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वैचारिक अज्ञेयवाद और चयनात्मक संलग्नता: भारत वैश्विक साइबर सुरक्षा के मानदंड की बहस को कैसे देखता है

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15/01/2024
अरिंद्रजित बसु

यूरोप और मध्य पूर्व में क्रूर सैन्य संघर्ष के साथ, साइबर सुरक्षा के मानदंडों पर संयुक्त राष्ट्र ओपन-ऐंडेड वर्किंग ग्रुप की बहुपक्षीय बैठकों पर दुनिया का बहुत कम ध्यान गया है. फिर भी, संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाएँ जो साइबरस्पेस के लिए सड़क के नियम स्थापित करने के लिए डिज़ाइन की गई थीं, दशकों से अमेरिका, यूरोपीय संघ और उनके सहयोगियों के बीच वैचारिक ध्रुवीकरण के कारण बाधित हुई हैं, जिन्हें अक्सर "उदारवादी" शिविर कहा जाता है. इन्हें चीन, रूस और "सत्तावादी" खेमे के खिलाफ़ खड़ा किया गया था.

इस गतिरोध को देखते हुए, भारत को अक्सर एक महत्वपूर्ण "डिजिटल निर्णायक" के रूप में माना जाता है जो वैचारिक बहस को या तो राज्य के सीमित नियंत्रण और मजबूत मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के साथ "खुले" इंटरनैट या फिर केंद्रीकृत राज्य-नियंत्रित इंटरनेट मॉडल के पक्ष में चीन-रूस की तर्ज पर झुका सकता है.

भारत साइबर सुरक्षा पर कैसे वार्ता करता है
अब तक, भारत ने किसी भी ब्लॉक की ओर सक्रिय पहल करने से परहेज किया है. कार्य दल में भारत की रणनीति विवादास्पद मुद्दों पर उनकी बारीकियों में गए बिना सभी परिदृश्यों को चुनिंदा रूप से स्वीकार करने की रही है. उन मामलों पर कोई रुख अपनाने से इंकार करते हुए, भारत उन विशिष्ट गैर-विवादास्पद मुद्दों पर सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है जो उसके रणनीतिक हितों से निकटता से संबद्ध हैं.

उदाहरण के लिए, भारत ने वार्ता के प्रारूप और मूल वैचारिक सिद्धांतों पर रूस और अमेरिका दोनों द्वारा प्रायोजित विरोधाभासी प्रस्तावों के लिए मतदान किया है.संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रियाओं के लिए अपनी आधिकारिक प्रस्तुति में, इसने "उदारवादी" ब्लॉक और "सत्तावादी" ब्लॉक दोनों के जुझारू विचारों को स्वीकार किया है कि क्या अंतर्राष्ट्रीय कानून साइबरस्पेस पर लागू होता है. यह सवाल लंबे समय से विवाद का विषय रहा है क्योंकि रूस और चीन साइबरस्पेस के लिए नए नियम बनाना चाहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कानून पुराना और पश्चिम-केंद्रित दोनों है. जहाँ भारत ने स्वीकार किया है कि मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय कानून साइबरस्पेस पर लागू होता है, यह इस बारे में विस्तृत बयान देने से कतरा रहा है कि यह कैसे सटीक रूप से संचालित होगा, जैसा कि कई अन्य देशों ने किया है. इसके अलावा, "डेटा संप्रभुता" के सवालों पर मुखर होने के बावजूद - एक व्यापक विचार जो किसी देश के क्षेत्र में उत्पन्न डेटा पर संप्रभुता संबंधी रिट के दावे का समर्थन करता है - घरेलू राजनीतिक संवाद में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में संप्रभुता की बहस को दोगुना करने से परहेज किया है. संप्रभुता पर भारत के विचार उन पदों की पुष्टि तक ही सीमित रहे हैं जिन पर पहले से ही अन्य देशों के बीच आम सहमति बन चुकी है.

दूसरी ओर, भारत सप्लाई चेन को सुरक्षित करने और महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा पर अधिक मुखर और सुसंगत रहा है, और इसने साइबर सुरक्षा के लिए क्षमता निर्माण की बारीकियों की गहराई से जाँच की है. खास तौर पर भारत वैश्विक साइबर सुरक्षा सहयोग पोर्टल के विकास का लगातार समर्थक रहा है.यह पोर्टल सूचनाओं के आदान-प्रदान, प्रासंगिक दस्तावेज़ों को संकलित करने और संबंधित सेमिनारों और कार्यशालाओं के लिए तारीखों को क्रमबद्ध करने के लिए सहज रूप से उपलब्ध भंडार और मंच के रूप में कार्य करेगा. भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह पोर्टल वैश्विक दक्षिण की चिंताओं का प्रतिनिधित्व करने के नई दिल्ली के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से विकासशील देशों की मदद करेगा.

