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क्या चीन में आई कोयले की तेज़ी भारत में भी जारी रहेगी ?

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01/06/2015
फ़िलिप एम. हेनम

इस वर्ष के उत्तरार्ध में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में जलवायु पर जो वार्ताएँ होने जा रही हैं उनमें सारी अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान भारत पर ही टिका हुआ है. भारत को उम्मीद है कि कोयला-बहुल औद्योगीकरण पथ के कारण सन् 2030 तक इसका कोल फ़्लीट बढ़कर दुगुना हो जाएगा. यह अनुभव लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं ने किया है और चीन को भी इसका ताज़ा अनुभव अभी हाल ही में हुआ है.  

यद्यपि वैश्विक कोयले की लगभग आधी खपत तो चीन में ही हो जाती है और अब वह नई नीतियाँ लागू करके  और आर्थिक विकास दर को कम करके कोयले की अपनी घरेलू खपत को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने जा रहा है. कई वर्षों तक कोयले की बिजली साप्ताहिक रूप में लगभग 1.5 गीगावॉट तक इन्स्टॉल रहने के बाद चीन की घरेलू कोयला खपत सन् 2014 में कम हो गई. साथ ही कोयला बिजली क्षमता की दर केवल इसी वर्ष में (सन् 2012 में सभी स्रोतों से इन्स्टॉल की गई दक्षिण अफ्रीका की समग्र बिजली क्षमता के लगभग समकक्ष) धीमी हो गई, हालाँकि 42 गीगावॉट तक इसे इन्स्टॉल करने की आशा थी.

चीन से कोयले की हलचल का केंद्र बदल जाने का यह अर्थ नहीं है कि चीन अब वैश्विक कोयले की तेज़ी का हिस्सा नहीं रहा. चीनी निर्माताओं में कोयला बिजली के उपकरणों की भरमार होने के कारण ही चीन अग्रणी निर्यातक देश बन गया है और इसमें उन्हें सरकार से संबद्ध बैंकों की सहायता मिलने और निर्यात ऋण मिलने के कारण काफ़ी बल मिला. इससे भारत के बिजली  क्षेत्र से संबंधित विभाग को महत्वपूर्ण संकेत मिल सकते हैं.   


नई अर्थव्यवस्थाएँ खोजने के लिए
इकॉनॉमीज़ ऑफ़ स्केल

चीन के विशाल कोयला बिजली निर्माण बेस के लिए भारत एक नया बाज़ार बन गया है. चीन के ऑफ़ द शैल्फ़ उपकरण बहुत सस्ते हैं और लार्सन ऐंड टूब्रो (L&T) और भारत हैवी इलैक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL) जैसे प्रमुख गैर सरकारी और सरकारी घरेलू उत्पादकों की तुलना में उनके साथ कारोबार भी कहीं अधिक तेज़ी से किया जा सकता है. OECD के अनुसार OECD में निर्यात प्रतियोगी आधिकारिक तौर पर समर्थित निर्यात ऋणों के लिए OECD की व्यवस्थाओं से संबंधित प्रतिबंधात्मक निर्यात ऋणों के नियमों से बँधे होते हैं, जबकि चीन को इनकी परवाह नहीं होती. चीन के घरेलू बाज़ार में मंदी आने के बाद चीन के तीन सबसे बड़े तापीय विद्युत् उपकरण निर्माताओं, शंघाई इलैक्ट्रिक, डॉन्गफ़ैंग इलैक्ट्रिक और हर्बिन इलैक्ट्रिक ने विदेशों के साथ कारोबार की खोज शुरू कर दी.  

 

 

चित्र 1:  डॉन्गफ़ैंग, हर्बिन और शंघाई इलैक्ट्रिक से संबंधित कोयला बिजली  इंस्टॉलेशन. प्रमुख चीनी बिजली  उपकरण निर्माता चीनी बाज़ारों (लाल रंग से इंगित) के लबालब भरे होने के कारण विशेषकर भारत (नारंगी रंग से इंगित) जैसे नये बाज़ारों के साथ समायोजन करते दिखाई देते हैं. [डैटाः प्लैट्स 2015]


पिछले दशक में निजी विकासकर्ताओं से कोयला बिजली संबंधी उपकरणों के जो ऑर्डर मिले हैं, उनमें से 60 प्रतिशत ऑर्डर उन चीनी विक्रताओं के हैं, जिन्हें आम तौर पर चीनी सरकारी बैंकों से 100 गीगावॉट से अधिक कोयला बिजली इंस्टॉल करने के लिए वित्तीय सहायता मिली है या ऐसी चीनी कंपनियाँ हैं, जिनके ऑर्डर अभी पाइपलाइन में हैं. रिलाएंस पावर ने सन् 2011 में भारत में 16 गीगावॉट कोयला बिजली बनाने को इच्छुक चीनी सरकारी बैंकों के कंसोर्शियम के साथ $5 बिलियन डॉलर के एक MOU पर हस्ताक्षर किये हैं. इसके कारण कोयले की बड़ी योजनाओं के लिए कम लागत का वित्तपोषण पैकेज हासिल करने के लिए अन्य बिजली  विकासकर्ताओं में चीनी वित्तपोषण के लिए होड़-सी लग गई है. इनमें लैंको इन्फ्राटैक, अडानी और जिंदल जैसी कंपनियाँ शामिल हैं.  

