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उड़ान-योजनाओं में अवरोधः भारतीय ड्रोन उद्योग के विनियमों में व्याप्त उदासीनता

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27/02/2017
अनंत पद्मनाभन

लगभग एक साल पहले नागरिक विमानन के भारतीय महानिदेशालय (DGCA) ने ड्रोन के दिशा-निर्देशों का प्रारूप जारी किया था. भारत में अपेक्षाकृत नया उद्योग होने के कारण इन विनियमों के महत्व को देखते हुए अनेक उद्योग निकायों और स्टार्टअप्स ने इस पर अपना फ़ीडबैक दिया था और समयबद्ध कार्रवाई करने का आग्रह किया था. इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि ड्रोन के अनेक व्यावहारिक उपयोग हैं. भारत में कुछ स्टार्टअप तो ऐसे हैं जो ड्रोन में विभिन्न क्षेत्रों में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में जुटे हैं. जैसे, आपदा प्रबंधन, सटीक (प्रिसीज़न) खेती-बाड़ी और फसल बीमा, खनन, बुनियादी ढाँचे से जुड़ी परियोजनाएँ और भूमि अभिलेख. विभिन्न राज्य सरकारों और रेलवे, भूतल परिवहन, पावर और विधि प्रवर्तन जैसे मंत्रालयों में ड्रोन के बढ़ते विभिन्न अनुप्रयोगों से इसकी क्षमता की और भी पुष्टि जाती है.

तथापि भारतीय विनियामक संस्थाओं का दृष्टिकोण ड्रोन के नवप्रवर्तनों और अनुप्रयोगों को विकसित करने में अब तक बाधक ही रहा है. नौकरशाही की सामान्य उदासीनता के साथ-साथ अनेक प्रकार की अन्य देरियों के कारण शुरुआत में ही दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देने में काफ़ी विलंब हो चुका है. नागरिक विमानन के भारतीय महानिदेशालय (DGCA) द्वारा अक्तूबर, 2014 में पहली सार्वजनिक अधिसूचना जारी की गयी थी, जिसमें घोषणा की गई थी कि कोई भी गैर-सरकारी एजेंसी, संगठन या व्यक्ति किसी भी प्रयोजन के लिए मानवरहित विमान प्रणाली को लॉन्च नहीं कर सकता, जब तक कि इसके लिए बाध्यकारी विनियम जारी नहीं किये गये हों. चूँकि अप्रैल, 2016 के दिशा-निर्देश अभी-भी प्रारूप की स्थिति में हैं, इसलिए पिछले आदेश अभी-भी प्रचलन में हैं. अट्ठाईस महीनों से लगी रोक के रहते न तो नवप्रवर्तन हो सकता है और न ही प्रौद्योगिकीय अनुकूलन की गुंजाइश है, भले ही स्थानीय विधि प्रवर्तन एजेंसियों से ग्रे क्षेत्र की अर्ध-अनुमति लेकर कुछ निजी खिलाड़ियों ने इस दिशा में कुछ काम शुरू कर दिया हो. वैसे भी विनियम अक्सर नवप्रवर्तन के पीछे ही चलते हैं, लेकिन आम डिफ़ॉल्ट स्थिति में स्पष्ट प्रतिबंध की स्थिति तो नहीं रहती, लेकिन इसमें कुछ गुंजाइश बनी रहती है, लेकिन नागरिक ड्रोनों पर प्रतिबंध होने के कारण काफ़ी जोखिम बना रहता है. इसके कारण विधि प्रवर्तन एजेंसियों को मौका मिल जाता है कि वे किसी भी बहाने से उपयोक्ता की परीक्षण संबंधी गतिविधियों पर आधिकारिक रूप से रोक लगा दें, उन पर मामला दर्ज कर दें और उन्हें गिरफ़्तार भी कर लें. उपयुक्त कानून बनाने में देरी होने से विनियामक ढिलाई के कारण विनिवेशकों की दिलचस्पी स्वभावतः कम हो जाती है और अनुसंधान के कामों में कोई पहल नहीं करता.

