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पाइप और झोपड़पट्टीः “गैर-कानूनी बस्तियों” के निवासियों के लिए मुंबई की नई प्रस्तावित जल योजना पर सोच-विचार

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23/03/2015
लीज़ा ब्रोकमैन

दो दशक पूर्व मुंबई में पाइप से सप्लाई होने वाले म्युनिसिपैलिटी के पानी की व्यवस्था संबंधी नियमों में नाटकीय परिवर्तन आया था. इस परिवर्तन के कारण ही शहर के लोकप्रिय पड़ोसी इलाकों और झोपड़पट्टी के निवासियों को म्युनिसिपल पानी की पात्रता दिलाने के लिए इन नियमों को झोपड़पट्टी पुनर्वास की आवासीय योजनाओं में शामिल कर लिया गया है. ढाँचागत योजना और सर्विस डिलीवरी के (कम से कम सिद्धांत रूप में तो ) स्थानिक और जलप्रेरित तर्कों के द्वारा पहले नियमित पानी की सप्लाई को झोपड़पट्टी पुनर्विकास योजना में पात्रता से जोड़ने के परिणाम भयावह हो चुके हैं. इसी कारण पानी की सप्लाई का अपराधीकरण हुआ था और शहर के निवासी और म्युनिसिपल कर्मचारी इस बात के लिए बाध्य हो गए थे कि ढाँचागत प्रथा के कानूनी तौर पर उलझे हुए और जलप्रवाह की दृष्टि से तबाह हुए क्षेत्र के डुप्लिकेट दस्तावेज़ तैयार किये जाएँ, अनधिकृत रूप में पानी निकाला जाए और अलग-अलग रूप में हर तरह से हस्तक्षेप किया जाए.  दो साल तक हुई बहस के बाद और जनहित याचिका (PIL) पर उच्च न्यायालय द्वारा दी गई चिर-प्रतीक्षित व्यवस्था के तुरंत बाद ही पिछले सप्ताह बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) के हाईड्रॉलिक इंजीनियरी विभाग ने झोपड़पट्टियों को पानी की सप्लाई देने के लिए ढाँचागत योजना के लिए अपने प्रस्तावित नये नियम स्थायी समिति को सौप दिये हैं, जिसमें झोपड़पट्टी पुनर्विकास योजनाओं के लिए पात्रता को पानी की सप्लाई से अलग करने का प्रस्ताव किया गया है. 

नब्बे के दशक तक  मुंबई जल विभाग पात्रता, कार्यकाल संबंधी जटिलताओं, मकान के कब्ज़े से संबंधित प्रमाणपत्र और विभिन्न प्रकार के उन तमाम तरह की बस्तियों, जिनमें शहर के निवासी रहते हैं, के कानूनी पक्ष से संबंधित अन्य उपायों से कोई सरोकार नहीं रखता था. 1888 का नगर निगम अधिनियम मुंबई नगर नगम को यह अधिकार देता है कि वह पाइप के पानी को “चल संपत्ति” के रूप में बेच सके. इसलिए एक वरिष्ठ और सेवानिवृत्त म्युनिसिपल इंजीनियर का कहना है कि जल विभाग का वस्तुतः यह अधिकार है कि वह जिसे ठीक समझे पानी बेच सकता है. इंजीनियर ने आगे बताया कि साठ के दशक में जल विभाग ने यह निर्णय लिया था कि नगर निगम अधिनियम ने जल विभाग को अधिकृत किया है कि वह चाहे तो अनधिकृत बस्तियों (या अतिक्रमण की गई ज़मीन) पर बसे निवासियों को भी पानी बेच सकता है. 