योजना आयोग के महत्वाकांक्षी, किंतु अधूरे बिजली क्षमता के अतिरिक्त लक्ष्यों के आधार पर चीनी उपकरणों से संबंधित परियोजनाओं को वित्त के साथ या उसके बिना भी पूरा करने की संभावना है. तथापि तेज़ी से होने वाली डिलीवरी, सस्ते वित्तपोषण और सस्ते कार्यसंचालन के कारण इस क्षेत्र को प्रोत्साहन मिला है और इसके व्यापक निहितार्थ भी हो सकते हैं.

चित्र 2: भारत में डॉन्गफ़ैंग, हर्बिन और शंघाई इलैक्ट्रिक से संबंधित नये कोयला बिजली इंस्टॉलेशन. सन् 2008 के आसपास चीनी उपकरणों की शुरुआत होने लगी थी. [डैटाः प्लैट्स 2015 ]

कितना कोयला ?

भारत के प्रयास ऐनर्जी ग्रुप की अगस्त, 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार 513 गीगावॉट के कोयला बिजली क्षमता के प्रस्ताव भारत के वन मंत्रालय में समीक्षा और अनुमोदन के विभिन्न स्तरों पर थे. अनुमोदन की इस प्रक्रिया के दौरान कुछ परियोजनाओं को ऐतिहासिक ढंग से अस्वीकृत कर दिया गया था, लेकिन कोयला बिजली की प्रस्तावित मात्रा जो भारत की वर्तमान स्थापित क्षमता से पाँच या छह गुना अधिक है, कहीं अधिक बढ़ी हुई क्षमता है जिसके कारण भारत को बिजली के नियोजन की प्रक्रिया की आवश्यकता है.  

भारत में आधिकारिक तौर पर नियोजित क्षमता  में 12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के दौरान 60 प्रतिशत (118.5 गीगावॉट में से 69.8 गीगावॉट) कोयले की वृद्धि हुई. 13 वीं पंचवर्षीय योजना (2018-22)  में भी इसी प्रकार से कोयले में वृद्धि की संभावना है

अगर हम कोयले में आई तेज़ी से संबंधित आधिकारिक आँकड़ों पर भरोसा करें और पाइपलाइन में पड़े 513 गीगावॉट के आँकड़ों की अनदेखी कर दें तो भी अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में हमारी योजनाएँ काफ़ी महत्वाकांक्षी हैं.  सन् 2022 तक भारत के  “जवाहर नेहरू सौर ऊर्जा मिशन” में सौर ऊर्जा का लक्ष्य 100 गीगावॉट और पवन ऊर्जा का लक्ष्य 60 गीगावॉट रखा गया है.

भारत में कोयले का भविष्य उज्ज्वल होगा या नहीं, यह एक खुला प्रश्न है. भारत सरकार घरेलू सप्लायरों की प्रतियोगिता के प्रति संवेदनशील तो है, लेकिन भारत के कोयला बिजली बाज़ार में चीनी सफलता का विरोध अधूरे मन से ही किया जा रहा है. सन् 2012 में घरेलू निर्माताओं ने बहुत जोर-शोर से दबाव डाला था, जिसके परिणामस्वरूप चीनी कोयला बिजली से संबंधित उपकरणों पर 21 प्रतिशत शुल्क लगवाने में वे कामयाब भी हो गए थे और इसी कारण से और खास तौर पर रुपये के अवमूल्यन के कारण चीनी आयात का आकर्षण भी कम हो गया था.

केंद्र सरकार की अपनी बिजली उत्पादन कंपनी राष्ट्रीय ताप बिजली निगम (NTPC) और बिजली उत्पादन की कई अन्य सरकारी कंपनियों ने चीन से इस आधार पर उपकरण लेना बंद कर दिया था कि उनके उपकरणों की गुणवत्ता ठीक नहीं है, भले ही उन पर घरेलू निर्माताओं का कितना ही दबाव क्यों न रहा हो.  

लेकिन भारत सरकार घरेलू निर्माताओं के साथ चीनी प्रतियोगिता को बिजली उत्पादन की लागत कम होने का कारण मानती है और ग्राहकों के लिए भी यही संतोष की बात है. हाल ही में चीन के दौरे के समय प्रधान मंत्री मोदी ने भी उन औद्योगिक पार्कों के काम में तेज़ी लाने पर ज़ोर दिया था. इनमें वे चीनी कोयला बिजली उपकरण सेवा केंद्र भी शामिल होंगे जिनसे भारत में ऑपरेट होने वाले चीनी कोयला बिजली उपकरणों को सहायता मिलेगी और जिनकी चर्चा सितंबर, 2014 के MOUs में की गई थी. इससे चीनी उपकरणों के रख-रखाव को लेकर विकासकर्ताओं में व्याप्त गहरी चिंता भी दूर हो सकेगी. 