दिशानिर्देशों के प्रारूप में, खास तौर पर सिविलियन ड्रोन के ऑपरेशन के कारण संपत्ति के बेतरतीब निवारण में और निजता के सरोकारों में, “ड्रोन संघवाद” से जुड़े नियमों की संभावित जोड़-तोड़ में और इस क्षेत्र में उभरती प्रौद्योगिकीय क्षमताओं के प्रति उदासीनता के कारण काफ़ी गंभीर विनियामक अंतराल और खामियाँ रह जाती हैं. इस प्रारूप में सुरक्षा संबंधी सरोकारों पर काफ़ी ज़ोर दिया गया है और दिया भी जाना चाहिए. इसीलिए सत्यापन, प्रशिक्षण और ड्रोन ऑपरेटरों को परमिट देने के लिए इसमें व्यापक प्रावधान किये गये हैं. ऑपरेशन के लिए उपयुक्त वायुमंडलीय शर्तों से संबंधित स्पष्ट नियम बनाये गये हैं और नियंत्रित हवाई क्षेत्रों में ड्रोन ऑपरेशनों पर रोक लगायी गयी है. फिर भी इसमें दो महत्वपूर्ण सरोकारों की अनदेखी की गयी है: संपत्ति और निजता (प्राइवेसी).

संपत्ति से संबंधित सरोकार तब पैदा होते हैं जब मानव-चालित विमानों के विपरीत नागरिक ड्रोन निचली ऊँचाई पर उड़ान भरते हैं, आँकड़े जमा करते हैं और सुदूर संवेदन (रिमोट सेंसिंग) की तकनीक का उपयोग करते हैं. कई ड्रोन ऑपरेटर युटिलिटी कंपनियों और अन्य क्षेत्रों को बिग डैटा और विश्लेषणपरक समाधान उपलब्ध कराते हैं और उम्मीद की जा रही है कि यह बाज़ार और बढ़ेगा. लेकिन जैसे-जैसे यह बढ़ेगा, ज़मीन के मालिकों और ड्रोन ऑपरेटरों के बीच विवाद और भी बढ़ेगा, क्योंकि ज़मीन के ऊपर के हवाई क्षेत्र की सीमाएँ स्पष्ट नहीं हैं और साथ ही संभावित ऊँचाई की वह रेंज भी स्पष्ट नहीं है कि ऐसी मिल्कियत का विस्तार कहाँ तक है.   ऐसे मामले को स्पष्ट करने पर ही ड्रोन ऑपरेटरों द्वारा किये गये सीमा के उल्लंघन के दावों का निपटान किया जा सकेगा. अमरीका में अदालतों ने हवाई क्षेत्र की मिल्कियत के विवाद में पड़ने पर यह सिद्ध करने के बजाय कि किस हद तक हवाई क्षेत्र का वास्तव में उल्लंघन किया गया है, इस बात पर ज़ोर दिया है कि यह कितना घातक रहा है. लेकिन इस संबंध में भारतीय अदालतों और विधि-निर्माताओं द्वारा किसी भी प्रकार के दिशा-निर्देश ज़ारी न किये जाने के कारण अनिश्चितता बनी हुई है और इन समस्याओं के समाधान का कोई रास्ता भी नहीं सुझाया गया है.

साथ ही बिग डैटा के कारोबारी मॉडल के सामने निजता के उल्लंघन की गंभीर चुनौतियाँ भी हैं. जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी का विकास होता जाएगा, भारी ऊँचाइयों से बेहतर किस्म की इमेज को प्राप्त करना भी धीरे-धीरे आसान होता जाएगा. भारत में निजता का ठोस कानून न होने से ड्रोन-समर्थित समाधानों के कारण निजता की मूल अवधारणा ही ध्वस्त होने लगेगी. यह समस्या तब और बढ़ेगी जब इसका इस्तेमाल पत्रकारों और कानून लागू करने वाली एजेंसियाँ करेंगी. दिशा-निर्देशों के अंतर्गत एक ऐसी व्यापक नियमावली होनी चाहिए, जिससे डैटा प्राप्ति को विनियमित किया जा सकता हो और निजता के उल्लंघन के मामलों से निबटा भी जा सकता हो. इसके बजाय आज की स्थिति में दिशा-निर्देशों में निजता का उल्लेख दिशा-निर्देश सं. 10.4 के अंतर्गत बहुत ही सतही रूप में किया गया है. इतने नाज़ुक मामले वाले सरोकार में भी प्रभावी बचाव के रूप में यह बात बिना किसी औचित्य के ड्रोन ऑपरेटरों की सद्भावना पर छोड़ दी गयी है.

