रावधानों के दायरे में आ जाता है, जिनमें स्वास्थ्य संबंधी खतरों के प्रकटीकरण (धारा 84) और स्वास्थ्य रिकॉर्ड के रखरखाव के साथ-साथ श्रमिकों के लिए चिकित्सा परीक्षण का अनिवार्य प्रावधान (धारा 85) शामिल है.

हालाँकि उद्योग को "खतरनाक" सूची में शामिल करना स्वागत योग्य है - यह सूची भोपाल गैस त्रासदी के बाद 1987 से अद्यतन नहीं की गई थी - संहिता में एक खतरनाक चूक रसायनों और विषाक्त पदार्थों की "अनुमेय सीमा" है, जो कि पूर्ववर्ती कारखाना अधिनियम, 1948 की दूसरी अनुसूची में मौजूद थी. सेमीकंडक्टर उद्योग में जहरीले रसायनों के उपयोग के बारे में अब हम जो जानते हैं, उसके अनुसार अद्यतन होने के बजाय, संहिता ने किसी भी पदार्थ के लिए “अनुमेय सीमा” पर किसी भी विनिर्देश को पूरी तरह से छोड़ दिया है, और इसे “राज्य सरकार द्वारा निर्धारित करने के लिए छोड़ दिया गया है. इस बात का कोई प्रावधान नहीं है कि विनिर्देशों को कैसे या किस तरीके से अद्यतन किया जा सकता है - इसके विपरीत, कारखाना अधिनियम, 1948 के प्रावधान के तहत, केंद्र सरकार विशेष संस्थानों या विशेषज्ञों द्वारा दिए गए विशिष्ट प्रमाण के आधार पर द्वितीय अनुसूची में अनुमेय सीमा में परिवर्तन कर सकती है.

नियामक तंत्र के संदर्भ में, भारत में ऐसा कोई निकाय नहीं है जो जोखिम सीमा निर्धारित करने पर काम करता हो, जैसा कि अमेरिका में OSHA करता है. किसी भी संस्था या नियामक एजेंसी को व्यावसायिक स्वास्थ्य में विष विज्ञान के मानकों को बनाए रखने या महामारी विज्ञान का अध्ययन करने और विकसित करने की जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है. कारखाना सलाह सेवा एवं श्रम संस्थान महानिदेशालय (DGFASLI) राष्ट्रीय नीति निर्माण के लिए एक तकनीकी निकाय के रूप में कार्य करता है तथा केवल कभी-कभी ही व्यावसायिक स्वास्थ्य का अध्ययन करता है.  पर्याप्त बुनियादी ढाँचे (जैसे प्रयोगशालाएँ और उपकरण) और निरीक्षकों के रूप में नियुक्त प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी, व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा में लंबे समय से एक मुद्दा रहा है.

भारत में सभी श्रम कानूनों के अंतर्गत, प्रमुख राज्यों में निरीक्षण दरों में लगातार गिरावट देखी गई है. इस संहिता में एक निरीक्षण योजना प्रस्तुत की गई है जो "वेब-आधारित निरीक्षण" पर निर्भर है, जिसका अर्थ है कि संहिता के अंतर्गत सूचना इलेक्ट्रॉनिक रूप से माँगी जा सकती है, तथा योजना के अंतर्गत निरीक्षण के लिए कारखानों का चयन यादृच्छिक आधार पर किया जाएगा. निरीक्षक अब सामग्रियों या प्रक्रियाओं का निरीक्षण करने के लिए कारखानों की पहचान नहीं कर सकते और न ही उनमें प्रवेश कर सकते हैं. भारत में कई राज्य पहले ही स्व-प्रमाणन तंत्र को अपना चुके हैं, या कारखानों को किसी भी प्रकार के भौतिक निरीक्षण से छूट दे दी गई है. इससे पहले, श्रमिकों के प्रतिनिधित्व के साथ एक सुरक्षा समिति स्थापित करना एक वैधानिक आवश्यकता थी (धारा 41 जी, कारखाना अधिनियम, 1948), लेकिन संहिता इसे एक गैर-अनिवार्य प्रावधान में बदल देती है, जिसे केंद्र या राज्य सरकार के विवेक पर छोड़ दिया जाता है, जैसा भी मामला हो (धारा 22).

भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग की अनुमानित वृद्धि ऐसे परिदृश्य में होने जा रही है, जहाँ पहले से ही अपर्याप्त नियामक तंत्र, वैधानिक प्रावधानों द्वारा और भी कमज़ोर हो गया है. चिप-निर्माण उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों के अनुभव से - इसके अनेक स्थानांतरणों के दौरान - हमें यह समझने में मदद मिलती है कि प्रयास ऐसी “अच्छी नौकरियों” के लिए होना चाहिए, जो श्रमिकों को जोखिम में न डालें. इसमें न केवल तकनीकी विशेषज्ञता और मजबूत रिपोर्टिंग से संबंधित अपेक्षाएँ शामिल हैं, बल्कि एक सामान्य ढाँचा भी शामिल है जो श्रमिक-केंद्रित है, उन्हें अपने स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने की शक्तियाँ प्रदान करता है, और अपनी चिंताओं को गंभीरता से लेने में उन्हें सक्षम बनाता है.   

जहाँ एक ओर भारत द्वारा “सेमीकंडक्टर विनिर्माण” को “खतरनाक” उद्योग के रूप में वर्गीकृत करने का निर्णय किया गया है और खतरों को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है, वहीं विनिर्माण के लिए इसके व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा नियम पुराने हैं, तथा हानिकारक रसायनों और प्रक्रियाओं के लिए डेटाबेस बनाने में रिपोर्टिंग तंत्र भी प्रभावी नहीं है. चूँकि हम उद्योग में रसायनों के उपयोग के बारे में बहुत कम जानते हैं, इसलिए विश्वसनीय आँकड़ों के अभाव में जोखिम सीमा के लिए पर्याप्त नुस्खे बनाना हमारे लिए कठिन होगा. कम से कम, सेमीकंडक्टर उद्योग को विनिर्माण में ऐसे रसायनों के उपयोग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जिनका मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव के लिए पहले परीक्षण नहीं किया गया हो. श्रमिकों को ऐसी स्थिति से खुद को दूर रखने की अनुमति दी जानी चाहिए जो उनके स्वास्थ्य के लिए "आसन्न और गंभीर खतरा" पैदा करती है, (व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा पर ILO कन्वेंशन सं. 155 के अनुसार). उद्योग के लिए व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा विनियमों को प्रौद्योगिकी, सामग्री और प्रक्रियाओं में तेज़ी से हो रहे बदलावों के अनुरूप बनाए रखने की आवश्यकता है. ऐसे तंत्रों को न केवल तकनीकी रूप से सुदृढ़ होना चाहिए, बल्कि श्रमिकों की चिंताओं के प्रति संवेदनशील भी होना चाहिए. सरकार को व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा पर घरेलू बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिए वित्तपोषण को पुनर्निर्देशित करना चाहिए ताकि विशेषज्ञ और संस्थान प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ विनियमन को पर्याप्त रूप से ट्रैक पर रखने में सक्षम हों.

जसून चेलत नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यनिवर्सिटी में पीएचडी उम्मीदवार हैं.

 

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (हिंदी), रेल मंत्रालय, भारत सरकार

Hindi translation: Dr. Vijay K Malhotra, Director (Hindi), Ministry of Railways, Govt. of India

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