साइबर सुरक्षा वार्ता के प्रति इस दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं? अन्य बहुपक्षीय मंचों पर भारत के दृष्टिकोण को अक्सर "संवेदनशील", "अविश्वसनीय" या "टकरावपूर्ण" करार दिया गया है. हालाँकि, जैसा कि नचियप्पन के हालिया अनुभवजन्य शोध से पता चलता है कि ये सामान्यीकरण "जितना प्रकट करते हैं उतना छिपाते भी हैं. नचियप्पन का तर्क है कि प्रत्येक मंच या शासन के मुद्दे पर भारत के दृष्टिकोण का मूल्यांकन तीन कारकों के संदर्भ-विशिष्ट अनुभवजन्य मूल्यांकन के माध्यम से किया जाना चाहिए: रणनीतिक हित, नौकरशाही की क्षमता और सरकार के भीतर सामंजस्य, और प्रत्येक हितधारक समूह द्वारा बहु-हितधारकों की भागीदारी और प्रभाव.

आइए प्रत्येक मानदंड का उपयोग करके साइबर सुरक्षा संबंधी बहुपक्षवाद के प्रति भारत के दृष्टिकोण का मूल्यांकन करें.. साइबर सुरक्षा निश्चित रूप से भारत के लिए एक प्रमुख रणनीतिक हित है. हाल की रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत दुनिया में सबसे अधिक संख्या में राज्य-प्रायोजित साइबर हमलों का शिकार हो रहा है. पिछले तीन वर्षों में ही, भारत बिजली ग्रिडों, स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की प्रणालियों और परमाणु संयंत्रों को प्रभावित करने वाले साइबर ऑपरेशनों का शिकार हुआ है. हालाँकि, इस बात की कोई संभावना नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा लागू किये गए बाध्यकारी मानदंड भारत की साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देंगे या भू-राजनीतिक विरोधियों के साइबर हमलों पर सार्थक प्रतिबंध लगाएँगे. इसके परिणामस्वरूप, भारत संयुक्त राष्ट्र के मानक परिणामों को प्राथमिकता के रूप में नहीं देखता है. इसके बजाय, कई साझेदारों के साथ द्विपक्षीय समझौतों के साथ-साथ चतुर्भुज सुरक्षा संवाद या काउंटर रैंसमवेयर पहल जैसे "मिनीपक्षीय" गठबंधन के माध्यम से साइबर सुरक्षा को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करता है. संयुक्त राष्ट्र में एक वैचारिक विवाद में घसीटे जाने के बजाय, भारत ने साइबर सुरक्षा अभ्यास आयोजित करने या कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERT) जैसी नोडल साइबर एजेंसियों के बीच सहयोग करने के लिए अपेक्षित तंत्र सुनिश्चित करने जैसे अधिक तत्काल ठोस परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने का विकल्प चुना है.

दूसरे मानदंड के संबंध में, भारत में साइबर सुरक्षा से निपटने वाले संस्थानों की बहुतायत है, जबकि विदेश मंत्रालय (MEA) स्वाभाविक रूप से बहुपक्षीय सेटिंग्स में भारत के योगदान को आगे बढ़ाता है, भारत के रुख को तैयार करते समय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) और प्रधान मंत्री कार्यालय की अंतर्दृष्टि को नियमित रूप से ध्यान में रखा जाता है. हालाँकि, साइबर मानदंड वार्ता की कम रणनीतिक प्राथमिकता को देखते हुए, एक विलक्षण आम नेरेटिव विकसित करने या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिए गए बयानों के साथ घरेलू नीति से जुड़े आंदोलनों के समन्वय के लिए बहुत कम प्रयास किया गया है. इसकी तुलना सीमा पार डेटा प्रवाह के प्रति भारत के दृष्टिकोण से करें. वाणिज्य मंत्रालय, MEA, MeitY और प्रधान मंत्री कार्यालय के अधिकारियों द्वारा विश्व व्यापार संगठन (WTO) और जी20 जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर घरेलू स्तर पर सभी क्षेत्रों के कानूनी आदेशों को उचित ठहराया गया है और अक्सर व्यापक डेटा की संप्रभुता" के नेरेटिव के संदर्भ में उनका बचाव किया गया है. हालाँकि, साइबर मानदंड वार्ता की कम रणनीतिक प्राथमिकता को देखते हुए, एक विलक्षण आम नैरटिव विकसित करने या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिए गए बयानों के साथ घरेलू नीतिगत आंदोलनों के समन्वय के लिए बहुत कम प्रयास किया गया है.