इन दिशा-निर्देशों में “ड्रोन संघवाद” के परिणामस्वरूप ओवरड्राइव के संभावित नियमों को बनाने के प्रति भी उदासीनता ही बरती गई है. यह स्थिति तब उत्पन्न होगी जब संबंधित राज्य अपने नियम बनाने लगेंगे और ये नियम राष्ट्रीय विनियामक नियमावली से संबद्ध हो जाएँगे. ऊपर उल्लंघन और निजता के जिन सरोकारों को उजागर किया गया है, उन्हें अपराध के कानून में “वाद योग्य भूल” कहा जाता है अर्थात् गैर-सांविधिक सामान्य कानून के दावे को अदालतें अपने निर्णय के रूप में सुनाने लगी हैं और इस प्रकार भारत के संघीय ढाँचे में यह समवर्ती सूची का ही एक भाग है. इसलिए जब तक संघ सरकार दखल नहीं देती तब तक राज्य सरकारें कानून बनाकर इन समस्याओं का समाधान कर सकती हैं. साथ ही ज़मीन में और उसके ऊपर के अधिकार राज्यों के विशेषाधिकार का ही एक हिस्सा होते हैं. इस प्रकार ड्रोन का ऑपरेशन संघीय सरकार के क्षेत्राधिकार में आ सकता है. ज़मीन के ठीक ऊपर के हवाई क्षेत्र की मिल्कियत का निर्धारण उन राज्यों में ही हो सकता है, लेकिन निजता, उल्लंघन और अन्य सिविल दावे दोनों के ही क्षेत्राधिकारों में आते हैं. नियमों और नियम-निर्माताओं की संभावित भरमार से बचने के लिए नागरिक विमानन मंत्रालय को चाहिए कि वह तत्काल ऐसे नियम बनाए ताकि पूरे भारत के विनियामक ढाँचे में तारतम्य आ सके. विभिन्न राज्यों द्वारा बनाये गये समान प्रकार के नियमों की बहुलता के कारण भारत के ऑन लाइन कैब ऐग्रीगेटरों को इन नियमों के अनुपालन में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और ऐसे हस्तक्षेपों के कारण ही यह मामला और भी मज़बूत होता जाता है.

अंततः ये दिशा निर्देश स्थिर प्रौद्योगिकी की क्षमताओं का पूर्वानुमान करके ही आगे बढ़ते हैं.   प्रारूप के प्रस्ताव में ड्रोन ऑपरेटरों द्वारा दृष्टिपथ के पार जाकर किये जाने वाले ऑपरेशनों को शामिल करके सबसे बढ़िया उदाहरण सामने रखा जा सकता है. दिशा निर्देशों में केवल दृष्टिपथ में रहने वाले ऑपरेशनों की ही अनुमति दी गई है. साथ ही सुदूर (रिमोट) ड्रोन ऑपरेटर ड्रोन के साथ बिना किसी मदद के दृष्टिपथ पर सीधा संपर्क बनाये रखते हैं और ड्रोन और ऑपरेटर के बीच की दूरी 500 मीटर से अधिक नहीं होती. इस अपेक्षा के पीछे का तर्क सुरक्षा और संरक्षा संबंधी सरोकारों से स्पष्ट रूप में जुड़ा होता है, लेकिन विकसित प्रौद्योगिकी की मदद से जल्द ही परिष्कृत सेंस ऐंड अवॉइड समाधानों की पेशकश की जा सकती है. इसलिए दृष्टिपथ की लाइन वाली सख्त नियमावली को पक्का कर देने से उसमें किसी प्रकार के परिवर्तन की गुंजाइश नहीं रह पाएगी. इसलिए ऑपरेशन की शर्तें ऐसी होनी चाहिए जिन्हें प्रौद्योगिकी के आधार पर बदला जा सके. तभी स्थितियाँ बेहतर रहेंगी.

