कोविड-19 के संकट के कारण भारतीय प्लेटफ़ॉर्म के कामगारों की तकलीफ़ें सबके सामने आ गईं. श्रमिक अधिकारों, काम के निर्धारित समय, न्यूनतम मज़दूरी, डेटा संबंधी अधिकारों और सामाजिक संरक्षण के अभाव के कारण उनके काम की अनिश्चितता और असुरक्षा और भी बढ़ गई. चूँकि लॉकडाउन बड़े शहरों में लागू किया गया था, इसलिए माँग की अधिकता के कारण डिजिटल डिलीवरी प्लेटफ़ॉर्म सर्व-उद्देशीय पिक ऐंड ड्रॉप सेवा ही बन गई.
संक्रमण के दौर में भारत (India in Transition)
इस साल विभाजन के अच्छे और बुरे दोनों ही पहलुओं का हिसाब-किताब किया गया. फ़िलिस्तीन और आयरलैंड के विभाजन के परिदृश्य आम तौर पर भारत और पाकिस्तान से जुडे हुए होते हैं. पिछले कुछ महीनों में विभाजन की प्रक्रिया के गुण-दोषों और उसकी परिणति पर तात्कालिकता के आधार पर वाद-विवाद होते रहे हैं. खास तौर पर आज के संदर्भ में जब विभाजन की यादों को राजनैतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश हो रही हो, इन दोनों देशों से प्राप्त सीख भारत के लिए बहुत मूल्यवान् होनी चाहिए.
दुनिया-भर के अनेक देशों की तरह अमरीका और भारत भी कोविड-19 के विरुद्ध लड़ाई में संलग्न हो गए हैं. पिछले साल न्यूयॉर्क इसके सबसे भयानक प्रकोप से जूझ रहा था. इस वर्ष के आरंभ में भारत भी इसकी सबसे घातक मार से ग्रस्त हो गया था. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देश के अनेक भाग ऑक्सीजन की भारी कमी से जूझ रहे थे. एक समय तो ऐसा था जब पूरे देश में एक ही दिन में 400,000 से अधिक मामले सामने आ गए थे.
कोविड-19 की महामारी के आरंभ से ही हालात चिंताजनक रहे हैं, लेकिन अब तो भारत के सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं की भरमार से हालात और भी बिगड़ गए हैं. ऐसे दावे तो आम हो गए हैं कि वायरस को जानबूझकर फैलाया गया है और अल्पसंख्यकों के कुछ समुदायों के कारण इसके फैलाव में तेज़ी आई है. चमत्कारी उपचार के तरीकों की जानकारी भी इंटरनैट पर हावी है. इनकी सच्चाई का पता लगाने के बजाय भारी मात्रा में झूठे इलाजों का दावा किया जा रहा है.