अंत में, जब साइबर सुरक्षा चर्चाओं पर भारत के रुख को प्रभावित करने की बात आती है तो सिविल सोसायटी, शिक्षा, मीडिया और निजी क्षेत्र जैसे जीवंत बहु-हितधारक प्रौद्योगिकी से जुड़ी नीति संबंधी ईको सिस्टम अपेक्षाकृत निष्क्रिय बने रहते हैं. इनमें से किसी भी हितधारक की ओर से सीमित सार्वजनिक भागीदारी ही रही है. वकालत करने वाले दलों ने, शायद उचित ही, अपना समय और संसाधन ऐसे दबाव वाले घरेलू कानून को आकार देने में लगाया है जिसका मौलिक अधिकारों पर तत्काल प्रभाव पड़ता है. इसी तरह, भारतीय और विदेशी दोनों प्रौद्योगिकी कंपनियों ने उन नीतिगत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है जिनका उन पर तत्काल व्यावसायिक प्रभाव पड़ता है जैसे कि दूरसंचार विनियमन, डेटा सुरक्षा और साइबर सुरक्षा के लिए घरेलू ढाँचे का विकास. सरकार की ओर से जनता के ध्यान की कमी या उद्योग और सिविल सोसायटी  में प्रभावशाली स्वरों की कमी को देखते हुए, मीडिया संगठनों ने बड़े पैमाने पर संयुक्त राष्ट्र में चर्चाओं का ठोस कवरेज प्रदान करने से परहेज किया है. बहु-हितधारक ईको सिस्टम सरकार के निष्क्रिय रुख को सक्षम बनाता है क्योंकि विभिन्न घरेलू निर्वाचन क्षेत्रों के अलग-अलग हितों पर प्रतिक्रिया देने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है.

तुलना के बिंदु के रूप में, वैश्विक डिजिटल व्यापार संबंधी बहस के प्रति भारत का दृष्टिकोण बहुत अलग रहा है. भारत ने WTO में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सक्रिय रूप से अपना रुख स्पष्ट किया है क्योंकि WTO में परिणाम कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं और उनके वास्तविक समय पर कानूनी और नीतिगत निहितार्थ होते हैं. इसके फलस्वरूप,सभी हितधारकों ने सक्रिय रूप से व्यापार वार्ता में भारत की स्थिति को इस तरह से आकार देने की माँग की है जो उनके व्यावसायिक हितों या वैचारिक प्राथमिकताओं के अनुरूप हो.

साइबर सुरक्षा बहुपक्षवाद का भविष्य
साइबर सुरक्षा वार्ताओं में भारत की सापेक्ष निष्क्रियता नीतिगत निर्णय लेते समय देश के लिए पैंतरेबाजी के लिए महत्वपूर्ण रास्ते खोल देती है.उदाहरण के लिए, चीनी विक्रेताओं को भारत के 5G परीक्षणों में भाग लेने से प्रतिबंधित करने के निर्णय ने 2020 में गलवान घाटी में आमने-सामने के संघर्ष के बाद एक निर्णायक मोड़ ले लिया. 5G का निर्णय चीन या पश्चिम के प्रति वैचारिक प्रतिबद्धता के बजाय आर्थिक और सुरक्षा हितों के व्यावहारिक वास्तविक मूल्यांकन से प्रेरित था.