परंतु घरेलू उपकरण निर्माताओं के हाल ही के संघर्ष का एकमात्र कारण चीनी उपकरणों की बाढ़ ही नहीं था. बिजली की अपेक्षित माँग से कहीं कम कोयला खंड की पुनर्नीलामी, आयात के लिए कोयले के मूल्य में घट-बढ़ और परियोजना की लागत की कमज़ोर आरंभिक संरचना ने मिलकर कोयला बिजली क्षेत्र में गतिरोध पैदा कर दिया है.

दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में अगर देखें तो पाएँगे कि चीनी सहायता प्राप्त बिजली उपकरणों के आयात से केंद्रीय बिजली की नियोजन प्रक्रिया पर दो प्रतिकारी प्रभाव पड़ सकते हैं. एक ओर कोयला बिजली को सहायता मिलने से कोयला-आधारित विकास का मॉडल कम खर्चीला होगा और प्रतियोगिता के माध्यम से घरेलू क्षेत्र की क्षमता में वृद्धि होगी. इसप्रकार कोयले से उत्पन्न बिजली की विकास दर में वृद्धि होगी. यह मानकर कि पाइपलाइन में पड़ी परियोजनाओं में अंततः वृद्धि होगी, सस्ती दर पर कोयला बिजली के सस्ते चीनी उपकरणों को खरीदने वाले निजी विकासकर्ताओं को एहसास होगा कि उन्हें अपनी लागत का लाभ मिल रहा है और वे वैकल्पिक बिजली के स्रोतों के बजाय कोयले के विकास में अपनी मानवीय और वित्तीय पूँजी लगाना जारी रखेंगे. 

दूसरी ओर बिजली क्षेत्र के भारतीय निर्माता, जो राजनैतिक दृष्टि से भी सशक्त हैं, चीनी कंपनियों के मुकाबले प्रतियोगिता में पीछे रह जाते हैं और कोयला–आधारित विकास मॉडल को बनाये रखने का उनका राजनैतिक दबाव भी कम हो जाता है. भेल और अन्य बड़ी भारतीय निर्माता कंपनियों में ताप विद्युत् के क्षेत्र में काफ़ी निवेश हुआ है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में होने वाले लाभ के कारण उनका भी काफ़ी हद तक विशाखीकरण हो गया  है. विशाखीकृत विभागों और क्षमताओं वाली कंपनियाँ सौर और पवन ऊर्जा के विस्तार के लिए सरकारी योजनाओं को कोयले के लिए दीर्घकालीन बाज़ार खुलने की कीमत पर भी सहयोग प्रदान करेंगी.

लगता है कि इस प्रकार अब तक कोयला निर्माण के क्षेत्र में हुए विलंब के कारण अक्षय ऊर्जा के लिए शुभ संकेत मिलने लगे हैं. जब सन् 2010 में 22 गीगावॉट के सोलर मिशन की घोषणा की गई थी, तभी यह बहुत महत्वाकांक्षी लगता था, लेकिन सन् 2014 में तो इसकी क्षमता में भी वृद्धि हो गई (4 गीगावॉट के स्थापित सोलर बेस के ऊपर). एक अनुमान (जिसमें सौर ऊर्जा के क्षेत्र में रुक-रुक कर होने वाले अवरोध में संतुलन बनाये रखने के लिए ऊर्जा के भंडार की लागत भी शामिल है) के अनुसार $140-160 बिलियन डॉलर के वित्तपोषण के साथ विकास में अप्रत्याशित तेज़ी की आवश्यकता है. सौर और पवन ऊर्जा की क्षमता के कारण इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए भारत सरकार के बढ़ते आत्मविश्वास से हाल ही में कोयला क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का संकेत मिलता है.

इसके परिणामस्वरूप भारत में कोयले के क्षेत्र में आई तेज़ी प्रच्छन्न रूप में है. अगर कोयला बिजली क्षेत्र अपनी वर्तमान कार्यविधिपरक और न्यायिक बाधाओं को पार करने में कामयाब हो जाता है तो इस क्षेत्र में बहुत तेज़ी से वृद्धि होगी और चीन से आयातित सस्ते उपकरणों से इस वृद्धि को और भी बल मिलेगा. कोयला बिजली क्षेत्र से जुड़ी चीनी और भारतीय कहानियाँ लगातार एक दूसरे से जुड़ती जा रही हैं. इन गतिविधियों का जलवायु पर भारी दबाव पड़ेगा.

फ़िल हेमन प्रिंसटन विश्वविद्यालय में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण नीति में पीएचडी के उम्मीदवार हैं, जहाँ वे वैश्विक ऊर्जा शासन में चीनी भूमिका का अध्ययन कर रहे हैं. वे दिल्ली स्थित नीति शोध केंद्र में विज़िटिंग स्कॉलर हैं. 

 

हिंदी अनुवादः विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919