फिर भी दिशा-निर्देशों में प्रौद्योगिकीय ऊँचाइयों को मापने का कोई प्रावधान तो नहीं होगा, लेकिन उनके अनुसार विनियामक ढाँचे को अनुकूलित करने की व्यवस्था होनी चाहिए. तेज़ी से उभरने वाली प्रौद्योगिकियों को विनियमित करते समय विनियामक की भूमिका इसे अधिक सुगम बनाने की होनी चाहिए. एक उपाय तो विनियामक सैंडबॉक्स के माध्यम से हो सकता है. यह एक ऐसी संकल्पना है जिसे यू,के. और सिंगापुर के विनियामकों ने अपनाया है. इस संकल्पना में नवप्रवर्तकों को इस बात की छूट रहती है कि वे वास्तविक वातावरण में उपयुक्त विनियामक छूट का लाभ उठाते हुए उत्पादों, सेवाओं और कारोबारी मॉडलों का परीक्षण करते रहें और इस प्रकार कानून की अवहेलना न करते हुए भी नवप्रवर्तन को लागू कर सकें. अमेज़ॉन ड्रोन की अपनी डिलीवरी के परीक्षण के संबंध में यू.के. के नागरिक विमानन विनियामकों के साथ मिलकर काम करता रहा है, जबकि भारत में भारतीय विमान अधिनियम और नियमों के अंतर्गत इस समय ऐसे परीक्षणों की अनुमति नहीं है. वस्तुतः इस प्रकार के परीक्षणों से ही आरंभिक पायलट परियोजनाओं और डैटा के आधार पर कोई भी विनियामक, ऑपरेशन संबंधी सरोकारों को बेहतर ढंग से समझ सकेगा. इसी प्रकार सिंगापुर का मौद्रिक प्राधिकरण नये वित्तीय प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोगों की भी पेशकश करता है, ताकि सैंडबॉक्स के वातावरण में उन्हें अपने उत्पादों के परीक्षण का अवसर मिल सके. विनियामक की स्वायत्तता को बढ़ाने के साथ-साथ सैंडबॉक्स की मदद से अधिकाधिक सूचनाओं पर आधारित विनियम बनाये जा सकेंगे और “इतने बड़े न हो जाएँ कि उन्हें रोका न जा सके” और “शुरुआत में ही उनका ऑपरेशन रोका जा सके” के बीच में संतुलन बनाये रखा जा सकेगा.”

वर्तमान विनियामक उदासीनता से पार पाना दो दृष्टियों से बेहद ज़रूरी है, नागरिक ड्रोन उद्योग की दृष्टि से – जिसमें एक नवप्रवर्तन की सफलता से अनेक नवप्रवर्तनों का मार्ग प्रशस्त हो सकता है और बड़ी मात्रा में विनिर्माण हो सकता है और दूसरे, इसका लाभप्रद उपयोग किया जा सकता है और समग्र रूप में अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिल सकता है. नवप्रवर्तन और विनियमों के बीच संघर्ष को टाला तो नहीं जा सकता, लेकिन नये निवेशकों और नवप्रवर्तकों को आकर्षित करने के लिए ज़रूरी है कि ऐसे संघर्ष को यथाशीघ्र सुलझाया लिया जाए. विभिन्न सरकारी विभागों या संघीय ढाँचे के अंदर रहते हुए प्रांतीय संस्थाओं के बीच कितना भी आंतरिक संघर्ष क्यों न हो, पूरे राष्ट्र को प्रौद्योगिकी के विनियामक पहलुओं के संबंध में दोनों ही पक्षों की तरफ़ से एक ही स्वर में बोलना चाहिए. 

अनंत पद्मनाभन कार्नेई इंडिया, नई दिल्ली में फ़ैलो हैं.

 

हिंदी अनुवादः डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919