बेशक, वैचारिक निष्क्रियता का मतलब यह भी है कि भारत इंटरनैट पर वैश्विक मानक एजेंडा को आकार देने के अवसर से बचता है - कुछ ऐसा जो निश्चित रूप से भारत की वैश्विक नेतृत्व आकांक्षाओं के अंश के रूप में एजेंडे में होना चाहिए. भारत नेतृत्व की अपनी भूमिका को अलग ढंग से  देखता है. अब तक, भारत ने उन चीज़ों का निर्यात करके नेतृत्व का प्रदर्शन किया है जिन्हें सरकार सफल घरेलू सर्वोत्तम प्रथाओं के रूप में मानती है, जैसे कि "डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर", जो भारत के हाल ही में संपन्न G20 प्रेसीडेंसी में केंद्र स्तर पर मौजूद था. उपर्युक्त वैश्विक साइबर सुरक्षा पोर्टल की वकालत इस दृष्टिकोण के अनुरूप है - अधिक अमूर्त और विवादास्पद मानक प्रश्नों पर राय देने के बजाय कार्रवाई योग्य मॉडल प्रस्तावित करने चाहिए.

साइबर सुरक्षा या रणनीतिक प्रौद्योगिकी पर भारत के साथ साझेदारी करने के इच्छुक देशों के लिए यह महत्वपूर्ण था. व्यापक लेबल के माध्यम से साइबर प्रशासन के प्रति भारत के दृष्टिकोण का मूल्यांकन या भविष्यवाणी करना या साइबरस्पेस पर भारत की सैद्धांतिक स्थिति को समझना एक व्यर्थ खोज है. भारत के वैचारिक रूप से अज्ञेयवादी दृष्टिकोण को इंडोनेशिया जैसे अन्य तथाकथित "डिजिटल निर्णायकों" द्वारा भी अपनाया गया है. विलक्षण घरेलू राजनीतिक ताने-बाने पर आधारित इन तेज़ी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं पर बाहरी वैचारिक निर्माणों को थोपने के बजाय, उन प्रक्रियाओं, मुद्दों या परिणामों की बेहतर सराहना करना महत्वपूर्ण है जो वास्तव में इन देशों के लिए मायने रखती हैं, जो परिणामी निर्णय लेने के लिए प्रेरित करते हैं.

यह उन ठोस मुद्दों या तकनीकी समाधानों की पहचान करने में मदद करता है जो भारत के तत्काल हित में हैं और जो सहयोग के इष्टतम तरीकों का मूल्यांकन करते हैं - जो ज़रूरी नहीं कि बहुपक्षीय सेटिंग्स के माध्यम से हो.

बढ़ती वैचारिक अज्ञेयवादिता साइबर सुरक्षा बहुपक्षवाद के लिए मौत की घंटी नहीं लगती. इसके विपरीत, ठोस परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने से बढ़ते भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण के बीच बहुपक्षवाद की प्रासंगिकता बनी रहती है. कानूनी रूप से बाध्यकारी परिणामों के अभाव में भी, खासकर तकनीकी और भू-राजनीतिक प्रगति की तीव्र गति के आलोक में बहुपक्षीय सैटिंग सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान करने, शिकायतों को प्रकट करने और सूझ-बूझ को स्पष्ट करने के लिए आदर्श स्थान बनी हुई है. ये बातचीत और संपर्क बिंदु विशेष रूप से उभरती लेकिन तेज़ी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं का प्रबंधन करने वाले विकासशील देशों के लिए मायने रखते हैं.  खास तौर पर साइबर सुरक्षा के मानदंडों के प्रति भारत का दृष्टिकोण इस बात पर लागू नहीं हो सकता है कि भारत अन्य वैश्विक मंचों को कैसे देखता है, जिनमें से प्रत्येक का भारत के हितों, संस्थानों और व्यापक राजनीतिक ईको सिस्टम पर अपने विलक्षण निहितार्थ और प्रभाव होंगे. भू-राजनीतिक गुटों के नेताओं और उनके सहयोगियों के लिए वैचारिक लड़ाई जीतना और निरंतरता प्रदर्शित करना महत्वपूर्ण हो सकता है.परंतु, जटिल भू-राजनीतिक समीकरण भारत जैसे महत्वपूर्ण देशों को लंबे समय तक अच्छी तरह लड़ने या जीतने के बजाय तत्काल और ठोस परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.

अरिन्द्रजीत बसु लाइडन युनिवर्सिटी फैकल्टी ऑफ गवर्नेंस ऐंड ग्लोबल अफ़ेयर्स में पीएच.डी कर रहे हैं. यह लेख 2023 में प्रकाशित दो पुस्तकों के अध्यायों से लिया गया है. उन्हें यहीं और सिर्फ़ यहीं देखा जा सकता है.

 

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (हिंदी), रेल मंत्रालय, भारत सरकार

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