हालाँकि नब्बे के दशक से पहले नगर निगम के जल नियमों में  “झोपड़पट्टियों”  में बसे निवासियों को पानी की सप्लाई करने का कोई उल्लेख नहीं है. इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सन् 1991 से पूर्व  –झोपड़पट्टियों की घोषणा से जुड़ा सारा कारोबार ही मोटे तौर पर शहरी क्षेत्र के कम सुविधा वाले इलाकों को नागरिक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए प्राथमिकता की सूची में सबसे पहले स्थान पर होने के करण राष्ट्रीय और राज्य स्तर की अनेक प्रकार की पहलों से घिरा हुआ है. नब्बे के दशक के आरंभ तक झोपड़पट्टियों के रूप में किसी पड़ोसी क्षेत्र की पहचान से ही नागरिक सुविधाओं की कमी का पता लगाया जा सकता था और इसी से उन तमाम कार्यक्रमों के लिए उनकी पात्रता सिद्ध हो जाती थी, जिनके ज़रिये इन कमियों को दूर करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे और उन्नयन योजनाओं की माँग की जा सकती थी. परंतु नब्बे के दशक से मुंबई की झोपड़पट्टी की नीति ही झोपड़पट्टियों के पुनर्विकास का पर्याय बन गई अर्थात् तथाकथित  निर्धारित तारीख से पात्रता मिल जाने के कारण मिड-राइज़ टेनेमेंट इमारतों में तोड़-फोड़ और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो गई.   

मार्च 1991 से महाराष्ट्र शासन ने विकास नियंत्रण संबंधी नियमों की नई श्रृंखला जारी की, जिसके कारण निजी क्षेत्र के विकासकर्ताओं को हाउसिंग क्रॉस सब्सिडी के रूप में टेनेमेंट शैली की झोपड़पट्टियों के पुनर्विकास के लिए आवासीय प्रोत्साहन विकास के अधिकार मिल गये. यह आशा की गई थी कि भवन निर्माताओं को विकास के अधिकार के रूप में क्षतिपूर्ति करके राज्य सरकार को बहुत ही कम दाम पर या शायद बिना किसी दाम के ही टेनेमेंट उपलब्ध हो जाएँगे. झोपड़पट्टी पुनर्विकास योजना का मूल भाव ही यही है कि शहर –भर की झोपड़पट्टियों को तोड़कर उनके स्थान पर विशिष्ट विपणन तंत्र का उपयोग करते हुए मिड-राइज़ टेनेमेंट का पुनर्निर्माण किया जाए, लेकिन आलोचकों को डर है कि इस नीति को कानूनी रूप प्रदान करने से ( पुनर्विकास योजना के अंतर्गत मकान लेने के लिए) नई झोपड़पट्टियों के आवासन को वस्तुतः बल ही मिलेगा. यही कारण है कि राजनेताओं ने दो भागों की एक रणनीति के माध्यम से नई झोपड़पट्टियों को रोकने का प्रयास किया है: पहली रणनीति तो यह है कि ऐसे सभी गृहस्थों को पुनर्विकास की पात्रता से वंचित कर दिया जाए जो 1 जनवरी, 1995 की निर्धारित तारीख से उस बस्ती में रहने का कोई दस्तावेज़ी प्रमाण न दे सकें और दूसरी रणनीति यह है कि नई झोपड़पट्टी पुनर्वास योजना जारी होने के तुरंत बाद ही सन् 1996 में महाराष्ट्र शासन द्वारा जारी किये गये परिपत्र के अनुसार जिन बस्तियों, इलाकों और लोगों को नागरिक सुविधाओं की अनुमति नहीं दी गई थी, वे भी झोपड़पट्टी पुनर्वास की पात्रता की निर्धारित तारीख तक उसके पात्र नहीं हो सकते थे. 

झोपड़पट्टी पुनर्वास की पात्रता को पानी की सप्लाई से जोड़ने के कारण जल विकास के लिए एक अत्यंत गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है. उदाहरण के लिए शिवाजी नगर – बैंगनवाड़ी की एक म्युनिसिपल कॉलोनी है, जिसमें गोवंडी के मध्य-पूर्वी पड़ोस के पाँच लाख लोग रहते हैं. इसकी योजना सत्तर और अस्सी के दशक में बनी थी. उसके बाद के दशकों में कॉलोनी के किनारे के ग्रिड वाले इलाकों के बाहर अनेक अनियोजित बस्तियाँ बन गईं. उदाहरण के लिए कमला रमण नगर के पड़ोस को अस्सी के दशक में 1972 के महाराष्ट्र झोपड़पट्टी अधिनियम के प्रावधान के अनुसार आधिकारिक तौर पर झोपड़पट्टी के रूप में “घोषित” कर दिया गया. यह उल्लेखनीय है कि कमला रमण नगर को “झोपड़पट्टी” के रूप में घोषित करने से “गैर कानूनी” भूमि का उपयोग “कानूनी” नहीं हो गया. बस इससे यही सुविधा हुई कि इसके कारण ढाँचागत सुविधाओं की दृष्टि से कम म्युनिसिपल सेवाओं वाले पड़ोस के कारण इसकी योजना बनाई जा सकती थी और इसमें पानी,सड़क और जलनिकासी की म्युनिसिपल सुविधाएँ प्रदान की जा सकती थीं. उदाहरण के लिए अस्सी के दशक में जल विभाग ने व्यवस्थित रूप में इसकी योजना बनाई और पड़ोस के ज़रिये पानी की मेन लाइन बिछाई और इसके फलस्वरूप शिवाजी नगर – बैंगनवाड़ी की नियोजित कॉलोनी में पहले से ही दबाव झेल रहे वितरण नैटवर्क में प्रैशर कम हो गया. इस प्रकार, दूसरे शब्दों में कमला रमण नगर जैसे लोकप्रिय पड़ोस द्वारा खड़ी की गई चुनौती का सामना नगर निगम के इंजीनियरों ने कानूनी समस्या न मानकर इंजीनियरी की चुनौती के रूप में किया.  

शिवाजी नगर – बैंगनवाड़ी के किनारों पर बसे कमला रमण नगर जैसे अधिकांश पड़ोसी इलाके तो झोपड़पट्टी पुनर्वास की पात्रता की निर्धारित तारीख के पहले से ही (सन् 1995 की निर्धारित तारीख से पहले और 2000 की नई निर्धारित तारीख से भी पहले) मौजूद थे. आज इसका अर्थ यह है कि जो भी निवासी नये या अतिरिक्त पानी के कनैक्शन के लिए आवेदन करना चाहते हैं या फिर अपने मौजूदा कनैक्शन को वितरण नैटवर्क पर ऊँचे प्रैशर वाले पॉइंट में स्थानांतरित करना चाहते हैं, उन्हें मीटर वाली पानी की सप्लाई के लिए इंकार करने का कोई भी औचित्य नहीं है. किसी भी शहरी इलाके में जहाँ हाल ही के वर्षों में आबादी में अचानक ही नाटकीय उछाल आया है, वहाँ स्थानीय तौर पर उपलब्ध जल संसाधनों पर भारी दबाव पड़ा है, जिसके कारण वितरण नैटवर्क का प्रैशर कम हो गया है. इन इलाकों में ऐसा अक्सर ही होता है. परंतु आज उन परिवारों के लिए और कोई विकल्प नहीं है, जिन्होंने या तो अपने मकान किराये पर दे दिये हैं या ऐसे इलाके के हाल ही के बहुत ही अस्थिर हाउसिंग मार्केट में मकान खरीदा है. उनके लिए यही एक विकल्प है कि वे या तो पानी की व्यवस्था के लिए जाली दस्तावेज़ बनवाएँ या फिर किसी दलाल के मार्फ़त बिना दस्तावेज़ के ही पानी का कनैक्शन प्राप्त करें.

 

2014 के वसंत तक जल-नियमों के अंतर्विरोध इतने बढ़ गये थे कि राजनैतिक और जलप्रवाह की दृष्टि से शिवाजी नगर – बैंगनवाड़ी की उपेक्षा करना असंभव हो गया था. नीतिगत ढाँचा इतनी तेज़ी के साथ जल विभाग की एक दशक पुरानी परियोजना के महत्व को घटा रहा है कि इसके कारण पड़ोस की ज़मीन से नीचे का संपूर्ण वितरण नैटवर्क बहुत ही व्यवस्थित रूप में बदल रहा है और अपग्रेड हो रहा है और लगभग छह हज़ार व्यक्तिगत मीटर कनैक्शन पुराने बेकार पड़े ग्रिड से नये वितरण नैटवर्क में स्थानांतरित हो रहे हैं.  वास्तव में पिछले साल जब वाल्व को बंद करने और पुराने नैटवर्क को बंद करने का समय आया तो जिस सब-इंजीनियर को वाल्व ऑपरेशन का काम सौंपा गया था उसे पड़ोसी निवासियों की क्रुद्ध भीड़ का सामना करना पड़ा, जो यह माँग कर रही थी कि क्रू को फिर से वाल्व खोलने के लिए कहा जाए ताकि पुरानी, बंद और बेकार पड़ी वितरण प्रणाली में पानी की सप्लाई फिर से चालू की जा सके. बात बस इतनी ही बाकी रह गई है कि जब नगर निगम ने मुफ्त में ही हज़ारों मीटर वाले कनैक्शनों को पुराने नैटवर्क से नये ग्रिड में स्थानांतरित कर दिया है तो उतनी ही संख्या में बिना मीटर वाले कनैक्शन रह गए हैं जो अभी तक पुराने वितरण नैटवर्क से जुड़े हुए हैं. ये ऐसे कनैक्शन हैं जिनमें निवासियों ने दलाली की रकम, दूर तक लगी महँगी स्टील पाइपिंग और प्रैशर को बढ़ाने के लिए सक्शन पंप के रूप में भारी रकम खर्च की है. लेकिन कोई ऐसा नीतिगत ढाँचा नहीं है जिसके माध्यम से ये निवासी नियमित मीटर कनैक्शन के लिए आवेदन कर सकें. चूँकि उनके कनैक्शन अनधिकृत हैं, इसलिए उन्हें नये नैटवर्क में स्थानांतरित भी नहीं किया जा सकता.  जैसे ही पुराने नैटवर्क को बंद कर दिया जाता है तो ये महँगे और नाज़ुक नल पूरी तरह सूख जाएँगे. इससे तंग आकर वरिष्ठ जल इंजीनियरों ने म्युनिसिपल कमिश्नर से कहा है कि वे महाराष्ट्र शासन के शहरी विकास सचिव से अनुरोध करें कि “झोपड़पट्टियों में पानी की सप्लाई की नीति की समीक्षा की जाए और इन बस्तियों की कानूनी वैधता से पानी की सप्लाई को अलग किया जाए ” 

15 दिसंबर, 2014 को मुंबई की पानी हक समिति द्वारा दायर की गई जनहित याचिका (PIL) पर चिर प्रतीक्षित व्यवस्था देते हुए बंबई के उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि “राज्य अपने नागरिकों को इस आधार पर पानी की सप्लाई से वंचित नहीं कर सकता कि वे गैर-कानूनी तौर पर बनी बस्तियों में रहते हैं.” साथ ही नगर निगम को नई नीति बनाने के आदेश भी दिये हैं. कानूनी वैधता से पानी की सप्लाई को अलग करने के कारण नगर निगम के कर्मचारी अब अपना पूरा ध्यान पानी की सप्लाई के नियोजन,जल प्रवाह संबंधी इंजीनियरी और चिर प्रतीक्षित ढाँचागत अपग्रेडिंग, रख-रखाव और मरम्मत पर लगा सकेंगे.

 

लीज़ा ब्रोकमैन रिसर्च स्कॉलर हैं और गॉटिंज, जर्मनी के गॉटिंजन विश्वविदयालय के ट्रांस-रीजनल रिसर्च नैटवर्क (CETREN) में रिसर्च स्कॉलर हैं और ‘कैसी’ के स्प्रिंग, 2015में विज़िटिंग स्कॉलर हैं

 

हिंदी अनुवादः विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919